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टिप्पणी, , , , अंद्रगहना से लोटती बेर, , आपने गाँव की खूबसूरती को देखा है। खुले-खुले खेत, झूमती फसलें, लहराते तालाब,, चमकती चाँदनी, चहकते पक्षी और प्रकृति के अनेक सुंदर दृश्य हमारे मन में हलचल, मचाते हैं| इन्हें देखकर बड़ा आनंद आता है। देखने के बाद सामान्य व्यक्ति उन्हें भूल, भी जाते है, किंतु कवि का देखना औरों के देखने से अलग होता है। कवि किसी भी, दृश्य का सूक्ष्म अवलोकन करता है, वह उन दृश्यों को अपने शब्दों में पिरो लेता है और, ऐसा आकर्षक बना देता है कि पाठक या श्रोता आनंदित हो उठते हैं। हमने और आपने, भी खेतों में कई प्रकार की फसलें देखी हैं, गाँव के पोखर भी देखे हैं, वसंत का आनंद, भी लिया है, लेकिन कवि ने जिस ढंग से इन दृश्यों को उतारा है, वह बिल्कुल निराला, है-- ऐसा निराला कि कविता पढ़ते समय वे दृश्य हमारी आँखों के सामने सजीव हो, उठते हैं, हमें आनंदित कर देते हैं। कवि ने कैसे उभारा है इन दृश्यों को, आइए पढ़ते, हैं कविता- चंद्रगहना से लौटती बेर।, , उदय, , इस पाठ को पढ़ने के बाद आप, , , , , ७० गाँव के प्राकृतिक दृश्यों के बारे में बता सकेंगे;, ७ ग्रामीण परिवेश में ब्याह-शादी के दृश्य पर टिप्पणी कर सकेंगे;, , » प्रकृति-चित्रण के माध्यम से समाज के भिन्न-भिन्न व्यवहारों का उल्लेख कर, सकेंगे;, , ०» तालाब के दृश्य और उसमें घटित होने वाली घटनाओं का वर्णन कर सकेंगे;, * महत्त्वपूर्ण स्थलों की व्याख्या कर सकेंगे;, , ०» कविता का भाषा-सौंदर्य स्पष्ट कर सकेंगे।
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टिप्पणी, , मीन - मछली, , ध्यान निद्रा-ध्यान रूपी निद्रा, ध्यान, में डूबा हुआ-सा, , चट - तुरंत, , झपाटे मारना - झपटना, , देख आया चंद्रगहना, , देखता हूँ दृश्य अब मैं, , मेंड़ पर इस खेत की बैठा अकेला।, एक बीते के बराबर, , यह हरा ठिगना चना,, , बाँधे मुरैठा शीश पर, , छोटे गुलाबी फूल का,, , सज कर खड़ा है।, , पास ही मिल कर उगी है, , बीच में अलसी हठीली, , देह की पतली, कमर की है लचीली,, नील फूले फूल को सिर पर चढ़ाकर, कह रही है जो छुए यह, , दूँ हृदय का दान उसको।, , और सरसों की न पूछो, हो गई सबसे सयानी,, , हाथ पीले कर लिए हैं,, , ब्याह-मंडप में पधारी;, , फाग गाता मास फागुन, , आ गया है आज जैसे।, , देखता हूँ मैं : स्वयंवर हो रहा है, प्रकृति का अनुराग अंचल हिल रहा है, इस विजन में, , दूर व्यापारिक नगर से, , प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है।, , हक / | ख_ _ ् ़्््ख़खऊ ्ऊ्ख़्ख़ख़खख़ हिंदी 32, , चुप खड़ा बगुला डुबाए टाँग जल में,, देखते ही मीन चंचलध्यान निद्रा त्यागता है,, चट दबा कर चोंच में, नीचे गले के डालता है।, एक काले माथ वाली चतुर चिड़िया, श्वेत पंखों के झपाटे मार फौरन, टूट पड़ती है भरे जल के हृदय पर,, एक उजली चटुल मछली, चोंच पीली में दबाकर, दूर उड़ती है गगन में।, , - केदारनाथ अग्रवाल, , े,, , 8.2.1 अंश-1, , , , कविता पढ़ते हुए यह आप जान गए होंगे कि इसमें प्रकृति का सुंदर चित्रण किया गया, है। कवि चंद्रगहना नामक किसी स्थान से लौटा है। लौटते हुए निर्जन खेतों में उसने, प्रकृति के मोहक सौंदर्य के अनेक दृश्य देखे हैं और उन्हें अपनी कविता में चित्रित किया, है। आइए, इसे ठीक से समझने के लिए इस कविता की प्रारंभ की 25 पंक्तियाँ एक बार, फिर से पढ़ लें।, , कविता के प्रारंभ में पहली ही पंक्ति में कवि मानो सूचना दे रहा है-'मैं चंद्रगहना देख, आया।' लौटते हुए खेत की मेंड़ पर अकेला बैठा हुआ वह खेत और उसके आस-पास, के दृश्यों को देख रहा है | सबसे पहले उसका ध्यान खेत में उगे हुए चने की ओर जाता, है। चने के पौधे का आकार छोटा होता है | चने में गुलाबी रंग के फूल आ गए हैं। कवि, को लगता है, यह छोटे-से कद का, बित्ते भर का चना अपने सिर पर गुलाबी पाग (पगड़ी), बाँधे, सजे-सँवरे दूल्हे-सा खड़ा है।, , चना और अलसी दोनों एक ही खेत में पास-पास खड़े हैं। अलसी का पौधा दुबला-पतला, और लचीला होता है इसलिए हवा से हिलता-डुलता रहता है | कविता में अलसी के तीन, विशेषण दिए हैं-- वह हठीली है, वह देह की पतली है और उसकी कमर लचीली है।, वह पतली होने के कारण हिलती तो रहती है लेकिन तन कर सीधी भी हो जाती है।, तन कर सीधी खड़ी रहती है इसीलिए हठीली भी है। उसके सिर पर कुछ बड़े गोल, आकार की डोंड़ियाँ होती हैं, जो फूलती हैं और उन्हीं में बीज बनता है | अलसी का फूल, नीले रंग का होता है। अलसी को देखकर कवि को लगता है कि यह दुबली-पतली, लड़की है, जो मचलती दिख रही है और मानो कह रही है, 'जो मुझे छू लेगा, मैं उसे, , हिंदी
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अपना हृदय दे दूँगी। उससे प्यार करने लगूँगी। उसी की हो जाऊँगी' | हठीली होने के, बावजूद वह प्यार के लिए लालायित है।, , 'और सरसों की न पूछो'-किसी के निरालेपन की बात करनी होती है तो हम बात ऐसे ;, ही शुरू करते हैं-'अरे, शोभा की न पूछो | उसकी तो बात ही कुछ और है।' या 'शलभ, , की बात न पूछो, उस जैसा तो कोई है ही नहीं ।' इसी अंदाज में कवि कहता है-'और, , सरसों की न पूछो !” सरसों अब सयानी हो गई है। 'सयानी होना' के तीन अर्थ हैं-, एक तो समझदार होना, दूसरा यौवन पा लेना और तीसरा चतुर होना | यहाँ सरसों के, , विषय में उसे सयानी कह कर कवि ने युवती होने की ओर संकेत किया है और बताया, , है कि वह विवाह-योग्य हो गई है इसीलिए उसने अपने हाथ पीले कर लिए हैं | हाथ पीले, , करना एक मुहावरा है, जिसका अर्थ शादी कर लेना है।, , कवि ने सरसों के प्रसंग में ही 'हाथ पीले करना' का प्रयोग क्यों किया? क्योंकि सरसों, जब फूलती है तो पूरा खेत ही पीला हो जाता है। तो पीली सरसों ब्याह के मंडप में, पधार चुकी है। वहाँ गुलाबी साफा बाँधे चना पहले से ही बैठा है। विवाह की हलचल, में फागुन का महीना कैसे चुप रहता? वह 'फाग' गाता हुआ आ पहुँचा है। फाग का गाना,, चने का सजना, सरसों का हाथ पीले करना, इन सबमें एक-दूसरे का हो जाने की ललक, है।, , इस पूरे दृश्य में कवि को, लगता है, जैसे स्वयंवर हो, रहा है। (किसका ? सरसों, का।) जिस प्रकार माँ, विवाह-मंडप में कन्या के ऊपर, स्नेह भरे आऑँचल की छाँह, करती है, उसी प्रकार यहाँ, प्रकृति माँ की भूमिका निभा, रही है। प्रकृति का अनुराग, भरा आँचल हिल रहा है|, , यह दृश्य कवि के मन को छू, लेता है। उसे लगता है इस, ग्रामीण अंचल में किसी नगर ह&, की अपेक्षा अधिक प्यार भरा ५. ७, वातावरण है। नगर तो, व्यावसायिक हो गए हैं।, व्यावसायिक नगरों में प्यार, कम उपजता है। ग्रामीण अंचल की भूमि प्रेम-प्यार के लिए अधिक उपजाऊ है। जैसे, कि इस निर्जन अंचल में भी प्रकृति के चप्पे-चप्पे में प्यार दिखाई पड़ रहा है।, , , , चित्र 8.1, , हिंदी... पभम