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टिप्पणी, 6., 201hi06, भारत की ये, बहादुर, बेटियाँ, आप इस बात से सहमत होंगे कि देश को गौरव दिलाने में महिलाओं की भागीदारी बहुत, महत्त्वपूर्ण है। कई महिलाओं ने अपनी शक्ति, उत्साह और लगन के सहारे अनेक क्षेत्रों, में बहुत नाम कमाया है। फ़िल्म-संगीत की ही बात करें, तो आप लता मंगेशकर को याद, करेंगे। ओलंपिक की स्पर्धाओं के संदर्भ में आप 'उड़नपरी' पी. टी. उषा, कर्णम मल्लेश्वरी, और सुनीता रानी को याद करेंगे। इसी प्रकार, सांस्कृतिक क्षेत्र में सरोजिनी नायडू को, और राजनीति के क्षेत्र में अरुणा आसफ् अली को याद करेंगे, जिनका नाम इतिहास के, पन्नों में दर्ज है। इंदिरा गांधी को भारत तो क्या, पूरी दुनिया कभी भूल नहीं पाएगी ।, गरीबों और कुष्ठ रोगियों की सेवा के द्वारा मदर टेरेसा ने संत की ऊँचाई पा ली । क्या, आपने भी ऐसी प्रसिद्ध महिलाओं के बारे में सुना है? आइए, भारत की ऐसी ही दो बहादुर, बेटियों के विषय में पढ़ें।, उद्देश्य, इस पाठ को पढ़ने के बाद आप-, वर्तमान समाज में स्त्री के जीवन और कार्य-क्षेत्र के प्रति उसकी सजगता को, समझ कर उसका उल्लेख कर सकेंगे;, सामाजिक दबावों के बीच अपनी पहचान स्थापित करने के लिए किए गए, स्त्री-संघर्ष की व्याख्या कर सकेंगे;, स्त्री की शारीरिक, भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक सबलता का विश्लेषण कर सकेंगे;, आदर्श महिलाओं की उपलब्धियों का वर्णन कर सकेंगे;, 102, हिंदी
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भारत की ये बहादुर बेटियाँ, आधुनिक सफल नारी के आत्मविश्वास और स्वावलंबन का उल्लेख कर सकेंगे;, समाज के लिए नारी-शक्ति की उपयोगिता तथा उसके महत्त्व को व्याख्यायित, टिप्पणी, कर सकेंगे;, क्रियाकलाप-6.1, नीचे दिए चित्रों को ध्यान से देखिए और बताइए कि ये चित्र किनके हैं :, arus, क., ख., ग., इनके और अधिक चित्र तथा विवरण एकत्रित कर फाइल तैयार कीजिए ।, कखग, 6.1 मूल पाठ, भारत की ये, बहादुर, बेटियाँ, 'यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवताः' अर्थात् जहाँ नारी का सम्मान होता है वहाँ, देवताओं का निवास होता है यानी वहाँ सुख-समृद्धि, शांति होती है । यह बात प्राचीन, काल में मनुस्मृति में कही गई थी। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि उस वक्त नारी, का सम्मान नहीं होता था और यह बात नारी के सम्मान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से, कही गई थी। बल्कि यह बात अनुभव से कही गई थी । प्राचीनकाल में हमारे देश में नारी, समाज की बहुत ही सम्माननीय सदस्य थी । गार्गी, मैत्रेयी, गौतमी, अपाला आदि, प्राचीनकाल की प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित नारियाँ हैं । प्राचीनकाल से ही नारियाँ हमारे देश, में पुरुष, रही हैं।, बराबर बैठती रही हैं और समाज के निर्माण-कार्यों में अपना योगदान देती, हिंदी, 103
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भारत की ये बहादुर बेटियाँ, आधुनिक काल में भी नारी एक बार फिर से अपनी पूरी क्षमता, शक्ति और साहस के, साथ समाज में दिखाई देने लगी । शिक्षा के प्रचार-प्रसार से वह पूरी तरह आत्मविश्वास, से भर गई। आप आज़ादी की लड़ाई का उदाहरण ही लीजिए । भीकाजी कामा,, सरोजिनी नायडू, अरुणा आसफ अली, कैप्टन लक्ष्मी सहगल आदि बहुत सारे नाम, | आपके जेहन में आते जाएँगे। गांधीजी के एक आह्वान पर न जाने कितनी महिलाएँ, घर-बार छोड़ कर देश की आजादी के लिए संघर्ष करने निकल पड़ीं। चाहे वो गाँव की, हों, छोटे कस्बे की हों, शहर की हों, या महानगर की हों, चाहे वे पढ़ी लिखी हों, चाहे, गरीब हों या अमीर, सभी वर्गों की नारियाँ पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आजादी, की लड़ाई में घर से बाहर निकल पड़ी थीं ।, टिप्पणी, | आजादी के बाद, वर्तमान समय में, जब शिक्षा और तकनीक की सुविधाएँ बढ़ी हैं, तो, |महिलाओं ने एक बार फिर से अपनी क्षमता, साहस और बुद्धिमता का परिचय देना शुरू, कर दिया।, चित्र 6.1, आज, जब यह कहा जाता है कि महिलाएँ पुरुषों से कम नहीं हैं तो इसलिए नहीं कि, उनके प्रति दया-भावना है, बल्कि उन्होंने यह बात सिद्ध कर दिखाई है। आज कोई भी, | ऐसा क्षेत्र नहीं है, जिसमें महिलाओं की भागीदारी नहीं है - चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो,, प्रशासन हो, राजनीति हो, अर्थव्यवस्था, व्यापार या तकनीक क्षेत्र हो- हर जगह आपको, महिलाएँ काम करती नज़र आएँगी। अब तो हिमालय की सबसे ऊँची चोटी एवरेस्ट तक, पहुँचने, अंतरिक्ष यान की यात्रा करने और पुलिस-प्रशासन के क्षेत्र में भी महिलाओं ने, सफलता अर्जित कर ली है। आज चाहे हवाई जहाज़ उड़ाने का काम हो, रेल इंजन, चलाने का काम हो, बस या ऑटो रिक्शा चलाने का काम हो या पेट्रोल पंपों पर पेट्रोल, | भरने का ही काम क्यों न हो- हर काम अब महिलाएँ कर रही हैं । इंजीनियरिंग के क्षेत्र, में हवाई जहाज़ के इंजन ठीक करने से लेकर स्कूटर ठीक करने तक में महिलाएँ, सक्रिय हैं। इतना ही नहीं, अब तो उन्होंने पूरी दुनिया में सिद्ध कर दिखाया है कि, |महिलाएँ पुरुषों की अपेक्षा अधिक क्रियाशील, ईमानदार तथा कुशल प्रशासक होती हैं ।, आज समाज का चाहे जो भी वर्ग हो, हर वर्ग की महिलाएँ समाज- निर्माण के कार्य में, | आगे आ रही हैं। चाहे वे साधारण परिवार में पली-बढ़ी हों, मध्यम परिवार में पली हों, या बिल्कुल निर्धन परिवार में, कोई भी अभाव उनकी क्षमता के आगे बौना ही साबित, होता है। महिलाओं ने यह सिद्ध कर दिखाया है कि कठिनाइयाँ चाहे जितनी बड़ी हों,, 104, हिंदी
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भारत की ये बहादुर बेटियाँ, मुश्किलें चाहे जितनी विकराल हों, यदि साहस और आत्मविश्वास है, तो दुनिया का कोई, भी कार्य कठिन नहीं है। यही कारण, कि महिलाओं ने न केवल अपने देश में, बल्कि, विदेशों में भी भारत का नाम ऊँचा किया है। चाहे वह फ़िल्म-निर्माण या अभिनय का, क्षेत्र हो, फैशन का क्षेत्र हो, चिकित्सा का क्षेत्र हो, अनुसंधान का या अन्य कोई क्षेत्र -, हर क्षेत्र में अपनी योग्यता का लोहा मनवाया है । अमेरिका और ब्रिटेन में ही चले जाएँ,, जो कि दुनिया के शक्तिशाली देशों में गिने जाते हैं, वहाँ भारत की महिलाएँ चिकित्सा,, कानून तथा फिल्म-निर्माण के क्षेत्र में पुरुषों से कहीं आगे हैं।, टिप्पणी, भारत की आधुनिक महिलाओं की बात करते हुए हम केवल अंतरिक्ष विज्ञान तथा खेल, को ही लें, तो जो नाम सबसे पहले हमारे सामने आते हैं, वे हैं-कल्पना चावला, और, बचेंद्री पाल। ये दो महिलाएँ अब भारतीय महिला के अदम्य साहस, बुद्धि कौशल और, कर्त्तव्य निष्ठा की प्रतीक बन चुकी हैं । ये महिलाएँ किसी बहुत बड़े या संपन्न परिवार, से नहीं आई हैं, न इन्हें कुछ ज़्यादा सुख-सुविधाएँ ही प्राप्त थीं । इनका पालन-पोषण भी, सामान्य भारतीय लड़कियों की तरह ही हुआ था। इनकी शिक्षा-दीक्षा भी सामान्य लोगों, की तरह ही हुई थी। जब इन्होंने अपने लक्ष्य की तरफ़ बढ़ना शुरू किया था तब, सामान्य लड़कियों की तरह ही इनका भी विरोध हुआ था, लेकिन इन्होंने अपने साहस, और आत्मविश्वास के बल पर लोगों के विरोध या प्रतिकार पर ध्यान नहीं दिया और, अपने लक्ष्य की तरफ़ आगे बढ़ती रहीं।, कल्पना चावलाः अंतरिक्ष में पहली भारतीय महिला, कल्पना चावला का जन्म हरियाणा प्रांत के करनाल शहर में 1961 की पहली जुलाई को, एक साधारण व्यापारी परिवार में हुआ था। पिता बनवारी लाल एक साधारण व्यापारी, थे तथा माँ संयोगिता एक सामान्य गृहिणी।, कल्पना की पढ़ाई-लिखाई भी सामान्य लड़कियों, की तरह उनके शहर के, से, शुरू हुई, स्कूल, थी, लेकिन कल्पना ने अपने लक्ष्य को ध्यान, में रखा और साहस के साथ आगे बढ़ती रहीं ।, जब कल्पना 11वीं कक्षा में पढ़ती थीं, तब, अमेरिकी अंतरिक्ष यान 'बाइकिंग' मंगल ग्रह, शब्दार्थ, अंतरिक्ष = आकाश; ग्रहों या, तारों के बीच की शून्य जगह, पर उतरा था। इस बात से कल्पना इतनी, रोमांचित हुई कि उन्होंने अपनी कक्षा की, परियोजना में मंगल ग्रह को दर्शाया। शुरू से, ही कल्पना के मन में अंतरिक्ष-विज्ञान के प्रति, लगाव रहा और वे अंतरिक्ष की यात्रा के सपने, चित्र 6.2, देखती रहीं। शायद यही कारण है कि परिवार, वालों के लाख मना करने के बाद भी उन्होंने चंडीगढ़ के पंजाब इन्जीनियरिंग कॉलेज, हिंदी, 105
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भारत की ये, बहादुर, बेटियाँ, में एअरोनॉटिकल इन्जीनियरिंग (वैमानिकी ) को अपना विषय चुना। इसके लिए उनके, सहपाठी उनका मज़ाक उड़ाते रहे कि देखो अब लड़कियाँ भी एअरोनॉटिकल इन्जीनियर, | बनने चली हैं, लेकिन उन्होंने किसी की परवाह नहीं की । 1982 में इन्जीनियरिंग की, डिग्री प्राप्त कर कल्पना अपने परिवार वालों के कठोर विरोध के बावजूद आगे की पढ़ाई, के लिए अमेरिका चली गईं। वहाँ उन्होंने, टिप्पणी, एअरोनॉटिक्स = वैमानिकी;, | टेक्सास विश्वविद्यालय एअरोस्पेस इन्जीनियरिंग, विमान-विज्ञान, इन्जी, बोल्डर, एअरो, वैमानिक अभियांत्रिकी; वैमानिकीय, इन्जीनियरी, में एम.एस. की डिग्री ली। तत्पश्चात्,, में कोलराडो विश्वविद्यालय से 1988 में, रेग %3, एअरोस्पेस में पी-एच.डी. की डिग्री प्राप्त की ।, इस तरह उनके अंतरिक्ष में जाने के सपने के, साकार होने का भी वक्त आ गया। जब, | अमेरिकी अंतरिक्ष यान के कोलंबिया मिशन, के लिए वैज्ञानिकों का चुनाव हो रहा था, तब, 2962 प्रतियोगियों में उन्हें सर्वाधिक योग्य, पाया गया और उस मिशन का विशेषज्ञ बनाया गया । इसके लिए कल्पना ने कठोर, विशेषज्ञ, = किसी विषय का विशेष, चित्र 6.3, जानकार, अभियान = मिशन; लक्ष्य, प्रशिक्षण लिया और 19 नवंबर को पहली बार अंतरिक्ष की यात्रा पर निकल पड़ीं । जब, वह अंतरिक्ष में थीं तब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री इंद्र कुमार गुजराल ने उनसे बात करके, उन्हें इस अभियान के लिए बधाई दी। उनका यह अभियान काफ़ी सफल रहा और इस, दौरान उन्होंने कई नए प्रयोग कर सबसे अपनी योग्यता का लोहा मनवा लिया ।, फिर जब अमेरिका के अंतरिक्ष यान, कोलंबिया के दूसरी बार अंतरिक्ष में जाने, का कार्यक्रम बना, तो एक बार फिर कल्पना, को उसके अभियान-दल में शामिल किया, गया। 16 जनवरी, 2003 को कल्पना एक, बार फिर 'केनेडी अंतरिक्ष केंद्र' से अंतरिक्ष, की यात्रा पर निकल पड़ीं। 16 दिन के, इस अभियान में 80 प्रयोग किए गए,, जिनमें मानव-शरीर, कैंसर कोशिकाओं की, परीक्षा और कीट-पतंगों पर भारहीनता, चित्र 6.4, संबंधी प्रयोग शामिल थे। 29 जनवरी,, 2003 को इस अभियान-दल के यात्रियों ने अपने इस मिशन को कामयाब बताया ।, लेकिन दुर्भाग्य कि 16 दिन की अपनी सफल यात्रा के बाद जब यह अभियान - दल, 1 फ़्रवरी, 2003 को पृथ्वी पर लौट रहा था, तो पृथ्वी से कुछ मिनट की दूरी पर ही, 106, हिंदी