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रॉबर्ट नर्सिंग होम में, , 2005, , आप कभी-न-कभी किसी अस्पताल या नर्सिंग होम में अवश्य गए होंगे। वहाँ आपने यह, ध्यान दिया होगा कि किस तरह कुछ लोग रोगियों तथा पीड़ितों की सेवा करते हैं। ऐसे, दृश्य आप में भी दूसरों के लिए कुछ कर पाने की इच्छा जगाते होंगे। अपनों की सेवा, तो सभी करते हैं, पर बड़ी बात तो तब है, जब दूसरों के लिए भी कुछ किया जाए । दूसरों, के लिए कुछ करने की भावना से भरे लोग जाति, क्षेत्र, भाषा, धर्म, लिंग व रंग आदि के, बंधन को नहीं मानते। वे तो बस यह मानते हैं कि मनुष्य-मनुष्य में भेद कैसा? मनुष्य, तो मनुष्य है, वह और कुछ हो ही नहीं सकता। आइए, इस पाठ के माध्यम से ऐसी ही, भावना रखने वाले लोगों के विषय में जानने एवं उनसे प्रेरणा लेने का प्रयास करते हैं।, , इस पाठ को पढ़ने के बाद आप, , , ७ मानव-जीवन में सेवा-भाव और करुणा, प्रेम तथा उदारता के महत्त्व का उल्लेख कर, सकेंगे;, , ७ क्षेत्र, भाषा, जाति, धर्म एवं रंग-भेद आदि के बारे में अपने विचार प्रस्तुत कर सकेंगे;, , ७ विश्व-स्तर पर त्याग व समर्पण के क्षेत्र में महिलाओं के योगदान के विषय में बता, सकेंगे;, , ७ पाठ की भाषा-शैली पर टिप्पणी कर सकेंगे;, , ७ रिपोर्ताज विधा का वर्णन कर सकेंगे।
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शब्दार्थ, , परिचारक, आतिथेया, , आघात, विशिष्ट, , पैंतालिस, बसंत देखना, , धवल, आच्छादित, हिम-श्वेत, अरुणोदय, अनुरंजित, सुता-सधा, अधिनायक, शिकंजा, , तरुणाई, तललीन, म्लान, , कपोल, , धाम, राग, चाव, अधघरों, अभिभूत, प्रसव, , छा ख््््््खखख़ख़ख._.. हिंदी 5, , टिप्पणी, , - रोगी की सेवा करने, , वाला, , - मेज़बान (अतिथि का, , सत्कार करने वाली), , - हमला, चोट, - विशेष, , - पैंतालिस वर्ष की, , उम्र, , - सफेद, , - ढकी हुई, , - बर्फ के समान सफेद, - सूर्योदय, , - रैँगी हुई, , - छरहरा, , - तानाशाह, , - जकड़ने या कसने, , वाला, , - युवावस्था, - तन्मय/निमग्न, - मुरझाया हुआ/, , फीका, , - गाल, चौँदनी-चर्चित , चाँदनी की आभा, वाले, , - ठिकाना, , - लगाव, , - शौक, , - होंठों, , - डूबकर, , - बच्चे को जन्म देना, हँसी बिखेरना , खुशी देना, , प्पणी, , कल तक जिनका अतिथि था, आज उनका परिचारक हो गया; क्योंकि मेरी आतिथेया, अचानक रोग की लपेट में आ गईं और उन्हें इंदौर के रॉबर्ट नर्सिंग होम में लाना पड़ा।, , यह है सितंबर, 1951 |, , रोग का आघात पूरे वेग में, परिणाम कैंपकँपाता और वातावरण चिंता से घिरा-घिरा कि, हम सब सुस्त | तभी मैंने चौंक कर देखा कि अपने विशिष्ट धवल वेश में आच्छादित नारी, कमरे में आ गई है।, , देह उनकी कोई पैंतालीस बसंत देखी, वर्ण हिम-श्वेत, पर अरुणोदय की रेखाओं से, अनुरंजित, कद लंबा और सुता-सघा।, , “लंबा मुँह अच्छा नहीं लगता, बीमार के पास लंबा मुँह नहीं,” आते ही उन्होंने कहा।, साफु-सुथरी भाषा, उच्चारण साफ और स्वर आदेश का; पर आदेश न अधिनायक का,, न अधिकारी का, पूर्णतया माँ का, जिसका आरंभ होता है शिकंजे से और अंत गोद में।, , हाँ, वे माँ ही थीं: होम की अध्यक्षा मदर टेरेसा, मातृभूमि जिनकी फ्रांस और कर्मभूमि, भारत! उभरती तरुणाई से उम्र के इस ढलाव तक रोगियों की सेवा में तल्लीन; यही, काम, यही धाम, यही राग, यही चाव और बस यही, यही !, , उन्होंने रोगी के दोनों म्लान कपोल अपने चाँदनी-चर्चित हाथों से थपथपाए तो उसके, सूखे अधरों पर चाँदी की एक रेखा खिंच आई और मुझे लगा कि वातावरण का तनाव, कुछ कम हो गया।, , तभी एक खटाक और हमारा डॉक्टर कमरे के भीतर। मदर ने उसे देखते ही, कहा--“डॉक्टर, तुम्हारा बीमार हँस रहा है।”, , “हाँ, मदर ! तुम हँसी बिखेरती जो, हो,” डॉक्टर ने अपने जाने कितने, अनुभव यों एक ही वाक्य में गूँथ दिए।, मैंने भावना से अभिभूत हो सोचा-जो, बिना प्रसव किए ही मँँ बन सकती है,, वही तीस रुपये मासिक पर बीस वर्ष |, से दिन और रात सेवा में लग सकती है., और वही पीड़ितों के तड़पते जीवन में, हँसी बिखेर सकती हे।
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|, तीसरे पहर का समय, थर्मामीटर हाथ में लिए वे आई-मदर टेरेसा और उनके साथ एक, नवयुवती, उसी विशिष्ट धवल वेश में, गौर और आकर्षक। हाँ, गौर और आकर्षक, पर, उसके स्वरूप का चित्रण करने में ये दोनों ही शब्द असफल। यों कहकर उसके, आस-पास आ पारऊँगा कि शायद चाँदनी को दूध में घोलकर ब्रह्मा ने उसका निर्माण किया, हो। रूप और स्वरूप का एक दैवी साँचा-सी वह लड़की। नाम उसका क्रिस्ट हेल्ड और, जन्मभूमि जर्मनी।, , फ्रांस की पुत्री मदर टेरेसा और जर्मनी की दुहिता क्रिस्ट हैल्ड एक साथ-एक रूप, एक, ध्येय, एक रस।, , “तुम्हारा देश महान है, जो, युद्ध के देवता हिटलर को भी, जन्म दे सकता है और, तुम्हारे-जैसी सेवाशील, बालिका को भी,” मैंने उससे, कहा, तो दर्प से दीप्त हो वह, स्टेच्यू हो गई और अपना, दाहिना पैर पृथ्वी पर वेग से, ठोंककर बोली- “यस-यस |”, वह दूसरे कमरे में चली गई,, तो मदर टेरेसा को टटोला,, “आप इस जर्मन लड़की के ५, साथ प्यार से रहती हैं?”, , बोली, “हाँ, वह भी ईश्वर के, , लिए काम करती है और मैं खिल, , भी, फिर प्यार क्यों न हो?”, , मैंने नश्तर चुभाया- “पर फ्रांस को हिटलर ने पददलित किया था, यह आप कैसे भूल, सकती हैं?”, , नश्तर तेज था, चुभन गहरी; पर मदर का कलेजा उससे अछूता रहा | बोलीं-- “हिटलर, बुरा था, उसने लड़ाई छेड़ी, पर उससे इस लड़की का भी घर ढह गया और मेरा भी;, हम दोनों एक।”, , , , “हम दोनों एक'-मदर टेरेसा ने इतने गहरे डूब कर कहा कि जैसे मैं उनसे उनकी, लड़की छीन रहा था और उन्होंने पहले ही दाँव में मुझे चारों खाने दे मारा। मदर चली, गईं, मैं सोचता रहा। मनुष्य-मनुष्य के बीच मनुष्य ने ही कितनी दीवारें खड़ी की हैंऊँची दीवारें, मज़बूत फौलादी दीवारें, भूगोल की दीवारें, जाति-वर्ग की दीवारें | कितनी, मनहूस, कितनी नगण्य, पर कितनी अजेय।, , हिंदी "हम /मफपफहफहफ पर जज, , 6, शब्दार्थ, गौर - गोरा, दैवीय - अलौकिक, दुहिता - बेटी, ध्येय - उद्देश्य, दर्प - गर्व, दीप्त - दमकती, स्टेच्यू -. मूर्ति, नश्तर - धारदार औजार, (जैसे चाकू, उस्तरा, आदि), पद-दलित - पैरों से कुचला, रौंदा, चारों खाने दे मारना पराजित कर देना, फौलादी - लोहे की तरह, मजबूत, नगण्य - जो गिनने लायक, न हो (यहाँ मामूली), जज
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टिप्पणी, , व्रत - संकल्प/निश्चय, , नम - भीगा, , फटी आँखों से - हैरानी से/आश्चर्य, से, , असहय - जिसे सहा न जा, सके, , कूजे की मिसरी - साँचे वाली मिसरी, , सौम्य - शालीन, , उत्सर्ग - त्याग/बलिदान, , $1 111 हि_।: है; ।, क्रिस्ट हैल्ड के पिता जर्मनी में एक कॉलेज के प्रिंसिपल हैं और उसने अभी पाँच वर्षों, के लिए ही सेवा का व्रत लिया है।, , रोगिणी के गहरे काले बाल देखकर उसने कहा, “तुम्हारे काले बाल मेरे पिता के से हैं|, कहा और स्मृतियों में खो-सी गई।, , मुझे लगा कि मैं ही क्रिस्ट हैल्ड हूँ। अपने माता-पिता से हज़ारों मील दूर, एक अजनबी, देश में, अकेली, खोई, छली-सी और मेरी आँखें भर आईं।, , लड़की मेरे आँसुओं में डूब-डूब गई और किनारा पाने को उसने जल्दी से उन्हें अपने, रुमाल से पोंछ दिया । उसकी सदा हँसती आँखें, नरम हो आईं, पर ज़रा भी नम नहीं।, मैंने पूछा, “घर से चलते समय रोई थीं तुम?” उसका भोला उत्तर था, “न, माँ बहुत, रोई थी ।”, , फटी आँखों से कुछ देर उसे मैं देखता रहा, तब कुछ बिस्किट उसे भेंट किए। बोली,, “धन्यवाद, थैंक यू, तांग शू ।” वह अक्सर हिंदी, अंग्रेजी, जर्मन भाषाओं के शब्द मिलाकर, बोलती है।, , हम सब हँस पड़े और वह हँसती-हँसती भाग गई।, , मदर टेरेसा बातों के मूड में थीं। मैंने उनके हृदय-मानस में चोर दरवाज़े से, झौँका-“मदर, घर से आने के बाद फिर आप घर नहीं गईं, कभी मिलने-जुलने भी?”, कान अपना काम कर चुके थे, वाणी को अपना काम करना था, पर मदर ने उसकी राह, मोड़ दी और तब मैंने सुनी यह कहानी।, , कई वर्ष हुए। फ्रांस में विश्व-भर के पूजा-गृहों का एक सम्मेलन हुआ | भारत की दो मदर, भी प्रतिनिधि होकर उस सम्मेलन में गईं। वे फ्रांस की ही थीं, उनके माता-पिता फ्रांस, में ही थे। उन्हें पता था कि बरसों बाद हमारी पुत्रियाँ आ रही हैं।, , दोनों माताएँ अपनी पुत्रियों का स्वागत करने जहाज़ पर आईं, पर विचित्र बात यह हुई, कि वे दोनों अपनी पुत्रियों को पहचान न पाईं और आपस में कहती रहीं कि तुम्हारी बेटी, कौन-सी है। अंत में उनका नाम पूछा और तब गले मिलीं।, , कहानी पूरी हुई, तो कई प्रश्न उठे, पर मदर टेरेसा उनके उठते-न-उठते भाग गईं।, निश्चय ही उन दोनों अनपहचानी पुत्रियों में से एक वे स्वयं थीं।, , बस इतना ही एक दिन मैं उनसे और कहला सका--“घर से बहुत चिट्ठी आती हैं, तो, मैं यहाँ के किसी स्थान का फोटो भेज देती हूँ।”, , रोग पूरे उभार पर था, रोगी के लिए असहय | मदर टेरेसा ने कहा, “तुम्हेरे लिए आज, विनती करूँगी |” उनका चेहरा उस समय भक्त की श्रद्धा से आलोकित हो उठा था।, , रोगी ने कहा, “कल भी करना मदर |” मदर के स्वर में मिसरी-ही-मिसरी, पर मिसरी, कूजे की थी, जो मिठास तो तुरंत ही देती थी, पर घुलती तुरंत नहीं और बल का प्रयोग, , छठ .// ख हिंदी
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हो, तो मुँह तक को छील देती है।, बोलीं, “न, कल उसके लिए करूँगी,, जिसे सबसे अधिक कष्ट होगा।” जैसे, हजार वाट का बल्ब मेरी आँखों में, कौंध गया।, , मैंने बहुतों को रूप से पाते देखा था,, बहुतों को धन से और गुणों से भी बहुतों, को पाते देखा था, पर मानवता के, आँगन में समर्पण और प्राप्ति का यह, अद्भुत सौम्य स्वरूप आज अपनी ही चित्र 5.3, , आँखों से देखा कि कोई अपनी पीड़ा से, , किसी को पाए और किसी का उत्सर्ग सदा किसी की पीड़ा के लिए ही सुरक्षित रहे।, , ऊपर के बरामदे में खड़े-खड़े मैंने एक जादू की पुड़िया देखी-- जीती जागती जादू की, पुड़िया | आदमियों को मक्खी बनाने वाला कामरूप का जादू नहीं, मक्खियों को आदमी, बनाने वाला जीवन का जादू- होम की सबसे बुढ़िया मदर मार्गरेट | कद इतना नाटा, कि उन्हें गुड़िया कहा जा सके, पर उनकी चाल में गज़ब की चुस्ती, कदम में फुर्ती और, व्यवहार में मस्ती; हँसी उनकी यों कि मोतियों की बोरी खुल पड़ी और काम यों कि, मशीन मात माने | भारत में चालीस वर्षों से सेवा में रसलीन, जैसे और कुछ उन्हें जीवन, में अब जानना भी तो नहीं!, , , , ऑपरेशन के लिए एक रोगी आया, ऐश-आराम में पला जीवन। कहने की बेचारे को, आदत, सहने का उसे क्या पता? पर कष्ट क्या पात्र की क्षमता देखकर आता है?, , “मदर मर जाऊँगा,” उसने विहृवल होकर कहा।, , वातावरण चीत्कार की विहृवलता से भर गया, पर बूढ़ी मदर की हँसी के दीपक ने झपकी, तक नहीं खाई। बोलीं, “कुछ नहीं, कुछ नहीं, आज है ऐवरीथिंग (सब कुछ), कल, समथिंग (कुछ-कुछ) और बस, तब नथ्थिंग (कुछ नहीं)” और वे इतने जोर से, खिलखिलाकर हँसीं कि आस-पास कोई होता, तो झेंप जाता।, , एक रोगी उन्होंने देखा-चिंता के गर्त से उठ-उभरती रोगिणी। जोर से चुटकियाँ, बजाकर वे किलकीं-- “जी-उती, जी-उती |” अर्थ है-- जी-उठी, जी-उठी।, , यह अनुभव कितना चमत्कारी है कि यहाँ जो जितनी अधिक बूढ़ी है, वह उतनी ही, अधिक उत्फुल्ल, मुस्कानमयी है। यह किस दीपक की जोत है? जागरूक जीवन, की | लक्ष्यदर्शी जीवन की! सेवा-निरत जीवन की! अपने विश्वासों के साथ एकाग्र जीवन, की! भाषा के भेद रहे हैं, रहेंगे भी, पर यह जोत विश्व की सर्वोत्तम जोत है।, , सिस्टर क्रिस्ट हैल्ड का तबादला हो गया-अब वह धानी के भील सेवा-केंद्र में काम, करेगी | ओह, उस जंगली जीवन में यह कर्पूरिका; पर कर्पूरिका तो अपने सौरभ में इतनी, लीन है कि उसे स्वर्ग के अतिरिक्त और कुछ दिखता ही नहीं।, , हिंदी "/फफमझमफम्ेःःः 93: खा, , , , ;, , - असम का प्राचीन नाम, , - आनंद में डूबी, , - बेचैन, , - पीड़ा से चीखना, , - लाज, शरम, संकोच, (शरमाना), , - गहराई, (गड्ढा), , - खिली हुई/प्रसन्न, , - उद्देश्यपूर्ण, , - सेवा में लगा हुआ, , - कपूर जैसी गोरी देह, वाली, , - सुगंध/खुशबू