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टिप्पणी, 13, 201 hi13, सुखी राजकुमार, मानव-सभ्यता के विकास -क्रम में मनुष्य ने अपने लिए सुख-सुविधाओं का विस्तार किया, और समाज में रहना भी सीखा । बुद्धि के विकास ने सिर्फ उसके लिए सुख की ही सृष्टि, नहीं की, वरन् उसकी भावनात्मक दुनिया को भी प्रभावित किया, उसे अन्य प्राणि-जगत, से अधिक संवेदनशील बनाया। सभ्यता और समाज के विकास के साथ यह संवेदनशीलता, दूसरों के सुख में सुखी और दूसरों के दुख में दुखी होने की क्षमता में विकसित होती, गई और मनुष्यता के सर्वोच्च गुणों में गिनी जाने लगी।, अपने लिए जीने और दूसरों के लिए सोचने-करने की इन प्रवृत्तियों के बीच के द्वंद्व, से मनुष्य-समाज लगातार घिरा रहता है। इन्हीं प्रवृत्तियों का सुंदर चित्रण करने वाली है।, अंग्रेज़ी लेखक ऑस्कर वाइल्ड की यह कहानी - सुखी राजकुमार।, © उद्देश्य, इस पाठ को पढ़ने के बाद आप-, मानव-मन पर सीमित और व्यापक अनुभव के प्रभाव का अंतर स्पष्ट कर सकेंगे;, अपरिचय और परिचय की स्थितियों में मानव- व्यवहार की तुलना कर सकेंगे;, अच्छी संगत से सद्गुणों का विकास होता है, इस विचार पर टिप्पणी लिख सकेंगे;, धनी और निर्धन वर्ग की जीवन- स्थितियों की तुलना कर सकेंगे;, राजनीतिक प्रतिनिधियों की स्वार्थपरता और असंवेदनशीलता का उल्लेख कर सकेंगे;, रूप और कर्म के सौंदर्य पर अपने विचारों की अभिव्यक्ति कर सकेंगे;, कहानी के मार्मिक स्थलों की सराहना और कहानी की भाषा-शैली पर टिप्पणी कर, सकेंगे।, हिंदी, 209
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सुखी राजकुमार, कखग, 13.1 मूल पाठ, टिप्पणी, आइए, अब हम ऑस्कर वाइल्ड की कहानी ' सुखी राजकुमार' का ध्यानपूर्वक पाठ करें, | और उसका आनंद लें। आपकी सुविधा के लिए कठिन शब्दों के अर्थ हाशिए पर दिए, जा रहे हैं।, सुखी राजकुमार, नगर में उत्तर की ओर एक ऊँचे, मूर्ति पर हल्का स्वर्ण-पत्र मढ़ा था, आँखों के स्थान पर दो चमकदार नीलम थे और, तलवार की मूठ में एक बड़ा-सा लाल जड़ा था।, स्तंभ पर सुखी राजकुमार की प्रतिमा स्थापित थी।, लोग उस प्रतिमा के सौंदर्य की बड़ी प्रशंसा करते थे ।, दिन भर उड़ने के बाद एक गौरेया रात को नगर के समीप पहुँची।, " मैं ठहरूँ कहाँ?" उसने सोचा, "मैं समझ रही थी कि शहर मेरा स्वागत करेगा!", इतने में उसने स्तंभासीन मूर्ति देखी ।, आहा! मैं यहीं ठहरूँगी! यह, बहुत अच्छा स्थान है। यहाँ काफी, साफ हवा आ रही है।, i., और वह मूर्ति के पैरों के पास, उतर पड़ी।, उसने चारों ओर देखकर कहा-, "मेरा शयनागार सोने का है', और वह पंखों में मुँह छिपाकर, सोने जा रही थी कि एक पानी, शब्दार्थ, स्तंभ- खंभा, की बड़ी-सी बूँद टप से उस, पर गिर पड़ी।, प्रतिमा- मूर्ति, स्वर्ण-पत्र- सोने के पत्तर, नीलम- नीले रंग का कीमती पत्थर, 'ताज्जुब है," उसने कहा,, आकाश में एक भी बादल नहीं, है- तारे साफ चमक रह हैं-, फिर भी पानी बरस रहा है!", 44, लाल- लाल रंग का कीमती पत्थर, स्तंभासीन- खंभे पर आसीन, शयनागर- सोने का स्थान (कक्ष), ताज्जुब- आश्चर्य, |इतने में दूसरी बूँद गिरी।, चित्र 13.1, 210, हिंदी
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सुखी राजकुमार, इस प्रतिमा से फायदा क्या, अगर यह वर्षा भी नहीं रोक सकती, " उसने कहा,, कोई दूसरा आश्रय-स्थान ढूँढें।", "चलो, उसने पंख खोले और तीसरी बूँद गिर पड़ी।, टिप्पणी, उसने ऊपर देखा। राजकुमार की आँखें डबडबा रही थीं और उसके सुनहले गाल पर आँसू, ढुलक रहे थे। उसका चेहरा इतना भोला था कि गौरेया को दया आ गई।, "तुम कौन हो?" उसने पूछा।, 44, " मैं सुखी राजकुमार हूँ।", ११, "फिर तुम रो क्यों रहे हो?" पंख फड़फड़ाकर गौरैया ने कहा, "तुमने तो मुझे बिलकुल, भिगो दिया है!", डबडबाना- ऑँखों में ऑसू उमड़ आना, सुनहले- सोने की आभा वाले, जब मैं जीवित था"- मूर्ति ने उत्तर दिया- " और मेरे वक्ष में मनुष्य का हृदय धड़कता, था, तब मेरा आँसुओं से परिचय नहीं हुआ था। मैं आनंद-महल में रहता था, जहाँ दुख को, प्रवेश करने की इज़ाजत नहीं थी। दिन में मैं अपने उद्यान में विलास करता था और रात, को नृत्य, वक्ष-छाती, सीना, इज़ाजत- अनुमति, उद्यान- बाग, उपवन, में लगा रहता था। मेरे उद्यान के चारों ओर एक प्राचीर थी , किंतु मेरे चारों ओर, इतना सौंदर्य था कि मैंने कभी बाहर देखने का प्रयत्न नहीं किया । मैं जीता रहा और मर, गया। आज जब मैं मर गया हूँ, तो उन्होंने मुझे इतने ऊँचे पर स्थापित कर दिया है कि, मैं संसार की सारी कुरूपता और दुख-दर्द देख सकता हूँ। मेरे ही नगर में इतना दुख है।, कि यद्यपि मेरा हृदय जस्ते का है, मगर फिर भी फटा जा रहा है ।, विलास- क्रीड़ा, सुख का उपभोग,, आनंद करना, प्राचीर-परकोटा, दीवार, यद्यपि- हालाँकि, अच्छा, तो राजकुमार ठोस सोने का नहीं है!" गौरैया ने सोचा, मगर वह इतनी शिष्ट थी, कि उसने यह बात जोर से नहीं कही।, जस्ता- खाकी रंग की एक धातु, जिसमें, ताँबा मिलाकर पीतल बनता है, 44, क्षत-विक्षत- लहूलुहान, घायल, "दूर, बहुत दूर", मूर्ति अपनी सुनहली आवाज़ में कहती रही, "एक गंदी - सी गली में, टूटा-फूटा मकान है, उसकी एक खिड़की खुली है... उसके अंदर एक चौकी पर एक, स्त्री बैठी है। उसका चेहरा दुबला और थका हुआ है और उसके हाथ सुई के घावों से, क्षत-विक्षत हैं। वह रानी की सर्वसुंदरी अंगरक्षिका के नृत्य- वसन पर फूल काढ़ रही है।, एक कोने में उसका बच्चा बीमार पड़ा है। उसे ज्वर है और वह फल माँग रहा है। गौरैया,, नन्हीं गौरैया, क्या तुम मेरी तलवार की मूठ में जगमगाता हुआ लाल निकालकर उसे नहीं, दे आओगी... मेरे पैर तो इस स्तंभ में जड़े हैं और मैं चल नहीं सकता।, सर्व सुंदरी- सबसे अधिक सुंदर स्त्री, अंगरक्षिका- शरीर की रक्षा के लिए, नियुक्त स्त्री, बॉडीगार्ड, नृत्य-वसन- नाचते समय पहने जाने, वाली पोशाक, ज्वर-बुखार, नील नदी- पश्चिम एशिया की एक, नदी, जो दुनिया में सबसे बड़ी है।, "दक्षिण देश में लोग मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं। वे नील नदी पर उड़ रहे होंगे और कमल, के फूलों से वार्तालाप करने के बाद राजाओं के म कबरों में सोते होंगे। राजा रंगीन ताबूत, में सो रहा होगा। वह पीले वस्त्र में लिपटा होगा और मसालों से उसका अंग-लेपन किया, मकबरा- महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों (प्रायः, राजाओं) के दफ़नाए जाने के स्थान, पर बनी इमारत, गया होगा। उसकी गर्दन में पुखराज का हार होगा और उसके हाथ सूखी पत्तियों की तरह, होंगे!" गौरैया ने कहा।, ताबूत- शव को रखने वाला बक्स, अंग-लेपन- शरीर पर मलना, १ १, पुखराज- सुनहरे (पीले) रंग का कीमती, पत्थर, हिंदी, 211
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सुखी राजकुमार, | "गौरैया! गौरैया! सिर्फ आज रात को तुम मेरा काम कर दो। बच्चा प्यासा है- उदास भी, है!", ११, टिप्पणी, "उँह! मुझे बच्चों से जरा भी स्नेह नहीं है !" गौरैया ने कहा, "पिछले वसंत में दो बच्चे, रोज़ आकर मुझे ढेले मारा करते थे। यद्यपि मुझे चोट नहीं लगी, मैं बहुत तेज़ उड़ती हूँ,, किंतु यह बड़ी ही अपमानजनक बात है।", वसंत- सारी ऋतुओं में वातावरण की, दृष्टि से सबसे उपयुक्त (प्रियकर), मगर, राजकुमार इतना उदास था कि गौरैया को दया आ गई।, ऋतु,, "यहाँ बहुत सर्दी पड़ने लगी, लेकिन कोई बात नहीं, मैं आज तुम्हारा काम कर दूँगी।", श्वेत-सफेद, संगमरमर- एक प्रकार, का अत्यधिक चिकना पत्थर, धन्यवाद, नन्हीं गौरैया!" राजकुमार ने कहा ।, प्रासाद-महल, गौरैया ने राजकुमार की तलवार की मूठ से लाल निकाला और उसे अपनी चोंच में, दबाकर उड़ चली। उड़ते वक्त वह गिरजाघर के शिखर के पास से गुज़री, जहाँ श्वेत, संगमरमर से देवदूतों की मूर्तियाँ बनी थीं । वह उच्च प्रासाद के समीप से गुज़री और उसने, नाच की आवाज़ सुनी। छज्जे पर एक सुंदर किशोरी अपने प्रेमी के कंधे पर हाथ रक्खे, हुए आई।, छज्जा- बालकनी, भावोन्मेष- भाव का उदय (यहाँ भाव, के आवेग में), शिखर- सबसे ऊँचा हिस्सा, आकाशदीप- बाँस के सिरे पर बाँधकर, आह! तारे कितने सुंदर हैं, प्रेम की शक्ति भी कितनी अद्भुत है," उसने भावोन्मेष में, कहा, "मैं समझती हूँ कि अगले नृत्य के लिए मेरे वस्त्र तैयार हो जाएँगे। मैंने उन पर, फूल कढ़वाने की आज्ञा दी है। मगर ये लोग देर कितनी लगाते हैं !", जलाया जाने वाला दीया या लालटेन, मिस्र- उत्तर-पूर्वी अफ्रीका का एक, देश, जिसकी गिनती विश्व की प्राचीनतम, सभ्यताओं में होती है।, वह नदी पर से गुज़री और जहाज़ के शिखरों पर लटकते हुए आकाशदीप देखे। अंत में, वह उस टूटे-फूटे मकान के समीप पहुँची और भीतर झाँका। बच्चा बुखार के कारण, बिस्तर पर तड़प रहा, गिरजाघर- ईसाई धर्म का प्रार्थना-स्थल, था। वह फुदककर, भीतर पहुँची और, उसने उस स्त्री के, पास की मेज़ पर, लाल रख दिया। माँ, थककर सो गई थी।, वह बच्चे के सिरहाने, उड़कर पंखों से हवा, करने लगी।, आह, कैसा अच्छा, लग रहा है!" बच्चे, ने कहा,"अब शायद, मैं अच्छा हो रहा, चित्र 13.2, हूँ!" और वह सो गया।, 212, हिंदी
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सुखी राजकुमार, गौरैया उड़कर राजकुमार के पास वापस आ गई और उसने उसे सब हाल बताकर कहा-, "आश्चर्य है, यद्यपि इतनी ठंडक है, लेकिन मुझे ज़रा भी ठंड नहीं लग रही है !", 'इसलिए कि तुमने आज एक भलाई की है ," राजकुमार ने कहा ।, टिप्पणी, गौरैया सोचने लगी और सो गई। सोचने में उसे सदा झपकी आ जाती थी|, जब दिन उगा, तो वह नदी में गई और नहाई ।, सीली- सीलन भरी, तरुण- नौजवान, अच्छा, आज रात को मैं मिस्र देश जाऊँगी!" उसने सोचा। वह आज उमंग से भरी थी।, उसने शहर की सभी इमारतें घूम डालीं और वह गिरजाघर के शिखर पर बहुत देर तक, बैठी रही।, पात्र- जिसमें कुछ रखा जा सके (बर्तन,, गमला फूलदान वरगैरह), सपनीली- सपने देखने वाली (आँखें), जब चाँद उगा तो वह राजकुमार के पास गई और बोली- "तुम्हें मिस्र में किसी से कुछ, कहलाना तो नहीं है- मैं अभी-अभी जाने के लिए तैयार हूँ।", रंगमंच- नाटक खेलने का स्थान, प्रपात- झरना, 'गौरैया! गौरैया! नन्ही गौरैया ! क्या तुम आज रात को और नहीं ठहर सकतीं," मूर्ति ने, कहा, "शहर में, दूर एक सीली हुई कोठरी में मुझे एक तरुण कलाकार दीख रहा है। गाँठदार डँठल वाला एक पौधा, जो, वह अपनी कागज़ों से लदी मेज़ पर झुका है और उसके बगल में एक पात्र में सूखे हुए, फूल लगे हैं। उसके बाल भूरे और सुनहले हैं, उसके होंठ अनार के फूल की तरह लाल, हैं, उसकी आँखें बड़ी सपनीली हैं, वह रंगमंच के लिए नया नाटक लिख रहा है,, ठंड के कारण उसकी अँगुलियाँ नहीं चल रही हैं। अँगीठी में एक भी कोयला नहीं है भोर- सुबह, और भूख से उसकी आँखों के सपने टूट रहे हैं।", 44, नरकुल- पतली लंबी पत्तियों तथा पतले, कलम, चटाई आदि बनाने के काम, आता है।, मगर, संगमूसा- एक तरह का काला पत्थर, गरज-गर्जना, "मिस्र में सब मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे। कल मेरे सब साथी दूसरे प्रपात तक उड़ जाएँगे,, जहाँ नरकुल की झाड़ियों में दरियाई घोड़े सोते हैं और संगमूसा की शिला पर मेम्नान का, देवता बैठा है। रात भर वह तारों की ओर देखता है। भोर का तारा जब डूबने लगता है, तो, वह खुशी से चीख़ पड़ता है और फिर चुप हो जाता है । दोपहर के समय वहाँ शेर आते, हैं, जिनकी आँखें हरे रत्नों की तरह चमकती हैं और जिनकी गरज में प्रपात का स्वर ड्ूब, 44, जाता है।", मेम्नान- ग्रीक मिथक में इथोपिया का राजा। ट्रोजन राज परिवार के टिथोनस और, इओस (उषा) का पुत्र । अपने चाचा प्रियम (Priam) की ओर से ग्रीक के विरुद्ध, बहादुरी से लड़ा और एथाइलस के हाथों मारा गया| इओस के आँसुओं को देखकर, ज्यूस ने उसे अमरत्व प्रदान किया। उसके साथी, जो पक्षियों में बदल गये, प्रतिवर्ष, उसकी समाधि पर लड़ने और विलाप करने के लिए आते थे। मिस्र में उसका नाम, थेबे के निकट अमेनहोतेप तृतीय की पत्थर की विशाल मूर्तियों के साथ जुड़ा है ।, उषाकालीन सूर्यकिरणें जब इन मूर्तियों का स्पर्श करती हैं, तो इनसे वीणा की झंकार, सी ध्वनि निकलती है - इस ध्वनि के बारे में ऐसा विश्वास किया जाता है कि यह, अपनी माँ की शुभकामनाओं के प्रति मेम्नान का प्रत्युत्तर है।, 'लेकिन, केवल आज रात के लिए भी तुम न रुकोगी? ", 44, हिंदी, 213