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दोहे, , (कविता), , , , व्यक्तित्व का परिष्कार, आत्मबोध, विश्लेषणात्मक चिंतन, समयानुकूल व्यवहार, , , , , , , , ७ दोहे, छंदयुक्त ७ काव्य ७ दृष्टांत, अनुप्रास और, कविता ७ व्याख्या अन्योक्ति अलंकार, ७ सराहना ० भाषा अथवा बोली के, मानक एवं स्थानीय रूप, ७० हिंदी की उपभाषाओं के वर्ग, , मूलभाव ), “दोहे ' शीर्षक पाठ में कबीर, रहीम तथा बूंद के नीति या उपदेशपरक दोहे हैं। इनमें जीवन का गहरा अनुभव झलकता, है। इनमें से चार दोहे कबीर के, दो रहीम के तथा दो दोहे वूंद के हैं। ये संत कवि कुछ उदाहरणों के माध्यम से, , हमें कुछ संदेश देना चाहते हैं।, , , , क्र प्रथम दोहे में कवि ने बताया है कि आदमी की [उशष्य के निर्माण में जुर, , डे <ः पहचान उसके घर-खानदान या धन से नहीं,, 2७५. डर आचरण से होती है। दूसरे दोहे में स्वभाव को, ९७४ ५८ निर्मल रखने के लिए निंदक को पास रखने, 2 +> की बात की गई है। तीसरे दोहे में गुरु को कुम्हार तथा शिष्य को घड़ा, डर ४४ बताया गया है। शिष्य को निखारने के लिए गुरु उसके दोषों को दूर करता, , है। चौथे दोहे, मे. कबीर कभी-कभी ऐसी परिस्थितियाँ भी होती हैं, जब अज्ञानी, , कहते हैं कि यदि नाव में पानी भरने लगे और घर में | लोगों का वर्चस्व होता है-- ऐसी स्थिति में ज्ञानी लोग, पैसे की अधिकता होने लगे, तो दोनों हाथों से इन्हें | समझदारी का परिचय देते हें और मौन रहते हैं। जीवन के, बाहर निकाल देना चाहिए। अनुभव के आधार पर सही आचरण का उपदेश।, , की भूमिका। सदाचार पर, बल, , , , , , , , , , , , , , , , , , रहीम कहते हैं कि पावस के आने पर कोयल मौन हो जाती है कि अब, मेंढक वक्ता होंगे, हमें कौन पूछेगा? अगले दोहे में रहीम ने सात बातों का, उल्लेख किया है। खैर यानी कत्था, खून, खाँसी, खुशी, वैर यानी दुश्मनी,, प्रीति तथा नशीली वस्तुओं का सेवन- ये दबाने से नहीं दबतीं और सामने, आ ही जाती हैं।, , कवि वूंद कहते हैं कि निरंतर अभ्यास करने से मूर्ख व्यक्ति भी ज्ञानवान बन जाता है; ठीक वैसे ही, जैसे रस्सी, के निरंतर आने-जाने से पत्थर पर उसका निशान बन जाता है। दूसरे दोहे में वे बताते हैं कि आँखें मनुष्य के हृदय, के भावों को प्रकट कर देती हैं। उन्हें देखकर अपने प्रति दूसरे व्यक्ति के भावों को समझा जा सकता है।, , उदाहरण के साथ निरंतर प्रयासरत, रहने का महत्त्व। आँखों द्वारा सब, कुछ बता देने की बात।
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शिक्षार्थी मार्गदर्शिका ::, , ड़, , , , , , श्रेष्ठ होने का आधार ऊँचे कुल में जन्म लेना, नहीं, बल्कि ऊँचे कर्म या श्रेष्ठ आचरण का होना, है। जो ऊँचे कुल में जन्म लेते हैं और जिनका, आचरण अच्छा नहीं होता, उनकी संत जन निंदा, करते हैं यानी वे निंदायोग्य ही हैं।, , ऐसे लोग दुर्लभ हैं, जो हमारे मुँह पर ही हमें, हमारी कमियाँ बताएँ। ऐसे लोगों से दूर न भागकर, उनका सामना करना चाहिए, क्योंकि ये लोग, हमारी कमियों की ओर इशारा करके हमें यह, अवसर देते हैं कि हम अपनी कमियों को दूर, कर स्वयं को बुराइयों से मुक्त करें।, , प्रत्येक गुरु की रचना उसका शिष्य ही है, इसलिए, गुरु अपने शिष्य के व्यक्तित्व का निर्माण करते, समय दो काम एक साथ करता है- एक, बाहर, से उस पर चोट करता है, उसकी कमियाँ दूर, करता है; दो, भीतर से उसे सहारा दिए रहता है।, , धन की आवश्यकता से इन्कार नहीं किया जा, सकता, पर आवश्यकता से अधिक धन अनेक, प्रकार की बुराइयों की जड़ है। धन से उत्पन्न, बुराइयाँ व्यक्ति को नष्ट कर देती हैं, इसलिए, अनावश्यक धन से छुटकारा पाना चाहिए।, , कभी-कभी जीवन में ऐसी परिस्थितियाँ भी आती, हैं, जब अज्ञानियों और मूर्खों का समाज में महत्त्व, बढ़ जाता है। वे बढ़-चढ़कर बोलने लगते हैं। यह, स्थिति ज्ञानियों तथा समझदार लोगों के प्रतिकूल, होती है। इस स्थिति में वे मौन साध लेते हैं और, उस समय की प्रतीक्षा करते हैं, जब उन्हें बोलना, चाहिए।, , जीवन में बहुत-सी बातों को मनुष्य छिपा लेता है,, अर्थात् प्रकट नहीं होने देता। परंतु, सभी बातों को, नहीं छिपाया जा सकता। कुछ बातें ऐसी हैं, जिन्हें, लाख छिपाने का प्रयत्न करें, प्रकट हो ही जाती, हैं। उदाहरणस्वरूप सात का उल्लेख कवि करता, है, जो छिपती नहीं-कत्था, खून, खाँसी, खुशी,, दुश्मनी, प्रेम और नशा।, , मूर्ख व्यक्ति भी चतुर और ज्ञानवान बन जाता है,, , , , यदि वह निरंतर प्रयास करता रहे। किसी भी, काम में सफलता पाने के लिए अभ्यास करना, जरूरी है।, , व्यक्ति की आँखें हृदय में विद्यमान हित या, अहित के भाव को पूरी तरह से व्यक्त कर देती, हैं। यानी आदमी की आँखों से उसके मन के, भावों का पता लग जाता है, क्योंकि भाव के, अनुसार आँखों की दशा भी अपने आप ही बदल, जाती है।, , , , , , , , जिस प्रकार शराब से भरे कलश को सज्जन, निंदनीय समझते हैं, चाहे वह कलश सोने का ही, क्यों न हों; उसी प्रकार ऊँचे कुल में जन्म लेने, वाला दुराचारी व्यक्ति भी निदंनीय है। बात को, कहने के लिए 'शराब से भरे सोने के कलश' का, उदाहरण है, अतः दृष्टांत अलंकार है।, , पानी और साबुन मिलकर अनेक वस्तुओं का मैल, दूर करके उन्हें निर्मल बना देते हैं। लेकिन पानी, और साबुन किसी के स्वभाव या व्यक्तित्व को, निर्मल नहीं कर सकते। इसके लिए तो कोई ऐसा, व्यक्ति चाहिए, जो कमियाँ बता सके। ऐसे व्यक्ति, की निंदा-आलोचना का सम्मान करना चाहिए।, , गुरु-शिष्य का संबंध कुम्हार और घड़े के संबंध, के समान है। कुम्हार जब चाक पर गीली मिट्टी, से घड़ा बनाता है, तो वह पहले तो मिट्टी के, लोंदे को घड़े की आकृति देता है, फिर घड़े की, आकृति को बाहर से धीरे-धीरे थपथपाते हुए सही, आकार देता है, उसकी कमियों को दूर करता है।, ऐसा करते हुए वह घड़े को भीतर से सँभाले भी, रहता है, ताकि घड़ा ढह या टूट न जाए। इस, प्रक्रिया से ही दोषरहित घड़ा तैयार होता है। इसी, प्रकार गुरु भी शिष्य को सँभालते हुए उसे दोषरहित, बनाता है, उसका व्यक्तित्व-निर्माण करता है। यहाँ, कुम्हार और घड़े का उदाहरण होने से दृष्टांत, अलंकार है।, , यदि नाव में पानी भरने लगे, तो समझदारी इसी, में है कि उसे डूबने से बचाया जाए। डूबने से
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6 :: शिक्षार्थी मार्गदर्शिका, , , , , , बचाने का तरीका है-दोनों हाथों से उस पानी को, नाव के बाहर उलीचना या फेंकना। अनावश्यक, धन के साथ भी यही व्यवहार करना चाहिए, उसे, भी अंजुरी भर-भर कर बाहर कर देना चाहिए, अर्थात् दान कर देना चाहिए।, , वर्षा ऋतु आने पर मेंढकों की संख्या बढ़ जाती, है, उनका शोर भी बढ़ जाता है। ऐसे में कोयल, यह विचार करके मौन धारण कर लेती है कि यह, मेंढकों के ही बढ़-चढ़कर बोलने का समय है।, समझदार एवं विचारवान लोग समयानुसार ही, व्यवहार करते हैं।, , कभी-कभी लोग यह समझकर अनुचित आचरण, करते हैं कि प्रत्येक बात को छिपाया जा सकता, है। यदि उन्हें यह समझा दिया जाए कि यह संभव, नहीं, कुछ चीज़ें ऐसी भी होती हैं, जो प्रकट हो ही, जाती हैं; तो उनका आचरण बदल सकता है।, , पत्थर बहुत कठोर होता है। लगता है कि उसकी, कठोरता पर किसी चीज का असर ही नहीं होगा,, पर रस्सी जैसी चीज भी यदि पत्थर पर रगड़, खाती रहे, तो निशान बना ही देती है। यह, उदाहरण हमें शिक्षा देता है कि मूर्ख व्यक्ति भी, सदैव मूर्ख ही नहीं रहता, यदि वह निरंतर अभ्यास, में लगा रहे।, , जिस प्रकार स्वच्छ दर्पण सामने आने वाली प्रत्येक, वस्तु को हू-ब-हू दिखा देता है, वैसे ही हमारी, आँखें भी मन के अच्छे-बुरे भावों को साफू-साफृ, बता देती हैं।, , , , , , मनुष्य के बारे में अपनी बात को स्पष्ट करने के, लिए कबीर ने प्रथम दोहे में सोने के कलश का, उदाहरण दिया है।, , जिस प्रकार शरीर को स्वच्छ रखने के लिए, साबुन-पानी का प्रयोग किया जाता है, उसी प्रकार, व्यवहार में बदलाव के लिए निदंक व्यक्ति कौ, आवश्यकता होती है।, , गुरु का व्यवहार ऊपर से कठोर तथा अंदर से, , , , , , स्नेहपूर्ण होता है। वह शिष्य को ज्ञान ही नहीं, देता, बल्कि समाज और दुनिया के लिए बेहतर, बनाता है।, , मेंढक सिर्फ वर्षा ऋतु में टर्राता है, वर्षा के बाद, उसका बोलना बंद हो जाता है। अतः विद्वान, व्यक्ति को शोर में चुप रहकर समय का इंतज़ार, करना चाहिए।, , जिस प्रकार कत्थे और ख़ून का दाग नहीं, छिपता; खाँसी को नहीं दबाया जा सकता; खुशी, और प्रेम प्रकट हो जाते हैं; उसी प्रकार दुश्मनी, और नशा भी प्रकट हो जाते हैं, उन्हें छिपाया, नहीं जा सकता। जीवन-व्यवहार में इस बात को, सदैव ध्यान में रखना चाहिए।, , जीवन के सभी क्षेत्रों में अभ्यास का अपना, महत्त्व है। अत: बार-बार अभ्यास कर कठिन, कार्यों को आसान बनाया जा सकता है। शरीर के, बहुत से अंगों पर हमारा वश नहीं चलता। आँखें, भी इन्हीं में से एक हैं। आंतरिक भावों का पता, आँखों से लग जाता है।, , , , , , महत्त्वपूर्ण व्याकरण.बिंदु, , जब किसी बात को समझाने के लिए जीवनजगत के किसी दूसरे व्यवहार को उदाहरण रूप, में प्रस्तुत किया जाता है, तो उसे दुष्टांत कहते, हैं। दोहा-1 में दृष्टांत अलंकार है।, , “निंदक-नियरे' में 'न' वर्ण की आवृत्ति से अनुप्रास, अलंकार है।, , जहाँ साधारण तौर पर एक बात कही जाए, पर, उसका अर्थ बिल्कुल भिन्न या अप्रत्यक्ष निकलता, हो, वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है। दोहा-5 में, अन्योक्ति अलंकार हे।, , “खैर, खून........... ! में अनुप्रास अलंकार है।, “अब दादुर बक्ता भये' में व्यंजना का सौंदर्य।, , मानक भाषा : जो पूरे भाषा क्षेत्र में एक जैसी, हो।