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टिप्पणी, 1, 201hi01, बहादुर, आपने कम उम्र के अनेक लड़के-लड़कियों को कारखानों,, चाय की दुकानों या फिर घरों में काम करते देखा होगा ।, आपकी इच्छा होती होगी कि उनके विषय में कुछ जानें,, जैसे- वे कहाँ से आए हैं? क्यों आए हैं? कैसे रहते हैं?, उनके साथ कैसा व्यवहार किया जाता है? विभिन्न, परिस्थितियों का सामना वे कैसे करते हैं ? संभव है कि, इस विषय में आपके भी कुछ अनुभव हों।, बहादुर एक ऐसे किशोर की कहानी है, जो अपने घर से, भागकर शहर आता है। वहाँ एक घर में नौकरी करने, लगता है। वह अपना काम पूरी ईमानदारी और लगन से, करता है, लेकिन एक दिन अचानक वह इस घर से भी, भाग जाता है। वह ऐसा क्यों करता है।, चित्र 1.1, आइए, जानें।, उद्देश्य, इस पाठ को पढ़ने के बाद आप, बहादुर के घर से भागने के मनोवैज्ञानिक कारण स्पष्ट कर सकेंगे;, वयस्कों, विशेषतः किशोरों पर सामाजिक परिवेश के दबाव को समझ सकेंगे;, भिन्न परिस्थितियों वाले दो किशोरों के व्यवहार में अंतर स्पष्ट कर सकेंगे;, बहादुर के प्रति परिवार के प्रत्येक व्यक्ति के व्यवहार पर कारण सहित टिप्पणी, कर सकेंगे;, बहादुर के नौकरी छोड़कर भाग जाने के बाद सभी के पछतावे का कारण, बता सकेंगे;, हिंदी
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बहादुर, बहादुर जैसे किसी अन्य किशोर के रहन-सहन पर टिप्पणी कर सकेंगे;, कहानी के मुख्य पात्रों का चरित्र-चित्रण कर सकेंगे;, टिप्पणी, कहानी की भाषा-शैली पर टिप्पणी कर सकेंगे ।, कखग, 1.1 मूल पाठ, आइए, इस कहानी को एक बार ध्यान से पढ़ लेते हैं । आपकी सहायता के लिए कहानी, में आए कठिन शब्दों के अर्थ हाशिए पर दिए जा रहे हैं ।, बहादुर, सहसा मैं काफ़ी गंभीर हो गया था, जैसा कि उस व्यक्ति को हो जाना चाहिए, जिस, पर एक भारी दायित्व आ गया हो। वह सामने खड़ा था और आँखों को बुरी तरह मलका, रहा था। बारह-तेरह वर्ष की उम्र । ठिगना चकइठ शरीर, गोरा रंग और चपटा मुँह। वह, सफ़ेद नेकर, आधी बाँह की सफेद कमीज़ और भूरे रंग का पुराना जूता पहने था । उसके, | गले में स्काउटों की तरह एक रूमाल बँधा था । उसको घेरकर परिवार के अन्य लोग, खड़े थे। निर्मला चमकती दृष्टि से कभी लड़के को देखती और कभी मुझको और अपने, | भाई को। निश्चय ही वह पंच बराबर हो गई थी।, सहसा, अचानक, ठिगना -, दायित्व -, आँखों को मलकाना -, जल्दी-जल्दी खोलना और बंद, छोटे कद का, ज़िम्मेदारी, आँखें, उसको लेकर मेरे साले साहब आए थे। नौकर रखना कई कारणों से बहुत ज़रूरी हो, गया था। मेरे सभी भाई और रिश्तेदार अच्छे ओहदों पर थे और उन सभी के यहाँ नौकर, थे। मैं जब बहन की शादी में घर गया, तो वहाँ नौकरों का सुख देखा। मेरी दोनों, | भाभियाँ रानी की तरह बैठकर चारपाइयाँ तोड़ती थीं, जबकि निर्मला को सबेरे से लेकर, रात तक खटना पड़ता था। मैं ईष्ष्या से जल गया। इसके बाद नौकरी पर वापस आया,, तो निर्मला दोनों जून 'नौकर-चाकर' की माला जपने लगी । उसकी तरह अभागिन और, दुखिया स्त्री और भी कोई इस दुनिया में होगी? वे लोग दूसरे होते हैं, जिनके भाग्य में, नौकर का सुख होता है..., करना, चकइठ, गोल बनावट का, चमकती दृष्टि से देखना - आशा, तथा प्रसन्नता से देखना, ओहदा, - पद, खटना - बहुत मेहनत करना, ईष्ष्या से जलना -, बहुत ईष्ष्या, करना, जून, समय (सुबह-शाम), पहले साले साहब से उसका किस्सा सुनना पड़ा। वह एक नेपाली था, जिसका गाँव, नेपाल और बिहार की सीमा पर था। उसका बाप युद्ध में मारा गया था और उसकी, | माँ सारे परिवार का भरण-पोषण करती थी । माँ उसकी बड़ी गुस्सैल थी और उसको, बहुत मारती थी। माँ चाहती थी कि लड़का घर के काम-धाम में हाथ बटाए, जबकि वह, पहाड़ या जंगलों में निकल जाता और पेड़ों पर चढ़कर चिड़ियों के घोंसलों में हाथ, माला जपना - रट लगाना; एक, ही बात बार-बार कहना, अभागिन - भाग्य जिसका साथ, न दे, भरण-पोषण -पालना-पोसना, गुस्सैल - गुस्से वाली; क्रोधी, हाथ बँटाना, डालकर उनके बच्चे पकड़ता या फल तोड़-तोड़कर खाता। कभी-कभी वह पशुओं को, चराने के लिए ले जाता था। उसने एक बार उस भैंस को बहुत मारा, जिसको उसकी, माँ बहुत प्यार करती थी, और इसीलिए उससे वह बहुत चिढ़ता था । मार खाकर भैंस, भागी-भागी उसकी माँ के पास चली गई, जो कुछ दूरी पर एक खेत में काम कर रही, थी। माँ का माथा ठनका बेचारा बेज़बान जानवर चरना छोड़कर यहाँ क्यों आएगा?, - सहायता करना, माथा ठनकना - शक होना, बेजबान, जो बोल नहीं सकता, हिंदी
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बहादुर, ज़रूर उसने उसको काफ़ी मारा, है। वह गुस्से से पागल हो गई।, जब लड़का आया, तो माँ ने भैंस, की मार का काल्पनिक अनुमान, टिप्पणी, करके एक डंडे से उसकी दुगुनी | गुस्से से पागल होना, पिटाई की और उसको वहीं, बहुत, अधिक गुस्से के कारण कुछ न, सूझना, कराहता हुआ छोड़कर घर लौट | काल्पनिक अनुमान, आई। लड़के का मन माँ से फट, - मन में अंदाज़ा, करना, मन फट जाना - लगाव न रहना;, गया और वह रात भर जगल में । प्रीति न रहना, - भाग जाना, छिपा रहा। जब सबेरा होने को नौ दो ग्यारह होना, हिदायत, चेतावनी; सीख, ढंग; तरीका, आया, तो वह घर पहुँचा और, किसी तरह अंदर चोरी-चुपके घुस व्यावहारिक, गया। फिर उसने घी की हँडिया हूँसमुख - हमेशा हँसते रहने वाला, शऊर -, व्यवहार करने योग्य, में हाथ डालकर माँ के रखे रुपयों, में से दो रुपए निकाल लिए | अंत, में नौ-दो ग्यारह हो गया। वहाँ, छह मील की दूरी पर बस स्टेशन, था, जहाँ गोरखपुर जाने वाली, बस मिलती थी।, तुम्हारा नाम क्या है, जी?-मैंने, चित्र 1.2, पूछा।, दिल बहादुर, सा'ब ।, उसके स्वर में एक मीठी झनझनाहट थी । मुझे ठीक-ठीक याद नहीं कि मैंने उसको क्या, हिदायतें दीं। शायद यह कि वह शरारतें छोड़कर ढंग से काम करे और इस घर को, अपना घर समझे। इस घर में नौकर-चाकर को बहुत प्यार और इज़्ज़त से रखा जाता, है। जो सब खाते-पहनते हैं, वही नौकर-चाकर खाते-पहनते हैं। अगर वह यहाँ रह गया, तो ढंग-शऊर सीख जाएगा, घर के और लड़कों की तरह पढ़-लिख जाएगा और उसकी, जिंदगी सुधर जाएगी। निर्मला ने उसी समय कुछ व्यावहारिक उपदेश दे डाले थे । इस, मुहल्ले में बहुत तुच्छ लोग रहते हैं, वह न किसी के यहाँ जाए और न किसी का काम, करे। कोई बाज़ार से कुछ लाने को कहे, तो वह 'अभी आता हूँ कहकर अंदर खिसक, जाए। उसको घर के सभी लोगों से सम्मान और तमीज से बोलना चाहिए। और भी बहुत, सी बातें। अंत में निर्मला ने बहुत ही उदारतापूर्वक लड़के के नाम, दिया।, |, से 'दिल' शब्द उड़ा, परंतु, बहादुर बहुत ही हँसमुख और मेहनती निकला। उसकी वजह से कुछ दिनों तक, हमारे घर में वैसा ही उत्साहपूर्ण वातावरण छाया रहा, जैसा कि प्रथम बार तोता-मैना, हिंदी, 31
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बहादुर, या पिल्ला पालने पर होता है। सबेरे - सबेरे ही मुहल्ले के छोटे-छोटे लड़के घर के अंदर, आकर खड़े हो जाते और उसको देखकर हँसते या तरह-तरह के प्रश्न करते । "ऐ, तुम, लोग छिपकली को क्या कहते हो?".. "ऐ, तुमने शेर देखा है?"... ऐसी ही बातें उससे, पहाड़ी गाने की फ़रमाइशें की जातीं । घर के लोग भी उससे इसी प्रकार की छेड़खानियाँ, टिप्पणी, करते थे। वह जितना उत्तर देता, उससे अधिक हँसता था । सबको उसके खाने और, फ़रमाइश, माँग, नाश्ते की बड़ी फिक्र रहती।, फ़िक्र, चिंता, निर्मला आँगन में खड़े होकर पड़ोसियों को सुनाते हुए कहती थी, नाश्ता क्यों नहीं कर लेते? मैं दूसरी औरतों की तरह नहीं हूँ, जो नौकर-चाकर को, तलती-भूनती हैं। मैं तो नौकर-चाकर को अपने बच्चे की तरह रखती हूँ। उन्होंने तो, साफ़-साफ़ कह दिया है कि सौ-डेढ़ सौ महीनावारी उस पर भले ही खर्च हो जाए, पर, | तकलीफ़ उसको ज़रा भी नहीं होनी चाहिए। एक नेकर-कमीज़ तो उसी रोज़ लाए, थे...और भी कपड़े बन रहे हैं..., बहुत दुख देना, मासिक; प्रतिमाह, बहादुर, आकर, तलना-भूनना, महीनावारी -, तकलीफ़ - दर्द, पुलई - टहनी का अंतिम हिस्सा, रिपोर्ट - सूचना, गोया, जैसे, धीरे-धीरे वह घर के सारे काम करने लगा । सबेरे ही उठकर वह बाहर नीम के पेड़ से, दातून तोड़ लाता था। वह हाथ का सहारा लिए बिना कुछ दूर तक तने पर दौड़ते हुए, चढ़ जाता। मिनट भर में वह पेड़ की पुलई पर नज़र आता। निर्मला छाती पीटकर, | कहती थी - अरे रीछ-बंदर की जात, कहीं गिर गया तो बड़ा बुरा होगा । वह घर की, सफ़ाई करता, कमरों में पोंछा लगाता, अँगीठी जलाता, चाय बनाता और पिला, दोपहर में कपड़े धोता और बर्तन मलता। वह रसोई बनवाने की भी जिद करता, पर, निर्मला स्वयं सब्ज़ी और रोटी बनाती। निर्मला की उसको बहुत फ़िक्र रहती थी ।, उसकी उन दिनों तबीयत ठीक नहीं रहती थी, इसलिए वह कुछ दवा ले रही थी।, बहादुर उसको कोई काम करते देखकर कहता था, तकलीफ़ बढ़ जाएगा। वह कोई भी काम करता होता, समय होने पर हाथ धोकर भालू, की तरह दौड़ता हुआ कमरे में जाता और दवाई का डिब्बा निर्मला के सामने लाकर रख, देता।, |, माता जी, मेहनत न करो,, जब मैं शाम को दफ़्तर से आता, तो घर के सभी लोग मेरे पास आकर दिन भर के, अपने अनुभव सुनाते थे। बाद में वह भी आता था। वह एक बार मेरी ओर देखकर, सिर झुका लेता और धीरे-धीरे मुस्कराने लगता । वह किसी बहुत ही मामूली घटना, की रिपोर्ट देता। बाबू जी, बहिन जी का एक सहेली आया था या बाबू जी, भैया, सिनेमा गया था। उसके बाद वह इस तरह हँसने लगता था, गोया बहुत ही मजेदार, बात कह दी हो। मैं उससे बातचीत करना चाहता था, पर ऐसी इच्छा रहते हुए भी, मै जान-बूझकर बहुत गंभीर हो जाता था और दूसरी ओर देखने लगता था ।, |, निर्मला कभी-कभी उससे पूछती थी, बहादुर, तुमको अपनी माँ की याद आती है?, 4, हिंदी
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बहादुर, नहीं।, क्यों?, टिप्पणी, वह मारता क्यों था?-इतना कहकर वह खूब हँसता था, जैसे मार खाना खुशी की, बात हो।, तब तुम अपना पैसा माँ के पास कैसे भेजने को कहते हो?, माँ-बाप का कर्ज़ा तो जन्म भर भरा जाता है, वह और भी हँसता था।, -, बाँस से, बनी चारपाई, बँसखट -, निर्मला ने उसको एक फटी-पुरानी दरी दे दी थी । घर से वह एक चादर भी ले आया, था। रात को काम-धाम करने के बाद वह भीतर के बरामदे में एक टूटी हुई बँसखट, पर अपना बिस्तर बिछाता था। वह बिस्तरे पर बैठ जाता और जेब में से कपड़े की एक, गोल-सी नेपाली टोपी निकालकर पहन लेता, जो बाईं ओर काफ़ी झुकी रहती थी। फिर, वह एक छोटा-सा आईना निकालकर बंदर की तरह उसमें अपना मुँह देखता था वह, बहुत ही प्रसन्न नज़र आता था। इसके बाद कुछ और भी चीजें उसकी जेब से, निर्जनता, सुनसान; सूनापन, बड़प्पन - बड़ा होने के भाव, चित्र 1.3, निकलकर उसके बिस्तरे पर सज जाती थीं - कुछ गोलियाँ, पुराने ताश की एक गड्डी,, कुछ खूबसूरत पत्थर के टुकड़े, ब्लेड, कागज़ की नावें । वह कुछ देर तक उनसे खेलता, था। उसके बाद वह धीमे-धीमे स्वर में गुनगुनाने लगता था । उन पहाड़ी गानों का अर्थ, हम समझ नहीं पाते थे, पर उनकी मीठी उदासी सारे घर में फैल जाती, जैसे कोई पहाड़, की निर्जनता में अपने किसी बिछुड़े हुए साथी को बुला रहा हो।, दिन मजे में बीतने लगे। बरसात आ गई थी । पानी रुकता था और बरसता था। मैं अपने, को बहुत ऊँचा महसूस करने लगा था । अपने परिवार और संबंधियों के बड़प्पन तथा, शान-बान पर मुझे सदा गर्व रहा है । अब मैं मुहल्ले के लोगों को पहले से भी तुच्छ, समझने लगा। मैं किसी से सीधे मुँह बात न करता । किसी की ओर ठीक से देखता भी, नहीं था। दूसरे के बच्चों को मामूली-सी शरारत पर डाँट-डपट देता था । कई बार, पड़ोसियों को सुना चुका था, जिसके पास कलेजा है, वही आजकल नौकर रख, हिंदी