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1.3 स्वयं का अर्थ एंव निर्माण :-- स्वयं या आत्म का अर्थ होता है किसी भी मनुष्य को स्वयं, का अहसास, जिसमें वह अपने अतीत एंव भविष्य को समझता है, व अपने आस- पास के, लोगो , मित्रों, सहकर्मियों , रिश्तेदारों, तथा अतिथियों को भी जानता है। उसे अपने जीवन, तथा मृत्यु का भी अहसास होता है। वह अपने जीवन की निश्चित पहचान, उद्देश्य एवं अर्थ को, प्राप्त करने में निरन्तर लगा रहता है। आत्म ,/ स्वयं को अवधारणा यह है कि यह व्यक्ति की, प्रक्रिया को दिशा प्रवान कर अचेतन मन के अपयोगी और रचनात्मक पक्ष को चेतन बना देता, हकै। इससे मन की एक सकारात्मक प्रक्रिया की ओर लें जाया जाता है। जिससे आत्म विकास, हो सके। यही आत्म की अवधारण भी हे। आत्म से आत्मसात् होना एक सचेतन आन्तरिक, प्रयास हकै। इस प्रक्रिया के द्वारा मनुष्य अपनी शक्तियों ,क्षमताओं, कमियों आदि को समझ, सकता है। मनुष्य अपनी बाहय क्रियाओं के प्रति भी सजग, सतर्क, जागूत तथा विवेकशील भी, बन जाता है। शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थियों को स्वयं से परिचय कराने के लिए प्रेरित करता, है तथा अपने अधिगम के लिए स्वयं जिम्मेदार बनाने के लिए तैयार करना चाहिए।, , स्वयं की परिभाषाएं:-, 1. जेम्स ड्रेवर (1986) :-- “आत्म शब्द का प्रयोग बहुधा अहं के अर्थ में किया जाता है, यह, वह एजेन्ट है जो अपने ही पहचान के स्थायित्व के संबंध में चेतन रहता है। ”, , 2.आइजनेक एवं अनके साथियों (1972) -- “अनुभवात्मक अनुसंघान में आत्म का अर्थ मूल रूप, से उस प्रत्यक्षीकरण से है जो विषयी अपने ही संबंध में करता है।”, , डन परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता हे आत्म का अर्थ है-- वह, प्रत्यक्षीकरण या अनुभव, जो मनुष्य अपने ही संबंध में करता है। यह वह प्रमुख कारक है जो, सम्पूपष्प जीवन को एक दिशा प्रदान करता है।