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जॉन डीती, 147, है दह कल की बदली हुई परिस्थितियों के लिए सत्य नहीं हो सकता। जो एक व्यक्ति अथवा स्थान के लिए आदर्श, है वह दूसरे स्थान और व्यक्ति के लिए आदर्श नहीं हो सकता। यही बात जीवन मूल्थों से सम्बन्ध में है।, डीवी के शैक्षिक विचार, (Educational Ideas of Dewey), डीवी के शैक्षिक विचार उसकी प्रयोजनवादी दार्शनिक विचारधारा पर आधारित हैं। उसने शिक्षा के विभिन्न, पहलुओं-अर्थ, उद्देश्य, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि, अनुशासन, शिक्षक, शिक्षार्थी और शिक्षालय आदि के सम्बन्ध में जो, भी विचार प्रकट किये हैं उन सभी पर उसकी दार्शनिक विचारधारा की गहरी छाप देखने को मिलती है इन सबके, सभ्बन्ध में उसके विचारों का अध्ययन हम नीचे क्रम से करेंगे-, डीवी के अनुसार शिक्षा का अर्थ, (Educational Ideas of Dewey), डीवी ने ज्ञान का स्रोत 'अनुभव' माना है। व्यक्ति अनुभव समाज में रहकर प्राप्त करता है। ये अनुभव उसे, अपनी आवश्यकताओ की पूर्ति करने की किया में होते हैं आवश्यकताओं की पूर्ति होने से ही उसे भावी विकास, के लिए मार्ग दिखलाई पड़ता है। इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखकर उसने शिक्षा के अर्थ के सम्बन्ध में निम्नलिखित, पाँच दिचार प्रस्तुत किये हैं-, (1) शिक्षा अनुभवों के पुनर्निर्माण की प्रक्रिया है (Education is a process of Reconstruction of, cxpericnces)- डीवी का मत है कि 'ज्ञान' अनुभव से प्राप्त होता है । व्यक्ति को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति, के लिए अपने पूर्व अनुभवों के आधार पर कुछ कियायें करनी पड़ती हैं। किन्तु व्यक्ति की आवश्यकतायें सदा एक-सी, नहीं होती उनमें परिवर्तन होता रहता है अतएव उसे नित्य नवीन अनुभव होते हैं । वह अपने र्व संचित अनुभवों, के आधार पर नदीन अनुभवों में संशोधन करता है और उनका हितकर दिशा में फिर से निर्माण करता है। अनुभवों, के इसी निर्माण की प्रक्रिया को शिक्षा कहते हैं यह निर्माण की प्रक्रिया अनवरत् रूप से चलती रहती है। इस सम्बन्ध, में डीवी का कथन है कि हमारे अनुभव के परिदर्तित एवम् संशोधित होने का नाम ही शिक्षा है । उसने लिखा है-, शिक्षा अनुभवों के अनवरत् पुनर्निर्माण एवम् पुनर्सगठन की एक प्रक्रिया है।", (2) शिक्षा स्वयं जीवन है (Fducation is life itsclf)- स्पेन्सर तथा अन्य शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा को जीवन, की तैयारी (Preparation for life) माना है किन्तु डीवी का विचार है कि शिक्षा स्वयं जीवन है उसने अपनी, प्रसिद्ध पुस्तक 'डेमोकेसी एट एजुकेशन' के पहले अध्याय में ही लिखा है कि शिक्षा जीवन के लिए अत्यन्त आदश्यक, है क्योंकि इसके विना जीवन की प्रगति नहींी हो सकती। इस तथ्य को स्पष्ट करते हुए डीवी का कथन है कि बालक, दर्तमान में निवास करता है और वर्तमान से ही सम्बन्धित उसकी अनेक आदश्यकताएँ होती हैं। वह आगे आने वाले, समय के लिए वितित नहीं रहता और न ही सुदृर भविष्य में उसकी कोई रुचि होती है। अतः बालक की शिक्षा में, उसके भविष्य की अपेक्षा वर्तमान को अधिक महन्व देना चाहिये वर्तमान में बालक की रुचि अधिक होती है। अतः, वह क्रियाशील रहता है और अपनी रुचि के कार्यों को एकाग्रवित्त होकर करता है। इस क्रिया के परिणामस्वरूप, अनुभदों का परिदर्तन, संशोधन और पुनर्निर्माল करता है। इसलिए शिक्षा स्वयं जीवन है डीवी ने इस तथ्य को, सामाजिक दृष्टिकोण मे भी मिद्ध करने का प्रयास किया है उनका कहना है कि शिक्षा समाज की संस्कृति और सभ्यता, मेरक्षण और दूसरी पीढी को हमतातरण करके सामाजिक जीवन की निरनं्तरता को बनाये रखती है शिक्षा के अभाव, में सामाजिक जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए भी शिक्षा स्वयं जीवन है।, (3) शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है (Fducation is a social process)- ऊपर के विचारों से यह स्पष्ट, १ कि. मानव समाज की सभ्यता और सस्कृति का संरक्षण और विकास शिक्षा के द्वारा ही होता है दूसरे शब्दों में, बलक अपनी सभ्यता और सम्कृति की शिक्षा समाज में रहकर ही प्राप्त करता है। उसकी शक्तियों का विकास केवल, मम्य जीवन के आधार पर सामाजिक वातादरण के बीच होता है बालक अपने चरित्र का निर्माण भी सामाजिक, वातावरण में ही करता है। इस दृष्टि से शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है समाज में बालक को अनेक प्रकार के, Tducatnonsa pro ess msolving contnuous reconstruction und reorganization of experience.", -Dewey.