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व रचनात्मक लेखन, , विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन, , जनसंचार माध्यम, , और समाज में हम एक व्यक्ति के रूप में अन्य, धक्तियों से संचार के माध्यम मं ही संबंध स्थापित करते हैं।, पंवार ही हमें एक-दूसरे से बाँधे रखता है। वस्तुत: मनुष्य ने, कदेशों के आदान-प्रदान में लगने वाले समय और दूरी को, क्रम करने के लिए ही संचार के अनेक माध्यमों की खोज की।, हल्हें ही जनसंचार माध्यम कहा जाता है; जैसे-प्रिंट, रेडियो,, रेलीविजन, इंटरनेट आदि।, , »संचार और जनसंचार के माध्यम हमारी अनिवार्य, आवश्यकताएँ हैं। हमारे दैनिक जीवन में उनकी एक, महत्त्पूर्ण भूमिका है। आधुनिक समय में हम उनके बिना, जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। ये हमारे लिए केवल, सूचना के ही माध्यम नहीं बल्कि हमें जागरूक बनाने और, हमारा मनोरंजन करने में भी अग्रणी हैं।, , » जनसंचार के विभिन्न माध्यमों में समाचारों की लेखन शैली,, भाषा तथा प्रस्तुतीकरण में अंतर होता है। समाचार-पत्र पढ़ने, के लिए, रेडियो सुनने के लिए तथा टेलीविजन देखने के लिए, होता है।, , «इंटरनेट पर हम पढ़ना, सुनना तथा देखना तीनों कर सकते हैं।, , स्पष्ट है कि अखबार छपे हुए शब्दों का माध्यम होता है तथा, रेडियो बोले हुए शब्दों का।, , जनसंचार के विभिन्न माध्यमों के लाभ, , और हानियाँ, , « सभी व्यक्तियों में जनसंचार के विभिन्न माध्यमों की अपनी, अलग-अलग रुचि हो सकती है। सभी माध्यमों के लाभ और, हनियाँ व्यक्तियों की जरूरतों, स्वभाव और पहुँच के अनुकूल, होती है। अत: यह आवश्यक नहीं है कि जनसंचार का कोई, एक माध्यम सबसे बेहतर है और दूसरा उससे निम्न है।, , « जनसंचार के सभी माध्यम एक-दूसरे के पूरक तथा सहयोगी, होते हैं। सभी माध्यम दैनिक जीवन में किसी-न-किसी तरह, से उपयोगी हैं। इसी कारण जनसंचार के अलग-अलग माध्यम, होने के बावजूद ये आज भी प्रचलन में हैं।, , प्रिंट माध्यम, , « प्रिंट मीडिया या पत्र-पत्रिकाएँ जनसंचार का प्रमुख आधार हैं।, आधुनिक समय में भले ही रेडियो, टी.वी., इंटरनेट आदि के, माध्यम से खबरों के संचार को पत्रकारिता कहा जाता हो,, परंतु आरंभ में केवल प्रिंट माध्यमों के द्वारा ही खबरों का, आदान-प्रदान किया जाता था।, , « मुद्रण (छपाई) के आविष्कार से ही आधुनिक युग कौ, शुरुआत मानी जाती है। मुद्रण की शुरुआत चीन में हुई, परंतु, छापे खाने के वर्तमान स्वरूप का श्रेय जर्मनी के गुटेनबर्ग को, जाता है।, , « प्रेस के आविष्कार ने दुनिया की तस्वीर ही बदल दी थी। भारत, में पहला छापाखाना 1556 ई. में गोवा में खुला। यह ईसाई, मिशनरियों द्वारा धर्म-प्रकर की पुस्तकें छापने के लिए खोला, गया था।, , « वर्तमान में मुद्रित माध्यम के अंतर्गत अखबार, पत्रिकाएँ,, पुस्तकें आदि आते हैं। मुद्रित माध्यम लिखित भाषा का विस्तार, है। इसमें भाषा, व्याकरण, वर्तनी और शब्दों के प्रयोग का, ध्यान रखना पड़ता है। मुद्रित माध्यमों की अन्य विशेषता है कि, यह चिंतनं, विचार और विश्लेषण का माध्यम है, लेकिन, मुद्रित माध्यमों की एक कमजोरी यह है कि इनका पाठक, केवल साक्षर व्यक्ति हो सकता है निरक्षर नहीं।, , « मुद्रित माध्यम से लेखन करने वालों को अपने पाठकों के, भाषा-ज्ञान, शैक्षिक ज्ञान, योग्यता तथा साथ ही उनकी रुचि, का भी ध्यान रखना पड़ता है। उनकी प्रकाशित होने की एक
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42, , अवधि होती है। ये रेडियो. टी.वी.. इंटरनेट आदि की, का बन हो घटित होने वाली घटनाओं के विषय में नहीं बता, सकते। ये दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक या वार्षिक, होते है।, , » अखबार या पत्रिका में समाचारों या रिपोर्ट को प्रकाशन के, लिए स्वीकार करने को निश्चित समय-सीमा को डेडलाइन, कहा ज्यत् है। मुद्रित माध्यम में शब्द सीमा का भी विशेष, महत्त्व होता है। किसो रिपोर्ट को लिखने में उसकी एक, निश्चित शब्द सोमा होती है। इन सभी कारणों की बजह से ही, पत्र-पत्रिकाओं को एक पूरी संपादकोय टीम होती है, जो, मुद्रित सामग्री को प्रकाशन के योग्य बनाती है।, , रेडियो, , * पत्र-पत्रिकाओं के बाद श्रव्य माध्यम रेडियो ने विश्व को बहुत, अधिक प्रभावित किया। यह श्रोताओं द्वारा संचालित माध्यम, है। पहले विश्वयुद्ध तक रेडियो सूचनाओं के आदान-प्रदान, का महत्त्वपूर्ण माध्यम बन चुका था। 1892 ई. में अमेरिका में, न्यूवॉर्क, शिकागो, पिट्सबर्ग में शुरुआती रेडियो स्टेशन खुले।, भारत में भी लगभग इसी समय रेडियो का प्रारंभ हुआ।, , * समाचार-पत्रों में किसो ख़बर को दोबारा पढ़ा जा सकता है,, परंतु रेडियो में यह सुविधा नहीं होती। उसमें एक निश्चित, समय में केवल एक बार में हो किसी खबर को सुना जा, सकता है। सामान्यतः: रेडियो एकरेखीय माध्यम है। रेडियो, समाचार बुलेटिन का स्वरूप, ढाँचा व शैली इसी आधार पर, क्य होता है। रेडियो में शब्द और आवाज ही सब कुछ, होती है।, , * रेडियो समाचार लेखन की संरचना उल्टा पिरामिड शैली की, होती है। इस शैली में समाचार के सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य को, सबसे पहले तथा बाद में महत्त्व के अनुसार घटते हुए क्रम में, अन्य तथ्यों व सूचनाओं को लिखा या बताया जाता है।, , रेडियो समाचार लेखन के लिए महत्त्वपूर्ण बातें, , रेडियो के लिए समाचार लेखन करते समय निम्नलिखित बातों, का ध्यान रखना आवश्यक है, , « साफ-सुथरी व कॉपी रेडियो समाचार श्रव्य साधन है अर्थात्, यह केवल सुने जाते हैं। अत: लेखन सावधघानीपूर्वक करना, चाहिए। समाचार को कॉपी को इस तरह तैयार करना चाहिए,, जिससे समाचार वाचक या वाचिका को उसे पढ़ने में कोई, समस्या न हो। साफ-सुथरा लिखा गया समाचार वाचक द्वारा, आसानी से पढ़ा जाता है। ऐसा न होने पर गलत पढ़ने का, ख़तरा रहता है, जिससे श्रोता भ्रमित हो सकते हैं।, , टेलीविजन, , * यह एक दृश्य-श्रव्य माध्यम है। अत: आज के समय में इसको, , « टेलीविजन पर समाचारों को दो तरह से प्रस्तुत किया जाता, , (85४ न्यू पैटर्न - हिंदी केंद्रिक कक्षा 12 (छा, , +, * टाइपिंग का विशेष ध्यान प्रसारण के लिए तैयार कॉपी के, , कंप्यूटर पर ट्रिपल स्पेस में टाइप किया जाना चाहिए। एक, लाइन में शब्दों की अधिकतम सीमा 12-18 होनो चाहिए। एक, से दस तक के अंक शब्दों में तथा 11 से 999 तक अंकों मे, लिखा जाना चाहिए। रेडियो समाचार में अत्यधिक आकड़ो, तथा संख्या का प्रयोग नहीं करना चाहिए।, , * डेडलाइन, संदर्भ व संक्षिप्त अक्षर का प्रयोग रेडियो मे |, , डेडलाइन समाचार से ही गुँथी हुई होती है। रेडियो पर लगभग, पूरे दिन समाचार चलते रहते हैं। अतः समाचार में संक्षिण, अक्षरों; जैसे--आज, आज सुबह, आज दोपहर, कल हू, बैठक में, आज हुई बैठक में आदि का प्रयोग करना चाहिए।, , विश्वसनीयता कई गुना बढ़ जाती है। टेलीविजन लेखन प्रिंट, मीडिया व रेडियो दोनों से काफी अलग होता है। इसमें, , कम-से-कम शब्दों में अधिक से अधिक सूचना देने की कला, का ग्रयोग किया जाता है।, , है--अथम मुख्य ख़बर के रूप में, जिसे बिना दृश्य के न्यूज, रीडर या एंकर पढ़ता है तथा दूसरा वह जहाँ से ख़बर से, संबंधित दृश्य दिखाए जाते हैं। टी.वी. पर सूचनाएँ कई चरणों, से होकर दर्शकों तक पहुँचती हैं। ये चरण हैं, 6) फ्लैश या ब्रेकिंग न्यूज, , (४) ड्राई एंकर, , 60) फोन-इन, , (6४) एंकर-विजुअल, (४) एंकर बाइट (कथन), , (छं) लाइव, , (श्) एंकर पैकेज, , , , रेडियो और टेलीविजन समाचार की भाषा व शैली, , * टी.वी. पर समाचार के लिए उसी भाषा का प्रयोग करना, चाहिए जो हम परस्पर बातचीत में करते हैं। वाक्यों को सरल, भाषा में छोटा, सीधा और स्पष्ट लिखना चाहिए।, , * किसी भी खबर को लिखने से पहले उसको प्रमुख बातों को, अच्छी तरह से समझने का प्रयास करें।, , « समाचार की भाषा की सरलता, संप्रेषणीयता और, को जाँचने के लिए उसे बोल-बोलकर पढ़ें। इससे, भाषा-प्रवाह का पता चल जाएगा, जिससे एंकर को उसे पढ़ने, में कोई परेशानी न हो।
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थक, , क्ध्क्स््स्न्ल्ल्ल्ल्स कज्क््_»आ.आ.आ-्य न्यू पैटर्न - हिंदी केंद्रिक कक्षा 12 (ता ॥॥|, , गृडियों तथा टी.वी. पर समाचार के लिए भाषा-शैली के चुनाव, , * « सतर्कता बरतनी चाहिए। कठिन शब्दावली के प्रयोग से, बना चाहिए। भाषा स्वाभाविक और मुहावरेदार होनी चाहिए,, जिससे उसकी रोचकता बनी रहे।, , , अनावश्यक विशेषणों, सामाजिक व तत्सम शब्दों से भाषा, बोझिल हो जाती है। उनके प्रयोग से बचना चाहिए। अत: टी.वी., पर समाचार की भाषा बोलचाल के शब्दों में अनुरूप ही होनी, चाहिए।, , » इंटरनेट जनसंचार का नवीन तथा तेजी से लोकप्रिय होता, माध्यम है। इस तरह की पत्रकारिता को ऑनलाइन, पत्रकारिता, वेब पत्रकारिता या साइबर पत्रकारिता कहा, जाता है। भारत में कंप्यूटर की साक्षरता दर बढ़ने से 50- 55%, इंटरनेट कनेक्शनों की संख्या बढ़ रही है। अत: लोग अब सभी, जानकारियों को इंटरनेट से ही प्राप्त करना सरल मानते हैं।, , «इंटरनेट केवल एक दूल है, जो सूचना, मनोरंजन, ज्ञान,, व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक संवादों के आदान-प्रदान के लिए, अ्योग किया जाता है। इंटरनेट पर पत्रकारिता के दो रूप हैं-खबरों के संप्रेषण के लिए इंटरनेट का प्रयोग तथा दूसरा खबरों, को एक जगह से दूसरी जगह भेजने के लिए ई-मेल का प्रयोग, , « समाचारों के संकलन, सत्यापन तथा पुष्टिकरण के लिए भी, इंटरनेट का प्रयोग किया जाता है।, , इंटरनेट पत्रकारिता, , « इंटरनेट पर समाचार-पत्रों का प्रकाशन या खबरों का, आदान-प्रदान इंटरनेट पत्रकारिता के अंतर्गत आता है। इंटरनेट, पर किसी भी रूप में खबरों, लेखों, वाद-विवादों, डायरियों, आदि को दर्ज करने का काम ही इंटरनेट पत्रकारिता है।, , *» आज के समय में लगभग सभी प्रकाशन समूहों ने स्वयं को, इंटरनेट पत्रकारिता से जोड़ लिया है। इंटरनेट पर पत्रकारिता का, एक अलग ही तरीका होता है।, , इंटरनेट पत्रकारिता का इतिहास, “ इंटरनेट पत्रकारिता के इतिहास को हम मुख्यतः तीन चरणों में, विभक्त कर सकते हैं, 6) वर्ष 1982 से 1992 तक का समय इंटरनेट पत्रकारिता, का पहला चरण माना जाता है। इसी समय ऑनलाइन, पत्रकारिता की अवधारणा का जन्म हुआ, , 43, , ॥| चरण वर्ष 1993 से 2001 तक के समय को, ए झता जाता है। इस अवधि में इंटरनेट के प्रचलन, इसे बल मिला। सं, 69) इंटरनेट पत्रकारिता का तीसरा चरण वर्ष 2002, अब तक का माना जाता है।, , » पहले चरण में अमेरिका ऑनलाइन जैसी कुछ चर्चित, कंपनियाँ सामने आईं। वास्तविक रूप से इंटरनेट पत्रकारिता, का आरंभ वर्ष 1983 से 2002 के बीच हुआ। इस दौरान, इंटरनेट का तीत्र विकास हुआ। नई वेब भाषा एचटीएमएल, (हाइपर टेक्स्ट मार्क्डअप लैंग्वेज), इंटरनेट एक्सप्लोरर, और नेटस्केप ब्राउजर आदि ने इंटरनेट को सुविधा संपन्न व, तेज-रफ्तार बना दिया।, , भारत में इंटरनेट पत्रकारिता, , » भारत अभी इंटरनेट पत्रकारिता के दूसरे दौर में है। इसका, पहला दौर भारत में वर्ष 1993 से माना जा सकता है तथा, दूसरा दौर वर्ष 2003 से शुरू हुआ है।, , » आज की पत्रकारिता की दृष्टि से कुछ अच्छी साइटें, हैं-टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, इंडियन, एक्सप्रेस, हिंदू ट्रिब्यून, स्टेट्समैन, पॉयनियर, एनडीटीवी,, आईबीएन, जी न्यूज, आज तक, आउटलुक आदि। इनमें से, कुछ साइटें नियमित रूप से अपडेट होती हैं।, , « इंटरनेट पत्रकारिता के भारतीय इतिहास में तीन वेबसाइटों, रीडिफ डॉट कॉम, इंडिया इंफोलाइन व सीफी का महत्त्वपूर्ण, योगदान रहा। विशुद्ध पत्रकारिता के मानदंड को पूर्ण करने, वाली पहली वेबसाइट “तहलका” थी।, , हिंदी नेट संसार, , « हिंदी में नेट पत्रकारिता का आरंभ “वेब दुनिया” से हुआ। यह, पोर्टल इंदौर के नई दुनिया समूह से शुरू हुआ था। यह हिंदी, का संपूर्ण पोर्टल है।, , + हिंदी के नए वेब संस्करण हैं-जागरण, अमर उजाला, हिंदुस्तान, भास्कर, राजस्थान पत्रिका, नवभारत टाइम्स,, प्रभात खबर, राष्ट्रीय सहारा आदि। पत्रकारिता के दृष्टिकोण, , से हिंदी की सर्वश्रेष्ठ साइट बीबीसी इंटरनेट, मानदंडों को पूरा करती है। है, जो इंटरनेट के, , « हिंदी के फॉण्ट की समस्या के हिंदी, साइटें खुलती हो नहीं हैं। कारण हिंदी की बहुत सी