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पत्रकारीय लेखन के विभिन्न, रूप और लेखन प्रक्रिया, , पत्रकारीय लेखन, , , पत्येक व्यक्ति अपने आसपास घटित होने वाली घटनाओं, के बरे में जानने को उत्सुक रहता है। नवीनतम जानकारी, के लिए मनुष्य में जिज्ञासा का भाव प्रबल होता है। यही, जिज्ञासा समाचार एवं व्यापक अर्थ में पत्रकारिता का मूल, कत््व है। पत्रकारिता का विकास इसी सहज जिज्ञासा को, शत करने कौ कोशिश के रूप में हुआ।, , * देश-दुनिया में घटने वाली घटनाओं को पत्रकार समाचार, के रूप में परिवर्तित करके हम तक पहुँचाते हैं। पहले वे, सूचनाओं का संकलन करते हैं, फिर उन्हें समाचारों के, रूप में ढालकर हमारे सामने प्रस्तुत करते हैं। इस पूरी, प्रक्रिया को ही 'पत्रकारिता' या 'पत्रकारीय लेखन' कहा, जाता है।, , समाचार लेखन, , * समाचार लेखन” समाचारों को लिखकर प्रस्तुत करने का, ढंग है। समाचार लेखन एक विशिष्ट कला है। समाचार, सूचनात्मक एवं तथ्यात्मक होते हैं। चूँकि इनका सीधा, संबंध जनमत से है, इसलिए इनकी प्रस्तुति का ढंग, अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।, , * प्रमाणिकता एवं विश्वसनीयता युक्त समाचारों की, सामाजिक चेतना के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती, है। इसी कारण समाचार लेखन में पत्रकारिता की, तकनीकों का उपयोग करके समाचार को उपयोगी,, रोचक एवं प्रभावशाली बनाया जाता है।, , * अच्छे समाचारों में सरलता, सुस्पष्टता, क्रमबद्धता,, सत्यता एवं संक्षिप्तता होती है।, , समाचार लेखन के प्रकार, , समाचार सामान्यतः दो प्रकार से लिखा जाता है, , « बिलोम स्तूपी पद्धति (उल्टा पिरामिड शैली) यह समाचार लेखन, की बहुपयोगी तथा लोकप्रिय बुनियादी शैली है। यह शैली कहानी, लेखन से बिल्कुल विपरीत होती है, इसमें मुख्य बात को अर्थात्, क्लाइमेक्स को सबसे ऊपर लिखा जाता है।, , , , , , विलोम स्तूपी पद्धति, , « उर्ध्वस्तूपी पद्धति प्राय: समाचार विलोमस्तूपी पद्धति के अनुसार ही, लिखे जाते हैं, क्योंकि उर्ध्वस्तूपी पद्धति में कम महत्त्वपूर्ण से, सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण के क्रम में तथ्यों का संकेत किया जाता है।, चूँकि पाठक घटना के बारे में शीघ्र सूचना प्राप्त करना चाहता है,, इसलिए वह पूरे ब्यौरे को पढ़ने में रुचि नहीं लेता।, , टी चरेत्कर् (क्या हुआ?, उ्धसतूपी पद्धति...
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48, , समाचार लेखन और छ: ककार, किसी भी समाचार के छ: आधारभूत सवाल होते हैं, जिन्हें हिंदी, में छः ककार कहा जाता है तथा अंग्रेजी में पाँच (5) डब्ल्यू (७), एवं एक एच (प) कहा जाता है। किसी भी समाचार में इन छः:, ककारों का होना सामान्यतया आवश्यक माना जाता है। ये ककार, निम्न हैं, , 6) क्या (४४४0 अर्थात् क्या घटित हुआ?, , (9) कब (५४४०७) अर्थात् घटना कब घटी?, , 69) कहाँ (ए४०/०) अर्थात् घटना किस स्थान पर घटी, , यानि किस स्थान से संबंधित है?, , 60) कौन (ए७०) अर्थात् घटना किससे संबंधित है?, , (९) क्यों (७७) अर्थात् घटना क्यों घटी?, , (रण) कैसे (प्र०छ) अर्थात् घटना कैसे घटित हुई?, , समाचार लेखन के विभिन्न चरण, 1. शीर्षक, , समाचार लेखन करते हुए सर्वप्रथम समाचार का शीर्षक देना, , चाहिए। शीर्षक में समाचार की मुख्य घटना (जिस घटना के, , संदर्भ में समाचार लिखा जा रहा है) का सांकेतिक उल्लेख, , रहना चाहिए। शीर्षक ऐसा होना चाहिए जो पाठक को सहज रूप, , से आकर्षित करे, समाचार का मूलभाव बताए और पाठक को, , अपनी रुचि के अनुसार समाचार खोजने में सहायक हो।, , » शीर्षक संक्षिप्त, सरल, सार्थक एवं स्पष्ट होना चाहिए।, , » शीर्षक को कभी भूतकाल में नहीं लिखना चाहिए।, , » शीर्षक में यदि नाम दिया जाना ज़रूरी हो तो महत्त्वपूर्ण तथा, विख्यात व्यक्ति का दिया जाना चाहिए।, , » शीर्षक समाचार का प्रवेश द्वार” माना जाता है। शीर्षक की, उपयुक्तता समाचार के महत्त्व को बढ़ाती है।, , 2. स्रोत, शीर्षक के पश्चात् समाचार के स्रोत का उल्लेख करना चाहिए।, , जैसे-, » हमारे विशेष प्रतिनिधि द्वारा, , » व्यक्तिगत संवाददाता द्वारा, , » समाचार प्रदाता एजेंसियाँ, , » समाचार ब्यूरो, , (स्रोत के अंतर्गत स्थान, व्यक्ति .दोनों का उल्लेख करने से, समाचार ज्यादा विश्वसनीय हो जाता है।), , ३. आमुख ., आमुख को “मुखड़ा', इंट्रो' (997०) या “लीड'(,०४१) भी कहा, जाता है। यह समाचार का पहला अनुच्छेद होता है। आमुख में, , ८४5 न्यू पेटर्न - हिंदी केंद्रिक कक्षा 126, |, णफ्जणएणा), , समाचार के संबंध में तीन प्रश्न क्या, कहाँ, दिया जाता है। कभी-कभी आमुख के तहत कन, ह बोर, जैसे प्रश्नों का उत्तर देना भी ज़रूरी हो जाता है। 3 ३, क्या है अथवा विशिष्ट कथन क्या था बताया जाना हि, न आस मात, संक्षिप्त तथा ठोस होना चाहिए। है, * समीक्षकों के अनुसार आमुख 30-35 शब्दों आ, , होना चाहिए। ७७७ हि, आमुख में किंतु, परंतु, लेकिन जैसे शब्दों के प्रयोग से, चाहिए। ये शब्द आमुख को अव्यवस्थित तथा अयवार्धगल, देते हैं। हेरॉल्ड इवेन्स के अनुसार, “समाचार के भीतर हि, किसी 'संकेत शब्द” को ही आमुख का आधार बनाया जाना, चाहिए।”” हा, , 4. बॉडी या कलेवर, , “आमुख' या (इंट्रो' के पश्चात् समाचार का शेष भाग, जिसे बॉडी, या समाचार का कलेवर (8009 ०६४४० ४६०7५) कहा जाता है, आता है। इसमें सभी घटनाएँ क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत की जाती हैं।, समाचार की “बॉडी” लिखते समय निम्न बातों पर ध्यान देना, चाहिए, , » इसमें घटना क्रमश: वर्णित होनी चाहिए।, , ० इसमें आमुख से अलग तथ्य प्रस्तुत करने चाहिए।, , ० संपूर्ण समाचार का विवरण एक स्थान पर आ जाना चाहिए।, , 5. संक्षेपण, , अंत में संपूर्ण समाचार का संक्षिप्त सार दिया जाना चाहिए,, , इसके लिए निम्नलिखित तथ्यों को ध्यान में रखना आवश्यक, , होता है, , « समाचार संक्षेपण करते हुए केवल मुख्य बातों को रखना, चाहिए, अनावश्यक विवरण संक्षेपण में नहीं आने चाहिए।, , » समाचार संक्षेपण में पुनरुक्ति नहीं होनी चाहिए।, , ० इसमें नकारात्मक वाक्य नहीं होने चाहिए।, , ० समाचार के निष्कर्ष के रूप में संपादक या समाचार लेखक, की अपनी टिप्पणी नहीं होनी चाहिए।, , समाचार के प्रकार, , मुख्य रूप से समाचार चार प्रकार के होते हैं, , 1. राष्ट्रीय 2. अंतर्राष्ट्रीय, , 3. प्रादेशिक 4. स्थानीय, , विदेशों से प्राप्त होने वाले समाचार “अंतर्राष्ट्रीय समाचार, कहलाते हैं, जबकि 'राष्ट्रीय” समाचारों का संबंध अपने देश के, समाचारों से है। देश के विभिन्न प्रदेशों से प्राप्त होने वाले, समाचारों को प्रादेशिक समाचार' की श्रेणी में रखा जाता हैं, , ह ।
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49, , , , टन -हिंदी केंद्रिक कक्षा 12 (छापा) 1), , समाचारों से समाचार-पत्नों की गतिशीलता बढ़ती है।, छाती समाचार समाचार-पत्र के प्रकाशन स्थान या उसके, ला के क्षेत्र से संबंधित ख़बरों के समूह होते हैं।, , लेखन, , पत्रों में संपादक के नाम पर “संपादकीय पृष्ठ”, , * (क्ाशित होता है। उसमें उस समाचार -पत्र के संपादक द्वारा, किसी ज्वलंत मुद॒दे, घटना या समस्या से संबंधित उसकी स्वयं, की राय, विचारों और भावनाओं को लिखा जाता है।, , ५ ; समाचार-पत्रों में सहायक संपादकों द्वारा संपादकीय, लेखन किया जाता है। इसे कोई अन्य पत्रकार या लेखक नहीं, लिख सकता।, , » संपादकीय पृष्ठ किसी भी समाचार-पत्र का महत्त्वपूर्ण हिस्सा, होता है।, , स्तंभ लेखन, , «कुछ महत्त्वपूर्ण लेखक अपने विचारों के लिए जाने जाते हैं।, इससे उन लेखकों की लेखन-शैली भी विकसित हो जाती है।, लेखकों की लोकप्रियता को व उनकी लेखन-शैली को देखते हुए, समाचार-पत्र में उन्हें स्तंभ लिखने के लिए कहा जाता है जिसमें, उन्हें विषय का चुनाव करने की स्वतंत्रता होती है। कुछ लेखकों, के स्तंभ इतने अधिक लोकप्रिय होते हैं कि उन्हें उनके स्तंभ द्वारा, ही पहचाना जाता है।, , » स्तंभ लेखन में लेखक के स्वयं के विचार प्रमुख होते हैं अपने |, , विचारों को ही लेखक प्रस्तुत करता है परंतु स्तंभ लेखन लिखते, समय लेखक तथ्यों को भी ध्यान में रखता है।, , संपाढ़क के नाम पत्र, , * संपादकीय पृष्ठ पर संपादक के नाम पत्र प्रकाशित किए जाते हैं।, इसके अंतर्गत पाठक अपने विचारों, समस्याओं, भिन्न- भिन्न, मुद्दों आदि को व्यक्त करते हैं।, , * इसके द्वारा नए लेखकों को स्तंभ लिखने का अवसर भी प्राप्त हो, जाता है। अत: पाठकों द्वारा संपादक के नाम लिखा गया पत्र, जनमत को प्रतिबिबित करता है।, , लेख, , * समाचार पत्र में अनेक पत्रकारों एवं विशेषज्ञों के लेख प्रस्तुत, किए जाते हैं। लेख लिखते समय प्रस्तुत किए गए विषय पर, विस्तार से चर्चा की जाती है। लेख में प्रारंभ, मध्य व अंत को, ध्यान में रखकर लेखक अपने विचारों को प्रस्तुत करता है। लेख, फ़ीचर आदि से भिन्न होता है। लेख लिखने में लेखक के विचारों, गा प्रमुखता देने के साथ तथ्यों को ध्यान में रखना आवश्यक, , ता है।, , » लेखक लेख द्वारा अपने विचार प्रस्तुत करते हुए सुचताओं, एवं तथ्यों का विश्लेषण करके तर्क के आधार पर अपनी, राय देता है। स्पष्टत: लेख लिखने की शैली आकर्षक होती, चाहिए जो अधिक से अधिक लोगों को प्रभावित कर, सके।, , साक्षात्कार/इंटरव्यू रु, , « साक्षात्कार में पत्रकार द्वारा अन्य व्यक्ति से उसकी, भावनाएँ, विचार, राय आदि जानने के लिए सवाल पूछे, जाते हैं। एक सफल साक्षात्कार वह होता है जिसमें पत्रकार, उन सभी प्रश्नों के उत्तर प्राप्त कर सके जिन्हें पाठक/, दर्शक/श्रोता जानना चाहते हैं। साक्षात्कार लेने के लिए, पत्रकार को उस व्यक्ति के संदर्भ में सभी जानकारियाँ पहले, से ज्ञात होनी चाहिए।, , » साक्षात्कार लेने के लिए. यह स्पष्ट होना चाहिए कि आप उस, व्यक्ति से किन प्रश्नों के उत्तर जानना चाहते हैं। साक्षात्कार, लेते समय महत्त्वपूर्ण सूचना एवं जानकारी को साक्षात्कार, के समय नोट करते रहना चाहिए।, , फीचर लेखन, , अनेक विद्वानों ने फीचर की परिभाषा अलग-अलग दृष्टिकोण, से प्रस्तुत की है। कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ निम्न हैं, , “फीचर एक ऐसा सर्जनात्मकम एवं कुछ ह॒द तक, स्वानुभूतिमूलक लेख है, जिसका गठन किसी घटना, स्थिति, या जीवन के किसी पक्ष के संबंध में पाठक को मूलतः, जानकारी देने एवं उसका मनोरंजन करने के उद्देश्य से किया, जाता है।”” -+डी आर विलियमसन, , “फीचर समाचारात्मक निबंध रूपक है, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों, की नवीनतम हलचलों का शब्द-चित्र होता है।””, , --डॉ. विवेकी राय, अत: फीचर किसी वस्तु, घटना, स्थान या व्यक्ति विशेष की, विशेषताओं को उद्घाटित करने वाला विशिष्ट आलेख है,, जिसमें सर्जनात्मकता, काल्पनिकता, तथ्य, घटनाएँ, विचार,, भावनाएँ आदि एक साथ उपस्थित रहते हैं।, , फीचर लेखन के गुण, , एक श्रेष्ठ फीचर लेखन के निम्नलिखित गुण होते हैं, () विश्वसनीयता, , (४) सरसता एवं सहजता, , (1 प्रचलित शब्दावली का प्रयोग, , (9५) रोचकता एवं संक्षिप्तता, (५) प्रासंगिकता
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50, , वि व फीचर में अंतर, , » समाचार तथ्यात्मक रिपोर्ट मात्र होता है, जबकि फीचर, तथ्यों का ललित भाषा एवं वैयक्तिक शैली में भावनात्मक, प्रस्तुति है।, , * समाचार में छः: ककारों (क्या, कब, कहाँ, कौन, क्यों एवं, कैसे) का होना आवश्यक है, जबकि फीचर में इन ककारों, की उपस्थिति अनिवार्य नहीं है।, , * समाचार संक्षिप्त होता है जबकि फीचर का आकार लेखक, , की अपनी शैलीगत विशिष्टताओं के साथ अधिक विस्तृत, , होता है।, , फीचर लेखन करते समय ध्यान रखने, , योग्य बातें, , 'फीचर लेखन के लिए निम्नलिखित बिंदुओं को समझना, , आवश्यक है, , * फीचर को सजीव बनाने के लिए उसमें विषय से जुड़े लोगों, की उपस्थिति अनिवार्य है।, , « फीचर में शामिल तथ्यों को अभिव्यक्त करने का ढंग ऐसा हो, कि पाठक को लगने लगे कि वह उन्हें देख एवं सुन रहा है।, , * फीचर कोई शोध रिपोर्ट नहीं है, अत: उसे सूचनात्मक के, साथ मनोरंजक भी होना चाहिए।, , * फीचर कथात्मक विवरण एवं विश्लेषण होता हैं, लेकिन, इसे किसी बैठक की कार्यवाही या विवरण की तरह नहीं, लिखा जाना चाहिए।, , « फीचर का कोई-न-कोई उद्देश्य होना चाहिए और उस, उद्देश्य के आस-पास ही सभी प्रासंगिक सूचनाएँ, तथ्य एवं, विचार गुँथे होने चाहिए।, , * फीचर लेखन का कोई निश्चित ढाँचा या फॉर्मूला नहीं होता।, इसलिए इसे कहीं से भी प्रारंभ किया जा सकता है।, , « फीचर में शुरू से लेकर अंत तक प्रवाह एवं गति बनी रहनी, चाहिए। अत: प्रत्येक अनुच्छेद अपने पूर्व के अनुच्छेद से, सहज रूप से संबंधित होना चाहिए।, , , , , , , , , , ८85४ न्यू पैटर्न - हिंदी केंद्रिक कक्षा -ममायपययययय--375::8 कै कल 2 00 क. ।, शा ]), , रिपोर्ट लेखन, , « रिपोर्ट किसी घटना, मुद्दे या समस्या के बारे में, छानबीन, विश्लेषण और व्याख्या के आधार फात्त ही, है। इसमें संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्यों को एकत्रित कर 1, विश्लेषण किया जाता है, जिससे उसके परिणाम मग्ाव, कारण को स्पष्ट किया जा सके। / तब और, , « रिपोर्ट के विभिन्न प्रकार होते हैं; जैसे-खोजी रिपेह, इन-डेप्थ रिपोर्ट, विश्लेषणात्मक रिपोर्ट, विवरणात्मक रिपेई, आदि।, , « खोजी रिपोर्ट के अंतर्गत मौलिक शोध और, उन तथ्यों को सामने लाया जाता है, जो सावजन बे, पहले उपलब्ध नहीं थे। इनका प्रयोग भ्रष्टाचार, घोटालों आदि |, को प्रकाश में लाने के लिए करते हैं।, , * इन-डेप्थ रिपोर्ट में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध तथ्यों को, जाँचा-परखा जाता है तथा उनकी गहरी छानबीन की जाती है।, , * विश्लेषणात्मक रिपोर्ट में किसी घटना या समस्या से जुड़े, तथ्यों का विश्लेषण किया जाता है।, , * विवरणात्मक रिपोर्ट में किसी घटना या समस्या का विस्तृत, रूप से सूक्ष्म विवरण प्रस्तुत किया जाता है।, , « रिपोर्ट समाचार लेखन की तरह उल्टा पिरामिड शैली में लिखी, जाती है, परंतु इन्हें फीचर शैली की तरह भी लिखा जा सकता, है। रिपोर्ट समाचारों की अपेक्षा काफी विस्तारित होती है। अत:, इन्हें पाठकों की रुचि के अनुसार उल्टा पिरामिड तथा, 'फीचर दोनों शैलियों को मिलाकर भी लिखा जाता है। रिपोर्ट, की भाषा साधारण बोलचाल की तथा सरल व सहज होनी, चाहिए।, , विचारपरक लेखन-लेख, टिप्पणियाँ और, संपादकीय, , समाचार-पत्रों में समाचार तथा फीचर लेखन के अलावा और, भी विचारपरक लेखन को प्रकाशित किया जाता है; जैसे-लेख,, टिप्पणियाँ, संपादकीय पत्र, स्तंभ लेखन आदि। ये सब भी, पत्रकारीय लेखन के अंतर्गत ही आते हैं।