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अपने उद्देश्य को पूर्ण करते हुए समाप्त हो जाए, यह द्वंद्व के कारण ही, |प्रत्येक 3/2 अंक|, वर्णनात्मक प्रश्न, 1. कहानी का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके इतिहास पर प्रकाश डालिए।, उत्तर कहानी का अर्थ किसी घटेना, पात्र या समस्या का क्रमबद्ध ब्यौरा, जिसमें परिवेश हो, द्वंद्वात्मकता हो, कथा का क्रमिक विकास हो, नराम, उत्कर्ष का बिंदु हो, उसे 'कहानी' कहा जाता है।, कहानी का इतिहास कहानी का इतिहास उतना ही पुराना है, जितना, मानव इतिहास, क्योंकि कहानी मानव स्वभाव और प्रकृति का हिस्सा है।, धीरे-धीरे कहानी कहने की आदिम कला का विकास होने लगा। आरंभ, में कथावाचक कहानी सुनाते थे, जिनका विषय किसी घटना का वर्णन, युद्ध, प्रेम और प्रतिशोध आदि हुआ करता था। सच्ची घटनाओं पर, कहानी सुनाते-सुनाते उनमें कल्पना का समावेश होने लगा। कथावाचक, सुनने वालों की आवश्यकतानुसार अपनी कल्पना के माध्यम से नायक के, गुणों का बखान करने लगा।, थीं?, 2. प्राचीनकाल में मौखिक कहानियाँ क्यों लोकप्रिय, उत्तर सामान्यत: भारतीय गाँवों के बुजुर्ग कुछ मनगढ़ंत कहानियों को भी सुनाया, करते थे परंतु यहाँ कहानियों से तात्पर्य लेखक द्वारा लिखित प्रमुख व, प्राचीन कहानियों से है। मौखिक कहानी की परंपरा बहुत पुरानी है ।, प्राचीनकाल में मौखिक कहानियों की लोकप्रियता इसलिए थी, क्योंकि यह, संचार का बड़ा माध्यम थीं। इस कारण धर्म प्रचारकों ने भी अपने सिद्धांत, और विचार लोगों तक पहुँचाने के लिए कहानी का सहारा लिया था।, शिक्षा देने के लिए भी कहानी विधा का प्रयोग किया गया; जैसे-, 'पंचतंत्र' की कहानियाँ लिखी गईं, जो विश्वप्रसिद्ध हैं।', 3. 'कहानी का केंद्र बिंदु कथानक होता है'- इस कथन के आलोक में, कहानी के कथानक पर प्रकाश डालिए।, उत्तर कथानक कहानी का केंद्रीय बिंदु होता है, जिसमें प्रारंभ से अंत तक, कहानी की सभी घटनाओं और पात्रों का उल्लेख होता है । सरल शब्दों, में, कहानी के ढाँचे को कथानक कहा जाता है । प्रत्येक कहानी के लिए, कथावस्तु का होना अनिवार्य है, क्योंकि इसके अभाव में किसी कहानी, की रचना की कल्पना भी नहीं की जा सकती। कथानक को कहानी का, प्रारंभिक नक्शा भी माना जा सकता है। कहानी, कथानक कहानीकार के, मन में किसी घटना, जानकारी, अनुभव या कल्पना के कारण आता है।, कहानीकार कल्पना का विकास करते हुए एक परिवेश, पात्र और समस्या, को आकार देता है। इस प्रकार, वह एक ऐसा काल्पनिक ढाँचा तैयार, करता है, जो कोरी कल्पना न होकर संभावित हो तथा लेखक के, उद्देश्य से मेल खाती हो।, 4, कहानी में दंद् के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।, उसतर कहानी में द्वंड के तत्त्व का होना आवश्यक है। द्वंद्व कथानक की आग, बढ़ाता है तथा कहानी में रोचकता बनाए रखता है। द्वंद्व दो विरोधी त्वा, का टकराव या किसी की खोज में आने वाली बाधाओं तथा अंतरद्वद्व के, कारण पैदा होता है। कहानी की यह शर्त है कि वह नाटकीय ढंग से, पूर्ण होता है। कहानीकार अपने कथानक में हंद्ध के बिंदुओं को जितना, स्पष्ट रखेगा कहानी भी उतनी ही सफलता से आगे बढ़ेगी। अतः स्यष्ट, कि कहानी में हंद् का अत्यधिक महत्त्व है।, है
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उत्तर पात्रों का अध्ययन कहानी की एक बहुत महत्त्वपूर्ण और बुनियादी शर्त, 8sE Term l| | हिंदी केंद्रिक X॥, 29, पात्रों का अध्ययन कहानी की एक बहुत महत्त्वपूर्ण और बुनियादी, शर्त है।' स्पष्ट कीजिए।, है. क्योंकि कहानी का संचालन उसके पात्रों के द्वारा ही होता है। पात्रों, के गण-दोष को उनका चरित्र-चित्रण कहा जाता है। प्रत्येक पात्र का, अपना स्वरूप, स्वभाव और उद्देश्य होता है। कहानीकार के सामने, पात्रों का स्वरूप जितना स्पष्ट होगा, उतनी ही आसानी उसे पात्रों का, जरित्र-चित्रण करने और उसके संवाद लिखने में होगी । पात्रों का, चरित्र-चित्रण कहानीकार द्वारा पात्रों के गुणों का बखान तथा दूसरे, पात्रों के संवाद के माध्यम से किया जा सकता है।, 10. नाटक से आप क्या समझते हैं? नाटक साहित्य की अन्य विधाओं से, किस प्रकार भिन्न है? स्पष्ट कीजिए ।, उत्तर नाटक नाटक साहित्य की वह सर्वोत्तम विधा है, जिसे पढने, सुनने के साथ, देखा भी जा सकता है। नाटक शब्द की उत्पत्ति 'नट्' धातु से मानी जाती, है। 'नट्' शब्द का अर्थ अभिनय है, जो अभिनेता से जुड़ा हुआ है । इसे, रूपक भी कहा जाता है। भारतीय परंपरा में नाटक को काव्य की संज्ञा दी, गई है।, नाटक और अन्य विधाओं में अंतर साहित्य की अन्य विधाएँ अपने लिखित, रूप में ही निश्चित और अंतिम रूप को प्राप्त कर लेती हैं, किंतु नाटक, लिखित रूप में एक आयामी होता है। मंचन के पश्चात् ही उसमें संपूर्णता, आती है। अत: साहित्य की अन्य विधाय पढ़ने या सुनने तक की यात्रा तय, करती हैं, परंतु नाटक पढ़ने, सुनने के राथ साथ देखने के तत्व को भी, अपने में समेटे, चरमोत्कर्ष से क्या अभिप्राय है? कहानी में चरमोत्कर्ष का चित्रण, अत्यंत सावधानीपूर्वक क्यों करना चाहिए?, हुए, हैं।, शतर जब कहानी पढ़ते-पढ़ते पाठक कौतूहल (जिज्ञासा) की पराकाष्ठा पर, पहुँच जाए, तब उसे कहानी का चरमोत्कर्ष या चरम स्थिति कहते हैं ।, कथानक के अनुसार कहानी चरमोत्कर्ष (क्लाइमेक्स) की ओर बढ़ती, है। कहानी का चरम उत्कर्ष पाठक को स्वयं सोचने और लेखकीय, पक्षघर की ओर आने के लिए प्रेरित करने वाला होना चाहिए। पाठक, को यह भी लगना चाहिए कि उसे स्वतंत्रता दी गई है और उसने जो, निष्कर्ष निकाले हैं वह उसके अपने हैं ।, कहानीकार को कहानी के चरमोत्कर्ष का चित्रण अत्यंत सावधानीपूर्वक, करना चाहिए, क्योंकि भावों या पात्रों के अतिरिक्त अभिव्यक्ति ही, चरम उत्कर्ष के प्रभाव को कम कर सकती है।, 11. दृश्य के क्या-क्या कार्य हैं?, उत्तर कहानी या नाटक में प्रत्येक दृश्य एक बिंदु से प्रारंभ होता है, जो कथानुसार, अपनी आवश्यकताएँ पूरी करता है और उसका अंत ऐसा होता है, जो उसे, अगले, से जोड़ता है। दृश्य कई काम एकसाथ करता है। एक ओर तो, दृश्य, वह कथानक को आगे बढ़ाता है तथा दूसरी ओर पात्रों और परिवेश को, संवाद के माध्यम से स्थापित करता है। इसके साथ-साथ दृश्य अगले दृश्य, के लिए भूमिका भी तैयार करता है, इसलिए दृश्य का पूरा विवरण तैयार, किया जाना चाहिए।, 12. नाटक लेखन में समय के बंधन का क्या महत्त्व है? समझाइए।, उत्तर नाटक लेखन में समय के बंधन का बहुत महत्त्व है, क्योंकि नाटक का, 1. कहानी लिखते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? स्पष्ट, कीजिए।, उत्तर कहानी लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए, प्रथम अंग समय का बंधन ही है। समय का यह बंधन नाटक की रचना पर, () कहानी का आरंभ आकर्षक होना।, (i) कहानी में विभिन्न घटनाओं और प्रसंगों को संतुलित विस्तार, देना चाहिए। किसी प्रसंग को न तो अत्यंत संक्षिप्त लिखें और, न ही अनावश्यक रूप से विस्तृत करें।, (iii) कहानी की भाषा सरल, स्वाभाविक तथा प्रभावमयी होनी, चाहिए। उसमें क्लिष्ट शब्द तथा लंबे वाक्य नहीं होने चाहिए।, अपना पूरा प्रभाव डालता है, इसलिए नाटक को शुरुआत से लेकर अंत तक, एक निश्चित समय-सीमा के भीतर ही पूरा होना होता है। नाटक का विषय, भूतकाल हो या भविष्यकाल, इन दोनों ही स्थितियों में वर्तमान काल, संयोजित होता है। यही कारण है कि नाटक के मंच निर्देश हमेशा वर्तमान, काल में लिखे जाते हैं। चाहे काल कोई भी हो उसे एक समय में, एक, स्थान विशेष पर वर्तमान काल में ही घटित होना होता है ।, समय को लेकर एक और तथ्य यह है कि साहित्य की अन्य विधाओं;, जैसे- कहानी, उपन्यास, कविता को हम कभी भी पढ़ते तथा सुनते हुए, बीच में रोक सकते हैं और कुछ समय बाद फिर वहीं से पढ़ना या सुनना, शुरू कर सकते हैं, परंतु नाटक के साथ ऐसा संभव नहीं है ।, ৪. कहानी का नाट्य रूपांतरण करने से पहले क्या-क्या शर्त, अनिवार्य हैं?, 13. नाटक लेखन में किन तत्त्वों का होना अनिवार्य है? किन्हीं तीन पर, विचार कीजिए।, उत्तर नाटक लेखन में निम्नलिखित तत्त्वों का होना अनिवार्य है, उत्तर कहानी का नाट्य रूपांतरण करने से पहले यह जानकारी होना, आवश्यक है कि वर्तमान रंगमंच में क्या संभावनाएँ हैं और यह तभी, संभव है जब अच्छे नाटक देखे जाएँ। इसके अतिरिक्त कहानी को, नाटक में रूपांतिरत करने के लिए कहानी की विषय वस्तु को,, कथावस्तु को समय और स्थान के आधार पर दृश्यों में विभाजित, किया जाता है। तात्पर्य यह है कि यदि कोई घटना एक स्थान और, एक समय में ही घट रही हैं, तो वह एक दृश्य होगा।, कथ्य या कथानक नाटक के लिए उसका कथ्य जरूरी होता है। नाटक में, किसी कहानी के रूप को शिल्प या संरचना के भीतर उसे पिरोना होता है।, इसके लिए नाटककार को शिल्प या संरचना की पूरी समझ, जानकारी व, अनुभव होना चाहिए। इसके लिए पहले घटनाओं, स्थितियों या दृश्यों का, चुनाव कर उन्हें क्रम में रखें ताकि कथा का विकास शून्य से शिखर की, ओर हो।, 9. कहानी और नाटक की समानताएँ बताइए।, उत्तर कहानी और नाटक में बहुत-सी समानताएँ हैं। इन दोनों में एक कहानी, होती है, पात्र होते हैं, परिवेश होता है, कहानी का क्रमिक विकास, होता है, संवाद होते हैं, द्वंद्व होता है, चरम उत्कर्ष होता है। इस, प्रकार, हम देखते हैं कि नाटक आर कहानी की आत्मा के कुछ मूल, तत्त्व एक ही हैं तथा कहानी और नाटक दोनों ही मनुष्यों का मनोरंजन, करते हैं।, संवाद नाटक का सबसे महत्त्वपूर्ण और सशक्त माध्यम उसके संवाद हैं।, संवाद ही वह तत्त्व है, जो एक सशक्त नाटक को अन्य कमजोर नाटकों से, अलग करता है। संवाद जितने सहज और स्वाभाविक होंगे उतना ही वे, दर्शक के मर्म को छुएँगे।
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CBSE Term | | हिंदी केंद्रिक x, 30, 16. केप्टिव ऑडिएंस किसे कहते हैं?, भाचा भाषा नाटक का प्राण तत्त्व है। एक अच्छा नाटककार अत्यंत, संक्षिप्त तथा सांकेतिक भाषा का प्रयोग करता है। नाटक वर्णित न, होकर क्रियात्मक अधिक होना चाहिए। एक अच्छा नाटक वही होता, है, जो लिखे गए शब्दों से ज्यादा वह ध्वनित करे , जो लिखा नहीं, गया है।, उत्तर सिनेमा या नाटक में दर्शक अपने घरों से बाहर निकलकर किमी अन्य, सार्वजनिक स्थान पर एकत्रित होते हैं और इन आयोजनों के लिए प्रयाम, करते हैं। वे अनजान लोगों में एक समूह का हिस्सा बनकर अर्थान् भाग, बनकर प्रेक्षागृह में बैठते हैं अर्थात् एक स्थान पर कैद किए गए दशंक। इनदें, अंग्रेजी में केप्टिव ऑडिएंस कहते हैं। जबकि टीवी या रेडियो पर आमतौर, पर इंसान अपने घर में बैठकर अपनी मर्जी से कार्यक्रमों को देखता है।, 14. नाटक स्वयं में एक जीवंत माध्यम है।' इस कथन के आलोक में, नाटक में स्वीकार और अस्वीकार की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।, उत्तर 'नाटक स्वयं में एक जीवंत माध्यम है।' नाटक में कोई भी दो चरित्र, जब आपस में मिलते हैं, तो विचारों के आदान-प्रदान में टकराहट, होना स्वाभाविक है। यही कारण है कि रंगमंच प्रतिरोध का सबसे, सशक्त माध्यम है। वह कभी भी यथास्थिति को स्वीकार नहीं करता,, इस कारण उसमें अस्वीकार की स्थिति भी बराबर बनी रहती है,, जिस नाटक में असंतुष्टि, छटपटाहट, प्रतिरोध और अस्वीकार जैसे, नकारात्मक तत्त्वों की जितनी ज्यादा उपस्थिति होगी, वह नाटक उतना, ही सशक्त साबित होगा।, 17. रेडियो नाटक में समय के अनुसार पात्रों की संख्या कितनी होनी चाहिए?, उत्तर रेडियो नाटक में समय के अनुसार पात्रों की संख्या सीमित होनी चाहिए। 15, मिनट की अवधि वाले रेडियो नाटक में पात्रों की संख्या 5 -6 हो सकती है।, 30-40 मिनट की अवधि वाले नाटक में पात्रों की संख्या 8-12 हो सकती, है। यदि एक घंटे या उससे अधिक की अवधि का रेडियो नाटक लिखना हं., पड़ जाए तो उसमें 15-20 भूमिकाएँ गढ़ी जा सकती हैं। एक महत्त्वपूर्ण तथ्य, यह है कि जब हम इन संख्याओं की बात कर रहे हैं तो ये, सहायक भूमिकाओं की संख्या होती है। छोटे-मोटे किरदारों की गिनती इसमें, नहीं की जाती।, प्रमुख, और, 15. रेडियो नाटक की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।, उत्तर रेडियो नाटक की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं, (i) सिनेमा व रंगमंच की तरह रेडियो एक दृश्य माध्यम नहीं, 18. रेडियो नाटक में पात्र संबंधी समस्त जानकारी किसके माध्यम से, मिलती है?, श्रव्य माध्यम है।, (ii) रेडियो की प्रस्तुति संवादों व ध्वनि प्रभावों के माध्यम से, होती है।, (iin) रेडियो नाटक में एक्शन की कोई गुंजाइश नहीं होती है।, (iv) रेडियो नाटक की अवधि सीमित होती है, इसलिए पात्रों की, संख्या भी सीमित होती है।, (v) पात्र संबंधी विविध जानकारी संवाद एवं ध्वनि संकेतों के, माध्यम से उजागर होती है।, (uf) नाट्य आंदोलन के विकास में रेडियो नाटक की अहम, भूमिका होती है।, उत्तर रेडियो नाटक में पात्र संबंधी समस्त जानकारी हमें संवादों के माध्यम से, मिलती है। उनके नाम, आपसी संबंध, चारित्रिक विशेषताएँ ये सभी संवादो, द्वारा ही उजागर करने होते हैं, क्योंकि यह संवाद प्रधान माध्यम हैं तथा, इसमें उनकी भाषा, व्यवहार तथा उम्र को ध्यान में रखते हुए आवाज का भा, ध्यान रखना पड़ता है, इन सबके साथ-साथ भाषा पर विशेष ध्यान दिया, जाता है, क्योंकि भाषा से ही पता चलता है कि वो पढ़ा लिखा है या, अनपढ़, शहर का है या गाँव का, प्रांत का है या कस्बे का, उसकी आयु, क्या है आदि।