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निर्देशन एवं परामर्श का प्रत्यय, ((0४९7-7"1 07 6ठा 195८२ / पा) (०एछाय 1 1४6), , (जिर्थ, परियाषा एवं विशेषताये), , समाज के आदिकाल से लेकर अब तक के विकास-क्रम पर यदि हम दृष्टि, पात करें तो हमें यह ज्ञात होगा कि वर्तमान सामाजिक व्यवस्था एवं सामज की, संरचना अधिक जटिल हो चुकी है। शाश्वत मूल्यों के प्रति अनास्था, अनिश्चिता, एवं अस्थिरता पर आधारित दृष्टिकोण व्यक्ति की इच्छाओं एवं आवश्यकताओं का, संख्या की सतत् वृद्धि एवं मानवीय क्षमताओं में न्यूनता, समाज के इस स्वरूप के, लिये उत्तरदायी कारणों के रूप में उभर कर सामने आ रहे हैं। इन कारणों के, परिणामस्वरूप ही, प्राय: प्रत्येक क्षेत्र में विविध समस्याओं का उदय हो रहा है।, पारिवारिक, सामाजिक व्यवसायिक, आर्थिक, शैक्षिक आदि क्षेत्रों में, प्रत्येक व्यक्ति, किसी न किसी रूप में समस्याग्रस्त दिखई देता है। जन्म के पश्चात् से ही व्यक्ति, जैस-जैसे समाज के सम्पर्क में आता है, वह स्वयं को अनेक समस्याओं से घिरा, हुआ पाता है। घर में, समाज में, विद्यालय में अथवा अपने दिनचर्या से सम्बन्धित, कार्यो में उत्पन्न समस्याओं के समाधान के लिये, उसे किसी न किसी प्रकार की, सहायता की आवश्यकता होती है। निर्देशन का उपयोग, इसी उद्देश्य की पूर्ति में, सहायक है। अत: सामाजिक जटिलता के मध्य, व्यक्ति को उपयुक्त एवं समुचित, पथ पर अग्रसरित करने, उसका अधिकाधिक विकास करने तथा समाज के साथ, , भमायोजना करने की भावना एवं कौशल का विकास करने हेतु, निर्देशन को महत्व, प्रदान किया जा रहा है।, , पा त का अर्थ, प्भापए् ०0 6 जंवक्काट८ तहों हैं। परमार, निर्देशन क्या है 2 इस सम्बन्ध में समस्त विद्वान एकमत नहीं है। ते, किया विवादग्रस्त प्रत्ययों में, यह एक ऐसा प्रत्यय है, जिसे विभिन्न रूपों मी, किया ! गया है, फिर भी, सामान्यतः निर्देशन को एक ऐसी प्रक्रिया के कप लव, ' जाता है, जिसके आधार पर किसी एक अथवा अनेक व्यक्तियों समस्याओं, रख प्रकार की सहायता प्रदान की जाती है। इस सहायता के आधार यने तक््यों, ज्यों में विवेकयुक्त निष्कर्ष निकालने, वांदित निर्णय लेने पर ही. व्यक्ति को, को प्रापत करने में सुगमता होती है | निर्देशन के आधाए |, , 9041166 शशां॥ ए15८31॥076
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ना चाहिये, परन्तु कुछ व्यक्तिनिष्ठ या आत्मनिष्ठ साधनों का प्रयोग भी, के अन्तर्गत किया जा सकता है।, कछ विद्वानों के अनुसार, निर्देशन एवं शिक्षा, दोनों ही एक दूसरे के पर्याप्त, है इनके अनुसार जिस प्रकार शिक्षा एक व्यापक प्रक्रिया है, उसी प्रकार निर्देशन, है हुक व्यापक प्रक्रिया के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिये। इस प्रक्रिया के, मध्यम से बालकों के विभिन्न पक्षों के विकास हेतु, उसी प्रकार सहायता प्रदान की, जाती है, जिंस प्रकार शिक्षा के द्वारा बालक के मानसिक, भावात्मक एवं शारीरिक, पक्ष का विकास करने हेतु सहायता प्रदान की जाती है। इस प्रकार निर्देशन एक, व्यापक प्रक्रिया है क्योंकि इसका क्षेत्र असीमित है। व्यक्ति के जीवन से सम्बद्ध प्रायः, एत्येक क्षेत्र में यह सहायता प्रदान की जा सकती है। इसके अतिरिक्त शिक्षा के, समरूप ही निर्देशन की प्रक्रिया भी जीवनपर्यन्त संचालित होती है, जन्म से लेकर, मृत्यु पर्यनत तक जहाँ कहीं भी, जिस रूप में भी व्यक्ति को सहायकता प्राप्त होती, है, वह सहायता निर्देशन के अन्तर्गत ही सम्मिलित की जाती है, इस प्रकार की, सहायता प्रदान करने वाले व्यक्ति को हम निर्देशन-प्रदाता अथवा निर्देशन-कर्मी, के नाम से सम्बोधित कर सकते है; विद्यालय में कार्य करने वाले शिक्षक, प्रधानाध्यापक,, सह-कर्मी, परिवार के सदस्य तथा समाज में मित्र सह-यात्री, प्रवचक आदि व्यक्ति, निर्देशन प्रदाता के रूप में ही स्वीकार किये जाने चाहिये ।, , इन तथ्यों के आधार पर स्पष्ट की गई निर्देशन की प्रक्रिया सुधारात्मक आयाम, के स्थान पर विकासात्मक आयाम (060८०एाशा।। #॥[/978001) के रूप में ही परिभाषित, की जानी अधिक सार्थक है, क्योंकि विशिष्ट सेवा (509०03॥7260 5९7७०४) के रूप में, यह प्रक्रिया समसरू केन्द्रित (काला ८था।(९1०७०) होने के स्थान पर सेवार्थी केन्द्रित, (का व्थाधधट1) ही अधिक होती है। विषिट सेवा के रूप में अर्थापित इस उपागम, , +, , के अनेक दोष निहित हैं। इस रूप में परिभाषित, निर्देशन को विद्यालय की आनुषंगिक, , ञ्, , पा (शाला) बधाशं००) के रूप में पहिचाना जाता है। यह सेवा कुछ विषिट प्रकार, , $ बतकों तक ही सीमित रहती है तथा सामानय श्रेणी के बालकों को इस प्रकार, * निर्देशन के माध्यम से कोई विशेष सहायता प्राप्त नहीं हो पाती है। इसके विशिष्ट, , किया जे, निर्देशन, , के अन्तर्गत विद्यालय में कार्यरत परामर्शदाता (00015४॥०) की भूमिका, अन्य यक्तियो महत्वपूर्ण समझी जाती हैं। इसके परिणास्वरूप, विद्यालय में कार्यरत, , इस प्रक्रिया गीं की भूमिका प्रायः उपेक्षित ही रहती हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि, , की जाती के अन्तर्गत व्यक्ति को एक यन्त्र के समान समझकर सहायता प्रदान, , सहायता है, जबकि उचित यह है कि व्यक्ति को एक गतिशील प्राणी के यप में ही, पैदान करने की व्यवस्थ की जानी चाहये।, , पाती बकल आयाम के आधार पर निदेषन को सहायता प्रदान करने, , के 1 के रूप में प्रदर्शित किया जाता है जिसके अन्तर्गत निदेशन, , 1 रत्तरटा३- ही, >वित्व सभी का स्वीकार किया जाता है ओह किसी का भी ना टह्वा1श
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(४ परोक्त परिमाषाओं के निर्देशन की विशेषताओं, कार्यो, , क्ष्ण गंवा, , ), थे, ), , * कक की विशेषताओं से ज्ञात होता है कि निर्देशन मानव, , है। निर्देशन की प्रमुख विशेषतायें निम्नाकित हैं- ये उद्देश्यों का उल्लेख, निर्देशन जीवन में आगे बढ़ने में सहायक है। शिक्षण की भाँति, निर्देशन भी विकास की प्रक्रिया है। “7 होती है। शिक्षण की माँति, निर्देशन द्वारा व्यक्ति अपने निर्णय स्वयं ले सकने में सक्षम बनाना है तथा, अपना भार स्वयं वहन करने में सहायता करना है।, इसके अन्तर्गत एक व्यक्ति, दूसरे व्यक्ति को उसकी समस्याओं एवं, समायोजन के विकल्पों के चयन में सहायक होता है। यह जीवन के प्रत्येक, क्षेत्र की समस्याओं के समाधान में सहायता प्रदान करती है।, निर्देशन शिक्षा की प्रक्रिया के अन्तर्गत व्याप्त होता है। प्रत्येक शिक्षा को, अपने छात्र की रूचियों, योग्यताओं एवं क्षमताओं को समझकर उनके, अनुकूल सीखने की परिस्थितियों को प्रस्तुत करे जिससे उनकी आवश्यकताओं, की सन्तुष्टि की जा सके।, निर्देशन में छात्रों की वैयक्तिक आवश्यकताओं के अनुरूप अनुदेशन को, अनुकूलित करने में सहायता प्रदान करती है।, प्रमावशाली शिक्षण तथा अनुदेशन में निर्देशन प्रक्रिया निहित होती है।, बुद्धिमतापूर्ण निर्देशन के अभाव में शिक्षण प्रक्रिया अपूर्ण होती है।, निर्देशन द्वारा व्यक्ति को विकसित करने, अपने सम्बन्ध में पर्याप्त वह, समन्वित जानकारी कराने तथा व्यावसायिक जीवन में अपनी भूमिका को, समझने में सहायता प्रदान करना है। नेक, निर्देशन व्यक्ति की जन्मजात योग्यताओं व शक्तियों तथा प्रशिक्षण से अ', कौशलों को संरक्षित रखने का मूल प्रयास है। (दायक, निर्देशन व्यक्ति के अपने लिये एवं समाज के लिये अधिकतम लात, दिशा में उसकी अधिकतम क्षमता के विकास मे निरन्तर सहायक हा हर, निर्देशन, शिक्षा प्रक्रिया की वह अवस्था है जिसमे छात्र की, एवं क्षमताओं के अनुरूप अध्ययन पाद्यक्रमों, रोजगार के चयन में सहायता प्रदान करता है। व जीवन के विकास, , चलती है। निर्देशन, , के चयन में तथा, , की महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो जीवन पर्यन्त निरन्तर चल, , 9041166 शशां॥ ए1ा5८8176