Page 1 :
(19), भारतीय शिक्षा आयोग (1964-66), [INDIAN EDUCATION COMMISSION (1964-66)], अथवा, कोठारी शिक्षा आयोग, [KOTHARI EDUCATION COMMISSION], कोठारी आयोग का गठन-पंचवर्षीय योजना की सफलताओं के कारण देश, का आर्थिक ढाँचा बदल रहा था, नयी राजनीतिक धारणाएँ विकसित हो रही थीं, नये, मूल्य स्थापित हो रहे थे, देश तथा समाज की नयी नयी आवश्यकताएँ पैदा हो रही, थीं, सामाजिक संगठनों के रूप परिवर्तित हो. रहे थे, चीन तथा पाकिस्तान के, आक्रमणों ने नयी आवश्यकताओं को जन्म दे दिया था, मुदालियर आयोग की, सिफारिश पर देश में बहुउद्देशीय विद्यालय स्थापित हो चुके थे, उनकी कार्य-प्रणाली, तथा उपलब्धियों का मूल्यांकन करना आवश्यक हो गया था, यह अनुभव किया जा, रहा था कि ये विद्यालय तथा इनमें प्रचलित पाठ्यक्रम समय के साथ कदम नहीं, मिला पा रहे हैं, देश में महँगाई बढ़ने से शिक्षा से सम्बन्धित सेवाओं के नये वेतनमान, निर्धारित करने की आवश्यकता अनुभव हो रही थी तथा यह भी देखा गया कि शिक्षा, का गुणात्मक विकास इतनी तीव्रगति से नहीं हो रहा था, जितना कि शिक्षा का, संख्यात्मकं विकास हो रहा था। इन समस्त तथ्यो को ध्यान में रखकर यह आवश्यक, हो गया कि भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्तिकारी सुधारात्मक परिवर्तन किये जायँ ।, अंतः भारत सरकार ने 14 जुलाई, 1964 को एक प्रस्ताव पास किया और उसके, अनुसार डा. दौलत सिंह कोठारी की अध्यक्षता में एक शिक्षा आयोग का गठन किया ।, इस आयोग में अध्यक्ष के अतिरिक्त 16 और सदस्य थे। श्री जे. पी. नायक, इसके सचिव बने। आयोग ने 2 अक्टूबर, 1964 को कार्य प्रारम्भ किया। आयोग ने, अपने अध्ययन हेतु 12 कार्य टोलियाँ बनायीं । इन टोलियों ने अपने से सम्बन्धित क्षेत्रों, को व्यापक अध्ययन किया। टोलियों के अतिरिक्त सात अध्ययन दलों का गठन किया, और शिक्षा के सभी स्तर के सभी पहलुओं का अध्ययन करने के पश्चात् आयोग ने, जून, 1966 को अपना प्रतिवेदन भारत सरकार को प्रस्तुत कर दिया। आयोग ने, अपने प्रतिवेदन को तीन भागों में विभक्त किया जो अग्र प्रकार से है-
Page 3 :
सामाजिक अध्ययन ( पर्यावरण का अध्ययन), सृजनात्मक क्रियाएँ. कार्यानुभव, समाज-, भारतीय शिक्षा आयोग ( 1964-66) | 289, इस अध्याय में आयोग ने शिक्षा-प्रणाली, उसकी संरचना तथा स्तर के सम्बन्ध, में सुझाव प्रस्तुत किए। आयोग ने विभिन्न स्तरों के सही विभाजन, उनमें परस्पर, सम्बन्ध, विभिन्न स्तरों की अवधि आदि की विवेचना की । आयोग ने निम्नांकित स्तरों, का सुझाव दिया--, 1. 1 वर्ष से 3 वर्ष की पूर्व-विद्यालय शिक्षा, 2. 7 से 8 वर्ष की प्राथमिक शिक्षा -, (i) 4 या 5 वर्ष की निम्न प्राथमिक, तथा, (ii) 3 या 2 वर्ष की उच्च प्राथमिक।, 3. 2 या 3 वर्ष की निम्न माध्यमिक शिक्षा ( व्यावहारिक शिक्षा के लिए 1 से 3 वर्ष ), 4. 2 वर्ष की उच्चतर माध्यमिक शिक्षा (व्यावसायिक शिक्षा के लिए 1 से 3 वर्ष ), 5. 3 वर्ष की उच्च शिक्षा, अध्याय 3. व 4. अध्यापक-स्थिति व प्रशिक्षण, इस अध्याय में आयोग ने विभिन्न स्तर के प्राचार्य तथा अध्यापकों के वेतनमान,, पदोन्नति की संभावनाएँ, अध्यापक- कल्याण कार्य-सेवा दशाएँ, सेवा- निवृत्ति लाभ आदि, के सम्बन्ध में स्पष्ट तथा व्यापक सुझाव प्रस्तुत किए हैं। आयोग ने त्रिमुखी लाभ, योजना को कार्यान्वित करने का सुझाव दिया । आयोग ने शिक्षण-प्रशिक्षण की उन्नत, सुविधाओं के लिए स्टेट बोर्ड आफ टीचर एजूकेशन की स्थापना का सुझाव दिया।, अध्यापक 5. छात्र सख्या व जनबल, विद्यालयों में प्रवेश के लिए आयोग ने कहा कि केवल उतने ही छात्रों को प्रवेश, मिले जितने की जनबल की माँग हो। आयोग ने लिखा है कि शिक्षा- समस्याओं की, क्षमता तथा जनबल की माँग के अनुमानों के बीच सहसम्बन्ध बनाये रखना चाहिए।, अध्याय 6. शैक्षिक अवसरों की समानता, इस अध्याय में आयोग ने शिक्षण-शुल्क, छात्रवृत्तियों, क्षेत्रीय असमानताओं,, पिछड़े वर्ग तथा आदिवासियों की शिक्षा के लिए समान अवसर प्रदान करने की, सिफारिश की।, अध्याय 7. विस्तार की समस्याएँ, इस अध्याय में आयोग ने पूर्व-प्राथमिक शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण किया है, तथा उसके विस्तार की समस्याओं की विवेचना की है ! प्रत्येक राज्य में स्टेट, इन्स्टीट्यूट ऑफ एजूकेशन में पूर्व-प्राथमिक शिक्षा के विकास हेतु केन्द्र स्थापित करने, की सिफारिश की गई। इसके संचालन का दायित्व प्रधानतया व्यक्तिगत संस्थाओं को, सापा जाय। आयोग ने माध्यमिक शिक्षा के प्रसार हेतु भी सुझाव दिये हैं।, अध्याय 8. पाठ्यक्रम, आयोग ने शिक्षा के विभिन्न स्तरों के लिए निम्नांकित पाठ्यक्रम निर्धारित किया-, निम्न प्राथमिक-एक भाषा (मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा) गणित. विज्ञान तथा, सर्वा तथा स्वास्थ्य सेवा ।
Page 4 :
290 | भारत में शिक्षा व्यवस्था का विकास, 2. उच्च प्राथमिक-दो भाषाएँ, गणित, सामाजिक अध्ययन, विज्ञान, कला, कार्यानुभव, समाज-सेवा, शारीरिक शिक्षा तथा नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की शिक्षा ।, 3. निम्न माध्यमिक-तीन भाषाएँ, विज्ञान, गणित, इतिहास, भूगोल, नागरिक, शास्त्र, कला तथा उच्च प्राथमिक स्तर के अन्य सभी विषय ।, 4. उच्च माध्यमिक-दो भाषाएँ तथा अग्रलिखित में से कोई अन्य तीन-एक, अतिरिक्त भाषा, अर्थशास्त्र, नागरिकशास्त्र, इतिहास भूगोल, विज्ञान, गणित,, मनोविज्ञान, कला, समाजशास्त्र, भौतिक तथा रसायनशास्त्र, जीव-विज्ञान, भूगर्भ- विज्ञान,, गृह-विज्ञान, तथा निम्न माध्यमिक स्तर के अन्य सभी विषय ।, अध्याय 9. शिक्षण विधियाँ-निर्देशन तथा मूल्यांकन, आयोग सर्वप्रथम पाठ्य-पुस्तकों के दोषों का वर्णन करता है और तत्पश्चात्, सुधारों के लिए सुझाव देता है। आयोग ने पाठ्य-पुस्तकों को तैयार करने के लिए, एक स्वायत्त संगठन का सुझाव दिया है। आयोग ने पाठ्य-पुस्तकों के सुधार हेतु और, भी अन्य उपयोगी सुझाव दिये हैं। आयोग कक्ष-आकार तथा शाला भवन के सम्बन्ध, में भी नीति निर्धारित करता है। माध्यमिक स्तर पर दस माध्यमिक शालाओं में एक, परामर्शदाता की नियुक्ति काफी व्यावहारिक है। आयोग ब्यूरो ऑफ गाइडैन्स को, निरीक्षण का अधिकार देने की भी सिफारिश करता है।, अध्याय 10. प्रशासन तथा निरीक्षण, आयोग ने गैर-सरकारी तथा सरकारी विद्यालयों के मध्य की खाई पाटने हेतु, अच्छे सुझाव दिये हैं। नियंत्रण तथा अनुदान के लिए विद्यालयों के गुणात्मक विकास, को ध्यान में रखना चाहिए। आयोग का पड़ोसी विद्यालय, को स्थापित करने का विचार अति उत्तम है तथा School Complex का विचार भी, इसने भारतीय शिक्षा के सम्मुख प्रस्तुत किया है।, अध्याय 11. उच्च शिक्षा-उद्देश्य एवं सुधार, आयोग ने विश्वविद्यालय के निम्नलिखित कार्य बताए हैं-, (क) निर्भयतापूर्वक ज्ञान व सत्य की खोज करना,, (ख) जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सही नेतृत्त्च का विकास करना,, (ग) कृषि, कला, चिकित्सा, विज्ञान एवं अन्य व्यवसायों में स्त्री- पुरुषों को दीक्षित, करके एवं उनमें सामाजिक भावना का विकास करके समाज को सौंपना,, (घ) समानता एवं सामाजिक न्याय का विकास करना,, (ङ) अच्छे जीवन के मूल्यों एवं अभिवृत्तियों का छात्रों एवं शिक्षकों में विकास, leighbourhood School), करना।, इनके अतिरिक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक आत्मा की रक्षा, प्रौढ़ शिक्षा, स्कूली शिक्षा, की उन्नति, परीक्षा प्रणाली में सुधार तथा कुछ उच्च शिक्षा केन्द्रों की स्थापना के, लिए भी भारतीय विश्वविद्यालयों को उत्तरदायी बनाया गया है । इसके लिए उच्च, शिक्षा एवं अनुसंधान में आमूल परिवर्तन, उच्च शिक्षा का विकास एवं उच्च शिक्षा के, सगटन व प्रशासन में सुधार अपेक्षित हैं।, इसके अतिरिक्त आयोग ने देश में कुछ प्रमुख विश्वविद्यालयों (Major, Universities) की स्थापना का सुझाव दिया है । ये प्रमुख विश्वविद्यालय स्नातकोत्तर
Page 5 :
भारतीय शिक्षा आयोग ( 1964-66) 291, বक्षा एवं अनुसंधान के क्षेत्र में संसार के किसी भी श्रेष्ठ विश्वविद्यालय के समकक्ष, दों। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग शीघ्र ऐसे 6 विश्वविद्यालय छाँट ले। इन छह में, से एक आई. आई. टी. हो और एक कृषि विश्वविद्यालय इन प्रमुख विश्वविद्यालयों, में पर्याप्त छात्रवृत्तियाँ हों एवं अध्यापकों को अनुसन्धान की अत्यधिक सुविधाएँ हों।, प्रत्येक प्रमुख विश्वविद्यालय में उच्च केन्द्रों की स्थापना हो इन विश्वविद्यालयों का, स्वरूप अखिल भारतीय हो।, अन्य विश्वविद्यालयों के स्तरों में भी सुधार होना चाहिए । कुछ सम्बद्ध कालेजों, को स्वायत्तता प्रदान की जानी चाहिए । पाँचवीं योजना के अन्त तक ऐसे 50 अच्छे, कॉलेज स्थापित किये जा सकते हैं ।, आयोग ने शिक्षण तथा मूल्यांकन में सुधार की भी संस्तुति की है । आन्तरिक, मूल्यांकन करना और नवीन विधियों से अध्यापकों को परिचित कराना चाहिए तथा, परीक्षकों को पारिश्रमिक देना बन्द करना चाहिए ।, शिक्षा का माध्यम धीरे-धीरे क्षेत्रीय भाषा हो । स्नातकोत्तर स्तर पर अंग्रेजी में, शिक्षा दी जाए। किसी भारतीय या प्राचीन भाषा को अनिवार्यतः न पढ़ाया जाए किन्तु, अंग्रेजी सभी जगह पढ़ाई जाए। रूसी भाषा की भी व्यवस्था हो।, छात्रों की समस्याओं से निपटने के लिए 'डीन आफ स्टूडेन्ट वेलफेयर' की, |नियुक्ति की जाए। अनुशासनहीनता का उत्तरदायित्व सभी पर है।, अध्वाय 12. उच्च शिक्षा-प्रवेश तथा कार्यक्रम, मानव शक्ति आवश्यकताओं (Man power needs) एवं नौकरी के अवसरों के, अनुसार उच्च शिक्षा के विकास को नियोजित करना चाहिए।, छात्रों के प्रवेश को चुनाव पर आधारित करना चाहिए । प्रत्येक विश्वविद्यालय में, प्रवेश परिषद् बनानी चाहिए जो प्रवेश के कार्य को देखे ।, डाक द्वारा शिक्षा की व्यवस्था हो जिससे 1986 तक कुल छात्रों का एक-तिहाई, भाग डाक द्वारा प्राप्त करने लगे।, कॉलेज में 500 से 1000 के बीच में छात्र हों। कॉलेजों के स्थान के विषय में, विश्वविद्यालय-अनुदान-आयोग निश्चय करे। स्नातकोत्तर शिक्षा का स्तर बढ़ाया, जाए। प्रवेश की परीक्षा कड़ी हो। स्त्री-शिक्षा के विकास के लिए छात्रवृत्ति, आवास, आदि की व्यवस्था हो। स्त्रियों के लिए अलग विद्यालय हों किन्तु स्नातकोत्तर शिक्षा, के लिए अलग विद्यालयों की कोई आवश्यकता नहीं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, को अधिक सशक्त किया जाए। शोधकार्य का स्तर उठाया जाए। सामाजिक विज्ञान,, मानविकी एवं अन्य विद्याओं के कार्यक्रम में सुधार हो। शैक्षिक अनुसन्धान को, प्रोत्साहन मिले।, अध्याय 13. विश्वविद्यालय का प्रशासन, आयोग ने सर्वप्रथम विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता पर विचार किया है प्रबन्ध मे, छात्रों के प्रतिनिधित्व की संस्तुति की है । वित्तीय व्यवस्था के सुधार के लिए भी, संस्तुति की गई है उपकुलपति की नियुक्ति के लिए जो समिति बने उसमें इमानदार, व प्रसिद्ध व्यक्ति हों। अवधि 5 वर्ष की हो और कोई भी व्यक्ति दो बार से अधिक न, चुना जाय। उपकुलपति के रिटायर होने की आयु 65 वर्ष होनी चाहिए । विश्व,