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3, , 3) प्रबंध द्वारा प्रारम्भ में आधारभत, ू नीतियों का निर्माण किया जाता है और बाद में जरूरत के, अनस, ु ार विभिन्न नीतियों का निर्धारण किया जाता है ।, , 4) प्रबन्धक समाज को स्थिरता प्रदान करने वाला तथा परम्पराओं का संरक्षक है ।, , 5) व्यक्तियों के विकास में प्रबंध का अत्यंत महत्व है । प्रबंध की समस्त क्रियाएँ मानवीय विकास से, , संबंधित होती है । यह व्यक्तियों की कार्यकुशलता में वद्, ृ धि करता है और उनका सर्वांगीण विकास, करता है ।, , 6) प्रबंधक प्रत्येक व्यवसाय का गतिशील एवं जीवनदायक तत्व होता है उसके नेतत्ृ व के आभाव में, उत्पादन के साधन केवल साधन-मात्र ही रह जाते हैं, कभी उत्पाद नहीं बन पाते हैं।, , 7) प्रबंध की आवश्यकता केवल व्यावसायिक क्षेत्रों में ही नहीं अपितु गैर-व्यावसायिक क्षेत्र जैसे-, , स्कूल, कॉलेज, धार्मिक एवं राजनैतिक संस्थाओं, सामाजिक कार्यों, यहाँ तक कि जीवन के प्रत्येक, क्षेत्र में जैसे घर,खेल का मैदान आदि में भी रहती है ।, , 8) दे श की समद्, ू तम लागत पर, ृ धि में भी प्रबंध का काफी महत्व रहता है । कुशल प्रबंधक जब न्यन, , अधिकतम उत्पादन सम्भव बनाते हैं। श्रम समस्याओं को सल, ु झाते हैं। समाज के विभिन्न अंगों, के प्रति अपने उत्तरदायित्व को भली-भांति निभाते हैं जिससे राष्ट्र समद्, ृ धि की और बढ़ता है ।, , 9) प्रबंधन के सिद्धांत आवश्यक और अंतर्निहित कारक हैं जो सफल प्रबंधन की नींव बनाते हैं।, , अपनी पस्, ु तक जनरल एन्ड इंडस्ट्रियल मैनेजमें ट (1916) में हे नरी फेयोल के अनस, ु ार, चौदह, 'प्रबंधन के सिद्धांत' हैं।, , 10)श्रम का विभाजन - इस सिद्धांत के अनस, ु ार, परू े काम को छोटे कार्यों में विभाजित किया जाना, , चाहिए। किसी व्यक्ति के कौशल, श्रम शक्ति के भीतर विशिष्ट निजी और व्यावसायिक विकास
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4, का निर्माण और उत्पादकता में वद्, ु ार कार्यबल विशेषज्ञता को बांटे जिससे श्रम की, ृ धि के अनस, दक्षता बढ़ जाएगी।, , 11)प्राधिकरण और उत्तरदायित्व' - यह जिम्मेदारी के बाद उनके परिणामों के लिए आदे शों का मद्, ु दा, , हैं। प्राधिकरण का मतलब है कि उसके अधीनस्थों (Subordinate) को आदे श दे ने के लिए वरिष्ठ, का अधिकार; उत्तरदायित्व का मतलब है प्रदर्शन के लिए दायित्व।, , 12)अनश, ु ासन - यह आज्ञापालन, दस, ू रों के संबंध में उचित आचरण, अधिकार का सम्मान आदि हैं।, सभी संगठनों के सच, ु ारु संचालन के लिए यह आवश्यक है ।, 13)आदे श की एकता - यह सिद्धांत बताता है कि प्रत्येक अधीनस्थ (Subordinates) को आदे श, प्राप्त करना चाहिए और केवल एक अधिकारी के प्रति जवाबदे ह होना चाहिए। अगर किसी, , कर्मचारी को एक से अधिक अधिकारी से आदे श प्राप्त होता है तो यह भ्रम और संघर्ष पैदा करने की, संभावना रखता है ।, , 14)दिशा की एकता - सभी संबंधित गतिविधियों को एक समह, ू के तहत रखा जाना चाहिए। उनके लिए, कार्रवाई की एक योजना होनी चाहिए और वे एक प्रबंधक के नियंत्रण में होनी चाहिए।, , 15)आपसी हित के लिए व्यक्तिगत रुचि की अधीनता - प्रबंधन को निजी विचारों को अलग करना, , चाहिए और कंपनी के उद्दे श्यों को सबसे पहले रखा जाना चाहिए। इसलिए संगठन के लक्ष्यों के, हितों को व्यक्तियों के निजी हितों पर प्रबल होना चाहिए।, , 16)पारिश्रमिक - श्रमिकों को पर्याप्त रूप से भग, ु तान किया जाना चाहिए क्योंकि यह कर्मचारियों का, , मख्, ु य प्रेरणा है और इसलिए उत्पादकता को बहुत प्रभावित करता हैं। क्वांटम और दे य पारिश्रमिक, के तरीके को उचित और तर्क संगत होना चाहिए।, , 17)केंद्रीयकरण का स्तर - केंद्रीय प्रबंधन के साथ संचलन वाली शक्ति की मात्रा कंपनी के आकार पर, , निर्भर करती हैं। केंद्रीकरण का मतलब है शीर्ष प्रबंधन में निर्णय लेने वाले प्राधिकरण की एकाग्रता, है ।, , 18)प्राधिकरण/स्केलर शंख, ृ ला की रे खा - यह शीर्ष प्रबंधन से सबसे कम रैंक तक लेकर वरिष्ठों की, , श्रंख, ृ ला को संदर्भित करता हैं। सिद्धांत बताता है कि सभी स्तरों पर सभी प्रबंधकों को ऊपर से नीचे, तक अधिकार की एक स्पष्ट रे खा होनी चाहिए।, , 19)व्यवस्था (ऑर्डर) - सामाजिक व्यवस्था (सोशल ऑर्डर) एक कंपनी के तरल संचालन को, , आधिकारिक प्रक्रिया से सनि, ु श्चित करता हैं। सामग्री व्यवस्था (मैटेरियल ऑर्डर) कार्यस्थल में, सरु क्षा और दक्षता सनि, ु श्चित करता हैं। ऑर्डर स्वीकार्य और कंपनी के नियमों के तहत होना, चाहिए।, , 20)न्यायसम्य (Equity) - कर्मचारियों से दयालु रूप से व्यवहार किया जाना चाहिए, और सिर्फ, , कार्यस्थल सनि, ु श्चित करने के लिए न्याय का अधिनियमित होना चाहिए। कर्मचारियों के साथ, , व्यवहार करते समय प्रबंधकों को उचित और निष्पक्ष होना चाहिए, सभी कर्मचारियों पर समान, ध्यान दे ना।
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6, (2) परियोजना मितव्ययी सिद्ध हो और एस्टीमेट के भीतर सम्पन्न की जा सके।, (3) निर्माण कार्य की गण, ु ता बनी रहे ।, , (4) निर्माण समय के भीतर पर्ण, ू हो जाए। यदि प्रबन्धन द्वारा इसको सनि, ु श्चित नहीं किया जा, सकता, तो यह प्रबन्धक की योग्यता पर एक काला बिन्द ु है ।, , (5) सामग्री तथा श्रमिकों का अपव्यय न होने पाये। श्रमिकों के मानसिक तथा शारीरिक क्षमता का, निर्माण में पर्ण, ू रूप से उपयोग करना।, , (6) निर्माण कार्य आधनि, ु क निर्माण विधियों द्वारा सम्पन्न किया जा सके।, , (7) विभिन्न वर्गों में उचित समन्वय स्थापित रहे । ऐसा संगठन खड़ा करना जो एक टीम की भांति, कार्य करे ।जट, ु सके।, , (8) संगठन के विभिन्न स्तरों पर अधिकारों का विकेन्द्रीकरण करना, जिससे निम्नतम स्तर के, , कर्मचारी भी अपनी योग्यता एवं अनभ, ु व के आधार पर निर्णय ले सके और उन्हें प्रत्येक छोटी-बड़ी, कठिनाई के लिए प्रबन्धक तक दौड़ना न पड़े।, , (9) प्रबन्धक निर्माण क्षेत्र में अपनी तथा अपने श्रमिकों की ख्याति स्थापित कर सकें, , FUNCTIONS OF CONSTRUCTION MANAGEMENT, (निर्माण प्रबन्ध के प्रकार्य), , नियोजन (Planning) :- प्रबंध भविष्य की आवश्यकताओं का पर्वा, ू नम, ु ान लगाता है ताकि निर्धारित लक्ष्यों, की दृष्टि से किए जाने वाले वर्तमान प्रयासों को उनके अनरू, ु प बनाया जा सके।नियोजन का मतलब होता, है कि क्या करना है , क्यों करना है , कहाँ करना है , कब करना है , कैसे करना है तथा किस व्यक्ति द्वारा, , करना है , इन सभी बातों पर ध्यान दे ना। इसके साथ ही नियोजन के अंतगर्त विपरीत परिस्थितियों का, सामना करने के तरीकों पर भी विचार किया जाता है ।, , इस प्रकार आयोजन में निम्नलिखित उप-कार्य शामिल हैं:, 1) उद्दे श्यों की प्राप्ति और योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए आवश्यक गतिविधियों की पहचान।, 2) गतिविधियों को समह, ू ीकृत करना ताकि स्व-निहित नौकरियों का निर्माण हो सके।, 3) कर्मचारियों को काम सौंपना।
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7, 4) प्राधिकरण का प्रतिनिधिमंडल ताकि उन्हें अपनी नौकरी करने में सक्षम बनाया जा सके और उनके, प्रदर्शन के लिए आवश्यक संसाधनों की कमान संभाली जा सके, और।, , 5) समन्वय रिश्तों के एक नेटवर्क की स्थापना।, , संगठन (Organisation) :- नियोजन द्वारा उद्दे श्य एवं लक्ष्य निर्धारित कर लेने के पश्चात उन्हें, , कार्यन्वित करने की समस्या आती है जिसे प्रबंध संगठन के माध्यम से करता है । संगठन निर्धारित लक्ष्यों, की पर्ति, ू करने वाले तंत्र है । उपक्रम की योजनाएं चाहे कितनी भी अच्छी एवं आकर्षक क्यों न हो यदि अच्छे, , संगठन का आभाव है तो सफलता की कामना करना निष्फल होगा। इस तरह कुशल एवं प्रभावी संगठन का, निर्माण करना बहुत जरूरी रहता है ।, , नियक्ति, याँ (Staffing) :ु, प्रबंध का प्राथमिक कार्य है कर्मचारियों की नियक्ति, याँ करना है जिसका अर्थ है - संगठन की योजना के, ु, , अनस, करना उनको आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान, ु ार आवश्यक पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों की नियक्ति, ु, करना।, , इसमें कई उपविधियाँ शामिल हैं:, 1) मैनपावर प्लानिंग जिसमें संख्या का निर्धारण और आवश्यक कार्मिक शामिल हैं।, , 2) उद्यम में नौकरियों की तलाश के लिए पर्याप्त संख्या में संभावित कर्मचारियों को आकर्षित करने, के लिए भर्ती।, , 3) विचाराधीन नौकरियों के लिए सबसे उपयक्, ु त व्यक्तियों का चयन।, , 4) प्लेसमें ट, इंडक्शन और ओरिएंटेशन स्थानान्तरण, पदोन्नति, समाप्ति और छं टनी।कर्मचारियों, का प्रशिक्षण और विकास।, , निर्देशन (Directing) :प्रबंध मल, ू तः व्यक्तियों से कार्य कराने व करने की कला है । प्रबंध का चौथा महत्वपर्ण, ू कार्य है उपक्रम को, , निर्देशन अथवा संचालन प्रदान करना। निर्देशन का अर्थ है - संस्था में विभिन्न नियक्, ु त व्यक्तियों को यह, बताना कि उन्हें क्या करना है , कैसे करना है , कब करना है तथा यह दे खता है कि वे व्यक्ति अपना कार्य, उसी भांति कर रहे हैं या नहीं। निर्देशन प्रबंध का वह महत्वपर्ण, ू कार्य है जो संगठित प्रयत्नों को प्रारम्भ, करता है ।
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