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इकाई 2 निदानात्मक एवं उपचारात्मक कार्य, इकाई की रूपरेखा, 2.1, प्रस्तावना, 2.2 उद्देश्य, 2.3 निदानात्मक परीक्षण, 2.3.1, शैक्षणिक निदान की प्रक्रिया, उपचारात्मक शिक्षण, उपचारात्मक शिक्षण के उद्देश्य, उपचारात्मक शिक्षण - कुछ आधारभूत सिद्धांत, 2.4, 2.4.1, 2.4.2, 2.5 नैदानिक तथा उपचारात्मक कार्य, 2.5.1 प्रक्रिया, 2.5.2, अभ्यास-माध्यम, 2.5.3, भाषा कौशलों का उपचारात्मक कार्य, 2.6, सारांश, 2.7, बोध प्रश्नों के उत्तर, उपयोगी पुस्तकें, 2.8, 2.9, उपचारात्मक पाठ योजना, 2.1, प्रस्तावना, शिक्षार्थियों की भाषा-सम्प्राप्ति में प्रायः वाचन , पठन, लेखन संबंधी अनेक प्रकार की त्रुटियां पाई जाती हैं । इन, त्रुटियों के अनेक कारण होते हैं । प्रभावी भाषा-शिक्षण के लिए आवश्यक है कि शिक्षक अपने शिक्षार्थियों के, भाषागत दोषों या कमियों को जाने और उन्हें दूर करने के लिए उपयुक्त उपाय करे । निदानात्मक परीक्षण, एक ऐसा साधन है, जिसके माध्यम से शिक्षार्थियों की संप्राप्ति में पाये जाने वाले दोषों या कमियों का सम्पक्, ज्ञान हो सकता है। इन त्रुटियों को दूर करने और शुद्ध तथा व्याकरण सम्मत भाषा सिखाने के लिए हम अनेक, प्रकार के उपचारात्मक कार्यों/अभ्यासों का उपयोग कर सकते हैं ।, 2.2 उद्देश्य, इस इकाई को पढ़ने के बाद आप :, उपलब्धि परीक्षण के आधार पर शिक्षार्थियों की भाषा संप्राप्ति एवं उसमें कमियों या दोषों को जान सकेंगे,, निदानात्मक परीक्षणों द्वारा छात्रों की भाषाई त्रुटियों का पता लगा सकेंगे,, विविध उपचारात्मक कार्यों/अभ्यासों के माध्यम से छात्रों की भाषा-सम्प्राप्ति को सुधार सकेंगे ।, 2.3 निदानात्मक परीक्षण, निदान' शब्द मूलत: चिकित्सा-शास्त्र से आया है । अच्छा चिकित्सक किसी रोगी का उपचार करने से पूर्व, अनेक परीक्षणों, उपकरणों और प्रश्नों के द्वारा रोगी की बीमारी के बारे में जानकारी एकत्र करता है । फिर, प्राप्त जानकारी के विश्लेषण और अध्ययन के बाद रोग का निदान करता है और तदनुकुल उपचार करता है ।, शिक्षा के क्षेत्र में भी जब शिक्षार्थी के शैक्षिक स्वास्थ्य को लेकर यह प्रक्रिया अपनाई जाती है तो उसे शैक्षणिक, 25
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मूल्यांकन, क्रियात्मक शोध, तथा समुन्नयन कार्य, निदान और शैक्षणिक उपचार कहते हैं । शैक्षणिक निदान, शैक्षणिक उपचार अरथवा उपचारी शिक्षण की, आधारभूमि है। दूसरे शब्दों में शैक्षणिक निदान और शैक्षणिक उपचार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं ।, कक्षा में सभी शिक्षार्थियों की शैक्षिक प्रगति एक-सी नहीं होती है । प्रत्येक अच्छा शिक्षक यह जानना चाहता, है कि उसकी कक्षा के अलग-अलग शिक्षार्थियों का शैक्षिक स्तर क्या है, उनकी शैक्षिक प्रगति के मार्ग में क्या, कठिनाइयाँ हैं। शिक्षार्थी की कठिनाइयों का पंता लगाने की प्रक्रिया ही शैक्षणिक निदान है ।, इसी प्रकार शिक्षार्थी की उपलब्धि में निहित दोष या कमियों को ज्ञात करने के लिए किया गया प्रयास भी शैक्षणिक, निदान के अन्तर्गत आता है।, भाषा-शिक्षण में विभिन्न भाषाई कौशलों, प्रकार की गलतियां करते हैं। अलग-अलग कौशलों की त्रुटियां अलग-अलग प्रकार की होती हैं जिनकी समुचित, पहचान किए बिना शिक्षक उनमें अपेक्षित सुधार नहीं ला सकता। इस दृष्टि से भी शैक्षणिक निदान का विशिष्ट, सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना, के क्षेत्र में शिक्षार्थी अनेक, महत्व है।, निदानात्मक शिक्षण तथा परीक्षण की संकल्पना शिक्षा जगत में पर्याप्त पुरानी है। बूनर और मेलवी के अनुसार, "नैदानिक परीक्षणों का प्रमुख उद्देश्य किसी विषयवस्तु में बालक की विशुद्ध कमजोरी को प्रकाश में लाना है,, ताकि कमजोरियों के कारणों की छानबीन कर सुधार हेतु उपचारात्मक कदम उठाये जा सकें ।" किंतु यह वस्तुत:, एक संकुचित दृष्टिकोण है । भाषा-शिक्षण के क्षेत्र में शिक्षार्थियों की कमजोरियों का ज्ञान, उनके कारणों की, छानबीन और उनके आधार पर सुधारात्मक कार्य तो निदानात्मक शिक्षण का उद्देश्य है ही, इसके अतिरिक्त, निदानात्मक शिक्षण का एक व्यापक उद्देश्य भी है और वह है सार्थक शिक्षण द्वारा शिक्षार्थियों की भाषा-क्षमता, में उत्तरोत्तर वृद्धि ।, 2.3.1 शैक्षणिक निदान की प्रक्रिया, भाषा-शिक्षण के क्षेत्र में निदान की संकल्पना मानक भाषा की संकल्पना से जुड़ी हुई है। किसी भी भाषा की, अपनी विशिष्ट संरचना होती है, उसका अपना व्याकरण तथा व्याकरणिक नियम होते हैं। भाषा के कौशलों, के व्यवहार के निश्चित मानक होते हैं जो संबंधित समाज में सर्वस्वीकृत होते हैं । जब कभी भाषाई व्यवहार, में इन भाषिक मानकों का उल्लंघन होता है तो उसे भाषाई त्रुटि मानते हैं। निदानात्मक परीक्षण एवं उपचारात्मक, शिक्षण का मूल उद्देश्य शिक्षार्थियों के भाषिक व्यवहार में त्रुटियों का निदान करना और उनमें अपेक्षित सुधार, लाना है। अत: शैक्षणिक निदान की प्रक्रिया का पहला चरण है - शिक्षार्थी की न्यूनताओं और कमजोरियों की, पहचान। भाषा-शिक्षण में इन न्यूनताओं का संबंध मुख्यत: भाषा-कौशलों से होता है क्योंकि भाषा मूलतः एक, कौशल-केन्द्रित विषय है। आप जानते हैं कि भाषा के प्रमुख कौशल हैं सुनना, बोलना, पढना और लिखना ।, इन अलग-अलग कौशलों की त्रुटियां भी अलग-अलग होती हैं। अत: भाषा के क्षेत्र में शैक्षणिक निदान के लिए, हमें अलग-अलग कौशलों से संबंधित त्रुटियों की पहचान करनी होगी । इन त्रुटियों का पता लगाने के लिए, निदानात्मक परीक्षण एक प्रधान साधन है।, सस्वर पठन के क्षेत्र में निदानात्मक परीक्षण का एक नमूना यहाँ दिया जा रहा, है।, :, शिक्षक कक्षा-४ के छात्रों को निम्नलिखित गद्य खंड के सस्वर पठन की आदेश देता है :, "इस नगर में अठारह प्राथमिक विद्यालय हैं। उनमें से जनक विद्यालय भी एक है। इस विद्यालय में के. जी., से लेकर कक्षा सात तक की पढ़ाई होती है। यहाँ प्रधानाध्यापक, सहायक अध्यापक और चौदह अध्यापक कार्यरत, हैं। प्रधानाध्यापक और अध्यापकों के कठोर परिश्रम का ही परिणाम है कि यह विद्यालय सर्वश्रेष्ट विद्यालय के, रूप में जाना जाता हैं। विद्यालय में प्रवेश हेतु कोई विशेष प्रविधि न अपना कर सामान्य प्रविधि ही अपनाई, जाती है, जिसमें समाज के सभी बच्चे बिना किसी भेद-भाव के प्रवेश पाते हैं। इस प्रकार सरस्वती नगर में, नागरिकों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का सही प्रतिनिधित्व यह विद्यालय करता है।", 26
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के लिए सहायता की आवश्यकता होती है । उपचारात्मक शिक्षण द्वारा उनको यह सहायता दे दी जाती है । इस, प्रकार उपचारात्मक शिक्षण दो प्रकार की क्रियाओं की ओर संकेत करता है । ये क्रियाएं हैं :, निदानात्मक एवं, उपचारात्मक कार्य, दूषित मनोवृत्ति एवं त्रुटिपूर्ण आदतों को समाप्त करना और गलत ढंग से सीखी गई अधिगम-सामग्री का, पुन:शिक्षण।, ऐसी आदतों, कौशलों एवं मनोवृत्तिययों को सिखाना जो सीखी जानी चाहिए ।, 2.4.1, उपचारात्मक शिक्षण के उद्देश्य, उपर्युक्त विवरण के आधार पर उपचारात्मक शिक्षण के संक्षेप में निम्नलिखित उद्देश्य हो सकते है, i), प्राप्त ज्ञान में कमियों का निराकरण करना,, i) कौशलों की अधिगम प्रक्रिया के दौरान त्रुटियों एवं दोषों को सुधारना,, ii) समुचित दिशा में विकास का मार्ग प्रशस्त करना,, iv), समाज से स्वीकृत आदतों का परिमार्जन करना,, और, v), विषय विशेष को सीखने में अक्षमतांओं को दूर करना ।, किसी भी विषय से संबंधित उपचारात्मक शिक्षण की व्यवस्था में उपर्युक्त उद्देश्य ही प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप, से कार्य करते हैं।, भाषा-शिक्षण में जो क्षेत्र निदान के है वे सभी उपचार के भी हैं । शैक्षणिक निदान सदैव उपचारात्मक शिक्षण, के संदर्भ में ही किया जाता है । उपचारात्मक शिक्षण की प्रक्रिया बहुमुखी होती है वह शैक्षणिक निर्दान से पता, लगाए गए कारणों पर निर्भर करती है। यह निरंतर विकासशील प्रक्रिया है। शैक्षणिक निदान के पश्चात् उपचार, और उस उपचार की प्रभाविकता की जांच के लिए पुन: परीक्षण क निदान इसीलिए उपचार को प्रयोग,, परीक्षण और पुनः प्रयोग की अभ्यासपूर्ण प्रक्रिया कहा गया है ।, उपचारात्मक शिक्षण की समस्त प्रक्रिया में शिक्षक शिक्षार्थियों को यह आभासे न होने दे कि उपचारात्मक शिक्षण, की दृष्टि से शैक्षणिक निदान किया जा रहा है । कोई शिक्षार्थी यह नहीं चाहेगा कि उसे कमजोर समझा जाए, और उसका कोई उपचार किया जाए। निदान और उपचार दोनों ही व्यक्ति केंद्रित हो सकते हैं और समूह, केंद्रित भी।, व्यक्ति की विशिष्ट त्रुटियों का उपचार वैयक्तिक विधि से होता है और वे त्रुटियाँ जो अधिकांश व्यक्ति करते, हैं, सामूहिक रूप से दूर की जाती है। इनके शिक्षण के लिए पाठ योजना भी भिन्न-भिन्न प्रकार से बनाई जाती, है।, 2.4.2 उपचारात्मक शिक्षण - कुछ आधारभूत सिद्धांत, व्यक्ति-केंद्रित या समूह-केंद्रित उपचारात्मक शिक्षण दोनों ही में निम्नांकित सिद्धांतों का पालन प्रभावी सिद्ध, होगा :, उपचारात्मक शिक्षण शिक्षार्थी के वास्तविक शैक्षिक स्तर से आरंभ किया जाए चाहे कक्षा कोई भी हो ।, छात्र को समय-समय पर रेखाचित्र या अन्य प्रकार से यह बताते रहना चाहिए कि उसने कितनी प्रगति, कर ली है।, यह ध्यान रखा जाए कि जो अभ्यास छात्र को दिये जाएं, वे उसके मूल प्रयोजन की संतुष्टि करें ।, शिक्षार्थियों को उनके अभ्यास कार्य के लिए निरंतर सराहा जाए ताकि उन्हें उपयुक्त प्रोत्साहन मिलता, रहे।, •., उसको दिए जाने वाले कार्यों एवं अभ्यासों में विभिन्नता हो ताकि उसका कार्य रूखा एवं थकावट उत्पन्न, करने वाला न हो जाए।, 29