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14.4.4 प्रशान्त महासागर की धाराएँ...”, , 1., , 5., , उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा - यह गर्म धारा है जो मध्य अमरीकी तट से प्रारम्भ होकर, पश्चिम में फिलीपीन्स की ओर चली जाती है। यहाँ यह धार दो शाखाओं में विभक्त हो, जाती है। प्रथम शाखा दक्षिण की ओर मुड़कर अपनी दिशा पूर्व को कर लेती है, जिसे प्रति, भूमध्य रेखीय धार कहते हैं, द्वितीय शाखा उत्तर की ओर क्यूरोसीवो धारा के नाम से, चलती है।, , क्यूरोसीवो धारा - यह एक गर्म धारा है जो फिलीपौन द्वीप समूह, ताइवार्न तथा जापान के, तटों के समीप उत्तर की ओर बहती है। क्यूशू द्वीप के समीप यह धार दो शाखाओं में बँट, जाती है। एक शाखा उत्तर की ओर अलास्का तट के सहारे बहती हुई पुनः प्रशान्त प्रवाह में, मिल जाती है तथा एक शाखा दक्षिण की ओर मुड़ करे कैलीफोर्निया की ठण्डी धारा।से, पिल जाती है। क्यूरोसीवों की एक शाखा जापान के पश्चिमी तट के सहारे उत्तर में जापान, सागर में चली जाती है जो सुशीमा की धारोके नाम से विख्यात है।, , क्यूराइल धारा - यह एक ठण्डी जल धारा है, जो बेरिंग जल डमरूमध्य से दक्षिण में, साइबेरिया तट के साथ बहती हुई क्यूराइल द्वीप समूह के निकट क्यूरोसीवो गर्म धारा से मिलती, है।, , दक्षिणी .भूमध्य रेखीय धारा - भूमध्य रेखा के दक्षिण में लगभग 3० से 10? दक्षिणी, अक्षांश के सहारे सहारे यह गर्म धारा पीरू से ऑस्ट्रेलिया तक चलती है।, , , , 3., , , , , , नई 355 हट, , जल«न्न्नमे,, , , , , , , , 7-७ ६-८ ४ | 3, , , , चित्र-14.8 : प्रशान्त महासागर की धाराएँ क, , पूर्वी ऑस्ट्रेलियन धारा - यह गर्म जल धारा है जो ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट के सहारे, सहारे दक्षिण की ओर प्रवाहित होती है। तस्मानिया के निकट पहुँचकर यह धारा अण्टर्केटिके, प्रवाह से मिल जाती है। |, , अप्टार्कटिक प्रवाह - यह अण्टार्कटिक महासागर में प्रश्चिम से पूर्व की ओर चलने
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वाली वृहत् धारा का एक अंग है। यह ठण्डी जलघाए है। हॉर्न अन्तरीप के निकट पहुँच, कर इसकी एक शाखा दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट के सहारे सहारे उत्तर की ओर, चलती है।, , पीरू धारा - यह एक ठण्डी धार है | जिसे पीरू के तट के सहारे प्रवाहित होने के कारण, पीरू की धारा कहा जाता है। आगे यह धारा दक्षिणी भूमध्यरेखीय घारा से मिल जाती है ।, , 14,4.5 हिन्द महासागर की धाराएँ, , हिन्द महासागर की धाराएँ प्रशान्त एवं अटलाण्टिक महासागरीय धार प्रवाह क्रम से भिन्नता रखती, हैं क्योंकि हिन्द महासागर में मानसूनी पवनें चला करती हैं। मानसूनी पवनें ग्रीष्प तथा शीतकाल में, विपरीत दिशा में चलती हैं। अत: हिन्द महासागर में चलने वाली धाराएँ भी मानसून के साथ अपनी, दिशा बदल लेती हैं।, , उत्तरी पूर्वी मानसून धारा - शीत ऋतु में उत्तरी पूर्वी मानसून पवनें स्थल से जल की ओर, चलती हैं । इन पवनों के प्रभाव से एशिया के दक्षिणी-तटों के सहारे धारा प्रवाहित होती है, , जो पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है। अफ्रीका के समीप यह पूर्व की ओर मुड़ कर पूर्वी द्वीप, समूह की ओर चलती है।, , प्रति भूमध्यरेखीय धारा - यह शीत ऋतु में चलने वाली धारा है। यह एक गर्म धारा है।, यह धारा 2" से 8" दक्षिणी अक्षाशों के मध्य पश्चिम से पूर्व को चलती है ।, , दक्षिणी पश्चिमी मानसून धारा - ग्रीष्म ऋतु में दक्षिणी पश्चिमी मानसून पवनों के प्रभाव, से एशिया के तटीय भागों पर इस धार का विस्तार होता है। यह धागा दक्षिण-पूर्व से उत्तरपूर्व दिशा की ओर प्रवाहित होती है।, , देक्षिणी भूमध्यरेखीय धारा - 10" से 15० द, अक्षांशों के मध्य चलने वाली धाराओं, को भूमध्य रेखीय घारा कहा जाता है। यह दक्षिणी पूर्वी व्यापारिक पवनों के प्रभाव से, ऑस्ट्रेलिया के पश्चिम से पूर्व की ओर चलती है | मैडागास्कर तट पर यह दक्षिण की ओर, मुड़ जाती है।, , , , मै ! | श्, कक 5 20, /, ण्श्ज्ज | ऐश |,, 0 विशाल ग, ढ् «विपरीत धागा., 40 | ा व. भूमष्य रैसीय फरो- 40, , , , , , , , , , लन+5 शकाता एजास हंडी धारा'-+ ००४ तफसथ, , चित्र 14.9 : हिन्द महासागर की घाराएँ
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मोजाम्बिक धारा - यह एक गर्म जल घाण है। दक्षिणी भूमध्यरेखीय धारा की ही एक, ्े, शाखा है। यह अफ्रीका तथा मैडागास्कर के मध्य प्रवाहित होती है।, , अगुलहास धारा - अफ्रीका के दक्षिण में चलने वाली एक गर्म धारा है जो अन्ततः यह, अण्टार्कटिक प्रवाह से मिल जाती है।, , अण्टार्कटिक प्रवाह - हिन्द महासागर के दक्षिणी भाग में पश्चिम से पूर्व की ओर चलती, है। यह ठण्डी जल धारा है। यह प्रवाह पछुआ पवनों के प्रभाव में चलती है।, , पश्चिमी ऑस्ट्रेलियन धारा - अण्टार्कटिक प्रवाह से कुछ ठण्डा जल उत्तर की ओर मुड़कर, , आस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट के साथ प्रवाहित होता हुआ दक्षिणी भूमध्यरेखीय जल धारा में, मिल जाता है। यह पश्चिमी ऑस्ट्रेलियन धागा कहलाती है।, , 14.4.6 धाराओं का प्रभाव, , हर, , जलवायु पर प्रभाव - जिन तटों के सहारे ठण्डी धाराएँ चलती हैं वहाँ की जलवायु ठण्डी, हो जाती है। गर्म जल धाराओं के कारण सम्बन्धित तटों की जलवायु गर्म हो जाती है।, , वर्षा पर प्रभाव - ठण्डी जल धाराओं के प्रभाव में आने वाले क्षेत्रों की जलवायु शुष्क, रहती है। गर्म जलधाराओं के प्रभाव में आने वाले क्षेत्रों की जलवायु आर्द्र रहती है।, , कोहरा - जहाँ पर गर्म व ठण्डी धाराएँ मिलती हैं उन क्षेत्रों में घना कोहरा छाया रहता है।, घने कोहरे के कारण व्यापारिक गतिविधियों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।, , मत्स्य व्यापार पर प्रभाव - गर्म जल धाराओं के साथ साथ प्रचुर मात्रा में प्लैंकटन बहकर, , आती है जो मछलियों का प्रमुख भोजन है। ठण्डी व गर्म धाराओं के मिलन स्थल पर विश्व, के प्रमुख मछली क्षेत्र बन गए हैं।