Page 1 :
द्वितीय प्रश्न-पत्र, इकाई।, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं, गणितीय भौतिकी, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, [HISTORICAL BACKGROUND], पाठ्यक्रम- भारत और भारतीय संस्कृति के संदर्भ में गणित और यांत्रिकी का एक संक्षिप्त ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, विवरण। विज्ञान और समाज में वराहमिहिर और विक्रम साराभाई के प्रमुख योगदान के साथ उनकी, एक संक्षिप्त जीवनी।, $11. प्रस्तावना (Introduction), भोपाल से लगभग 30 किलोमीटर दूर भोजपुर में एक शिव मंदिर लगभग एक हजार से अधिक वर्षों पहले, बन रहा था किन्तु कुछ विशिष्ट कारणों से वह आधा- अधूरा ही बन पाया और उजाड़ हो गया। अब वह एक, पर्यटन स्थल एवं देश की विरासत है। पर अपूर्ण बनने के कारण हमें उसके बनने में भौतिकी का उन्नत दृष्टिकोण, दिखाई देता है। शंकर जी का भव्य पिण्ड जिसे शिखर तक ले जाने में भौतिकी का उत्तम उदाहरण है, जहाँ ढाल, (amp) और लीवर के प्रयोग का प्रात्यक्षिक उपयोग दिखता है। शायद ढाल के कोण नापने के लिए गणितीय, विधा का भी उपयोग किया गया है।, गणितीय भौतिकी के अंतर विनिमय के कुछ और उदाहरण हैं जैसे- सिंहगढ़ के विध्वंश से पता चलता, है कि किस तरह पहाड़ पर किला बनाने के लिए पहाड़ के शीर्ष का समतलीकरण कर उससे निकले विशालकाय, पत्थर खोदकर निकालना कैसे किले के आवश्यक कर्मियों की कुशलता थी तथा पानी संग्रहण किया गया। कुतुब, मीनार के पास एक और मीनार का अवलोकन कर हम पूर्वजों का ज्ञान किंकत्व्व्यमूढ़ कर देता है । हम्पी के मंदिर, तथा उसमें लगे संगीत स्तंभ (Musical Pilliers) बीजापुर का" आवर्तनी ध्वनि का टांब" (tomb), जंजीरा का, अजेय किला, इत्यादि।, |, आपके निवास स्थान के आसपास किले, झरने या निसर्ग का अध्ययन कर उनके अद्भुत गुणों का, विवरण लिखे और प्रसारित करें।, हमारे विद्वत विज्ञान ज्ञाता की स्तुति उनकी अद्भुत योजनाओं की स्तुति जरूर करें यथा पानी संग्रह, तकनीक, भवनों, किलों को दृढ़ बनाने के लिए कमानी (arch ) का उपयोग तथा एक किले से दूसरे किले या, किले से जंगल जाने के लिए भूमिगत सुरंगों का प्रयोग। आपको उत्सुकता हो सकती है, किन्तु भूमिगत सुरंगों, (जो अब सुरक्षित नहीं है) के अंदर प्रवेश न करें। इस कड़ी में चार चाँद लग जाते हैं जब आप राजस्थान किलों, को घेरती चौड़ी नहरें देखते हैं, कम आश्चर्य नहीं है ? तलवारों व अन्य आयुधों का निर्माण या कुतुबमीनार के, पास का लौह स्तंभ भी अद्भूत है।, ৪1-1-1. भारत की अध्यापन और अध्ययन व्यवस्था, पौराणिक युग में राजतंत्र सामान्यत: संतों के अनुसरण से एवं उनके मार्गदर्शन या सलाह लेकर व्यवस्था, चलाते थे। वे गाँवों में ही अपनी सूझबूझ से वार्तालाप कर समस्या का समाधान कर लेते थे। किन्तु प्रतिष्ठित, व्यक्ति एवं राज्य संचालन से संबंधित व्यक्ति अपने बच्चों के लिए गुरुकुल परंपरा को अपनाते थे जो सामान्यतः, ऋष से अर्थ, राजनीति, प्रशासन, युद्ध तथा आचरण (Moral) का ज्ञान प्राप्त करते थे। जैसे सामान्य व्यवहार में, "आचार्य त्यास" द्वारा पुराणों में लिखा " महाजनों येन गतः स पन्था : " को ही प्रमाण मानते थे।, ११, 44
Page 5 :
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि | 5, चित्र 1-2. खजुराहो मंदिर (9 वीं शताब्दी ), प्रोजेक्ट-शिक्षकों और विद्यार्थियों से अपेक्षित है कि वे निकटतम वेधशाला में जाकर अपनी पसंद की, कृति का विवरण अन्य के साथ प्रोजेक्ट के रूप में तार्किक विश्लेषण / विवेचन करें ।, यांत्रिकी की बारीकियाँ-, (1) वैदिक भारतीय ईंटें हजारों साल तक भी सलामत रहती हैं।, (2) थिरू विकमिकालाई मंदिर के हाल में 50 फुट चौड़ाई की आर्क है । उक्त मंदिर (Thiru-, veezhimizhalai) को बनाने में तथा उपकरण कारीगरों/वास्तुविद के कौशल अवर्णीय उदाहरण है।, (3) मूर्ति बनाने के लिए विशिष्ट गुण वाली शिला, खंड एवं उपकरण का बौद्धिक चयन, दीवाल, आर्क, छत, बनाने के लिए उपयुक्त पदार्थ लिये गए थे।, (4) मुख्य मूर्ति के लिए एक ही रंग-काला/भूरा/, पीला में से सूझ-बुझ से पत्थरों को चुनना, यह विद्वता का, अपूर्व उदाहरण है।, (5) सामान्य पहाड़ के उचित खंड को स्तंभ, सीढ़ी,, चूल्हा इत्यादि कुशलता से चुनकर प्रयोग में लाना तथा सबसे, महत्वपूर्ण कारीगरों/शिल्पकारों को सम्मान देना ये प्रथा थी।, (6) कारीगर द्वारा उपकरणों को तेज धार करने उसे, गोमूत्र में कुछ काल तक रखना फिर उस पदार्थ को हींग तेल, में अच्छी तरह से मिलाने के बाद उसे चमड़े से घिसकर, धारदार बनाना भी कला थी।, चित्र 1:3. यह एक ही रंग की शिलाओं से बना है, (7) कुछ विशिष्ट प्रकार के छिलकों (bark) को, एकत्रित कर उससे पत्थरों को तोड़ना, ये छिलके महेन्द्र पर्वत के एक पेड़ से लेते हैं यह अमूल्य जानकारी, वैदिक काल में थी।, (৪) कुछ पदार्थों को हाथी के पैर से दबवाना, जिससे वास्तु के विशेष स्थानों को दृढ़ कर सकते हैं ज्ञात, था। उन्हें कछुए की पीठ का भाग लगाकर मजबूती देना भी ज्ञात था। कछुए की पीठ कड़ी होती है । इसी कारण, उसका उपयोग ढाल बनाने में किया जाता था।, (9) किलों को अभेद्यं बनाने के लिए गहरे और ज्यादा गहरी व चौड़ी नहरों से घेरना वे जानते थे।, उपरोक्त नियमों को यथार्थत: बनाने के बहुतांशी मंत्र कौटिल्य ने दिये थे।