Page 1 :
परिचय, , गृह विज्ञान विषय परिचय, , (मावा0०1प८ांणा 10 पठार 32ंशा००), , , , , , “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” यह कोई लोकोक्ति या, शत-प्रतिशत सत्य है। नारियों की जहाँ पूजा की जाती है, जहाँ उन्हें आदर... हीं अि, है, वहीं देवता निवास करते हैं । ' श्री लक्ष्मी * वहीं विराजती हैं। अर्थात् स्त्रियाँ के, राष्ट्र के निर्माण में सहायक सिद्ध होती हैं। भारत के सर्वांगीण विकास में सहन परिवार भ, भूमिका होती है। यदि महिलाओं को ही अशिक्षित छोड़ दिया जाए, उन्हें संसकारि, कौ कह, जाए तो स्वस्थ एवं समृद्ध घर, परिवार, समाज तथा राष्ट्र की कल्पना कर पाना भी नहीं किया, स्वस्थ समाज तथा सम्पन राष्ट्र के लिये स्त्रियों को शिक्षित करना आवश्यक हो नही, है। स्त्रियाँ घर की आत्मा हैं, प्राण हैं, हृदय है, जिसके बिना घर 'घर' नहीं अपितु ईंट हर भी, लोहा, सीमेन्ट आदि का बना हुआ निर्जीव “मकान' (प्॒०05८) होता है, जिसमें न तो पर,, है न ममता, न त्याग होता है न सौहार्द्र, न प्रेम होता है न सहयोग, न करुणा होती है, , स्नेह । बस 'निर्जीव ' पदार्थों का बना हुआ जड़ ' मकान ' होता है।कहा भी गया है - कम, 180ण109 14105 901 'त्०्रा९! 50एं॥४ए 'पत्य-57, अर्थात् मकान का निर्माण हाथो, होता है परन्तु घर का निर्माण 'हदय ( दिल )' से होता है। घर का निर्माण ' गृहिणी' करत मे, वह अपने हाथों से इसे सजाती-सँवारती है । परिवार के प्रत्येक सदस्य में आशा, उत्साह, उमंग हे, संचार करती है। प्रेम, दया, करुणा, सौहार्द्र, सहयोग, त्याग, स्नेह आदि मानवीय गुणों हो, विकास ' परिवार ' (७1119) में ही होता है और माता ही उन पर विशेष ध्यान देती है। जरा उन ग, पर एक दृष्टि डालिए जहाँ महिलायें किन्हीं-न-किन्हीं कारणों से घर छोड़कर चली गई हैं अथवा, दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई है। वह घर 'घर' कहलाने लायक नहीं रहता। वह घर 'बेजान', (18६५5) दिखता है । चीजें यत्र-तत्र बिखरी पड़ी रहती हैं। बालक मनमर्जी से कार्य कर रहे होते, हैं। कोई टी.वी. देख रहा होता है तो कोई उछल-कूद मचा रहा होता है। रसोईघर में खाने की, सामग्री खुली पड़ी रहती हैं। यदि घर में एक ही बच्चा है तो स्थिति बहुत ही नाजुक एवं गंभीर हो, जाती है। उसे नौकरानियों के भरोसे या “ पालनागृह' में छोड़ना पड़ता है। परिणामत: उनका., सर्वांगीण विकास सही ढंग से नहीं हो पाता है । इसीलिए कहा जाता है 'बिन घरनी घर भूत का, , डेरा, जहाँ इन्सान नहीं हैवान करे बसेरा, कहने का अर्थ है जिस घर में घरनी नहीं रहती है, उस घर का हाल बड़ा ही बेहाल रहा, है। जहाँ पति-पत्नी दोनों ही नौकरी करने घर से दूर जाते हैं उनके घर की स्थिति को देखकर
Page 4 :
जे, , करवाना ताकि वह शीतद्रता से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सके। इससे परिवार की, सुदृढ़ होती है तथा सुख, शांति एवं संतोष कौ अनुभूति होती है। सारांश में गृह आधिक श्य, एक लड़की को सम्पूर्णता प्रदान करती है। इस शिक्षा को प्राप्त करके एक विज्ञान कौ, को रचनात्मक कार्यों में लगाती है, जिससे उसे धन के साथ ही आत्म-संतषटि अपनी शूर, है। परिणामस्वरूप उसमें आत्म विश्वास जागृत होता है और वह स्वयं पे गिर फिक्, करती है, जिसके कारण उसमें सौम्यता, विनयशीलता, सरलता, जैसे अगुप, मानवीय गुणों का विकास होता है। सेकारातक, संक्षेप में “गृह विज्ञान विषय नारी के सर्वागीण विकास में सर्वाधिक, लड़की चाहे डॉक्टर हो या इंजीनियर, वैज्ञानिक हो या गणितज्ञ, पायलट हो या पल... ।, इतिहासकार हो या समाजशास्त्री, नर्तकी हो या संगीतज्ञ उसे तो गृह विज्ञान की प्रारंभिक पका,, होनी ही चाहिये । पारिवारिक जीवन की स्थितियों में सुधार लाने के लिए घर को, लिए, परिवार के सदस्यों को संतुष्टि प्रदान करने के लिए तथा रहन-सहन के, , एवं, ऊँचा उठाने के लिए गृह विज्ञान विषय सर्वाधिक उपयोगी तथा महत्त्वपूर्ण है। जीवन सर के, , गृह विज्ञान विषय के महत्त्व को निम्नांकित बिन्दुओं में समेटा जा सकता है।, (1) कार्य सरलीकरण (१४७1६ आंग्रएश1८४0ा) द्वारा घरेलू कार्यों को कम समय, शक्ति एवं धन व्यय करके शीघ्रता से निपटाना तथा बचे हुए समय में अर्थोपार्जन कला।, , (2) घरेलू कार्यों को भी वैज्ञानिक ढंग से सम्पादित करना तथा परिवार के सदस्यों के बीच, उत्पन्न मनमुटाव को दूर करना।, , (3) कम-से-कम धन व्यय करके परिवार के सभी सदस्यों को स्वादिष्ट , पौष्टिक, संतुलित, एवं तृप्तिदयक भोजन उपलब्ध करवाना।, , (4) बीमार सदस्यों की समुचित देखभाल के साथ ही उपचारात्मक पोषण ॥, 1एणाा।णा) उपलब्ध करवाना।, , (5) व्यर्थ एवं अनुपयोगी वस्तुओं से उपयोगी तथा कलात्मक वस्तुओं का निर्माण कला, तथा उससे धन अर्जित करना।, , (6) शादी, विवाह, जन्म दिन, तीज-त्यौहार, आदि अवसरों पर घर की विशेष प्रकार प, सजावट करना।, , (7) मौसम के अनुकूल परिवार के सदस्यों को परिधान उपलब्ध करवाना।, (8) गृहिणियों में श्रम के प्रति सम्मान की भावना विकसित करना ताकि वह हर बढ़े-हो?, , कार्यों को कल में शर्मिन्दगी महसूस नहीं करे । हर प्रकार के कार्य को करके वह आत्मा, , आत्म-संतुष्टि का अनुभव करे।, , नौकरी को ऊँचा, (9) नौकरी या व्यवसाय करके अर्थोपार्जन करना तथा रहन-सहन के स्तर, उठाना।, , कह इस्तेमाल कली, (10) समय-शक्ति बचत के उपकरणों की भली-भाँति रखरखाव एवं इस्ते, खराब होने पर उनकी मरम्मत करना।