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14.54 /, भूगोल, में दो या दो से अधिक फसलों को एक साथ. इस प्रकार मिलकर को विश्व में हरित क्रांति का जन्मदाता माना जाता है। तैवान से, बोया जाता है कि जिन पोषक तत्वों को एक फसल कम करती इसी प्रकार की वृद्धि हुई। तीसरी दुनिया के देश विशेषतः, है, पुसरी फसल उन्हें पूरा कर देती है इस प्रणाली में विभिन्न वर्धनकाल चीन, पाकिस्तान, आदि हरित क्रान्ति लाने तथा उससे लाभ रकाभ, खाली फसले एक साथ बोई जाती हैं इससे इनके काटने का समय, अलग-अलग हो जाता है। फसलों के इस तालमेल में शीघ्र पककर हुई है।, तैयार होने वाली फसलें पहले काट ली जाती हैं और देर से पककर, तैयार होने वाली फसलों को देर से काटा जाता है फसलों के साहचर्य गॉड (William Gaud) ने अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ की वैठक, से किसान को आर्थिक हानि की सम्भावना कम होती है क्योंकि में अपने संभाषण 'The Green Revolution: Accomplish-, बाजार में यदि एक फसल का भाव गिर जाता है तो उसकी कमी, दूसरी फसल से पूरी हो जाती है इसके अतिरिक्त, यदि किसी कारणवश, किसी वर्ष किसी एक फसल की उपज कम रह जाए, तो दूसरी में है और कृषि के विकास की गति बड़ी धीमी है। इन देशों में, फसल किसान की क्षतिपूर्ति कर देती है। उदाहरणत: जब गेहूँ की कृषि उत्पादन बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं और कई देशों में, फसल अच्छी नहीं होती तो किसान को अन्य अनाजों तथा सरसों क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं।, से लाभ हो जाता है। जब गेहूँ और जौ एक ही खेत में बोए जाते, हैं तो इस मिश्रण को गोजई (Gojai ) कहते हैं जब गेहूँ और चना, साथ-साथ बोए जाते हैं तो इस मिश्रण को गोचनी ( Gochani), कहते हैं। जौ और चने के मिश्रण को बेझड़ (Beihar) कहते हैं। रूपातरण को बताने के संदर्भ में करते हैं। इनके अनुसार इन देशों, का प्रयत्न कर रहे हैं और इन्हें काफी हद तक सफलता भी प्राप्त, हरित क्रांति नामक पद का प्रयोग सर्वप्रथम 1968 में विलियम, ment and Apprehensions' के अन्तर्गत किया। उन्होंने बताया, कि तीसरी दुनिया के विकासशील देशों में कृषि पिछड़ी अवस्था, आजकल हरित क्रांति नामक पद को दो प्रकार से प्रयोग, किया जाता है। कुछ विद्वान् इसे विकासशील देशों में कृषि के विस्तृत, में खाद्यान्न की कमी और कुपोषण व अल्पपोषण की समस्या को, काफी हद तक हल किया गया है और कृषि के विकास में आने, वाली रुकावटों को दूर किया गया है। कुछ अन्य विद्वान् इस पद, का प्रयोग कुछ विशिष्ट पौधों की किस्मों के सुधार के संदर्भ में, करते हैं। वे खाद्यान्रों, विशेषत: गेहूँ व चावल की अधिक उपज देने, वाली नई किस्मों के फलस्वरूप इनके उत्पादन में हुई क्रांतिकारी, शस्य मौसम (Crop Seasons), भारतीय कृषि-वर्ष में तीन शस्य मौसम पाए जाते हैं जिन्हें खरीफ,, रबी तथा जायद कहते हैं। खरीफ का मौसम मानसून के आरम्भ, होते ही शुरू हो जाता है। इस मौसम की मुख्य फसलें -चावल, मक्का,, ज्वार, बाजरा, कपास, तिल, मूँगफली तथा कुछ दालें, जैसे-मूँग, वृद्धि के संदर्भ में हरित क्रांति का प्रयोग करते हैं। प्रो. दंतेवाला, उर्द आदि हैं। इन फसलों को अधिक तापमान तथा अपेक्षाकृत अधिक, आई्द्रता की आवश्यकता होती है। खरीफ का मौसम समाप्त होने हैं-एक तो नई तकनीक और दूसरा अधिक उपज देने वाले बोज।, के पश्चात् रबी का मौसम शुरू होता है और यह शीत ऋतु के, अनुरूप रहता है। इस मौसम में वे फसलें उगाई जाती हैं जो कम, तापमान तथा अपेक्षाकृत कम वर्षा में पनप सकती हैं। इस मौसम से हो रही हैं।, की प्रमुख फसलें -गेहूँ, जौ, ज्वार, चना तथा तिलहन, जैसे-अलसी,, तोरिया, सरसों आदि हैं। जायद ग्रीष्मकालीन शस्य मौसम है। इसकी, प्रमुख फसलें चावल, मक्का, मूँगफली, सब्जियाँ तथा फल आदि हैं।, अब दालों के भी कुछ ऐसे बीजों का विकास किया गया है जो, ग्रीष्मकाल में सफलतापूर्वक बोए जा सकते हैं।, (Prof. Dantewala) के अनुसार हरित क्रांति के दो मुख्य तत्व, अत: हरित क्रांति का अर्थ कृषि उत्पादन में हुई उस तीव्र वृद्धि से, है जो नई तकनीक तथा अधिक उपज देने वाले बीजों के प्रयोग, भारत में हरित क्रांति, (Green Revolution in India), भारत में सन् 1966 से खरीफ मौसम में नई कृषि नीति अपनाई, गई जिसे 'अधिक उपज देने वाली किस्मों का कार्यक्रम' (High-, Yielding Varieties Programme-HYVP), हरित क्रान्ति (Green Revolution), हरित क्रांति कृषि उत्पादन में आश्चर्यजनक तथा अभूतपूर्व प्रगति की गया। सन् 1967-68 में खाद्यान्रों के उत्पादन में 1966-67 की तुलना, योतक है। सन् 1960 के बाद का समय कृषि उत्पादन में वृद्धि की में लगभग 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई। यह वृद्धि इससे पहले के, इृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसी समय प्रो. नार्मन अरनैस्ट बोरलाग योजनाकाल के 16 वर्षो में होने वाले परिवर्तनों की अपेक्षा कहा, (Prof. Noman Ermcst Borlaug.) तथा उनके सहयोगियों ने अधिक तथा तीव्र थी। अधिक वृद्धि का होना वास्तव में एक क्राति, मैक्सिको (Mexico) में गेहूँ की अधिक उपज देने वाली फसलों के समान ही था अतः इस वृद्धि को हरित क्रांति कहा गया ज, का विकास किया। इसके फलस्वरूप सन् 1965 में मैक्सिको में जी. हारर के शब्दों में, 'हरित क्रांति शब्द 1968 में होने वाल े, गेहू की प्रति हेक्टेयर उपज 5.000 किलोग्राम से बढ़कर 6 .000, किलोग्राम हो गई। इस प्रकार प्रो. नार्मन अरनैस्ट बोरलाग महोदय खाद्यान्रों के उत्पादन में हुआ था और अब भी जारा हा, आश्चर्यजनक परिवर्तन के लिए प्रयोग किया जाता है जो भारत के, Scanned by Scanner Go
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जाता था। परन्तु अब किसानों को सहकारी समितियों, बैंकों तथा अन्य जहाँ पर सभी गाँवों को बिजली उपलब्ध कराई गई। पंजाब, केरल,, साधनों से कम ब्याज पर ऋण मिलने लगा है। 1967-68 में सहकारी आन्ध्र प्रदेश, कनार्टक गुजरात, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु,, "अनाज क्रान्ति' लाना हो गया। (From 1967onwards,the Green, खाद्यान्नों में भी गेहूँ का उत्पादन सबसे अधिक बढ़ा।, गांवों को बिजली प्राप्त हो चुकी थी। 2003-04 में भारत के कुल Revolution aimed at bringing about a Grain Revolution)।, 14.56, भूगोल, समितियों ने 400 करोड़ रुपये के ऋण प्रदान किए जो बढ़कर जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र तथा नागालैंड में 97 प्रतिशत से 100 परति, 1968-69 में 695 करोड़ रुपये, 1985-86 में 3.500 करोड़ रुपये गाँवों को बिजली प्राप्त हो चुकी है। अन्य राज्यों में भी, तथा 1990-91 में 4.000 करोड़ रुपये के हो गए। सन् 1969 में विद्युतीकरण का कार्य बड़ी तेजी से किया जा रहा है।, व्यापारिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया जिससे किसानों को, ऋण की सुविधा और बढ़ गई। 1969-70 में इन बैंकोंद्वारा किसानों Facilities ) - पहले किसानों को अपनी उपज अनियंत्रित मणिद, को 183 करोड़ रुपये के ऋण दिए गए। सन् 1990 में छोटे किसानों में बेचनी पडती थी। इन अनियंत्रित मण्डियों में किसानों को उनकी, के दस हजार रुपये से कम ऋणों को माफ करने की घोषणा की उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता था जिससे उनकी आय बहन, गई। कम ब्याज पर आवश्यकतानुसार ऋण मिलने पर किसान उचित कम होती थी। परन्तु स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् इस दिशा में काफी, मात्रा में उन्नत बीज, कृषि-यंत्र, उर्वरक आदि खरीद सकता है और सुधार हुआ और लगभग 5,600 नियंत्रित मण्डियाँ स्थापित की गई, सिंचाई के साधनों का उचित उपयोग कर सकता है।, 11. बिक्री संबंधी सुविधाएँ (Marketing, हैं। किसानों को अपनी कृषि उपजों को रखने के लिए गोदाम तथा, 8. मृदा परीक्षण (Soil Testing)- हरित क्रान्ति के विस्तार शात भण्डारण को सुविधा भी उपलब्ध है। इससे किसानों की आय, हेतु मृदा परीक्षण अति आवश्यक है। इस संदर्भ में सरकार ने विस्तत में पर्याप्त वृद्धि हुई और उन्होंने कृषि के विकास के लिए काफी, कार्यक्रम बनाया जिसके अन्तर्गत विभिन्न क्षेत्रों की मुदा का सरकारी धन व्यय किया। इससे हरित क्रान्ति को काफी बढावा मिला।, प्रयोगशालाओं में परीक्षण किया जाता है। इन परीक्षणों से यह पता, लगाया जाता है कि विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में किन तत्वों की उत्पादन अधिक बढ़ जाने से बाजार में फसलों की कीमतों के कम, कमी है और उसे किन उर्वरकों के प्रयोग से दूर किया जा सकता हो जाने का भय रहता था जिससे कृषि उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव, है। इसके साथ ही यह भी जाना जाता है कि कौन-सी मिट्टी में पड़ता था। इस समस्या के समाधान के लिए सरकार ने 'कृषि मूल्य, कौन-सी फसल अधिक होगी और उसमें किस प्रकार के बीज बोए आयोग' (Agricultural Price Commission) नियुक्त किया।, जाएँ।, 12. फसलों की कीमतों का निर्धारण करना-पहले कृषि, यह आयोग समय-समय पर विभिन्न फसलों का न्यूनतम मूल्य निर्धारित, 9. भू-संरक्षण (Soil Conservation )- हरित क्रान्ति को करता है। जब फसलों का वास्तविक मूल्य पूर्व-निश्चित मूल्यों से, सफल बनाने के लिए भू-संरक्षण का कार्यक्रम भी लागू किया गया, है। भूमि कटाव को रोकने तथा भूमि की उर्वरता को बनाए रखने लता है। इससे किसान आर्थिक शोषण से बच जाते हैं और उन्हें, के लिए विभिन्न उपाय किए गए हैं। मरुस्थलों के विस्तार को रोकने कृषि उपज को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। सरकार द्वारा, तथा शुष्क कृषि प्रणाली के विस्तार के लिए भी कई योजनाएँ बनाई, गई हैं। देश में लगभग पाँच करोड़ एकड बंजर भूमि को कषि योग्य भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India-FCI), बनाने के लिए प्रयत्न किए जा रहे हैं। फसलों के हेर-फेर (Crop, Rotation) को भी प्रोत्साहन मिल रहा, नीचे गिरने लगता है तो सरकार स्वयं न्यूनतम मूल्य पर फसले खरीद, है।, फसलों की खरीद अब सामान्य सी बात हो गई है। इस दिशा में, महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।, है।, हरित क्रान्ति के प्रभाव, 10. a a ae ( Rural Electrification )- (Effects of Green Revolution), कृषि उपकरणों को चलाने के लिए विद्युत सबसे सस्ता एवं सुगम अन्य विकासशील देशों की भाँति भारत में भी हरित क्रां्ति ने, शक्ति साधन है। अत: कृषि के विकास के लिए ग्रामीण विद्युतकिरण अर्थव्यवस्था को काफी हद तक प्रभावित किया है। इसके महत्वपूत्ण, अति आवश्यक है। इसके लिए ग्रामीण विद्युतीकरण निगम (Ru-, ral Electrification Corporation) की स्थापना की गई है।, स्वतंत्रता प्राप्ति के समय हमारे देश के केवल 0.5 प्रतिशत गाँवों, को ही बिजली उपलब्ध थी। सन् 1965-66 में लगभग 8 प्रतिशत होने के पश्चात् कृषि उपजों, विशेषत:, खाद्यान्रों के उत्पादन में, गाँवों को बिजली प्राप्त हो गई। इसके पश्चात् ग्रामीण विद्युतीकरण अभूतपूर्व वृद्धि हुई। पाँच फसलों-गेहू, चावल, ज्वार, बाजरा तथा, में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। सन् 1970-71 में 1 06,774 (18.5 प्रतिशत) मक्का-की उपज बढ़ाने के लिए अधिक उपज देने वाले बाजा का, गावा, 1980-81 में 2,72,625 (47.3 प्रतिशत) गाँवों, 1984-85 प्रयोग किया गया। अत: 1967 के बाद हरित क्रान्ति का मुख्य उद्रण, में 3 68840 (64 प्रतिशत) गाँवों तथा 1990-91 में 86 प्रतिशत, प्रभाव निम्नलिखित हैं।, :, 1. कृषि उत्पादन में वृद्धि- 1967-68 में हरित क्रांन्ति शुरू, 587258 गाँवों में से 495031 गाँवों (अर्थात् 84.3 प्रतिशत) गाँवों, का विद्युतीकरण हो चुका था। हरियाणा देश का पहला राज्य था, दो, 1960-61 से 1990-91 तक खाद्यान्रों के उत्पादन में लगभग, Scanned by Scanner Go
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2. G. R. Saini, "Green Revolution and the Distribution of Farm Incomes." Economic and Political Weekly, 27 March. 1976, तथा 3.1 प्रतिशत प्रतिवर्ष दालों के उत्पादन में वृद्धि हुई जबकि इसी, से 1981-84 के बीच महाराष्ट्र तथा गुजरात में क्रमश: 9.7 प्रतिशत ।, कम करने में सहायता मिली। इस क्षेत्र में गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान ।, के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई जिससे क्षेत्रीय विषमताएं कुछ ।, पिछले कुछ वर्षों में देश के मध्यवर्ती शुष्क क्षेत्र में दालों, 14.58 /, भूगोल, परिणाम नहीं मिल पाए और इससे आर्थिक, सामाजिक तथा क्षेत्रीय, विषमताएं बढ़ी हैं। इनका विवरण निम्न प्रकार है:, 1. सीमित फसलें (Limited Crops)-हरित क्रांति का, में, के उत्पादन में ही वृद्धि हुई और खाद्यान्नों में भी गेंहूँ की उपज ही, विशेष रूप से बढ़ी। ज्वार, बाजरा तथा मक्का की उपज में भी, वृद्धि हुई। चावल भारत की सबसे अधिक महत्वपूर्ण खाद्य फसल, है परन्तु इसकी उपज पर हरित क्रांन्ति का कोई विशेष प्रभाव नहीं वर्ष का कमा हुई। क्योंकि हमारा मुख्य ध्यान गेहं के का पाया, पड़ा। पटसन, कपास, चाय, गन्ना जैसी व्यापारिक फसलें हरित क्रांति, के लाभ से लगभग पूर्णत: वंचित हैं। जिन क्षेत्रों में पहले दालें बोई, जाती थीं, वहाँ हरित क्रान्ति के अन्तर्गत गेहूँ बोया जाने लगा जिससे, दालों के उत्पादन में कमी आ गई। सन् 1985-86 के बाद दालों सम्मलित है, हरित क्रांति से लाभ नहीं उठा सका। इसी प्रकार मे, की उपज में कुछ वृद्धि होने लगी। सन् 2001 से 2006 तक दालों दक्षिणी क्षेत्र (तमिलनाडु तथा आन्ध्र प्रदेश को छोड़कर) भी इिा, के उत्पादन में काफी परिवर्तनशीलता पाई गई।, अवधि में पंजाब तथा हरियाणा में क्रमश: 7.3% तथा 5.6% मरि, ओर केन्द्रित रहा, इसलिए इस महत्वपूर्ण उपलब्धि की प्राय: अनदेशी, की जाती है।, पूर्वी क्षेत्र, जिसमें असम, बिहार, पश्चिम, बंगाल तथा उडीमा., क्रांति के प्रभाव से वचित ही रहा और क्षेतरीय विषमताओं को प्रोत्पाहन, मिला।, 2. सीमित प्रदेश (Limited Areas)- भारत में हरित क्रान्ति, का प्रभाव बहुत ही सीमित क्षेत्र पर पड़ा। देश की लगभग 40%, भूमि ही हरित क्रांति से प्रभावित हुई और शेष 60% भूमि इसके, लाभ से वंचित रह गई। पंजाब तथा हरियाणा में हरित क्रांति का, प्रभाव सबसे अधिक हुआ। महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु पर भी इसका, प्रभाव पड़ा। परन्तु उत्तर प्रदेश के बहुत से क्षेत्रों, मध्य प्रदेश, उडीसा सक क्योंकि उनके पास कृषि उपकरण, उन्नत बीज, उर्वरक तथा, तथा शुष्क प्रदेशों में हरित क्रांति अपना कोई विशेष प्रभाव नहीं दिखा सिचाई का प्रयोग करने के लिए पर्याप्त आर्थिक साधन थे। इसके, पाई।, 4. व्यक्तिगत विषमताओं में वृद्धि (Increase in In-, ter-Personal Inequalities)-हरित क्रांति से क्षेत्रीय असमानताओं, के साथ-साथ व्यक्तिगत विषमताएं भी बहुत बढ़ी हैं। इसका कारण, यह है कि हरित क्रांति का अधिकतम लाभ बड़े किसान ही उठा, विपरीत, निर्धन तथा छोटे किसानों के पास इन वस्तुओं को खरीदने, के लिए पर्याप्त धन नहीं होता और वे अपना उत्पादन अधिक नहीं, बढ़ा सकते। इस प्रकार अमीर किसान अधिक अमीर तथा गरीब, 3. क्षेत्रीय असमानता में वृद्धि (Increase in Regional, Inequalities)-हरित क्रांति का प्रभाव सीमित क्षेत्र पर ही पड़ने किसान अधिक गरीब हो गए।, से क्षेत्रीय असमानता बढ़ गई। केवल उन्हीं क्षेत्रों में कृषि का उत्पान, बढ़ा जहाँ कृषि पहले से ही अपेक्षाकृत उन्नत अवस्था में थी। पिछड़े, हुए क्षेत्रों में स्थिति अब भी लगभग पहले जैसी ही है क्योंकि हरित जिनके पास 10-15 हेक्टेयर भूमि होती है। भारत में लगभग 810, क्रांति मुख्यत: 'गेहूँ क्रांति' तक ही सीमित रही इसलिए इसका प्रभाव, 185.5 लाख हेक्टेयर भूमि पर ही सर्वाधिक पड़ा जहाँ 1983-84, तक अधिक उपज देने वाले बीजों का प्रयोग किया गया| ये क्षेत्र, पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग तक ही सीमित, थे। सन् 1964-65 में पंजाब तथा हरियाणा मिलकर भारत का, 7.5% खाद्यान्न पैदा करते थे जो 1983-84 में बढ़कर 14.3% हो, गया। 1983-84 में इन दो राज्यों ने भारत का 30.8% गेहूँ पैदा किया।, पंजाब में प्रति हेक्टेयर गेहूँ की उपज 30.2 किविटल थी जबकि देश पंजाब में छोटे तथा मध्यम वर्ग के किसानों पर हरित क्राति के प्रभा, के अन्य भागों में यह 13.8 क्ंविटल प्रति हेक्टेयर ही थी। पिछले, कुछ वर्षों में चावल की उपज में भी वृद्धि हुई, परन्तु यह फसल, हरित क्रांति का लाभ मुख्यत: वही किसान उठा पाते हैं।, लाख खेत हैं जिनमें से केवल 15% खेत ही 10 हेक्टेयर से अधिक, बड़े हैं। फ्रेन्सिन आर० फ्रेन्कल ने लुधियाना (पंजाब), पश्चिमी गोंदावरी, (आन्ध्र प्रदेश), तंजावुर (तमिलनाडु), पालघाट (केरल), तथा बदवान, (पश्चिम बंगाल) के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला कि होरित, क्रांति का सबसे अधिक लाभ 10-12 हेक्टेयर भूमि वाले किसाना, ने उठाया। चार हेक्टेयर से कम भूमि वाले किसानों की आर्थिक, स्थिति बिगड़ गई। इसी प्रकार का निष्कर्ष जी०आर०सैनी ने फिरोजपुर, (पंजाब) तथा मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) के अध्ययन से निकाला, का अध्ययन करते हुए जी०एस० भल्ला तथा जी०के० चडक, भा मुख्यत: पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग में ने निष्कर्ष निकाला कि "हरित क्रांति से किसानों को आमतौर पर, ही अधिक बढ़ी। सन् 1970-71 में ये क्षेत्र देश का कुल 5.9%, चावल पैदा करते थे और 2003-04 में यहाँ भारत का 22.5% चावल, पैदा होने लगा।, लाभ पहुँचा है। परन्तु 2.5 एकड से कम भूमि को जतन वा, एक-तिहाई छोटे किसान गरीबी की रेखा से नीचे रह रहे हैं। अन्य, 24.0% किसान 2.5 से 5.0 एकड भूमि को जोतते हैं और ये नी, 1., 1.Francine R. Frankel, India's Green Revolution-Economic Gains and Political Costs (Bombay, 1971). P., PPA-17 to 22., Scanned by Scanner Go