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1. व्यक्ति की आयु- व्यक्ति की आयु सन्तुलित आहार के निर्धाकर कारकों में, सर्वप्रमुख कारक है। किसी भी व्यक्ति के लिए सन्तुलित आहार के निर्धारण के लिए सर्वप्रथम, व्यक्ति की आयु को ध्यान में रखा जाता है। वास्तव में जो आहार एक बच्चे के लिए सन्तुलित, आहार है, वह एक प्रौढ़ व्यक्ति के लिए न तो सन्तुलित आहार हो सकता है और न ही पर्याप्त, आहार। बाल्यावस्था में शरीर की वृद्धि की दर अधिक होती है। इस कारण बच्चों के आहार में, प्रोटीन्, वसा तथा का्बोंडाइड्रेट की मात्रा अधिक होनी चाहिए । प्रौढ़ावस्था तथा वृद्धावस्था में, व्यक्ति के आहार में वृद्धिकारक तत्त्वों के समावेश की आवश्यकता कम होती।, 2. व्यक्ति के शरीर का आकार-किसी व्यक्ति के लिए सन्तुलित आहार के निर्धारण, के लिए उसके शरीर के आकार को भी ध्यान में रखना आवश्यक होता है। सामान्य से लम्बे, कद वाले तथा सामान्य से मोटे शरीर वाले व्यक्ति को अधिक मात्रा में आहार की आवश्यकता, होती है। सामान्य से छोटे कद वाले तथा दुबले-पतले शरीर वाले व्यक्ति को कम मात्रा में, पोषक तत्त्वों की आवश्यकता होती है। सामान्य से कम वजन वाले व्यक्ति के लिए सन्तुलित, आहार का निर्धारण करते समय, आहार में शारीरिक वृद्धिकारक पोषक तत्त्वों की अधिक, मात्रा का समावेश किया जाना चाहिए।, 3. लिंग-भेद सम्बन्धी कारक-सन्तुलित आहार के निर्धारक कारकों से व्यक्ति का, लिंग एक महत्त्वपूर्ण कारक है। स्त्री एवं पुरुषं के लिए निर्धारित सन्तुलित आहार की मात्रा, भिन्न-भिन्न होती है। इस अन्तर के लिए दो कारक जिम्मेदार होते है। प्रथम है, शारीरिक, आकार का अन्तर। सामान्य रूप से स्तरी एवं पुरुष के शरीर के वजन तथा लम्बाई में अन्तर, पाया जाता है। इस अन्तर के कारण स्त्री तथा पुरुष को भिन्न-भिन्न मात्रा में आहार की, आवश्यकता होती है। पुरुष को स्त्री की तुलना में अधिक मात्रा में आहार की आवश्यकता होती, है। स्त्री-पुरुष में द्वितीय अन्तर शारीरिक श्रम एवं उनकी गतिविधियों से सम्बन्धित है। सामान्य, रूप से पुरूषों को अधिक श्रमसाध्य कार्य करने पड़ते हैं तथा उनके दैनिक जीवन में अधिक, सक्रियता होती है।, 4. शारीरिक श्रम सम्बन्धी कारक-सन्तुलित आहार की मात्रा एवं पोषक त्त्वों के, अनुपात को निर्धारित करते समय त्रयक्ति द्वारा सामान्य रूप से किए जाने वाले श्रम अथवा, व्यवसाय को भी ध्यान में रखना आवश्यक होता है। सामान्य से अधिक श्रम करने वाले, व्यक्ति के आहार में ऊर्जादायक तत्त्वों की मात्रा सामान्य से अधिक होनी चाहिए। सामान्य रूप, से कार्बोहाइड्रेट को ही ऊर्जा प्राप्ति के लिए उत्तम पोषक तत्व माना जाता है।, दूध एक पशु-प्रदत्त भोज्य पदार्थ है। सभी पदार्थों में दूध ही एक ऐसा त्त्व है जिसमें, शरीर के लिये आवश्यक सभी तत्त्व विद्यमान रहते हैं, इसी कारण इसे सर्वोत्तम सम्पूर्ण पदार्थ, कहते हैं। अर्थात् (Milk is a perfect food in the world) दूध पर बहुत परीक्षण किये, गये, उन सभी से यह सिद्ध हो चुका है कि दूध में पाई जाने वाली प्रोटीन शरीर के तीव्र, विकास के लिये आवश्यक है।, दूध के पोषक तत्त्व, शिशुओं के लिए माँ का दूध ही उपयोगी होता है। विभिन्न जन्तुओं गाय, भैंस, बकरी,, भेड ऊँट आदि से भी दूध प्राप्त होता है। सभी पशुओं का दूध समान होता है, परन्तु दूध में
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पोषक तत्त्वों की मात्रा में भिन्नता पायी जाती है पशुओं की प्रजाति एवं भोजन, चारा, के, अनुसार दूध के संगठन में अन्तर आ जाता है। सामान्यतः मनुष्य अपने भोजन में गाय, भैंस व, बकरी का दूध ही प्रयोग करता है। बकरी का दूध भी अति उत्तम माना जाता है। लोग औषधि, के रूप में इसे प्रयोग में लाते हैं। निम्नलिखित तालिका में माँ, गाय व भैंस के दूध में विभिन्न, पोषक तत्त्वों का प्रतिशत दिया गया है-, .., दूध में पोषक तत्त्वों की मात्रा, भोजन के पोषक, माता की दूध, गाय का दूध, भैंस का दूध, तत्त्व, प्रोटीन, कार्बोज, 22%, 0.4%, 4.4%, 6.5%, 4.5%, 5.8%, वसा, 0.4%, 3.8%, 75%, 0.8%, 0.7%, बी, लवण, 03%, विटामिन्स, ए, ए, 87%, 87%, 81%, जल, माँ, गाय व भैंस के दूध के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि माँ. के दूध में प्रोटीन, वसा,, कार्बोज, खनिज लवण पर्याप्त मात्रा में होते है। माँ के दूध में वसा की मात्रा भी बहुत कम, होती है। इसीलिये यह हल्का व सुपाच्य होता है। गाय के दूध की तुलना में भेंस, प्रोटीन, वसा व कार्बोज अधिक मात्रा में पाया जाता है। अतः यह परिश्रम करने वाले व्यक्तियों, के लिये अधिक उपयोगी है। शिशुओं के लिये सबसे उपयोगी माँ का दूध ही होता है।, 1. प्रोटीन- दूध में पाये जाने वाली प्रोटीन को कैसीन कहते हैं । प्रोटीन त्त्व की दृष्टि, से दूध सर्वोत्तम होता है। प्रति 100 ग्राम दूध में 3.5 ग्राम प्रोटीन पायी जाती है। दूध की प्रोटीन, सूपाच्य एवं शीघ्र ही रुधिर में अवशोषण योग्य होती है। शिशु व रोगी व्यक्ति सुगमता से दुग्घ, प्रोटीन को पचा सकते हैं। दुग्ध प्रोटीन की यह विशेषता है कि वह अनाजों की प्रोटीन से, संयोग करके प्रोटीन के जैविकीय मूल्य में वृद्धि करती है। दूध की प्रोटीन में सभी अमीनो, अम्ल पाये जाते हैं।, 2. दूध ऊर्जा उत्पादक- दूध में 'लेक्टरोज' नामक कार्बोज पाया जाता है, जो ऊर्जा, (कैलोरी) की पूर्ति करता है। माँ के दूध में सबसे अधिक लैक्टोज पाया जाता है। गाय के एक, लीटर दूध से 600 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। शाकाहारी व्यक्ति को एक प्याला दूध पूफै, अण्डा के बराबर कैलोरी शक्ति प्रदान करता है। छोटे बच्चे को एक लीटर दूध दैनिक कैलोरी, की पूर्ति करता है। पाँच वर्ष के बालक को एक लीटर दूध आधे दिन की कैलोरी ऊर्जा की, पूर्ति कर देता है।, 3. दूध वृद्धिकारक- दूध में शरीर की वृद्धि करने वाले पोषक तत्व पाये ज़ाते है।, में टूटे-फूटे अंगों व ऊतकों की मरम्मत करने वाले पोषक तत्व पाये जाते है। इसलिये दूध, शिशुओं व बालक बालिकाओं के लिये लाभप्रद होता है।, दूध, में, दूध