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[33], , सूखी, , जन््म-शिक्षा:- उपेन्द्र नाथ अश्क जी आधुनिक, : काल के उल्लेखनीय नाटककार हैं। अश्क जी, का जन्म 14 दिसम्बर, 1910 को पंजाब में हुआ, था। शिक्षक कार्य के अत्तिरिक्त अश्क जी ने, पत्रकारिता के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान, दिया। रेडियो, नाटक और फिल्मों से भी अश्क, जी का निकट का संबंध रहा।, , डाली, , उपेन्द्र नाथ अश्क, जीवन रो रांंवंध रखती हैं।, , भाषा-शैली:- (3) अश्क जी की भाषा पर, अच्छी पकड़ रही है तभी तो वे समी पात्रों का, सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक चित्रण करने में सफल हुए।, (2) पात्रानुकूल एवं देशकाल अनुरूप सहज प्रमावी, संवाद आपकी रचनाओं की खूबी है।, , अश्क जी को 1965 में संगीत नाटक _>ठदाहरण:- गर्म होते हैं तो आग बन जाते हैं,, , अकादमी द्वारा पुरस्कृत किया गया।, , .2*चनाएँ:-- एकांकी एवं नाटक -(1) जय-पराजय,, (2) पैंतरे, (3) कैद और उड़ाके, (4) छठा बेटा,, (5) स्वर्ग की झलक, (6) अंधी गली, (7) तौलिए,, (8) सूखी डाली आदि।, , ८#ाहित्यिक विशेषत्ताएँ:, (1) अश्क जी ने अपने नाटकों के द्वारा समाज, पर तीखे व्यंग्य किये हैं।, , (2) उनकी रचनाओं में सामाजिक समस्याओं क़ा, चित्रण यथार्थवादी ढंग से हुआ है।, , (3) अश्क जी के सभी नाटक, रंगमंच पर खेले, गए और सफल भी हुए।, , (4) उपन्यास, कहानी, कविता और संस्मरंण सभी, विधाओं में अश्क जी ने लेखन कार्य किया, किन्तु वे एकांकी और नाटक के क्षेत्र में अधिक, राफल हुए |, , (5) आपकी एकांकियाँ अधिकांशतः मध्यमवर्गीय, , नर्म होते हैं तो मोम से भी कोमल दिखाई देते हैं।, (बेला, सूखी डाली से), , (3) अश्क जी की कहानियों और उपन्यासों की, भाषा भी प्रेमचन्द की तरह सीधी सरल भाषा है|, वे सर्वथा यथार्थ के करीब हैं।, , साहित्य में स्थान:- उपेन्द्रनाथ अश्क जी के, लगभग ग्यारह नाटक और चालीस से, अधिक एकांकी प्रकाशित हो चुके हैं और उनका रंगमंच, में प्रदर्शन भी हो चुका है, जो उनके सफलता का, परिचायक है। तभी तो एकांकी और नाटक साहित्य, में उनका नाम सर्वोपरि है।, , सूखी डाली, केन्द्रीय भाव:- अश्क जी की प्रस्तुत एकांकी, में दो पीढ़ियों के भावों और विचारों की टकराहट, दिखाकर पाठकों को, दर्शकों को संयुक्त परिवार, का महत्व समझाया गया है और बिखरते परिवारों, को समेटने की प्रेरणा दी गई है।
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134], सूखी, , पात्र-परिचय, बेला ( छोटी बहू )" रजवा, छोटी भाभी" पारो, (वैला की सास, इन्दु की माँ), मेंझली भाभी दादा ., बड़ी भाभी कर्मचन्द, मैंझली बहू _परेश _, बड़ी बहू भाषी, इन्दु , मल्लू, , पहला दृश्य, , (मानव प्रगति के इस युग में, जब, व्यक्तिगत स्वतंत्रता को अराजकता की हद तक, महत्व दिया जाता है और तानाशाही को “सम्य”, समाज में अत्यंत निन््दनीय माना जाता है, दादा, मूल राज अपने समस्त कूटुंब को एक यूनिट, बनाए, उस पर पूर्णरूप से अपना प्रभुत्व जमाए,, उस महान बरगद की तरह अटल खड़े हैं, जिसकी, लंबी-लंबी डालियाँ उनके आँगन में एक बड़े छाते, की तरह धरती को आच्छादित किए हुए, वर्षों से, तूफानों और आँधियों का सामना किए जा रही, हैं।), , बड़ी बहू : (इन्दु के कधों-पर अपने दोनों हाथ, रखते हुए) आखिर कुछ कहो भी,, क्या कह दिया छोटी बहू ने ?, , इन्दु : (चुप), , बड़ी बहू : क्या कह दिया उसने, जो इतनी, बिफरी हुई हो ?, , इन्दु : (क्रोध से) और क्या ईंट मारती।, , बड़ी बहू : कुछ कहो भी।, , इ्न्दु : मेरे मायके में यह होता है, मेरे, , मायके में यह नहीं होता। (हाथ, , डाली, , बड़ी बहू : े, : बैठक के बाहर मिश्रानी खड़ी रो, , बड़ी बहू :, , ड्च्कु, , बड़ी बहू :, , इन्दु, , बड़ी बहू :, , इन्दु, , हिन्दी विशिष्ट - कक्षा जया, , मटका कर) अपने और अपने मायके, के सामने तो वह किसी को कुछ, गिनती ही नहीं। हम तो उसके, लिए फूहड़, गँवार और मूर्ख हैं।, (आश्चर्य से) क््या।, , रही थी। मैंने पूछा तो मालूम हुआ, कि बहू रानी ने उसे काम से हटा, दिया है।, , (उसी आश्चर्य से) काम से हटा, , दिया। भला क्या कसूर था उसका ?, , - : कसूर यह था कि उसे काम करना, , नहीं आता।, (स्तम्भित होकर) काम करना नहीं, आता।, , : उस बेचारी ने कहा भी मैं दस पाँच, , दिन में सब कुछ सीख जाऊँगी।, भला कै दिन हुए हैं मुझे आपका, काम करते, किंतु वह रानी न मानी।, झाड़न उसके हाथ से छीन लिया, और कहा कि हट तू, मैं सब कुछ, कर लूँगी। अभी तक इतना .तो, सलीका नहीं कि बैठक कैसे साफ, की जाती है, दस पाँच दिन में तू, क्या सीख जाएगी ?, , सलीका नहीं... ।, , : मैंने जाकर-समझाया कि भाभी, , दस साल से यही मिश्रानी घर का, काम कर रही हैं। घर भर की, सफाई करती है, बर्तन मलती है,, कपड़े धोती है। जाने तुम्हारा, कौन-सा ऐसा काम है जो इससे
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[35], नहीं होता और फिर गैंने रामगझाया हम खुद गँवार........, कि भाभी नौकर रो काम लेने की बड़ी बहू : (चकित विरिमित सिर्फ सुनती है), , भी तमीज होनी चाहिए। इन्दु : मैंने भी कह दिया-क्या वात है, बड़ी बहू : हाँ, और क्या......। भाभी तुम्हारे मायके की ! एक, , बड़ी बहू :, , झट से बोली, 'वह तमीज तो बस, आप लोगों को है।' मैंने कहा तुम, तो लड़की हो। मैं तो सिर्फ यह, कहना चाहती थी कि नौकर से, काम लेने का भी ढंग होता है।, इस पर तुनक कर बोली और वह, ढंग मुझे नहीं आता मैंने नौकर जो, यही आकर देखे हैं। फिर कहने, लगीं, काम लेने का ढंग उसे आता, है, जिसे काम की परख हो। सुबह, शाम झाडू लगा देने से ही तो, कमरा साफ नहीं हो जाता | उसकी, बनावट-सजावट भी कोई चीज, है। न जाने तुम लोग किस तरह, , इन. फूहड़ नौकरों से गुजारा कर , लेती हो। मेरे मायके में तो ऐसी, गँवार मिश्रानी दो दिन छोड़, दो, घड़ी भी न टिकती।, , कही उसने ये सब बातें।, , : और कैसे कही जाती हैं। जब से, -आई हैं, यही तो सुन रहे हैंनौकर अच्छे हैं तो उसके मायके, में, खाना पीना अच्छा है तो उसके, मायके में, कपड़े पहनने का ढंग, आता है तो उसके मायके वालों, को, हम तो न जाने कैसे जी रहे, हैं। (नाक-भौं चढ़ाकर) यहाँ के, लोगों को खाना-पीना, पहननाओढ़ना कुछ भी नहीं आता। हमारे, नौकर गँवार, हमारे पड़ोसी गँवार,, , छोटी भाभी, , छोटी भाभी, , छोटी भामी, , नमूना तुम्हीं जो हो। एक मिश्रानी, भी ले आतीं तो हम गँवार भी, उससे कुछ सीख लेते।, , [दाँयी दीवार के कमरे से छोटी, भाभी (इन्दु की माँ और छोटी, बहू बेला की सास) प्रवेश करती ..., हैं। उसके पीछे-पीछे रजवा है|], , : क्यों इन्दु बेटी, क्या बात हुई-यह, रजवा रो रही है। कोई कड़वी, बात कह दी छोटी बहू ने इसे ?, मीठी वो कब कहती -है, जो आज, कड़वी कहेगी।, , : यह आज तुम कैसी जली कटी, बातें कर रही हो। छोटी बहू से, झगड़ा हो गया है क्या ?, , (भरे हुए गले से) माँ जी, आज, उन्होंने बरबस मुझे काम से हटा, दिया। इतने बरस हो गए आपकी, सेवा करते, कभी किसी ने इस, तरह बेइज्जती न की थी। मुझे, तो माँ आप अपने पास ही रखियेगा।, आज से उनका काम न करने जाऊँगी।, : वह तो बच्ची है मिश्रानी, तू भी, उसके साथ बच्ची हो गयी।, , (मुँह से बिचका कर व्यंग्य से) जी, हाँ, बच्ची है ! रोटी को चोची, कहती है। उसे तो बात ही करना, नहीं आता! (क्रोध से) अपने मायके, के सामने तो वह किसी को कुछ, समझती ही नहीं और फिर गज-भर