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1.2 प्रस्तावना :, हिन्दी साहित्य के आदिकाल के काल-निर्धारण और नामकरण की समस्या हिन्दी साहित्योतिहास की, एक ज्वलंत समस्या है । अभी तक इस समस्या का सही समाधान नही हो पाया है। हिन्दी साहित्य के प्रथम, रचना-काल को हिन्दी साहित्य का आदिकाल कहा है । सं. 1000 के आसपास हिन्दी भाषा तथा अन्य, भारतीय आर्यभाषाओं का प्रारंभ हुआ । प्रारंभ में भाषा का स्वरूप स्पष्ट नहीं था । हिन्दी साहित्य के प्रारंभ, के संबंध में मतभेद हैं, फिर भी सामान्यत: सं. 1050 से. सं. 1375 तक के कालखंड को 'आदिकाल' कहा, जाता है। अनेक विद्वानों ने इस काल को अनेक नामों से पुकारा है । इस काल में सिद्ध काव्यधारा नाथ, काव्यधारा, जैन काव्यधारा, सामन्ती श्रृंगार, वीर काव्यधारा तथा इनसे सम्बन्धित विभिन्न काव्य रूप और, रूढियों आदि की महत्ता रही है । फिर भी यह काल विवादास्पद रहा है ।, प्रस्तुत इकाई में हिन्दी साहित्य का इतिहास के आदिकाल पर विस्तार से विचार करते समय आदिकाल, का कालविभाजन, नामकरण, आदिकालीन सामाजिक एवं राजनीतिक परिस्थितियाँ, आदिकालीन रासो, साहित्य का सामान्य परिचय आदि पर विस्तार से चर्चा करेंगे ।, 1.3 विषय - विवेचन :, काल विभाजन और नामकरण का सबसे मौलिक प्रयास आ. रामचंद्र शुक्ल ने किया। उन्होंने अपने 'हिन्दी, साहित्य का इतिहास' में काल-विभाजन और नामकरण को प्रस्तुत किया । उन्होंने प्रत्येक कालखंड को दो-, दो नाम दिए हैं। एक मानव मनोविज्ञान पर आधारित है तो दूसरा नाम साहित्य की प्रमुख प्रवृत्ति के आधार पर।, आ. शुक्ल का काल-विभाजन और नामकरण इस प्रकार है।, हिन्दी साहित्य का इतिहास, आदिकाल, पूर्व मध्यकाल, उत्तर मध्यकाल, आधुनिक काल, (वीरगाथा काल), (भक्तिकाल), (रीतिकाल), (गद्यकाल), सं. 1050 से, सं. 1375 से, सं. 1700 से, सं. 1900 से, सं. 1375 तक, सं. 1700 तक, सं. 1900 तक, आज तक, आ. रामचंद्र शुक्ल जी का यह का-विभाजन और नामकरण हिन्दी साहित्य में सर्वमान्य है। अनेक, इतिहासकारों ने इसे थोडा परिवर्तन करके इसे ही स्वीकार किया है । इस प्रकार हिन्दी साहित्य के इतिहास में, आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल और आधुनिक काल ये चार काल सर्वमान्य हैं।, 1.3.1, आदिकाल का नामकरण :, सामान्यत: हिंदी साहित्य के इतिहास का नामकरण कृति, कर्ता, पद्धति और विषय की दृष्टि से किया, जाता है। कभी-कभी नामकरण के किसी ठोस आधार के उपलब्ध न होने पर उस काल के किसी अत्यंत, प्रभावशाली साहित्यकार के नाम पर या कभी साहित्य सृजन की प्रमुख शैलियों के आधार पर इसके, 2