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विंसेट स्मिथ तथा के. ए. निजामी का मानना है कि “अकबर, पैगंबर शासक का रुतबा प्राप्त करना चाहता था। “, , इक्तिदार आलम खाँ का विचार है कि “अकबर का उद्देश्य कई, धर्मों तथा जातियों से बने अभिजात प्रशासक वर्ग को संगठित, , करना चाहता था।”
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अकबर की धार्मिक नीति के निर्धारण/विकाश के चरण, , प्रथम चरण - ( 562-4574 ई0 ), , अपने आरंभिक वर्षों में अकबर ने कई उदारवादी नीतियाँ अपनाई।, 4562 ई0० में दास प्रथा तथा को समाप्त कर दिया।, , 4563 ई0 में तीर्थ यात्रा कर को समाप्त कर दिया।, , 4564 ई० में जजिया कर को समाप्त कर दिया।, , इक्तिदार आलम का मत है कि “अकबर के इन कार्यों के पीछे, राजनीतिक उद्देश्य था।”, , * उजबेगो की शक्ति को संतुलित करने के लिए राजपूतों तथा, भारतीय मुसलमानों को जोड़ने का प्रयास था।, , « इन कार्यों के माध्यम से वस्तुतः गैर मुसलमानों को कुछ रियायतें, दी गईं और उनका सहयोग हासिल किया गया।
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« फिर भी हम कह सकते है कि इसका कारण उदार धार्मिक, विचारधारा भी थी।, , « इस चरण में अकबर राज्य के इस्लामी स्वरूप में परिवर्तन नहीं, कर पाया था:, *« उदाहरण स्वरूप- 4568 ई0 में चित्तौड़ के विजय के बाद जारी, किए गए फतहनामे में चित्तौड़ की विजय को काफिरों के प्रति, जिहाद कहा गया।
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द्वितीय चरण :- ((575-4579 ई0 ), , « 575 में धार्मिक विषयों पर वाद विवाद के लिए इबाबतखाना की स्थापना, , « प्रारंभ में इस्लाम से जुड़े मुद्दों पर बात होती थी।, , « उलमा में आपसी संघर्ष, , « 578 में इबाबतखाने में सभी धर्मों के लिए खोल दिया गया ।, , « अकबर की दृण धारणा बन गयी कि “सभी धर्मों में ज्ञानी पुरुष है और सभी, धर्मों का मूल तत्व एक ही है” ।, , « 579 ई में “टमहजर” जारी किया।, , « इससे धर्म संबंधी मामलों में भी सर्वोच्च अधिकार प्राप्त कर लिया।, , « 579 ई में जामा मस्जिद में जाकर उसने स्वयं खुतबा पढ़ा ।, , « इन कार्यों से अकबर उलमा वर्ग की शक्ति को अपने नियंत्रण में करना चाहता, , था।, , « सैय्यद स्थिम रिजवी, “महजर का का श्य उन सभी विषयों को, जो अकबर की, , हिन्दू- जनता से सम्बंधित थी, बादशाह के प्रत्यक्ष नियंत्रण में लाना, , चाहता था।