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अदृश्य की आड़ के पीछे छिपी, कुछ, ऐसी सुरंगें, जो अपने गुप्त रास्तों से शब्दों, की जन्मकथा तक ले जाती हैं।, -राजेश जोशी, 16, हिंदी कवि, 11071CH16, कोश-एक, परिचय, इस पाठ में..., कुछ पढ़ते समय जब किसी शब्द का अर्थ, अथवा उसका संदर्भ आपके जेहन में स्पष्ट, नहीं होता तब आप क्या करते हैं? ज़ाहिर है।, आपके मन में फ़ौरन शब्दकोश का ध्यान, आता होगा। चंद्रिका भी आपकी तरह परेशान, हुई। आइए जानें कि उसकी समस्या कैसे, हल हुई।, पढ़ते-पढ़ते चंद्रिका को ऐसा लगा जैसे, ) शब्दकोश, ) विश्वकोश, साहित्य कोश, अचानक एक कंकड़ी आ फॅसी हो। सारा, मज़ा किरकिरा हो रहा था। चंद्रिका गरमी, की छुट्टियों के दौरान घर में लेटी किसी, और ही दुनिया की सैर कर रही थी लेकिन, अचानक वहाँ से वापस लौटना पड़ा। समस्या, के समाधान के लिए वह लता दीदी के, कमरे में भागी लेकिन वह भी कहीं बाहर, गई हुई थीं।, चंद्रिका के लिए अब कोई चारा नहीं, था। जिस उपन्यास के काल्पनिक जगत का, वह आनंद ले रही थी अब उसे आगे पढ़ने, की इच्छा नहीं हो रही थी। उपन्यास पढ़ते-पढ़ते, खाने में कंकड़ी की तरह एक शब्द अचानक, बीच में आकर उसके आनंद में खलल डाल, रहा था। शब्द का अर्थ चंद्रिका को पता नहीं, था। बगैर अर्थ जाने वह आगे बढ़ना नहीं, चाहती थी, मानो कोई ब्रेक लग गया हो।, 2020-21
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अभिव्यक्ति और माध्यम, शब्द था-विदग्ध। यह शब्द उसका मुँह चिढ़ा रहा था और यह पराजय भाव चंद्रिका को स्वीकार्य, नहीं था।, लेटे-लेटे वह इसी शब्द के बारे में सोचने लगी। सोचते सोचते उसे ऐसा लगा जैसे सामने, खिड़की से कोई छाया-सी अंदर आई और उसके सामने खड़ी हो गई।, अरे! यह तो कोई परी है। चंद्रिका उसे देखकर चौंकी । थोड़ी घबराई भी । मगर तुरंत ही उसने स्वयं, को संभाल लिया। साहस बटोर कर उसने परी से पूछा- "तुम कौन हो और यहाँ किसलिए आई हो"।, " मैं चंद्रिका हूँ। शब्दलोक से आई हूँ"।, "मगर चंद्रिका तो मेरा नाम है"।, "हाँ! मैंने ही तुम्हें अपना नाम उधार दिया है। घबराना मत। मैं इस बात की कोई फ़ीस या, किराया नहीं लेती", शब्दपरी चंद्रिका हँसते हुए परिहास के स्वर में बोली।, " और हाँ! मैं तुम्हारी समस्या भी सुलझा सकती हूँ। विदग्ध भी मेरे लोक में ही रहता है । बहुत, अच्छा लड़का है। मैं उससे तुम्हारी दोस्ती करा दूँगी । इसके बाद वह तुम्हें कभी परेशान नहीं करेगा ", चंद्रिका ने शब्दपरी से कहा-"मगर तुम्हारे लोक, करते रहेंगे।", 44, 11, shots, होगी। मेरे लोक के समस्त निवासी तुम्हारे मित्र बन जाएँगे । चलो, मैं तुम्हें अपने लोक में ले चलती हूँ।", दूसरे निवासी हैं वे तो मुझे परेशान, शब्दपरी बोली-"मैं तुम्हें अपने लोक के सारे रहस्य समझा दूँग । फिर तुम्हें कोई कठिनाई नहीं, 194, 'मगर मैं चलूँगी कैसे? मेरे पास तो तुम्हारी तरह पंख हैं नहीं । " - चंद्रिका ने थोड़ा आश्चर्य, 44, प्रकट करते हुए कहा।, "चिंता मत करो। मैं तुम्हारे लिए फूलों का रथ लेकर आई हूँ। चलो चलते हैं ।" - चंद्रिका अपनी, हमनाम शब्दपरी के साथ फूलों के रथ पर कुछ समय तक उड़ती रही। अब फूलों का रथ एक, विशाल नगर के ऊपर था। चंद्रिका ने रथ से नीचे देखा । नगर की विशेषता यह थी कि इसमें एक, अत्यंत प्रशस्त राजमार्ग था और सारे भवन इस राजमार्ग के एक ही तरफ़ पंक्तिबद्ध रूप में निर्मित, थे। राजमार्ग के दूसरी तरफ़ कुछ भी नहीं था।, "हमारे लोक में नागरिकों को शब्द कहा जाता है। यह एक आदर्श लोकतंत्र है और यहाँ सभी, शब्द समान हैं। कोई छोटा-बड़ा नहीं, कहीं ऊँच-नीच नहीं। यहाँ इतनी सुंदर व्यवस्था है कि किसी, राजा या शासक की ज़रूरत भी नहीं होती। ", "कौन-सा शब्द इस राजमार्ग के किनारे कहाँ रहेगा, इस बात पर क्या कोई विवाद नहीं, होता?" चंद्रिका ने पूछा।, शब्दपरी बोली-"हमने इसके लिए नियम निर्धारित कर रखे हैं । हर शब्द अनुशासन का पक्का, है। बिना किसी बलप्रयोग के वह अपनी जगह खुद ले लेता है। जब किसी नए शब्द को यहाँ की, नागरिकता मिलती है तो वह भी यहाँ के नियमों के आधार पर ही इस राजमार्ग के किनारे अपनी, जगह ले लेता है। यहाँ के भवन भी ऐसे हैं कि वे थोड़ा-थोड़ा आगे खिसक कर नए शब्द को, उसका सही स्थान अपने आप दे देते हैं।", चंद्रिका की अगली जिज्ञासा थी-"नए शब्दों को आपके लोक की नागरिकता क्या आसानी से, मिल जाती है?", 44, 44, 2020-21
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कोश-एक परिचय, शब्दपरी ने गर्वभाव से कहा-"नागरिकता के, लिए तो हज़ारों शब्द कोशिश करते हैं मगर वह इतनी, आसानी से नहीं मिलती। जब तक किसी शब्द और, उसके अर्थ या अर्थों को तुम्हारे समाज की मान्यता, 44, fut, हिन्दी, साहित्, कोश, प्रामाणिक, ी कोश, नहीं मिल जाती तब तक हम अपने लोक में उसे, प्रवेश की भी अनुमति नहीं देते, नागरिकता तो दूर की, बात है। हमारे लोक की नागरिकता एक बहुत बड़ा, pa, सम्मान है, जिसके लिए 'शब्दों' को लंबे समय तक, कोशिश करनी होती है।", रथ नीचे उतरा और शब्दलोक के प्रवेश द्वार से, होता हुआ राजमार्ग पर धीरे-धीरे चलने लगा।, चंद्रिका ने पूछा-"शब्दपरी, तुम्हारे लोक की आबादी, क्या होगी?", अभी तो हमारे लोक की आबादी लगभग, पाँच लाख है। जैसा कि मैंने तुम्हें बताया, हमारे लोक में नए शब्द भी जुड़ते रहते हैं।", शब्दपरी ने आगे कहा-"जिस प्रकार तुम्हारी पृथ्वी पर नए नगरों को, और उपखंडों में बाँटा जाता है और फिर हर मकान को एक संख्या प्रदान करते हैं उसी प्रकार, हमारे लोक को भी पहले खंडों में बाँटा गया है और फिर उस खंड में हर शब्द के भवन को, हमारे नियम के अनुसार क्रमवार व्यवस्थित किया गया है।" चंद्रिका का अगला सवाल था-"यहाँ, खंडों का नामकरण कैसे करते हैं ?", यहाँ खंडों के नाम वर्णमाला के अक्षरों पर रखे गए हैं। जैसे, 'क खंड' 'च खंड' 'प खंड' आदि।, इन खंडों का क्रम भी वर्णमाला के अक्षरों, "वे क्या?", ben, 11, कुछ, कोश, 44, ishotek, योजनाबद्ध ढंग से खंडों, 195, क्रम के ही अनुसार है। हाँ, दो महत्त्वपूर्ण अंतर हैं?, 'पहला अंतर तो यह है कि हिंदी वर्णमाला ' अ' से शुरू होती है मगर इस लोक का पहला, खंड 'अं खंड' है। इसके बाद ' अ खंड', 'आ खंड', 'इ खंड' इत्यादि वर्णमाला के क्रम से ही, आते हैं।", "दूसरा अंतर क्या है?", "हिंदी वर्णमाला में संयुक्ताक्षर क्ष, त्र, ज्ञ, श्र वर्णमाला के अंत में आते हैं। लेकिन हमारे शब्द, लोक में ये उन वर्णों के अंत्याक्षर के साथ आते हैं ।", "बात पूरी तरह से समझ में नहीं आई", चंद्रिका ने भोलेपन से कहा।, सब समझ जाओगी। बस इस राजमार्ग पर मेरे साथ आगे चलो।, फूलों का रथ अब राजमार्ग पर चलने लगा। एक ओर प्रकृति का अक्षत सौंदर्य था और दूसरी, ओर शब्दों के भवन थे। पहला खंड 'अ' खंड था। फिर 'अ' खंड, 'आ' खंड, 'इ' खंड, 'ई', खंड आदि एक-एक कर आने लगे।, स्वर वर्णों से नामित आखिरी खंड 'औ' खंड था। फिर व्यंजन वर्ण से नामित पहला खंड 'क', 44, 44, 11, खंड आ गया।, 2020-21, बृहि, বलोकोके कोश-, लोकापती मुहावरा कोश, हिती क
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कोश-एक परिचय, गुज़र रहे थे। क्रम वर्णमाला का ही था। हाँ, वे दो, नियम भी लागू हो रहे थे , जो शब्दपरी ने शुरू में, बताए थे। 'क' और 'य' से मिलकर बने संयुक्ताक्षरों, से शुरू होने वाले शब्दों से आगे बढ़ते हुए दोनों 'क, और 'र' से बने संयुक्ताक्षर 'क्र' से शुरू होने वाले, शब्दों के भवन आए। क्रंदन' और 'क्रंदित' के बाद, 'क्र' का नंबर आया और 'क्रम', 'क्रमश:' इत्यादि, शब्दों के भवन आए। फिर 'क्रा', 'क्रि' इत्यादि से, प्रारंभ होने वाले शब्दों के भवन आते गए।, 'क्र' के बाद 'क्ल' एवं 'क्व' से शुरू होने वाले, शब्द आए। फिर शुरू हुआ क्ष' से प्रारंभ होने वाले, शब्दों के भवनों का सिलसिला। यह इस लोक के, नियमों के अनुसार ही था चूँकि 'क्ष' संयुक्ताक्षर ' क', और 'ष' से मिलकर बना है अत: इसे 'क' और 'व', से मिलकर बने 'क्व' संयुक्ताक्षर से शुरू होने वाले, शब्दों के बाद ही आना था।, संदर्भ-ग्रंथ, ) जिस प्रकार 'शब्दकोश' में शब्दों के अर्थ, दिए होते हैं उसी प्रकार 'संदर्भ-ग्रंथों' में, मानव द्वारा संचित ज्ञान को संक्षिप्त रूप में, प्रस्तुत किया जाता है।, संदर्भ- ग्रंथ कई प्रकार के होते हैं। संदर्भ ग्रंथ, का सबसे विशद रूप 'विश्व ज्ञान कोश', है। इसमें मानव द्वारा संचित हर प्रकार की, जानकारी और सूचना का संक्षिप्त संकलन, होता है।, संदर्भ-ग्रंथों के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रकार हैं, 'साहित्य कोश' और 'चरित्र कोश' 'साहित्य, कोश' में साहित्यिक विषयों से संबंधित, जानकारियाँ संकलित होती हैं। 'चरित्र, में, के, महान व्यक्तियों के व्यक्तित्व, 197, चंद्रिका खुश होकर बोली-"अब बात मेरी समझ, में आ गई। इसका अर्थ यह हुआ कि चूँकि 'त्र', संयुक्ताक्षर 'त' और 'र' वर्णों से मिलकर बना है,, अत: इससे शुरू होने वाले शब्दों के भवन 'त', में नियमानुसार निर्धारित स्थलों पर आएँगे। ", शब्दपरी प्रशंसा भाव से मुसकराई-"हाँ, बिलकुल, ठीक। 'ज्ञ' संयुक्ताक्षर 'ज' और 'ञ' वर्णों के संयोग, से बना है। अत: इससे प्रारंभ होने वाले शब्दों के, भवन 'ज' खंड में अपने निर्धारित स्थानों पर आएँगे ।, 'श्र' संयुक्ताक्षर 'श' और 'र' वर्णों से मिलकर बना, है। अत: इससे शुरू होने वाले शब्दों के निवास स्थल ' श' खंड में होंगे। ", रथ चलता जा रहा था। थोड़ी देर में 'च' खंड आ गया। इस लोक के नियमों के हिसाब से पहले, 'च' उपखंड आया। चंद्रिका खुशी से चिल्ला पड़ी । शब्दपरी बोली - " लो, तुम्हारा उपखंड तो आ गया।, तुम्हारा घर तो इसी उपखंड में होगा।", "बिलकुल ठीक"-थोड़ी ही देर में इस राजमार्ग के किनारे मेरा घर आने वाला है ", 'च' उपखंड में निवास करने वाले शब्दों के भवन एक - एक कर आते जा रहे थे। पहले उन, शब्दों के भवन थे जिनका दूसरा वर्ण 'क' से शुरू होता था। यानी यहाँ भी नियम वही था जो पहले, वर्ण के लिए था।, धीरे-धीरे उन शब्दों के भवन आए जिनका दूसरा वर्ण 'द' था। 'चंदन', 'चंदेल' इत्यादि शब्दों, के बाद 'द' और 'र' के संयुक्ताक्षर 'द्र' का नंबर आया। इस क्रम का पहला शब्द 'चंद्र' था।, कृतित्व के बारे में जानकारी संकलित, होती है।, ) संदर्भ-ग्रंथ गागर में सागर के समान हैं।, जब भी किसी विषय पर तुरंत जानकारी, की आवश्यकता होती है, संदर्भ-ग्रंथ, हमारे काम आते हैं।, संदर्भ-ग्रंथों में जानकारियों का सिलसिलेवार, संकलन 'शब्दकोश' के नियमों के अनुसार, ही होता है।, 11, 1., ११, 2020-21