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पाश्चात्य संगीत में विभाग को बार (89) को कहते हैं।, बार आए जग हिन्दुस्तानी संगीत के समान, किसी रचना, के विभिन्न खंडों को दिखाने के लिये होता है )|विभाग दिखाने के, लिये स्वरलिपि में अपने यहाँ की तरह खड़ी रेखा खींची जाती है।, डबुल बार-जब दो लकीरें पास-पास खींची जाती हैं तो, रचना के विशेष भाग की समाप्ति मानी जाती है |(जब कुछ, स्वर-समूहों को आगे-पीछे दोनों ओर से दो-दो खड़ी | में बन्द, कर देते हैं तो जो भाग इनके बीच होता है उसे मेजर (॥४९०७५७), कहते हैं), जब कभी किसी रचना के अंत में दो लाइनों के ऊपर टाइम, (717०) लिख देते हैं तो रचना की पूर्ण समाप्ति मानी जाती है।, (जब किसी विशेष भाग को दोहराना होता है तो उस विभाग, के शुरू व अंत में दो लाइन बनाकर दो बिन्दु डाल देते हैं, जैसे, 118 8 $&/, टाई-(जब कभी विभाग (बार) की रेखा दो-तीन या अधिक, मात्रा के स्वर के बीच में आ जाती है तो टाई (19) का चिन्ह उन, स्वरों पर लगाया जाता है | इसका चिन्ह मींड के समान अर्ध चंद्राकार, कल है )) इसके लगाने से स्वर लगातार गाया-बजाया जाता है, जैसे *। गेड्सका यह अर्थ हुआ कि ग दो मात्रा का हुआ इसकी, ग-गाया जावेगा ग ग नहीं।, कक चिन्ह हिन्दुस्तानी मींड के समान अथवा स्टार, टेशन के टाई के समान होता है ॥स्लर और टाई में अंतर यह, , है कि 80 में विभिन्न स्वर होते हैं और 18 में विभिन्न स्वर *ह, होते, बल्कि एक ही स्वर होते हैं []ज़ब दोया अधिक स्वरों की,, , मींड की भाँति बजाया जाता है तो उसे सलर कहते हैं।)
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8५०- जिन स्वरों के ऊपर इस प्रकार का चिन्ह 8५७ लगा दिया, जाता है तो वे स्वर एक सप्तक ऊंचे सप्तक में गाये-बजाये जावेंगे ॥, इसी प्रकार जिन स्वरों के नीचे इस चिन्ह को उलट कर लगाया, जाता है, तो वे स्वर एक सप्तक नीचे के रवरों में गाये-बजाये जाते, हैं जैसे-8 ५६, , 3 या र2-1जिस स्वर पर ये शब्द लिख देते हैं उस पर 56016, #००श॥ अर्थात् हिन्दुस्तानी सम के समान बल देते हैं, , प1- इससे स्वर को ऊपर-नीचे कँपा कर बजाते हैं जैसेगमगम | इसे 5॥9/७ करना कहते हैं [), #118-५इस शब्द से रचना की समाप्ति मानी जाती है|), , २290156- जब इसका चिन्ह लगा देते हैं तो जितना चाहे रूक, सकते हैं || इसे विस्तार में आगे समझाया गया है।, , (/685018- [दो बार अर्थात दो विभाग के बीच की मात्राओं, को मेज़र कहते हैं और एक मेजर में जितनी मात्रायें रहती हैं, उन्हें, बीट्स (8९४४) कहते हैं |), , //0वधां॥५1४-यह एक प्रकार का कण स्वर है। मूल स्वर, के पहले लिखा गया छोटा स्वर मूल स्वर का आधा समय ले, लेता है || अगर इस स्वर के आगे एक बिन्दु लगा दिया जाता, है तो मुख्य स्वर का दो तिहाई काल यह स्वर ले लेता है।, , '8००४००४(७॥४- यह भी एक प्रकार का कण है | इसमें जितनी, भी शीघ्रता सम्भव हो, कण स्वर को बजाना चाहिए।], , 1५1-(जिस स्वर पर टर्न का चिन्ह लगाते हैं, तो पहले उससे, आगे का स्वर, फिर मूल स्वर, उसके बाद उससे नीचे का स्वर और, अंत में मूल स्वर बजाते हैं ||इस प्रकार उनके आगे के स्वर से 4, स्वरों का खटका बजाते हैं,(जैसे-सा पर लगाने से रेसानिसा होगा |), , ॥1४७॥७५ 10॥1-[जिस स्वर पर यह चिन्ह लगाते हैं उससे