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परम्परागत गृह विज्ञान एवं इसकी, , प्रासंगिकता -., , [7२200770५0, 00008 5010८ 0४) ए5, - रित्ा ।४४१४८७], , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , गृह, समाज की पहली इकाई है। गृह की अच्छी व्यवस्था ही एक अच्छे समाज तथा एक अच्छे, राष्ट्र का निर्माण करती है। अतः गृह का निर्माण तथा अच्छे राष्ट्र को बनाने के लिए गृह-विज्ञान की, शिक्षा छात्राओं के लिए अत्यन्त आवश्यक है। , गृह-विज्ञान से हमारा अभिप्राय उन सभी कार्यों को सम्मिलित करना है जो मनुष्य के विकास के, लिए अत्यन्त आवश्यक हैं। है, , गृह-विज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा, (॥०7७णाप6 81० 0गपराप0प 07 पठार 8टाछपट9), , गृह-विज्ञान में दो शब्द हैं 'गृह' तथा 'विज्ञान'। 'गृह' का अर्थ घर और 'विज्ञान' का अर्थ, *सुव्यवस्थित ज्ञान' से है। इस प्रकार गृह से सम्बन्धित विभिन्न वस्तुओं के सुव्यवस्थित ज्ञान को, गृह-विज्ञान कहते, हैं। *, , "गृह-विज्ञान का विकास (00ए९०ए१९७॥६ णघ्ृणा३8 5०७॥०९)- अमेरिकन होम इकॉनोमिक्स, एसोसिएशन' के नाम से अर्थशास्त्र की शाखा के रूप में अमेरिका में सर्वप्रथम गृह-विज्ञान का जन्म, हुआ। जापान में इस विषय को गृह-प्रशासन के नाम से जाना गया। भारत में सन् 1927 ई. में दिल्ली के, लेडी इरविन कॉलेज में गृह-विज्ञान विषय को स्नातक कक्षा की छात्राओं के लिए वैकल्पिक विषय के, रूप में प्रारम्भ किया गया। तब से आज तक्क गृह-विज्ञान अपनी विभिन्न शाखाओं , प्रशाखाओं के रूप में, , ढेल्वाप्राव्क फदक (2काप्लेंटवापा०।
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परम्परागत गृह विज्ञान एवं इसकी प्रासंगिकता (_5_), (6) समय, अर्थ (धन) और श्रम के सदुपयोग करने की आदत विकसित करना।, (7) परिवार के सभी सदस्यों की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति यथासम्भव करना।, (8) परिवार की आय के अनुसार व्यय और बचत करने की प्रेरणा विकसित करना।, (9) शिल्पों और कलात्मक नियमों के पालन से गृह सौन्दर्य उत्पन्न करना।, , (10) सन्तुलित और पौष्टिक भोजन का ज्ञान, संक्रामक रोगों से बचाव व प्राथमिक चिकित्सा तथा, परिचर्या की जानकारी प्राप्त करना।, , (1) वह जाल के अन्तर्गत शिशु पालन सम्बन्धी सैद्धान्तिक व व्यावहारिक बातों की जानकारी, . देना। है, , (19) गृह-विज्ञान का पर्याप्त ज्ञान होने पर विभिन्न प्रकार के व्यवसायों द्वारा धन कमाकर परिवार की, अर्थ- व्यवस्थः को सुदृढ़ करना।, , (19) गृह-विज्ञान से परिवार नियोजन तथा परिवार कल्याण की समुचित जानकारी देना।, (14) उचित विधियों से कार्य करने में जो समय बचे, उसका सदुपयोग करना।, , (15) क्रय-विक्रय, बचत तथा डाकघर एवं बैंक आदि से सम्बन्धित सामान्य व्यावहारिक ज्ञान का, विकास करना।, , (16) पारिवारिक जीवन को सुन्दर कलाकृतियों तथा मनोरंजन साधनों से समृद्ध बनाना। ह, , गृह-विज्ञान के उद्देश्य का आधार ““गृहस्थ जीवन को उत्तम बनाना है।”' गृह-विज्ञान के मुख्य, उद्देश्य निम्नलिखित हैं, (1) पारिवारिक जीवन को सुखमय बनाना।, , (9) पारिवारिक समस्याओं को हल करना।, , (9) परिवार के सदस्यों की आयु रुचि के अनुसार उनके भोजन तथा विश्राम की सुविधायें बढ़ाना।, (4) अधिक साधनों का विकास करना। ४, , (5) बचत करना।, , गृह-विज्ञान की प्रकृति, (0५४7७ 07 प0॥8 8टाछटए) हे, , गृह को सुव्यवस्थित एवं सुसज्जित रखने में कलात्मक-अभिरुचियों का होना आवश्यक है।, गृह-व्यवस्था के लिये कला का महत्व सर्वमान्य है। घर के सभी कार्यों को कला प्रभावित करती है।, न केवल घर की साज-सज्जा, अपितु सदस्यों के वस्त्रों का चुनाव, वस्त्रों को कलात्मक ढंग से सिलना,, भोजन पकाना, सुव्यवस्थित ढंग से परोसना, रसोई-घर की स्वच्छता आदि सभी में कलात्मक दृष्टिकोण, की आवश्यकता होती है घर के कमरों की दीवारों, फर्नीचर एवं पर्दे के रंगों का मिलान साथ ही, बाग-बगीचों को आकर्षक बनाने में भी कलात्मुकता आवश्यक है।, , . गृह-विज्ञान एक कला है (प्ठाा6 8लं९१०७ 18 ॥1 /7), , इसके अन्तर्गत घर की सजावट, भोजन पकाने की कला, भोजन परोसने की कला इत्यादि का ज्ञान, गृहिणी को मिलता है। गृह कला से गृहिणी कलात्मक ढंग से सजाकर भोजन के स्वरूप को प्रायः बदल, देवी है। अत: कला के रूप में गृह-विज्ञान का सम्बन्ध उन सभी क्रियाओं से है, जो घर में होती हैं।, , गृह-विज्ञान एक विज्ञान है (घ॒गा6 8लं९1१०० 15 8 52०ं९1००), , गृह-विज्ञान में वैज्ञानिक विधियों के साथ उन वैज्ञानिक विषयों का ज्ञान भी निहित है जिनसे, पारिवारिक जीवन का स्तर आगे बढ़ता है। गृह-विज्ञान में वैज्ञानिक विधियों व अनुसन्धानों का समावेश, है। विभिन्न उपकरणों के बारे में जानकारी जिनके प्रयोग से सुविधा के साथ ही समय व शक्ति की भी, बचत होती है। टेलीविजन, रेडियो के द्वारा मनुष्य के ज्ञान में वृद्धि हुई है। शरीर रचना तथा शरीर क्रिया, , ठेंव्वाप्राध्य पदक (:राठेंटवाप्रा०
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परम्परागत गृह विज्ञान एवं इसकी प्रासंगिकता, , जनसंख्या के घनत्व वाले देशों में रहने वाले लोगों के लिये लाभकारी सिद्ध हो सकता है। इसमें केवल, ऐसी जीवित वस्तुओं का क्रमबद्ध ज्ञान प्राप्त किया जाता है। जिनको केवल सूक्ष्मदर्शी यन्त्र की सहायता, से ही देखा जा सकता है। इस विषय का विस्तृत अध्ययन करके जनता को रोगों से बचाया जा सकता, है। भोजन पाचन, पोषण और एकीकरण का विस्तृत ज्ञान यद्यपि शरीर-विज्ञान में हो जाता है, लेकिन, , शा जीवित पदार्थों में किस प्रकार बदलते हैं। इसका ज्ञान केवल बायो-कैमिस्ट्री में ही कराया, जाता है।, , (4) मनोविज्ञान (?09०0४००६५४)-मनुष्यों के व्यवहार से सम्बन्धित ज्ञान को मनोविज्ञान कहते हैं।, गृहिणी गृह-विज्ञान के माध्यम से परिवार के सदस्यों कौ अभिरुचियों एवं व्यवहार को पहचान लेती है।, इसी के माध्यम से वह अपने परिवार के वातावरण को स्नेहपूर्ण बना लेती है।, , (5) रसायन विज्ञान (0४०7४1४४४)-रसायन विज्ञान के व्यावहारिक ज्ञान ने भी गृहस्थी के, जटिल कार्यों को गृहिणी के लिये आसान बना दिया है। कपड़ों कौ धुलाई, बर्तनों एवं फर्नीचर की, सफाई आदि में प्रयुक्त होने वाले रसायनों का ज्ञान होने से गृहिणी के लिए सुविधा हो गयी है। अनेक, कीयणु नाशक पदार्थ जैसे-डिटॉल, क्लोरीन, पोटैशियम परमैंगनेट सामान्यतः प्रत्येक घर में प्रयुक्त होने, लगे हैं।, , (6) समाज, परिवार तथा बाल कल्याण (806४९, शिए]ए थाव ०716 ए९)४7०९)-कुछ वर्ष, पूर्व गृह-विज्ञान की शिक्षा केवल छात्राओं को ही दी जाती थी। किन्तु अब इस बात की आवश्यकता, का अनुभव किया जा चुका है कि गृह-विज्ञान के प्रत्येक विषय का क्रमबद्ध ज्ञान प्राप्त करके विभिन्न, विभागों में कार्य करने में सफलता प्राप्त की जा सकती है। है, , सामुदायिक कार्यों, समाज-कल्याण संस्थाओं (80०८०४०/ ७४७//४/४), माता-पिता शिक्षा समिति, (7८2४8 726८४४७ 90८०७), परिवार-नियोजन कार्यक्रम (#०४४४/) 72७४४४०४) में गृह-विज्ञान, की शिक्षा लाभकारी सिद्ध हो सकती है।, , संक्षेप में गृह-विज्ञान को|इतिहास बहुत पुराना नहीं है। अन्य विषयों की भाँति देश कौ सामाजिक, परिस्थितियों के परिवर्तन के सेथ इस विषय के अध्ययन की आवश्यकता का अनुभव किया गया है।, , (7) उपभोक्ता अर्थशास्त्र एवं गणित (0०0718ए०7७० 11९०घ०7४ं८०४ & 718015)--इन दोनों का, सामाम्य ज्ञान परिवार की आर्थिके स्थिति को सन्तुलित रखने में सहायक होता है। बजट बनाकर कुछ, बचत भी की जा सकती है। बैंक व बीमा आदि की व्यवस्था के ज्ञान से बचत को सही विधि से, विनियोजित किया जा सकता है। ब॑जट बनाने, आय-व्यय का ब्यौरा लिखने तथा आवश्यक पदार्थों को, मितव्ययिता से क्रय करने में उपभक््ता को अर्थशास्त्र और सामान्य गणित का ज्ञान बहुत सहायक, होता है। पु, , (8) समाजशास्त्र (80०८००४४, अन्तर्शष्ट्रीय सभी समाजों के ब्रि, परिवार के विभिन्न रूपों और, क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं का प्रभाव प, , , , , , , , , , --इसका अध्ययन भी अनिवार्य है। आज स्थानीय, राष्ट्रीय एवं, भापों को सामाजिक विषयों का ज्ञान होना ही चाहिए। समाजशास्त्र, वे संगठन तथा विघटन का ज्ञान प्रदान करता है। सामाजिक, वरों पर कैसा पड़ेगा, क्या उपयुक्त होगा और क्या नहीं, यह शास्त्र, . इसका तिर्णय करने की क्षमता प्रदान कूता है। इस ज्ञान की सहायता से भविष्य की गृहिणियाँ समाज, के प्रति भी अपने दायित्वों को समझ. सौती हैं। +, (9) राजनीति एवं नागरिक शास्त्र (०४४०४ भाव 01 ४४०8)--इनके ज्ञान से गृह-विज्ञान परिवारों, - को सरकार द्वारा प्रदत्त लाभों और कल्यौगकारी सेवाओं के विषय में अवगत कराता है तथा भावी, गृहिणियों को उनके उत्तरदायित्व का अनुभ कराने में समर्थ होता है। ,, (10) कलाएँ एवं शिल्प (0.४ ४702/#10-इनसे गृह में सौन्दर्य की अनुभूति तो होती ही है,, साथ ही सुख, शान्ति व विश्राम भी मिलता | भोजन पकाने व परोसने में, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई आदि, सभी क्रियाओं में कलात्मक रुचि के साथ-सैथ हस्तकौशल की भी विशेष भूमिका रहती है। सुसज्जित, गृह के प्रत्येक कोने में कलाओं व शिल्पों के भाव से परिवार की सुसंस्कृत अभिरुचि प्रदर्शित होती है।, ५ है, , कट 12]