Page 2 :
वसूल किया जाता था। अकबर ने धार्मिक कर बन्द कर दिये, , डे सदेव से एक कृषि-प्रधान देश रहा है। राज्य की आय के प्रमुख., कृषि का हमारे देश में विशेष महत्व है। मोरलैण्ड' ने भी कृषि के महत्व की..., , आरम्धिक मुगल शासकों--बाबर और हुमायूँ--ने अपनी अस्थिर स्थिति के कारण., श्र क्षेत्र में सल्तनतकालीन नीति को ही जारी रखा। परन्तु शेरशाह ने अफगान सत्ता हट /, की स्थापना के बाद भूराजस्व-व्यवस्था में कई महत्वपूर्ण सुधार किये जिनके कारण प्रशासन..., के क्षेत्र में उसे अकबर का अग्रगामी भी कहा जाता है। श्, हल में भूराजस्व-व्यवस्था को संगठित रूप प्रदान करने का श्रेय..., अकबर को है। उसने 1560 से 1590 ई. तक निरन्तर इस क्षेत्र में कार्य किया और एक के, बाद एक कई लोगों को दीवान के पद पर नियुक्त किया, जिनमें ख्वाजा मजीद, मुजफ्फरखों, _और टोडरमल के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। वी. ए, स्मिथ ने लिखा है कि “अकबर के..., भूमिप्रबन्ध के तरीकों को बाद में अंग्रेजों ने भी अपनाया था।” मोसलैण्ड का मत है कि, , अकबर के समय का बच्दोबस्त ब्रिटिशकालौन बन्दोबस्त की तरह था।” उपर्युक्त यूरोपीय, ४ बरद्वानों के वर्णन से यह स्पष्ट हो जाता है कि मुगलकालीन भूराजस्व-व्यवस्था अत्यन्त, , .__लगान का समुचित हिसाब रखने के लिए अकबर ने “करोड़ी' नामक अधिकारी नियुक्त..., ._ किये। उनकी सहायता के लिए 'कारकुन' और 'पोतदार' रखे गये । काफी सोच-विचार के बाद..., अकबर ने 'दससाला' प्रबन्ध को लागू किया अर्थात् प्रारम्भिक दस वर्षों के मूल्य के औसत, हे हम निश्चित किया गया। अकबर ने भूमि की उर्वरता के अनुसार भूमि, बॉँटा था, , श्रेणी की भूमि।, पक द्वितीय श्रेणी की भूमि।, तृतीय श्रेणी की भूमि।, श्रेणी की भूमि। :, ' भूमि के प्रत्येक बीघे की गत दस वर्षों की उपज के औसत के अनुसार:, उपज निर्धारित कर दी गयी थी और समस्त पैदावार का 1/3 है, , | मालगुजारी की वसूली के लिए तीन प्रकार की व्यवस्थाओं, फसल का कुछ भाग सरकार ले लेती बी।....
Page 3 :
(1) नस्क-इसके अनुसार भूस्वामी और सरकार के बीच भू-राजस्व के भुगतान के, उ लिए अनुबन्ध हो जाता था।, , (1) जाप्ती-इस प्रथा के अन्तर्गत खेत में खड़ी फसल पर लगान निश्चित कर दिया, जाता था।, , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , .._ शेरशाह की भाँति अकबर ने भी भू-राजस्व की वसूली के लिए 'पट्टा' और 'कबूलियत', की प्रथाएं लागू कीं। परन्तु शर्तों में बंधे होने के बाद भी यदि किसी प्राकृतिक विपत्ति के, ण फसल कम होती थी अथवा नहीं होती थी, तब बादशाह अकबर लगान माफ कर दिया, 1 था। अकबर की उदार लगान-व्यवस्था और अन्य करों पर प्रतिबन्ध लगाने के बाद भी, की आय में कोई कमी नहीं आयी और देश उत्तरोत्तर समृद्ध होता गया।', , अकबर की भूराजस्व-व्यवस्था अत्यन्त वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित थी इसलिए, विद्वानों ने उसकी प्रशंसा की है, किन्तु कालान्तर में इसमें कई दोष आ गये थे।, जेब के शासनकाल में करों की वसूली का कार्य ठेके पर दिये जाने से इस व्यवस्था में, ; दोष उत्पन्न हो गये थे।, , किसानों की दशा--वास्तव में शक्तिशाली और कुशल शासक ही किसी व्यवस्था को, विधिवत रूप से चलाने में सक्षम होता है। अकबर के जीवनकाल तक करों के भुगतान के, 'किसानों की स्थिति सन्तोषजनक थी किन्तु उसके बाद किसानों को अनेक कठिनाइयों, ठेकेदारों के अत्याचारों को सहन करने के लिए बाध्य होना पड़ा। मुगल-काल में भूमि, सम्राट था अथवा किसान, इस सम्बन्ध में इतिहासकारों में मतभेद है। किसानों के, घटनाओं और राजकीय पदाधिकारियों द्वारा उन्हें वापस लाने के प्रयासों को देखते, ह स्पष्ट है कि उनका जीवन सुखी नहीं था अन्यथा वे पलायनवादी नीति को नहीं, | डॉ. कुरैशी के अनुसार किसान खुशहाल थे। किसानों की स्थिति में वास्तविक, काल में आयी थी। औरंगजेब के काल में होने वाले जाटों और सतनामियों, भी धार्मिक उत्पीड़न नहीं अपितु आर्थिक उत्पीड़न प्रमुख था। दोनों ही वर्ग, न थे और राज्य के अधिकारी उनका निरन्तर शोषण किया करते थे ।, ्णन से स्पष्ट है कि मुगलकालीन भूराजस्व-व्यवस्था को श्रेष्ठ और वैज्ञानिक, श्रेय अकबर को है और उसके जीवनकाल में कृषि के क्षेत्र में प्रगति हुई, किन्तु बाद में उनकी स्थिति निरन्तर गिरती गयी और वे भूराजस्व, स्वार्थों का शिकार बनने लगे थे ।