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है | इण्डिया आफिस पुस्तकालय लन््दन में स्थित है | अंग्रेजों के शासनकाल में “इण्डिया, आफिस' शासन का प्रमुख केन्द्र था | इस कार्यालय के पुस्तकालय में भारत सरकार से, सम्बन्धित महत्वपूर्ण दस्तावेज उपलब्ध हैं, जिनमें सबसे प्रमुख दस्तावेज वे पत्र हैं जो, गवर्नर-जनरल व भारत सचिव ने परस्पर एक-दूसरे को लिखे क्योंकि उनसे अंग्रेजी नीति के, विषय में सही जानकारी मिलती है |, 691) प्रान्तीय सचिवालय : ब्रिटिशकाल में भी भारत अनेक प्रान्तों में विभक्त था|, प्रत्येक प्रान्त में सरकारी कार्यकलापों का लेखा-जोखा सचिवालयों में उपलब्ध है । स्थानीय, अधिकारियों ने विभिन्न स्थानों से समय-समय पर जो सूचनाएं भेजी वे सब, उपलब्ध हैं जिनसे राष्ट्रीय आन्दोलन सम्बन्धी महत्वपूर्ण सूचनाएं मिलती, (09) मुकदमों की मूल फाइलें व बस्ते : राष्ट्रीय आन्दोलन, राष्ट्रवादियों को गिरफ्तार किया गया था तथा उन पर मुकदमे च॑, भागों में चले इन मुकदमों की फाइलों से स्थानीय घटनाओं व, में महत्वपूर्ण सहायता मिलती है | मुकदमों के बस्तों एवं, अधिकारियों द्वारा भेजे गए तार व सूचनाओं की मूल प्रत्ियां, उन्होंने अपने उच्च अधिकारियों अथवा भारत सरकार को भेज, पत्र-व्यवहार की प्रतियां भी इन बस्तों में देखने को मिलती, (४) संसद की कार्यवाही : भारत सरकार द्वारा, पर इंग्लैण्ड की संसद में प्रस्तुत की जाती थी | इन रि, क्रान्तिकारियों के कार्यकलापों आदि से सम्बन्धित महे, 2. समकालीन संस्मरण (0ए०४८९०॥ए७०-घ्वा>, राष्ट्रीय आन्दोलन के विषय में जानने के एक, ब्रिटिशकाल में अनेक प्रशासनिक व सेना के अधिव, अनुभवों को सेनावृत्ति के पश्चात् लिपिबद्ध किया था।, हैं। ऐसे अनेक संस्मरण प्रकाशित भी हो चुके हैं, महान् विद्रोह के संस्मरण', कैम्पबेल का 'मेरे भा, भारत में इकतालीस वर्ष', आदि का नाम लिए, इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय आन्दोलन के, स्वतन्त्रता सेनानियों के संरमरण है अनेक, है तथा कुछ ने अपने लेखों द्वारा राष्ट्रीय, 3. व्यक्तिगत पत्र-व्यवहार (2, भारत में रहने वाले अंग्रेज, पत्र-व्यवहार करते थे | इन पं, समय-समय पर उल्लेख कर, अतिरिक्त इन पात्रों में, तथा उन बातों कौ +
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; अंग्रेजों के विरुद्ध एक छोटा सा संघर्ष मान लें, परन्तु उस दशा में तो कर ३, आजों के विरूद्ध संघर्ष अथवा वहाबियों के सिक्कों के विरूद्ध संघर्ष को बा कक, ना पडेगा | एक दो उदाहरणों को छोड़कर अभी तक ऐसे तथ्य सामने नहीं आए हैं जिनसे ।, प्रमाणित हो सके कि लोगों का उद्देश्य विदेशी बन्धन से मुक्ति पाना था । अत इससे यह, होता है कि यह तथाकथित प्रथम राष्ट्रीय संग्राम न तो प्रथम, न ही राष्ट्रीय के न्नता, , आचरण में, हुए थे, , यह, , संग्राम था डा. आर सी. मजूमदार का विचार है कि सैनिकों के व्यवहार और आ।, , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , ऐसा कुछ नहीं था जिससे हम यह विश्वास कर सकें कि वे अपने देशप्रेम से, अथवा यह कि वे अंग्रेजों के विरूद्ध इसलिए लड़ रहे थे कि देश को स्वतन्त्र करा | सकें, प्रकार के विचार सर जॉन सीले ने भी व्यक्त किए हैं | उनके अनुसार, देशभक्तिहीन और स्वार्थसिद्ध सिपाही विद्रोह था जिसे न तो स्थानीय ने, लोकप्रिय समर्थन ही |" इसी प्रकार के विचार डाडवेल, स्मिथ व, हैं | स्मिथ का मानना है कि यह एक सैनिक विद्रोह था जो संयुक्त, की अनुशासनहीनता और जो संयुक्त सैनिक अधिकारियों की मूर्खता, ने लिखा है, " यह सच नहीं होगा यदि इस विद्रोह को राष्ट्रीय क्रान्ति कहा, राजनीति में राष्ट्रवाद को कोई स्थान प्राप्त नहीं था | मौलाना आजाद, पुस्तक की भूमिका में इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए लिखा, पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए बाध्य हैं कि 1857 ई०, गयी योजना का परिणाम नहीं था ...देशभक्ति की भावना, पर प्रविष्ट करायी गयी और तब लोग विद्रोह के लिए उठ, डॉ. एस. एन. सेन ने भी अपनी पुस्तक 'एट्टीन, "1857 ई० का आन्दोलन पूर्व नियोजित न था | इसका, राजनीतिक दल ने किया था और न ही किसी अंग्रेज विरोधी, सिपाहियों के असन्तोष से हुआ तथा जनसाधारण में, पुस्तक में डॉ. सेन ने तर्क दिया है कि 1857 ई० के, सकता पर इसे सैनिक विद्रोह की संज्ञा देना भी गलत, तक सीमित नहीं रहा | इसके बावजूद सेन इन्ता, क्योंकि वे राष्ट्रीय तथा व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की भावना, 1857 ई० के विद्रोह के विषय में मार्क्सवादी, का है | मार्क्सवादी लेखक पी. सी. जोशी, संग्राम नहीं मानते | इन लेखकों का मानना है, नहीं हो सकता जब तक उस देश में औद्योगिक, उपरोक्त सभी विद्वान अपने मत के सम