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प्रभाव (परिणाम), (Effects), 1857 ई० का प्रथम स्वतन्त्रता -संग्राम यद्यपि असफल समाप्त हो गया, किन्तु इसक, व्यापक प्रभाव हुए। इस्ट इंण्डिया कम्पनी के भारत में प्रशासन की ओर इंग्लैण्ड की सरकार, का ध्यान, इस क्रान्ति ने आकर्षित किया तथा ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन के स्थान पर, भारत को सीधे ताज के अधीन कर दिया गया। अंग्रेजों ने यह भी समझ लिया कि भारतीय, रियासतों को हड़पने व उनसे सम्बन्ध खराब करने की नीति को परिवर्तित करना आवश्यक, था । इसी कारण महारानी विक्टोरिया ने अपनी घोषणा में स्पष्ट कर दिया कि रियासतों का, अंग्रेजी साम्राज्य में विलय नहीं किया जाएगा। इस प्रकार रियासतों का समर्थन प्राप्त करने में, अंग्रेजों ने सफलता प्राप्त की । अंग्रेजों ने सेना में अंग्रेजों की संख्या बढां दी. क्योंकि उन्हें, भारतीयों पर विश्वास, जो पहले ही कम था, अब पूर्णतया समाप्त हो गया । तोपखाने को भी, अंग्रेजों ने अपने अधिकार में रखा। अंग्रेजों ने भारतीयों के मूल विचारों को परिवर्तित करने के, लिए अंग्रेजी शिक्षा का और भी अधिक प्रचार एवं प्रसार करने का निर्णय लिया 1857 ई० के, स्वतन्त्रता-संघर्ष ने अंग्रेजों व भारतीयों की दूरी को और अधिक बढ़ा दिया तथा इसमें भाग, लेने वालों को विभिन्न तरीकों से प्रताड़ित किया गया । प्रो. जी. एन. सिंह ने लिखा, "ब्रिटिश, भारत के इतिहास में 1857 ई० के विद्रोह ने एकदम कायापलट कर दी । शासकों एवं शासितो, के पारस्परिक सम्बन्ध पूर्णतः परिवर्तित हो गए । अंग्रेजों के ह्रृदय में भारतवासियों के प्रति, अविश्वास भर गया और जनता के प्रति नीति बदल गयी। " अंग्रेजों के अत्याचारों को भी, भारतीय भुला न सके तथा उनके मन में अंग्रेजों के प्रति रोप और भी बढ़ गया तथा उनमें, राष्ट्रीयता की भावनाएं प्रबल होने लगीं। 1857 ई० का संघर्ष एक जर्जर व्यवस्था का अपने, अपहत गौरव के पुनरुद्धार का अन्तिम प्रयास था । इसकी समाप्ति के साथ नवीन शक्तियों
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तथा नवीन समाज के उदय के लिए रास्ते खुल गए । अंग्रेजों ने भी भारत में साम्राज्यवादी, प्रादेशिक विस्तार के स्थान पर आर्थिक शोषण की नीति के युग का आविर्भाव किया । 1857, ई० के विद्रोह के महत्व पर प्रकाश डालते हुए टामस रो ने लिखा है, "अल्लाह एक है तथा, मुहम्मद उसका पैगम्बर है, का नारा लगाने वालों तथा ब्रह्म में रहस्यों को बुदबुदाने वालों ने, एक-दूसरे के साथ मिलकर बगावत का झण्डा बुलन्द किया। " इस प्रकार भारतीयों में एकता, व राष्ट्रीयता की भावनाएं प्रबल हुई। इसी प्रकार के विचार मार्स ने भी व्यक्त किए हैं। मार्क्स, के शब्दों में, "यह पहला अवसर था जबकि सिपाही रेजीमेण्टों ने अपने यूरोपीयन अधिकारियों, की हत्या की, जबकि मुसलमानों और हिन्दुओं ने अपनी पारस्परिक शत्रुता का परित्याग करके, शासन के विरूद्ध आवाज उठाई, जबकि हिन्दुओं के साथ होने वाले साम्प्रदायिक दंगों का, दिल्ली के सिंहासन पर एक मुसलमान सम्राट को बैठाने के बाद अन्त हो गया, जबकि विद्रोह, ने, कुछ, स्थानों पर सीमित न रहकर व्यापक रूप धारण किया। "