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डॉ. आशीर्वादीलाल बाबर के सम्बन्ध में लिखते हैं : “वह तुकी भाषा, का सुयोग्य लेखक था और उसकी लेखन-शैली विशुद्ध थी “बह उच्चकोहि रचने, था| तुर्की भाषा में उसका दीवान (कविता-संग्रह) काव्य-कला का अनुपम ठदाहए फैवि ४, प्रशंसा उसके समसामयिक काव्य-प्रेमियों से लेकर आज तक की जाती है। फारसी, कविता लिखी थी और 'मुबइ्यान' नाम की एक विशेष पद्य-शैली का वह जन्मदाता ;., , है ।““““आत्मचरित्र के लेखकों में उसका स्थान एक राजा की भाँति ही ऊँचा नाना जा, 3 छ माना जा सकता, , हे ।, , बाबर केवल स्वयं विद्वान लेखक ही नहीं था मे उसने कई प्रसिद्ध विद्वानों, आश्रय प्रदान किया था। ख्वांदामीर, मौलाना शिहाबुद्दीन ओर मिर्जा इब्राहीम को खा, पुरस्कार प्रदान किया। 'तारीख रशीदी' में उल्लेख मिलता है कि तुर्की कविता की ख, बाबर का स्थान अमीर अली के बाद दूसरा था। वास्तव में बाबर केवल एक सफल योद्ध, और सेनापति ही नहीं था अपितु एक श्रेष्ठ लेखक और शिक्षा का महान संरक्षक भी था।, , हुमायूँ के समय में शिक्षा, हुमायूँ को विद्या-प्रेम अपने पिता से विरासत में प्राप्त हुआ था। वह उच्चकोटि का, विद्वान था। उसे 8 व ज्योतिष से विशेष लगाव था। विद्या को ग्रोत्साहन देने के लिए, वह बृहस्पतिवार और शनिवार को विद्वानों से सम्पर्क करता था। उसने दिल्ली और आगाएें, एक-एक मदरसा बनवाया था। पुस्तकों से उसे इस सीमा तक लगाव था कि अभियानों के, समय भी वह अपने साथ पुस्तकालय ले जाया करता था, परन्तु उसमें अपने पिता के समान, , उच्चकोटि की परिष्कृत रुचि का पूर्ण अभाव था।, , अकबरकालीन शिक्षा, , अकबर केवल एक महान शासक और सफल प्रशासक ही नहीं था अपितु शिक्षा का, महान संरक्षक भी था। शिक्षा के प्रति उसके लगाव के सम्बन्ध में उसके पुत्र जहाँगीर ने अपनी, आत्मकथा 'तुजके जहाँगीरी' में उल्लेख किया है : “मेरे पिता विद्वानों ओर धार्मिक व्यक्तियों, विशेष रूप से पण्डितों और हिन्दुस्तान के कक ख लोगों से वार्ताएँ किया करते थे। यद्यपि वह, स्वयं पढ़े-लिखे नहीं थे लेकिन बुद्धिमान और चतुर व्यक्तियों के निरन्तर सम्पर्क के कारण, उनकी भाषा इतनी सुसंस्कृत हो गयी थी कि उनकी बातचीत से कोई यह अनुमान नहीं लगा, सकता था कि वह शिक्षित नहीं थे ।”, , निस्सन्देह अकबर स्वयं शिक्षित नहीं था, फिर भी उसने शिक्षा के विस्तार के लिए, महत्वपूर्ण कार्य किये । अपने शासनकाल के बाद के वर्षों में उसने मुस्लिम शिक्षण-संस्था', में व्याप्त रूढ़िवादिता को दूर करने का प्रयास किया। मदरसों में दी जाने वाली धार्मिक शिव, के पाठ्यक्रम में सुधार के आदेश दिये । राज्य में दी जाने वाली शिक्षा के सम्बन्ध में, के दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए 'आइन-ए-अकबरी' में लिखा है : “प्रत्येक लड़के को नैतिकता,
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त से सम्बन्धित धारणाओं , कृषि, ज्यामिति, ज्योतिष, शरीर-विज्ञान गृह, और इंतिहीस के पुस्तकों को पढ़ना चाहिए और सभी विषयों का # आर .४५8०803/, तेना चाहिए। श, , अकबर ने अपने परिवार के लिए शिक्षा की समुचित व्यवस्था की | साथ ही जनता की, शिक्षा की ओर भी उचित ध्यान दिया। उसने शिक्षा के माध्यम से हिन्दू व मुसलमान दो, पर्त्यर विरोधी सम्प्रदायों को निकट लाने का प्रयास किया । अकबर ने राजाज्ञा जारी की कि, म॑ंस््कृत विद्यालयों में व्याकरण, न्याय व पातंजलि के भाष्य पढ़ाये जायें। सम्भवतः उनका, उद्देश्य यह था कि जो मुसलमान छात्र संस्कृत का अध्ययन करें वे इन विषयों की भी जानकारी, प्राप्त करें। आइन-ए-अकबरी' में उल्लेख है कि अकबर ने आधुनिक युग के समस्त विषयों, को पढ़ाये जाने पर बल दिया। उसने शिक्षा-प्रणाली को सरल बनाने के लिए नवीन सुधार, किये ओर शिक्षा के स्तर को ऊंचा उठाने का प्रयास किया।, , अकबर के श्रयास्रों से मकतबों व मदरसों की स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार हुए।, शासकीय आज्ञा से मुस्लिम मकतबों व मदरसों में हिन्दुओं को प्रवेश की आज्ञा दी गयी और, वे फारसी का अध्ययन करने लगे। अकबर ने शिक्षा में भी धर्म-निरपेक्षता को स्थान दिया, और अनेक हिन्दू फारसी के अध्यापक नियुक्त किये गये |, , “अकबसनामा' के अनुसार, “अकबर ने फतेहपुरसीकरी में एक विशाल सुन्दर मदरसा, स्थापित कराया । आगरा में उसने एक मदरसा बनवाया। अकबर की धायत्मों माहम अनगा, , ने दिल्ली में एक प्रसिद्ध मदरसा हक अकबर ने व्यावसायिक शिक्षा के प्रशिक्षण के लिए, भी स्कूल खुलवाये और वहाँ योग्य नम को नियुक्त कराया ताकि लड़के अच्छी शिक्षा, , प्राप्त कर सकें ।, , जहाँगीरक्कालीन शिक्षा, , जहाँगीर अपने पिता के समान विद्या-अ्रेमी शासक था। उसने अपने शासनकाल में शिक्षा, के विकास के लिए यह अध्यादेश जारी किया था कि यदि कोई व्यक्ति निःनन््तान मर जाये तब, उसकी समस्त सम्पत्ति मदरसों को दे दी जाये। इस प्रकार से प्राप्त होने वाली सम्पत्ति से अनेक, मदरसों का जीर्णोद्धार कराया गया। जहाँगीर ने अपने शासनकाल में ऐसे अनेक मदरसों की, मरम्मत करायी जिनमें वर्षों से जीव-जन्तु निवास कर रहे थे। उसने उन्हें छात्रों एवं अध्यापकों से, भर दिया । अतः स्पष्ट है कि जहाँगीर ने शिक्षा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।, , शाहजहाँ के काल में शिक्षा, , नम के काल में शिक्षा के सम्बन्ध में इतिहासकारों में मतान्तर, सकारों का मत है कि उसके काल में शिक्षा में पर्याप्त उनति जब, , हा । और गणित से
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अन्य इतिहासकारों का मानना यह है कि शिक्षा के अत्यन्त व्ययसाध्य होने के, , विस्तार अत्यन्त सीमित हो गया था। परन्तु उपर्युक्त वर्णन से यह अवश्य स्पष्ट हो बा, कि शाहजहाँ के काल में भले ही नवीन मदरसों की स्थापना न गे हो परन्तु पूर्व-काल से ख्, मदरसों पर कोई अंकुश नहीं था। स्टीफेन्सन ने तो यह भी उल्लेख किया है कि शाहजल, दिल्ली में जामा मस्जिद के समीप एक मदरसे का निर्माण भी कराया था। शाहजहाँ का पृ, दाराशिकोह स्वयं एक उच्चकोटि का विद्वान था | उसने शिक्षा की प्रगति के लिए, , कार्य किये थे।, , ओऔरंगजेबकालीन शिक्षा, , औरंगजेब एक कट्टर सुन््नी मुसलमान था। अपनी 1 के कारण वह हिन्दुओं हि, अ्रबल विरोधी था। सत्तारूढ़ होने के पश्चात् उसने हिन्दुओं पर अनेक प्रकार के अत्याचार किये, और कला के पतन का मार्ग उन्मुख किया। उसने अनेक हिन्दू मन्दिर व पाठशालाएँ तुझचा, दीं। वह केवल मुस्लिम प्रजा की शिक्षा की व्यवस्था का इच्छुक था व गवरीं को, उसने इस सम्बन्ध में स्पष्ट आदेश प्रसारित कर दिये थे | कीन ने लिखा है कि “औरंगजेब मे, मृत्युदण्ड का निषेध कर दिया था, कृषि को प्रोत्साहित किया था, अनेकानेक स्कूलों एवं कॉलेजों, की स्थापना करायी थी तथा अनेक पुल व सड़कों का निर्माण कराया था।” ओरंगजैब मे, अपने शासनकाल में मदरसों की स्थापना एवं अध्यापकों की आर्थिक सहायता दिये जाने की, अपने पूर्वजों की परम्परा को जारी रखा। उसके समय में 'मदरसा-ए-रहीमिया' नामक एक, उच्चकोटि की शिक्षा-संस्था की स्थापना हुई | औरंगजेब की मृत्यु के बाद भी शिक्षा के विकाप्न, , की प्रक्रिया निरन्तर जारी रही जिसमें उसके उत्तराधिकारियों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।, मुगल शिक्षा-पद्धति, , मुगल-काल में भी सल्तनत-काल के समान शिक्षा का उद्देश्य मूल रूप से मजहबी बना, रहा | केवल अकबर के शासनकाल में शिक्षा को धार्मिकता से दूर करने के कुछ प्रयास किये, गये तथा उसमें उदारता का समावेश हुआ । अकबर ने इस्लामी मजहबी शिक्षा के साथ हिन्दू, धर्मशात्र के अध्ययन को भी संयुक्त कर दिया, ताकि दोनों धर्मों के तुलनात्मक अध्ययन पे, , दृष्टिकोण की संकीर्णता समाप्त हो जाये । उच्च शिक्षा के विकास के लिए अनेक कॉलेजों की., स्थापना की गयी।, , हिन्दू-शिक्षा--मुगल-काल में हिन्दुओं के अनेक प्रसिद्ध शिक्षा-केद्ध थे जिनमें बनारस, व मिथिला ग्रख्यात थे। बर्नियर ने बनारस के सम्बन्ध में लिखा है : “बनारस एक विश्व, विद्यालय की भाँति था परन्तु आज के विश्वविद्यालयों के समान उसमें न तो कॉलेज थे और, न ही नियमित कक्षाएँ लगती थीं। बनारस विश्वविद्यालय प्राचीन स्कूलों की तरह था जहां _, नगर के विभिन्न हिस्सों में गुरुजन अपने-अपने घरों पर विद्यादान करते थे |” ै, , परीक्षा-पद्धति--मुगल-काल में आज के समान परीक्षा-पद्धति नहीं थी। परीक्षाएँ री, होती थीं। अध्यापकों की अनुमति से विद्यार्थी को अगली कक्षा में भेज दिया जाता थी _