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हम सब बडे से रौलाब में फंस चुके है। हम लाख कोशिश करें तो भी इस सैलाब से बचने का कोई उपाय हमारे पास, नहीं है। अर्थात, सुनहरे भविष्य के सपने लेकर भारतवासियों ने आजाद भारत में प्रवेश तो किया पर स्वार्थाघ सूत्रधारों, ने आत्केंद्रित राजनीति को विकसित करते हुए जनहित के विचार को किनारे रख दिया। जिससे देश का आप, , आदमी स्वतंत्रतापूर्व काल में जितना अभावग्रस्त, शोषित जीवन जी रहा था उससे भी अधिक अभावग्रस्तता का, , सामना उसे करना पड़ रहा है। एक गहरी निराशा, बेदना, देश के आम आदमी के जीवन में व्याप्त हो गई है। इससे, , बाहर निकलने का कोई उपाय आम आदमी के पास नहीं है।, , आजादी के बीस साल बाद देश की बदतर बनी अवस्था पर टिप्पणी करना कवि को लगभग, महसूस हो रहा है क्योंकि कवि की टिप्पणी सुनेगा कौन? देश के वे सूत्रधार जिनसे किए जानेवाले हर प्रश्न को वे, जानबूझकर अनसुना कर रहे हैं या फिर उनके विरोध में उठनेवाली हर आवाज को प्रयासपूर्वक दबा रहे हैं। ऐसे में देश, के आम आदमी की अवस्था जानवरों के समान बनी हुई है। जिस प्रकार जानवर अपनी भावनाओं को शब्द के, माध्यम से प्रकट नहीं कर सकते बिल्कुल उसी प्रकार देश का आम आदमी मूक बनकर अन्याय, शोषण, प्रताडना,, , अपमान, उपेक्षा, पीडा को सहता जा रहा है।, , अब इन स्थितियों को सहते जाने की लोगों को आदत सी हो गई है। प्रतिकूलता के साथ आम आदमी का, जीवन व्यर्थ बीतता जा रहा है। हर तरफ असंतोष, निराशा, सांप्रदायिक तनाव, दंगेफसाद, झगडे फैलते जा रहे हैं।, देश के भ्रष्टाध सूत्रधार, राजनेता जानबुझकर आम आदमी को इन सब में व्यस्त रख रहे हैं ताकि आम आदमी, व्यक्तिगत विकास की चिंता न करें और न ही राजनेताओं से सवाल करें कि आजादी ने आम आदमी को क्या दिया?, देश की इन स्थितियों में कवि को आजाद भारत का लहराता हुआ झंडा बडा निरर्थक महसूस हो रहा है। देश के तिरंगे, पर अभिमान महसूस करना भी कवि को निरर्थक प्रतीत हो रहा हैं कवि समझ नहीं पा रहा है कि वह कौन सी भूमिका, निभाएँ। असहाय आम लोगों का हौसला बढाने के लिए आगे आए या देश की बदतर स्थितियों के लिए जिम्मेदार, लोगों से जवाब मांगे या फिर इस बात पर चिंतन करें कि देश की ऐसी स्थितियाँ कैसे बनी? यदि देश आजाद न बनता, तो इसका चित्र कैसा होता? आजाद बनकर देश के आम आदमी ने क्या पाया? कवि के पास इन प्रश्नों के उत्तर नहीं, है। गहरी बेचैनी लेकर कवि अपने आप से सवाल करता है कि क्या आजादी का मतलब तीन रंगोवाला लहरता, निशान है जिसे एक पहिया ढोता है? जिसे लहराते देख देशवासी अपने आप में कुछ क्षणों के लिए गर्व की भावना भर, देते हैं और फिर दूसरे ही क्षण गहरी निराशा, मायूसी उनमें भर जाती है। कवि को इन सारे प्रश्नों के उत्तर में गहरी, खामोशी घेर लेती है। आजादी की अनुपयुक्तता से निराश कवि अंतरमुख बन जाते हैं।, , इस प्रकार प्रस्तुत कविता आजाद भारत की दुरावस्था और आम आदमी की व्यथा पर गहरा व्यंग्य | है।, 7.4 स्वयंअध्ययन के प्रश्न :, , 1) धूमिल का पूरा नाम ................. है।, 1) गोपाल दास सक्सेना, , , , इ्बात्रा24 धहै। 0आ50अ1श