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२. हिन्दी : उद्भव और विकास, हिन्दी एक आधुनिक आर्यभाषा है। अन्य आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं की भाँति हिन्दी का, उद्भव वैदिक संस्कृत से प्राकृत तथा प्राकृत से अपभ्रंश इस क्रम से इ. स. १००० के आसपास, हुआ है। वैदिक संस्कृत काल में आर्यभाषा-प्रदेश में तीन स्थानीय वोलियाँ विकसित हुई था, पश्चिमोत्तरी, मध्यवर्ती तथा पूर्वी। प्राकृत के प्रारंभिक काल में अर्थात् पालि काल में एक और स्थानीय, बोली दक्षिणी का विकास हुआ। प्राकृत काल में ये स्थानीय बोलियाँ धीरे-धीरे छः सात रूपों में विकोसत, होती रही। इन बोलियों के संस्कारिक रूपों का प्रयोग साहित्य में होता रहा, साथ ही इनक जन-, भाषा रूपों का भी विकास होता रहा। यही जनभाषा रूप अपभ्रंश की संज्ञा पाते हैं। इन्हीं अपभ्रशो, से आधुनिक आर्यभाषाओं का उद्भव हुआ। आज 'हिन्दी' की जो पांच उपभाषाएँ है- पूर्वी, पश्चिमी,, राजस्थानी, बिहारी तथा पहाड़ी इनका उद्भव निम्नलिखित अपभ्रंशों से ही हुआ, है-, अपभ्रंश, विकसित उपभाषा, १) अर्धमागधी, २) शौरसेनी, पूर्वी हिन्दी, पश्चिमी हिन्दी, राजस्थानी हिन्दी, पहाड़ी हिन्दी, बिहारी हिन्दी, इसा की सातवीं-आठवीं शताब्दी से हिन्दी के बीज दिखाई देते हैं, इस दृष्टि से जैन तथा सिद्ध, कवियों की रचनाओं का अध्ययन किया जा सकता है। इन रचना को विशुद्ध अपभ्रंश की रचनाएँ, मानना संगत नहीं है। सरहपाद की रचनाओं में भाषा का जो रूप दृष्टिगोचर होता है, उसी के, आधार पर कहा जा सकता है कि आठवीं सदी में हिन्दी अपनी पहचान बनाने में लगी थी। इस, दृष्टि से हिन्दी का उद्भव काल आठवीं शताब्दी कहा जा सकता है, लेकिन प्राप्त सिद्ध जैन साहित्य, की रचनाओं का भाषा-रूप निश्चित रूप में आठवीं सदी का है यह नहीं कहा जा सकता। ये रचनाएँ, शताब्दियों तक जनमानस में रही है और आगे कभी लिपिबद्ध की गयी है। इसलिए इनकी भाषा, में भी परिवर्तन होते रहे हैं। अतः भाषा की दृष्टि से ये रचनाएँ प्रामाणिक नहीं कही जा सकती।, अधिकांश भाषा वैज्ञानिकों ने 'हिन्दी' का उद्भव इ.स. १००० के आस-पास माना है और हिन्दी, साहित्य इतिहासकारों ने सिद्ध-जैन साहित्य को अपभ्रंश का न मानकर हिन्दी का माना है। इसलिए, एक अजीब तरह की विसंगति इस संदर्भ में यह पायी जाती है कि हिन्दी साहित्य का आरंभ आठवीं, सदी में और हिन्दी-भाषा का उद्भव इ.स. १००० के आस पास। साहित्य का जन्म भाषा के उद्भव, के पूर्व कैसे?... देखा तो यह जाता है कि जनभाषा के प्रौढ़ होने पर ही उस में साहित्य सृजन होने, लगता है। अपभ्रंश से पूर्णतः मुक्त हिन्दी भाषा रूप भले ही बारहवीं शताब्दी में दिखाई देता हो,, किन्तु जनमभाषा के रूप में हिन्दी का उद्भव इस से बहुत पहले हुआ होगा। इस दृष्टि से अपभ्रंश, से हटकर जो जनभाषा रूप जिस समय से प्राप्त होता है उस समय से हिन्दी का उद्भव काल माना, जा सकता है। अतः अगर सिद्धों की रचनाएँ हिन्दी साहित्य है तो हिन्दी का उद्भव काल आठवीं, ३) मागधी, (१८)