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पाँच भाई-बहनों में सबसे छोटी मन्नू अपने से दो साल बड़ी बहन सश, ु ीला के साथ घर के बड़े आँगन में, सतोलिया, लँ गडी-टाँग, पकडम-पकडाई, काली टीलो खेलती थी। इन खेलों के अलावा कमरों में गड्, ु डे-गड़ि, ु यों के, ब्याह रचाती पास-पड़ोस के सहे लियों के साथ। भाइयों के साथ कभी गिल्ली-डंडा खेलती थी। पतंग उड़ाने, काँच, पीसकर माँजा सत, ू ना आदि भी करती थी। परू े मोहल्ले भर में वह खेल खेलती रहती थी।, 4.'पड़ोस-कल्चर' के बारे में लेखिका क्या कहती हैं?, उत्तर: 'एक कहानी यह भी' आत्मकथा में मन्नू भंडारी 'पड़ोस-कल्चर' के बारे में निम्नलिखित विचार बताया है ।, अपने घर के अंदर और घर के बाहर खेले जानेवाले खेलों के बारे में मन्नू कहती है कि उस जमाने में घर, की दीवारें घर तक ही समाप्त नहीं हो जाती थीं बल्कि परू े मोहल्ले तक फैली रहती थीं। इसलिए मोहल्ले के, किसी भी घर में जाने पर कोई पाबंदी नहीं थी, बल्कि कुछ घर तो परिवार का हिस्सा ही थे। आजकल ऐसे नहीं, है ज़िंदगी खद, ु जीने के इस आधनि, ु क दबाव ने शहरों के फ्लैट में रहनेवालों को यह 'पड़ोस कल्चर' नहीं समझ में, आता। घर के चार दिवारों में रहनेवाले लोगों ने इस पड़ोस कल्चर को कितना संकुचित, असहाय और असरु क्षित, बना दिया है कि पड़ोस में रहके भी हमें उनके बारे में कुछ भी पता नहीं रहता, ना ही उनको हमारे बारे में ।, 5.शीला अग्रवाल का लेखिका पर क्या प्रभाव पड़ा?, उत्तर :'एक कहानी यह भी' आत्मकथा में मन्नू भंडारी ने अपने जीवन की घटनाओं पर प्रकाश डाला है । घर का, वातावरण, माता-पिता के स्वभाव, भाई-बहन और सहे लियों के साथ खेल-कूद, प्राध्यापिका शीला अग्रवाल का, प्रभाव, स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रियता आदि का रोचक वर्णन किया गया है । आपकी रचनाओं में स्त्री-मन से, जड़, ु ी अनभ, ु ति, ू यों की अभिव्यक्ति दे खी जा सकती है ।, दसवीं कक्षा तक मन्नू बिना लेखक के बारे में जाने कोई भी किताब पढ़ती थी। सन 1945 में दसवीं पास, कर 'सावित्री' गर्ल्स हाय स्कूल में फस्ट इयर करने आई तो हिन्दी की प्राध्यापिका शीला अग्रवाल से परिचय, हुआ। उनके कारण मन्नू ने साहित्य जगत में प्रवेश किया। उन्होंने मन्नू को किताबों का चन, ु ाव करके पढ़ना,, पढ़ी हुई किताबों पर बहस करना आदि सिखाया। चन, ु -चन, ु कर किताबें पढ़ने को दी। मन्नू ने तब बहुत लेखकों, की जैसे प्रेमचन्द,अज्ञेय,यशपाल,जैनेंद्र आदि की किताबें पढ़ी। इस तरह शीला अग्रवाल ने मन्नू के मन में, साहित्य का दायरा ही नहीं बढ़ाया बल्कि घर की चारदीवारी के बीच बैठकर दे श की स्थितियों को जानने से भी, उन स्थितियों के भागीदार बनना सिखाया।, इस प्रकार मन्नू के व्यक्तित्व निर्माण में हिन्दी प्राध्यापिका शीला अग्रवाल का पात्र प्रमख, ु रहा।, 6.पिता जी ने रसोई को 'भटियारखाना' क्यों कहा है ?, उत्तर :'एक कहानी यह भी' आत्मकथा में मन्नू भंडारी ने अपने जीवन की घटनाओं पर प्रकाश डाला है । घर का, वातावरण, माता-पिता के स्वभाव, भाई-बहन और सहे लियों के साथ खेल-कूद, प्राध्यापिका शीला अग्रवाल का, प्रभाव, स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रियता आदि का रोचक वर्णन किया गया है ।, जब बहनों की शादी हुई और भाई पढ़ाई के लिए बाहर चले गए तब मन्नू की ओर पिताजी का ध्यान गया।, जिस उम्र में लड़कियों को स्कूल की शिक्षा के साथ-साथ अच्छी गहि, ृ णी, अच्छा खाना पकाना आदि सिखाया, जाता था लेकिन पिताजी का आग्रह था कि मन्नू रसोई से दरू रहे । रसोई को वे भटियारखाना कहते थे और, उनके हिसाब से वहाँ रहना अपनी क्षमता और प्रतिभा को भट्टी में झोंकना था।, 7.एक दकियानस, ू ी मित्र ने मन्नू भंडारी के पिता से क्या कहा?, उत्तर : 'एक कहानी यह भी' आत्मकथा में मन्नू भंडारी ने अपने जीवन की घटनाओं पर प्रकाश डाला है । घर का, वातावरण, माता-पिता के स्वभाव, भाई-बहन और सहे लियों के साथ खेल-कूद, प्राध्यापिका शीला अग्रवाल का, प्रभाव, स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रियता आदि का रोचक वर्णन किया गया है ।, आज़ाद हिन्द फ़ौज के मक, ु दमे के सिलसिले में जब जगह हड़ताल का आह्वान था। छात्रों का एक बहत, बड़ा समह, ू भी चौराहे पर इकट्ठा होकर भाषणबाजी कर रहे थे तब पिताजी के एक निहायत दकियानस, ू ी मित्र ने, उन्हें जाकर कहा - ", 8.मन्नू भंडारी की माँ का परिचय दीजिए।