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इकाई - 1, 1) भाषा की परिभाषाएँ।, 2) भाषा की विशेषताएँ।, 3) भाषा की उत्पत्ति एवं तत्संबंधी विविध वाद।, (दैवी उत्पत्ति सिद्धांत, धातु सिद्धांत, अनुकरण सिद्धांत, श्रमपरिहार सिद्धांत,, मनोभावाभिव्यंजक सिद्धांत तथा समन्वित (समन्वय) सिद्धांत), 1.1 उद्देश्य।, 1.2, प्रस्तावना।, 1.3 विषय विवेचन।, 1.3.1, भाषा की परिभाषाएँ।, 1.3.2, भाषा की विशेषताएँ।, 1.3.3, भाषा की उत्पात्ति एवं तत्संबंधी विविध वाद।, 1.4 स्वयं अध्ययन के लिए प्रश्न।, 1.5 पारिभाषिक शब्द, शब्दार्थ।, 1.6 स्वयं अध्ययन के प्रश्नों के उत्तर।, 1.7, सारांश।, 1.8, स्वाध्याय।, 1.9 क्षेत्रीय कार्य।, 1.10 अतिरिक्त अध्ययन।, 1.1 उद्देश्य :, इस इकाई को पढ़ने के बाद आप, 1., भाषा के व्यापक तथा सीमित अर्थ से परिचित होंगे।, 2., भाषा की भारतीय और पाश्चात्य परिभाषाओं से परिचित होंगे।, 3., भाषा विज्ञान की दृष्टि से भाषा की सार्थक परिभाषा को जान सकेंगे ।, 4., भाषा के स्वरूप को समझ सकेंगे।
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5., भाषा की विशेषताओं से परिचित होंगे।, 6., भाषा की उत्पत्ति संबंधी विविध सिद्धांतों से परिचित हो जाएँगे।, 1.2 प्रस्तावना :, मनुष्य सामाजिक प्राणी है। समाज में रहकर वह परस्पर विचार-विनिमय करना चाहता है।, आत्माभिव्यक्ति की यह इच्छा मनुष्य की स्वाभाविक इच्छा है। अपनी बात जहाँ वह दूसरों से कहना, चाहता है, वहीं दूसरों के विचारों को ग्रहण भी करता है। अर्थात जिस प्रकार मनुष्य अपने विचार दूसरों, को सुनाना चाहता है, उसी प्रकार दूसरों के विचार सुनना भी चाहता है। आत्माभिव्यक्ति की इस इच्छा, (Desire of self expresion ) ने भाषा को जन्म दिया है| मनुष्य के विचार -विनिमय के अनेक साधनों, में "भाषा' एक महत्त्वपूर्ण साधन है। भाषा के व्यापक एवं सीमित अर्थ कौनसे हैं ? भाषा की कौनसी, महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ हैं? कौन कौनसे विद्वानों ने भाषा को परिभाषित एवं परिभाषाबद्ध करने की कोशिश, की है? भाषा विज्ञान की दृष्टिसे भाषा की कौनसी परिभाषा है ? तथा भाषा की सबसे व्यापक परिभाषा, कौनसी है? भाषा की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ कौनसी हैं ? भाषा की उत्पत्ति कैसी हुई तथा उससे संबंधीत, कौन-कौनसे सिद्धांत प्रचलित हैं? आदि प्रश्नों के संदर्भ में हम प्रस्तुत इकाई में अध्ययन करेंगे ।, 1.3 विषय विवेचन :, हम क्रमश: भाषा का अर्थ, भाषा की परिभाषाएँ भाषा की विशेषताएँ एवं भाषा उत्पत्ति संबंधी, सिद्धांतों का विवेचन करेंगे ।, 1.3.1 भाषा की परिभाषाएँ :, मनुष्य सामाजिक प्राणी है। समाज के लोगों के साथ उसे सर्वदा ही विचार-विनिमय करना पड़ता है।, कभी वह शब्दों या वाक्यों द्वारा अपने आपको (अपने भावों को) प्रकट करता है तो कभी सिर हिलाने, से उसका काम चल जाता है। समाज के उच्च और शिक्षित वर्ग में लोगों को निमंत्रित करने के लिए निमंत्रण, पत्र छपवाये जाते हैं, तो देहात के अनपढ़ और निम्नवर्ग में निमंत्रण के लिए हल्दी, सुपारी या इलायंची बाँट, दी जाती है। रेलवे-गार्ड और रेल-, के पात्र 'भरे भवन में नैनों' से संकेत करते हैं। चोर अंधेरे में एक - दूसरे का हाथ पकड़कर, छूकर या दबाकर, न- चालक का विचारविनिमय झंडियों से होता है, तो बिहारी जैसे कवियों, अपनी बातों को प्रकट करते हैं। इसी तरह हाथ से संकेत, करतल-ध्वनि ( तालियाँ बजाना) आँख टेढ़ी करना, या मारना या बंद करना, खाँसना, मुँह बिचकाना, तथा गहरी साँस लेना आदि अनेक प्रकार के साधनों से, हमारे विचार-विनिमय का काम चलता है। ऐसे ही यदि पहले से निश्चित कर लिया जाए तो, स्वाद या, गंध द्वारा तथा विशेष कृति से भी अपनी बात कही जा सकती है। उदा. यदि 'मैं काँफी पिलाऊँ' तो,, समझ जाना कि समय है, काम करूँगा। किंतु यदि 'चाय पिलाऊँ' तो समझ जाना कि मेरे पास समय नहीं, है, मैं काम नहीं करूँगा। या यदि मेरे कमरे में गुलाब की अगरबत्ती जलती मिले तो समझना कि तुम्हारा, काम हो गया है, किंतु यदि चंदन की अगरबत्ती जलती मिले तो समझ जाना की काम नहीं हुआ है।, 2
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इस तरह अपने पाँचों ज्ञानेंद्रियों द्वारा मनुष्य विचार विनिमय करता है, तथापि अपने भावों एवं विचारों को, व्यक्त करने वाले पाँचों ज्ञान- इंद्रियों में से गंध-इंद्रिय और स्वाद- इंद्रिय का प्रयोग प्राय: नहीं होता। स्पर्श -, इंद्रिय का भी प्रयोग कम ही होता है। इससे अधिक प्रयोग आँख का होता है, जैसे रेल का सिग्नल, रेलवे, गाडी को हरी या लाल झंडी दिखाकर गाडी के चलने या रुकने का संकेत देना आदि। विंतु इन सभी में, सबसे अधिक प्रयोग कर्ण-इंद्रिय का होता है । अपनी सामान्य बातचीत में हम इसी का प्रयोग करते हैं।, वक्ता बोलता है और श्रोता सुनकर विचार या भाव को ग्रहण करता है। वस्तुतः विचार विनिमय के ये, सभी साधन 'भाषा' हैं।, परंतु यह 'भाषा' शब्द अति व्यापक अर्थ में प्रयुक्त है। भाषाविज्ञान में भाषा का इतना व्यापक रूप, अभिप्रेत नहीं है। भाषाविज्ञान में उसे सीमित अर्थ में ही प्रयुक्त किया जाता है । अतः भाषा की परिभाषा, करने से पहले उसके इन दोनों अर्थों को समझ लेना आवश्यक है।, 1) 'भाषा' का व्यापक अर्थ :, व्यापक अर्थ में 'भाषा' शब्द उन समस्त अभिव्यक्तियों का बोधक है, जिनसे एक प्राणी दूसरे प्राणी, पर अपनी इच्छा, भावना, उत्तेजना या आवेश एवं प्रतिक्रिया आदि प्रकट करता है । इसके अंतर्गत शारीरिक, चेष्टाएँ, संकेत, विविध प्रकार की झेंडियाँ, पुलिस की सीटी, स्काउट के 'संकेत', चोर डाकुओं की, सांकेतिक अभिव्यक्ति, बच्चों के खेल व तमाशे के हेतु निर्धारित संकेत; घुमाव, ऊँचाई नीचाई, पुल,, पाठशाला, रेल्वे फाटक, आदि के होने का बोध कराने यात्रियों के लिए रास्ते पर दिए गए संकेत; प्रकृति, से प्राप्त मौन निमंत्रण आदि न जाने कितने ही संकेत समाविष्ट हो जाते हैं ।, संक्षेप में कहा जा सकता है कि भाषा के व्यापक अर्थ में वे सभी माध्यम आ जाएँगे जिनके द्वारा, मनुष्य परस्पर विचार विनिमय करता है। इन माध्यमों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है, 1) स्पर्श ग्राह्य 2 ) नेत्र - ग्राह्य तथा 3) श्रवण-ग्राह्य।, 1) स्पर्श - ग्राह्य : इसके अंतर्गत वे साधन आते हैं जिनके द्वारा मनुष्य विचार- विनिमय करते समय, स्पर्श का सहारा लेता है, जैसे पुलिस का खतरा होने पर एक चोर दुसरे का हाथ दबाकर उसे बिना बोले, ही उस खतरे का संकेत देता है। इस प्रकार स्पर्श से वे आपस में विचार-विनिमय कर लेते हैं।, 2) नेत्र-ग्राह्य : इस वर्ग के अंतर्गत वे साधन आते हैं; जिनके दुवारा विचार-विनिमय करते समय, मनुष्य संकेतों का सहारा लेता है। इन संकेतों के द्वारा एक मनुष्य दूसरे तक अपनी बात पहुँचा देता है।, चूँकि, दूसरा इन संकेतों को अपने नेत्रों से ग्रहण करता है, अतः इसको नेत्र- ग्राह्य कहा गया है । स्काऊटों, का परस्पर झंडियों के द्वारा विचार-विनिमय करना अथवा रेलवे- गार्ड का हरी, लाल झंडी हिलाकर गाडी, के चलने व रूकने का संकेत देना आदि, विचार-विनिमय के नेत्र - ग्राह्य साधन हैं।, 3) श्रवण-ग्राह्य : श्रवण-ग्राह्य वर्ग के अंतर्गत वे समस्त ध्वनियाँ आ जाती हैं, जिनके दुवारा मनुष्य, अपने विचारों को व्यक्त करता है। चुटकी बजाकर किसी को बुलाना या डाक-घर के तार बाबू को 'गिर -, 3
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गिट' ध्वनि के द्वारा संकेत को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजना, विचार-विनिमय के श्रवण- ग्राह्य, साधन हैं।, उपर्युक्त बातों पर विचार करते हुए भाषा की व्यापक परिभाषा इस प्रकार हो सकती है।, (1) 'भाषा' शब्द संस्कृत की 'भाष्' धातु से बना है। 'भाष्' धातु का अर्थ है - 'बोलना' या, 'कहना। अर्थात भाषा वह है, जिसे बोला जाए। बोलते तो संसार के सभी प्राणी हैं। प्रत्येक जिवधारी;, गाय-बंदर, कुत्ता, बिल्ली, चिड़िय, भाषा का प्रयोग करते हैं, लेकिन हम उनको विचार-विनिमय की भाषा नहीं कह सकते, क्योंकि उनकी भाषा, केवल सांकेतिक होती है, जब कि मानव की भाषा का स्वरूप केवल सांकेतिक न होकर लिखित भी है ।, आदि परस्पर विचारों एवं भावों के आदान-प्रदान हेतु किसी न किसी, (2) अपने व्यापकतम रूप से "भाषा वह साधन है, जिस के माध्यम से हम सोचते हैं तथा अपने, विचारों को व्यक्त करते हैं।" लेकिन भाषा विज्ञान की दृष्टि से भाषा का इतना विस्तृत अर्थ नहीं हैं। उसमें, हम इन सभी साधनों को नहीं लेते, जिनके द्वारा विचारों को व्यक्त करते हैं एवं जिनके द्वारा सोचते हैं।, भाषा' का सीमित अर्थ :, भावाभिव्यक्ति के सभी साधनों को भाषा मानने से उसके अर्थ में अतिव्याप्ति दोष की निर्मिती हो, जाती है, जो भाषा के वैज्ञानिक अर्थ की दृष्टि से उपयुक्त नहीं है । वस्तुत: भाषा का अपना एक सीमित, अर्थ है, जो उसको वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान करता है।, 'भाषा' शब्द को हम संकीर्ण अथवा संकुचित अर्थ में भी प्रयुक्त करते हैं । शास्त्रीय दृष्टि से 'भाषा', पर विचार करते समय हम उन सब संकेतों और संकेत जन्य अभिव्यक्तियों को ग्रहण नहीं करते,, की वाग्यंद्रियों से न निकली हो। भाषा विज्ञान में 'भाषा' शब्द से यही 'संकीर्ण' या शास्त्रीय अर्थ हम ग्रहण, करते हैं।, जो, मनुष्य, सीमित अर्थ के अनुरुप भाषा की वैज्ञानिक परिभाषा निर्धारित करने से पहले उसमें निहित मूलभूत, बातों का विचार होना आवश्यक है, ये निम्नप्रकार हैं।, 1., भाषा विचार-विनिमय का साधन है।, 2., वह मनुष्य के उच्चारण अवयवों से निःसृत ध्वनिप्रतीकों की व्यवस्था होती है।, 3., यह ध्वनिप्रतीक सार्थक होते हैं और वे विश्लेषण करने योग्य होते हैं।, 4. ये ध्वनिप्रतीक यादृषच्छिक ( माने हुए ) होते हैं।, 5., एक भाषा का प्रयोग समाज के एक वर्ग-विशेष में होता है।, भाषा के वैज्ञानिक अर्थ को स्पष्ट करने का प्रयत्न भारतीय तथा पार्चात्य भाषा वैज्ञानिकों ने किया, है। उनकी परिभाषाओं के आधार पर भाषा का वैज्ञानिक स्वरूप स्पष्ट हो जाता है।