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यह तो शर्म की बात है, , , , , , , सुशीला टाकभौरे, , .. जन्म-दिन, सगाई-ब्याह में, लुटेरे,, - सीमा से अधिक खर्च।, “ फैलातें रहें हाथ फिर, - जीवन भर अभाव में,, < कस्कुंट के बर्तन, झोपड़ी जैसे मकान,, रह जाये अशिक्षित सन्तान, वर्तमान पीढ़ी इक्कीसवीं सदी में, अपनायें पूर्वजों के पुराने-तुच्छ रोजगार, यह तुम नहीं हो सकतेयह तो शर्म की बात है।, , डूबे रहें कर्ज में,, « पसीने की कंमाई, : -. देते रहें ब्याज में, चलता रहे . 5 ज, .. पीढ़ी दर पीढ़ी कर्ज। डे कं, : उत्तराधिकारी रूप में - जा, . लिखा दें नाम वंशजों का- - . 5 यह तुम नहीं होसकते- यह तो शर्म की बातहै।..../, , , , यह तो शर्म की बात है / 45
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1. मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी पुरस्कार, 2. उत्तर प्रदेश दलित साहित्य अकादमी पुरस्कार, , पुरस्कॉर, 3. मध्य प्रदेश दलित साहित्य अकादमी विशिष्ट सेवा पुर, , 4. महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी, हिंदी सेवा पुरस्कार, 5. सावित्रीबाई फुले सम्मान एवं पुरस्कार (स्मणिका फाऊंडेशन), , 3.3.2 यह तो शर्म की बात है! कविता का परिचय :, , सुशीला टाकभोरे लिखित यह तो शर्म की बात है कविता यह तुम भी जानो" काव्य संग्रह में संकलित, है। दलित और स्त्री दोनों सुशीला टाकभौरे की कविता और चिंतन के केंद्र में है। परंतु इस कविता के माध्यम, से कवयित्री दलित वर्ग के पुरूषों से सीधे सवाल करती है उनकी आँखें खोलने का अ्यास करती हुई लिंखती, है। वह पुरानपंथी विचारों में जी रहे पुरूषों से कहती है कि इक्कीसवीं सदी में भी तुम परम्परागत तुच्छ रोजगार, को अपनाते हो, कर्ज में डुबे रहते हो, नशा-पान करते हो, गाली गलौज पर उतर आते हो, परिजनों के साथ, गैर व्यवहार करते हो, हजारों सालों से जो वर्ग तुम्हें तुच्छ एवं अमानव समझता रहा है उस वर्ग के लोगों को, , 8४ एवं सगाई-ब्याह में अपनी |, हो कडाने जाते हैं जिसकी कोई-आंवश्यकता नहीं होती के ७... खर्च किया जाता है, , (सावेकार) हाथ फैलाते रहते हैं। इस अनावश्यक खर्च, , के कारण लोगों तांगे, और जस्त के बने बर्तनों का इस्तमाल करना पड़ता है जो कप. लोगों को झोपड़ी में रहना पढ़ता है। तांबे, , इक्कीसवीं सदी में भी अपने पूर्वजों ने अपनाये, +हती है कि ऐसे तुच्छ रोजगार कलेवाले तुम जग और तुच्छ रोजगार को अपनाना पडता है। कवकिती, , ? तह तो शर्म की बात है।, कवयित्री दलित पुरूषों को कहती है, ५, हो, यह सब पीढी-दर-पीढी चलता आ रहा 3 कमेशा कर्ज में डूबे रहते हो, पसीते की कमाई ब्याज में देते, , रूप में वंशजों का नाम लिखते आ रहे हो की तलब तुम भी कर्ज में डुबते रहे हो और उत्तराधिकारी के, हैं। “तर है कि अपनी नई पिढ़ी को भी कर्ज में डूबा देते