Page 2 :
पत्थर को देता सजल दीप्ति, कॉँटों को रसमय कर देता।।, , विज्ञान और धन के बल पर, दुनिया को सर करने वालो,, आतंक-रक््त . की धारा में, वसुधा को तर करने वालो!, , इनके भय से. तो मानव ने, है कहीं न मानी, कभी हार।, मानव को वश में करने का, है महामन्त्र बस -एक, प्यार।।, , आओ अंब, जाति-धर्म से कुछ, ऊंपर की बात चलायें हम। हल, मानवता फूलोंसी महके है, ऐसी रस-धारा बहायें हमं।।, , ... इस जनंगी-भूखी धरती . के, . दुख का मिलकर उपचारः-करें। . :, सुख के सपनेसाकार. करें, प्राणी-प्राणी को प्यार -करें।।, , , , भावार्थ : सुधाकर मिश्र जी की 'प्यारः कविता उनके 'मनीप्लांट और फूल!, नामक कविता संग्रह से ली गयी है। प्रस्तुत कविता में कवि सुधाकर मिश्र जी, : विश्व में मानवता को बचाये रखने के लिए हर एक के हृदय में प्यार का बीज, ..बोना चाहते हैं। प्यार ही वह शक्ति है जो भिन्न-भिन्न धर्मों के लोगों को एकता, के धागे में बाँधने में समर्थ है। दुनिया का हर धर्म स्नेह -की बात करता है।, निराश-हताश जीवन में नव चैतन्य भरने का कार्य प्यार ही करता है। विज्ञान, की विनाशकारी दानवी शक्ति तथा आतंक से प्रभावित विश्व को प्रेम के धागे में, पिरोकर अमन शान्ति की निर्मिति की जां सकती है। अतः कवि चाहता है कि, मनुष्य अपनी संकुचित जाति-धर्म की विचारधारा से ऊंपर उठकर इस अभिशप्त, धरती को प्यार से सींचकर मांनवता की महक की रंसधारा बहायें।
Page 3 :
सुधाकर मिश्र, (जज : शत 100), , कवि सुधाकर मिश्र जी का जन्म उत्तर प्रदेश की भदोही जिले के धनवतिया, गाँव में एक किसान परिवार में हुआ। आपकी पिता प॑, यक्ञनारायण मिश्र काव्य, के बड़े प्रेमी थे जिन्हें 'ऱमचरितमानस' जुबानी याद थी। बालक सुधाकर को, काव्य के सेंस्कार उन्हीं से प्राप्त हुए। मिश्र जी की माता श्रीमती धनपति देवी, भगवत परायण एवं गृहकार्य में दक्ष महिला थीं। उनकी कई सन््तानें जीवित न, रहने से विंध्याचल देवी के प्रति उनकी भक्ति तथा आस्था और अधिक दृढ़ हो, गयी इसलिए सुधाकर जी जब पैदा हुए तब उनका नाम॑ उन्होंने भगवती प्रसाद, रख दिया। बाद में सुधाकर मिश्र जी के पिताजी ने भगवती प्रसाद के स्थान, पर सुधाकरे मिश्र लिखवाने की बड़ी कोशिश की। पहला नाम हटाया नहीं गया, और भगवती प्रसाद उर्फ सुधाकर मिश्र इस तरहःआपका नामकरंण होकर आज, तक चल रहा है। आपकी प्राइमरी तथा हाई स्कूल की शिक्षा बरवाँ में हरई।, कालिकाधामः इंटर कॉलेज से प्राइवेट परीक्षा देकर इंटरमीडिएट पास किया।, काशी के नरेश डिग्री कॉलेज, ज्ञानपुर से बी.ए. तथा एम.ए. पास किया। कई, महीनों के संघर्ष के बाद आपने ग्रांट रोड स्थित फेलोंशिप स्कूल तथा न्यू इरा, स्कूल में अध्यापक की नौकरी की। सन् 1962 में आप एल्फिस्टन कॉलेज में, लेक्चरर के रूप में कार्यरत हुए। वहाँ से जुलाई 1999 में अवकाश ग्रहण कर, - स्वतन्त्र रूप से लेखन कार्य में रत हैं। “तल कल, किसान परिवार में जन्मे मिश्र जी को घर एवं खेती के कामकाज करके, . अपनी पढ़ाई पूरी करनी पड़ी। पारिवारिक जिम्मेदारी निभाने के लिए अध्यापन. के साथ ट्यूशन करना इनका दैनिक कार्य बन गया। इसी बीच में आपने अपनी, _ पीएच-डी. की उपाधि प्राप्त की। पाँच पुत्रों तथा दो पुत्रियों की पढ़ाई-लिंखाई,, शादी-ब्याह की जिम्मेदारी आपने सफलता के साथ निभायी है। मूल्यों और, आदर्शों पर चलना आपका स्थायीभाव रहा है। स्वाभिमान मिश्र जी के जीवन का
Page 4 :
क्रम कर बंधुत्व भाव का विकास करता है|, , हर धर्म स्नेह की बात करता है। प्रेम आपसी बैर तथा शह्रुता का : की विनाशकारी दानवी शक्ति गा, में'नव चै का कार्य प्यार ही करता है। विश की विस के, , हताश जीवन में'नव चैतन्य भरने का कार्य -त की निर्मित की जा सकती है। विषमता से भरी न, , से प्रभावित विश्व को प्रेम के धागे में पिरोकर अमन शान, , 1 श्ि अतः कवि, ५ ४ काम के। लिए की सहायक तत्त्व बन सकता है। अतः कवि चाहता है कि, नंगी-भूखी धरती का दुःख दूर करने के लिए प्यार ही सह ), , मनुष्य अपनी संकुचित जातिधर्म की विचारधारा से ऊपर उठकर इस अभिशप्त धरती को प्यार से सींचकर गांनवतता, की महक की धारा बहाये।, 4.3.3 'प्यार' कविता का आशय :, , सुधाकर मिश्र अपनी 'प्यार' कविता में प्रेम की सत्ता का महत्त्व बताते हुए कहते हैं कि, प्रेम एकमात्र ऐसा, तत्त्व है, जो हर जगर पहुँचकर आनंद की सृष्टि निर्माण करता है। प्रेम कहाँ नहीं पहुँच पाता? आकाश, धरती,, पाताल और स्वर्ग हर जगह प्रेम के सत्ता की जयजयकार है। ज्यों कोई प्रेम की उँगली पकड लेता है उसे जीवन, के सुख-दुःख की अनुभूति हो जाती है। धरतिं के कण कण में जिसकी अजस्र रस स्निग्ध धारा बहती है वह, प्यार हैं जिस ओर भी नजर घुमाये उस ओर हमें प्यारं की रसधारा बढती हुई मिलती है। मतलब सृष्टि के ह॒, चीज में प्यार की अनुभूति करने की मनुष्य के भीतर मानवीय संवेदना का होना आवश्यक है।, , “मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना” इस उक्ति का ,सही रूप से चरितार्थ प्यार से ही होता है।, 'प्यार' वह शक्ति है जो भिन्न भिन्न धर्मों के लोगों को एकता के धागे में बांधने में समर्थ हैं दुनिया का हर धर्म, प्रेम की बात करता है। प्रेम आपसी बैर तथा शत्रुता कम कर बंधुत्व भाव का विकास करता है। हमारे मंदिर,, मस्जिद मानव के साथ प्यार करने की सीख सभी मानव समुदाय को देते हैं। सिख धर्मगुरू गुरू नानक साहब, अपने धर्मग्रंथ 'गुरू ग्रंथ साहिब' से मानव प्राणि के साथ प्यार करने की सीख देते हैं तो ईसाई धर्म का पवित्र, स्थान गिरजाघर से प्यार की अनुगूँज उठती है। शह्वता, क्रूरता तथा हिंसा का सामना दयां, करूणा तथा प्यार, से करने की सीख ईसा मसीहा हमें देते हैं।, , वर्तमान समय मनुष्य के लिए स्पर्धात्मक समस्याओं के साथ जटिलताओं से भरा हुआ है। इसमें मनुष्य, अपने इच्छित +मेकामना की पूर्ति करने में असफल बन जाता है। वैश्वीदःरण ने मनुष्य जीवन में स्पर्धा को, अनिवार्य बना दिया है। अपनी मनोकामना के पूर्ति हेतु उसे अनेक समस्याओं का, अभावों का तथा कठिनताओं