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ही नशे, चोरी और शराब के चक्कर में पड़ते हैं। तू तो धर्मबान है, माला पहनता है। तू क्यों शराब पीता है इसे, , छोड दे और सत्कर्म कर, गलत रास्ते पर मत जा। सुबह उठकर स्नान कर और सदगुरू का स्मरण कर और, मानव में छिपे हुए, उसकी मानवता'को जगा।, , : तुकड़ोजी ने इन पदों के दूवारा यही संदेश दिया है कि मनुष्य जीवन को प्रकृति ने अत्यंत उन्नत बनाकर, ईश्वरत्व भी प्रदान किया है किंतु मनुष्य अनेक दुर्व्यसनों में पडकर अपने जीवन को बरबाद कर लेता है। व्यसनों, में शराब, बीड़ी, तमाखू आदि के कारण मनुष्य अपनी आदतें पूरी करने के लिए चोरी करने लगता है और, इसीकारण वह शैत्तानियत तक पहुँच जाता है। तुकड़ोजी का कहना है, दुर्व्यसनों में फँसा हुआ व्यक्ति अपना, घर, वर्तन और सम्मान भी बेचकर अपना सारा जीवन बरबाद कर देता है। इसलिए तुकड़ोजी मनुष्य को सचेत, , करते हुए मनुष्य को मनुष्य की तंरह रहने के लिए व्यसनमुक्ति का संदेश देते हैं। व्यसन मुक्ति के अलावा जीवन, सुधारने का कोई उपाय नहीं है।, , सब में सेवाभाव बढ़ाओ :, , तुकड़ोजी महाराज के समय समाज अंधश्रदूधा, बाहयाडंबर, कर्मकांड, जाति-पंथ, धर्मभेद॑ की संकुचित, भावना से ग्रस्त था। भारत में स्वतंत्रता की चर्चा चल रही थी किंतु देहात कां मनुष्य रूढ़ि परंपरावादी था उसे, जागृत करने का कार्य राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज ने किया। वे कहते हैं - संब में सेवाभाव बढ़ाओ। देश का भला करने के लिए आपस में होनेवाली लड़ाई बंद करो। दूवेष-स्वार्थ की भावना का त्याग करो। जाति-पाँति, विरहित संपूर्ण समाज को एक परिवार में बाँधना हर संत चाहते थे किंतु कुछ लोक समाज में दवेष फैलाकर, देश की उन्नती भें रोडा अटका रहे हैं और जाति धर्म की विकृति फैलाकर समाज को अस्वस्थ रखना चाहते, हैं। इसे तुकड़ोजी महाराज राष्ट्र उन्नति के बीच की रुकावट मानते हैं। उनका कहना था जाति-पाँति भेद का विरोध, करना, कुटिल भाव त्यागकर नीति-चरित्र बढ़ाकर देश के गौरव को बढ़ाओ। देश का बच्चा-बच्चा भी इसे जाने, और वह अपने आप को इस भारतभूमि का मालिक समझें। बचपन से ही वह सदूवर्तन, धर्मनिरपेक्षता की भावना, से परिपूर्ण हों। अर्थात् भारत में रहनेवाले हर आदमी का जाति-धर्म भारतीय ही होना चाहिए।, , धर्म की अंधेरी गलियों में आम जनता भटक रण है। धर्म के ठेकेदार अपने अपने धर्म का विस्तार करने, के लिए भोलीभाली जनता को दिगूप्नमित कर रहे हैं ऐसे वक्त तुकड़ोजी महाराज कहते हैं कि वह हिंदु, वह, सुसलमान, जैन, ईसाई ऐसा भेद न करते हुए सब मिलजुलकर रहो और सुख से खाओ-पीओ। मन में होनेवाले, अभिमान को मिटाओ। "मैं साहब', मैं देशभक्त' ऐसे अभिमान को मन से निकालना चाहिए। बल्कि हम सब, इस भारतामाता के सेवक है ऐसा भाव रखो। अपने अभिमान अर्थार्ति 'मैं' का त्यागकर 'हम' को अपनाओ और, नम्नता से रहो। सब लिखें-पढ़े ऐसा संसार बनाओ। भारत में जो लाखो पंथ, महंत है उन्हें देशहित का संदेश, देना चाहिए और लोगों में एकता व सद्भाव. का प्रसार करना चाहिए ताकि देश में रामराज्य की संकल्पना, स्थापित हो सके। देश का विकास हो सकें।, , 1, , शेप 1 3 |