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का धाराओं की दिशा पर भी, का, , ० पथ्यी की निविकुवत रेखा से धुव की ओर तथा, , गा की ओर चलने वाली धाराएं अपनी दाहिनी, , शव पी ही तरह द० गोलार्द्ध में धाराएं अपनी बायीं, , जे का (मुड़) जाती हैं।, , सम्बन्धित कारक, और दा के तापमान, लवणता, घनत्व आदि में स्थानीय, , परिवर्तन जिस कारण धाराओं की उत्पत्ति होती है।, 1 द में भिन्नता--पृथ्वी पर सूर्यातप के वितरण में, पर्याप्त असमानता पायी जाती है। विषुवतरेखीय भागों में सूर्य की, , किरणें वर्ष भर लम्बबत् चमकती हैं, जिस कारण अत्यधिक,, , के कारण जल का तापमान ऊँचा हो जाता है।, परिणामस्वरूप जल का घनत्व अत्यधिक कम हो जाता है और, विषुवतरेखोय जल धारा के रूप में गतिशील हो जाता है।इस तरह, विषुवतरेखा पर जल की आपूर्ति के लिए धरुवों की ओर से विषुवत्, रेखा कौ ओर अधः प्रवाह प्रारम्भ हो जाता है।, , 2. लबणता में भिन्नता--सागरीय लवणता से सागरीय जल, का घनत्व प्रभावित होता है तथा घनत्व में अन्तर के कारण धाराएं, उत्पन्न होती हैं ।यदि दो क्षेत्रों का तापमान समान है, परन्तु दोनों क्षेत्रों, कौ लवणता में अन्तर है तो अधिक लवणता वाले भाग में जल का, घनत्व अधिक हो जायेगा, जिस कारण जल नीचे बैठता है, जबकि, कम लवणता वाले भाग में जल का घनत्व अपेक्षाकृत कम होगा,, जिस कारण कम खारे भाग से जल अधिक खारे भाग की ओर, 'गतिशौल हो जाता है । ऊपरी सतह के नीचे अधिक खारे भाग का, जल कम खारे भाग की ओर अध: प्रवाह के रूप में चलने लगता, है।इस तरह की धाराएं खुले तथा बन्द सागरों के मध्य चला करती, हैं। अटलांटिक महासागर (अपेक्षाकृत कम खारा) से जिब्राल्टर, जलडमख्मध्य से होकर रूम सागर की ओर धारा चलने का यही, कारण है। रूम सागर की सतह के नीचे का जल अध: प्रवाह के, रूप में अटलांटिक महासागर की ओर चलने लगता है | इस तरह, की धाराएं लाल सागर (अधिक खारा) तथा अरब सागर के बीच, में चलती हैं । बाल्टिक सागर से उत्तरी सागर की ओर तथा उत्तरी, सागर से बाल्टिक सागर की ओर अध: प्रवाह निश्चय ही लवणता, में विभिन्नता के कारण उत्पन्न होता है।, , 3, घनत्व में भिन्नता-- ऊपर तापमान तथा लवणता के कारण, उत्पन्न घनत्व में भिन्नता के कारण धाराओं की उत्पत्ति की 'विवेचना, , की जा चुकी है। इनके अलावा कई और भी ऐसे कारक हैं, जिस, कारण सागरीय जल के घनत्व में अन्तर हो जाता हैं, और धाराओं, की उत्पत्ति हो जाती हैं। ध्रुवीय भागों में न्यून सूर्याताप के, , अल: कार, हिम के पिघलने के कारण लवणता कम हो ही, घनत्व कम हो जाता है । परिणामस्वरूप ध्रुवों से, , विषुवतरेखा की ओर चलने, , आता है। सागरों में ऊपर जे «७०६ से भी पते, जिस कारण घनत्व भी अधिक हो जाता है।, , ऊपरी भाग में हल्का जल तथा गहराई, कारण जल में लम्बवत् गति उत्पन्न हो जाती है।, , (स ) बाह्य सागरीय कारक, , महासागरीय जल पर, होता है । इनमें वायुमण्डलीय अब शेद रा (| जा 13.4५, , वर्षा, वाष्पीकरण आदि धाराओं की उत्पत्ति में सहायक होते, , 1. वायुदाब तथा हवाएं--वायुमण्डलीय दबाव का |, सागरीय जल पर प्रभाव होता है। जहाँ पर वायुदाब अधिक भी, है, वहाँ पर जल के आयतन में कमी के कारण जले तेल आप, जाता है | इंसके विपरीत कम वायुदाब वाले क्षेत्रों में जल तल हे, हो जाता है, जिस कारण उच्च जल तल से (कम वायु दाब के क्षेत्र, से) निम्न जल तल (उच्च वायुदाब क्षेत्र) की ओर जल, हो जाता है। परिणामस्वरूप धारा की उत्पत्ति हो जाती है।, , प्रचलित अथवा सनातनी हवाएं धाराओं की उत्पत्ति में, , महत्वपर्ण भूमिका अदा करती हैं । जब सागरीय जल के ऊप से, होकर हवा चलती है तो वह अपनी रगड़ के कारण जल को भी, अपनी ओर बहा ले जाती है। यदि मानचित्र पर धाराओं तथा, सनातनी हवाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जाय तो स्पष्ट हो, जाता हैं कि अधिकांश धाराएं सनातनी हवाओं का ही, , करती हैं। उदाहरण के लिए व्यापारिक हवाओं से प्रेरित होकर, विषुव॒त रेखीय धाराएं पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर चलती हैं।, अटलांटिक महासागर में गल्फस्ट्रीम तथा प्रशान्त महासागर में, किरोसिवो धारा पछुवा हवा की दिशा का ही अनुसरण करती हैं।, हिन्द महासागर में मानसून हवाओं की दिशा में वर्ष में दो बार, परिवर्तन के कारण धाराओं की दिशा में 6 महीने के बाद परिवर्तन, हो जाता है। कार्ल जोपरिज तथा स्वेडरुप ने क्रमशः हवाओं तथा, धाराओं की दिशा के बीच तथा हवाओं एवं धाराओं की गति के, बीच निश्चित अनुपात बताया है तथा उसका परिकलन गणित के, आधार पर किया है। उदाहरण के लिए यदि हवा की गति 50, किमी० प्रति घण्टा है तो धारा 3/4 किमी० प्रति घण्टे की दर से, गतिशील होगी । कार्ल जोपरिज ने बताया कि हवाएं सागरीय जल, को तली तक आलोडित करती हैं, अर्थात् हवाओं से उत्पन्न धागओं, में सतह से लेकर तली तक का जल सामूहिक रूप से आगे बढ़ता, है।परन्तु प्रयोगों के आधार पर फिण्डले ने बताया कि सागरीय जल, 'को हवाएं 30-36 फीट की गहराई तक ही आलोडित कर पातौ, , हैं। गहराई के बढ़ते जाने के साथ जल का घनत्व भी बढ़ता जाता
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आहार धाराएँ, , में झुकाव (७॥९०४०॥) हो जाता है । उत्तरी, , का झकाव दाहिने हाथ की ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्, , जायें हाथ की ओर हो जाता है।इस तथ्य का अवलोकन सबसे, , ७५ जानसेन ने किया था, जिसे आगे चलकर एकमेन ने गणितीय, , पहले हां 'कर दिया | उत्तरी गोलार्द्ध में हवा से उत्पन्न धारा, , न दिशा (हवा) से दाहिनी ओर 450 के कोण पर झुक, , जायेगी | दक्षिणी गोलार्द्ध में 440 का झुकाव बायीं ओर होगा। सतह, , जौचे जाने पर हवा तथा धारा की दिशा के बीच झुकाव का कोण, , से जाता है तथा तली पर जाने पर हवा के प्रभाव के शून्य हो, , जाने के कारण यह झुकाव इतना अधिक होता है कि हवा की दिशा, , के विपरीत धारा प्रवाहित होने लगती है। हवाओं से प्रेरित धाराएँ, , किनारे पर पहुँचती हैं तो वहाँ जल की मात्रा अधिक, , हो जाने से जल का तल ऊँचा हो जाता है, जिस कारण नयी धाराओं, , को उत्पत्ति होती है। विषुवतरेखीय धारा इसी तरह मेक्सिको की, , खाड़ी में अत्यधिक जल का संचय कर देती है, जिस कारण, , का आविर्भाव होता है। इस तरह स्पष्ट है कि हवाएं, , सागरोय भागों में धाराओं को जन्म तो देती ही हैं, साथ ही साथ, उनको दिशा तथा गति को भी निर्धारित करती हैं।, , 2. वाष्पीकरण तथा वर्षा--जिन भागों में वर्षा अधिक होती, है तथा वाष्पीकरण कम होता है, वहाँ पर अत्यधिक जलराशि के, कारण जल का तल ऊँचा हो जाता है । इसके विपरौत जहां पर वर्षा, जे कम होती है, परन्तु वाष्पीकरण अधिक होता है, वहाँ पर जल, का तल जौचा हो जाता है। वास्तव में वर्षा तथा वाष्पीकरण का, स्रागरीय लवणता एवं घनत्व से भी सम्बन्ध होता है। कम, बाष्पीकरण के साथ उच्च वर्षा के कारण लवणता कम हो जाती है, और सागरीय जल का घनत्व कम हो जाता है, परिणामस्वरूप जल, , का तल ऊँचा हो जाता है । इसके विपरीत अत्यधिक वाष्पीकरण, के साथ न्यून वर्षा के कारण लवणता तथा घनत्व में वृद्धि हो जाती, है, जिस कारण जल का तल नीचा हो जाता है । इस तरह उच्च जल, ब्लसे निम्न जलतल की ओर धाराएं चलने लगती हैं ।विषुवतरेखा, पर उच्च वर्षा एवं न्यून वाष्पीकरण के कारण उच्च जलतल होने, से उच्च अक्षांशों की ओर धाराएं चलने लगती हैं । इसी तरह ध्रुवीय, भागों में कम वाष्पीकरण किन्तु हिम के पिघलने से प्राप्त जल की, अधिकता के कारण धाराएं मध्य अक्षांशों की ओर चलने लगती हैं,, रूम सागर में उच्च तापमान के का 5 का, वाष्पीकरण के कारण सागरीय लवणता जाती है,, परिणामस्वरूप घनत्व बढ़ जाता है तथा अटलांटिक महासागर से, रूम सागर की ओर धारा चलने लगती है।, 29.3 धाराओं की दिशा में परिवर्तन लाने वाले कारक, , 3 न 0), , , , , , , 369, , बनावट एवं महासागरीय तली की, के निर्धारण में'अधिक मे ' >कोज का धाराओं की दिशा, , 1. तट की दिशा तथा ६!, सागरीय धाराओं की दिशा में 24:34 रा ९०३४०, धाराओं के मार्ग में अवरोध उत्पन्न हो जाता है तथा घाराएं महाद्वीपीय, तट के समानान्तर चलने लगती हैं। विषुवत् रेखीय धारा ब्राजील, तट से टकराने पर दो भागों में विभक्त हो जाती है। उत्ती शाखा +, खाड़ी की धारा के नाम से संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्वी तट के, सहारे चलने लगती है तथा दक्षिणी शाखा ब्राजील की धारा के नाम, से ब्राजील तट के सहारे दक्षिण की ओर चलने लगती है। हिन्द, कक में मानसून धाराएं भारतीय तट के अनुरूप ही प्रवाहित, , ।, , 2. तलीय आकृतियाँ--महासागरीय तली की असमानताएं,, धाराओं के मार्ग को प्रभावित करती हैं । जब इन धाराओं के मार्ग, में अन्तःसागरीय कटक (७५७॥191॥9 749७७) होते हैं तो धाराएं, कुछ दाहिनी ओर मुड़ जाती हैं। उदाहरण के लिए गल्फ स्ट्रीम, स्काटलैण्ड के पास जब विविलटामसन कटक को पार करती है, तो वह दाहिनी ओर मुड़ जाती है ।इसी तरह उत्तरीय विषुवत्रेखीय, धारा मध्य अटलांटिक कटक को पार करते समय दाहिनी ओर मुड्, जाती है।, , 3. मौसमी परिवर्तन--कई स्थानों पर बदलते मौसम के साथ, धाराओं की दिशा में भी परिवर्तन हो जाता है । मानसूनी हवाओं का, मौसमी दिक् परिवर्तन हिन्द महासागर की धाराओं में दिशा, परिवर्तन करता है ।शरद कालीन उ० पू० मानसून के समय मानसूनी, धाराओं के तट के सहारे दिशा पूर्व से पश्चिम होती है, जब कि, ग्रीष्मकालीन द० प० मानसून के समय धाराओं की दिशा बदलकर, उ>० पू० हो जाती है।, , 4. पृथ्वी का परिभ्रमण--पृथ्वी के पश्चिम से पूर्व दिशा में, घूर्णन के कारण धाराओं का मार्ग प्राय: गोलाकार हो जाता है । पृथ्वी, के परिभ्रमण के कारण धाराएं, उ० गो० में अपने दायीं ओर तथा, दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर मुड़ जाती हैं।, , 29.4 आन्श्र महासागर की धाराएँ, , 1. उत्तरी विषुबत रेखीय धारा, , सामान्य रूप से 3० विषुव॒त् रेखीय धारा 0? से 10९ उ०, अक्षांशों के मध्य विकसित होती है। अफ्रीका के पश्चिमी तट से,, जहाँ पर कनारी ठंडी धारा का जल इसे धकेलता है, यह धारा प्रारम्भ, होकर व्यापारिक हवाओं के प्रभाव में पूर्व से पश्चिम दिशा कौ ओर, प्रवाहित होती है ।यह एक गर्म जलधारा है जिसका जल खारा होता, है जैसे ही यह धारा 153० अक्षांश के उत्तर में मध्य अटलांटिक, कटक के पास पहुँचती है, इसकी दिशा उत्तर की ओर हो जाती है, 'तथा उसे पार करने के बाद द० की ओर मुड़ जाती है । द० अमेरिका