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हैं तथा ऐसे तथ्यों के अध्ययन को मानव भूगोल कहते हैं। नहीं कर सका, प्राकृतिक वातावरण का प्रभाव अधिक, मेक्सीमिलिएन सार महोदय ने इस अर्थ को और स्पष्ट दृष्टव्य है। एण्डीज पर्वतों में, साइबेरिया के शीत-शुष्क, के रूप में अलग से अध्ययन नहीं करते हैं. बल्कि मानव भौतिक विषमताओं के कारण मनुष्य के क्रियाकलाप पनप।, उन क्षेत्रों में जहाँ मनुष्य अपनी कार्य क्षमता का विकास, की परिभाषाओं में न्यूनाधिक रूप में आते रहे हैं। संसार के ।, मनुष्य एवं प्राकृतिक वातावरण दोनों ही मानव भूगोल., पृथ्वी की सतह पर होने वाले परिवर्तनों से सम्बन्धित हैं।, पृथ्वी की सतह पर दृष्टव्य तथ्य जिनके उद्भव में मनुष्य, की भूमिका प्रधान होती है, पृथ्वी के विशिष्ट तत्त्व बन जाते, भागों में, भूमध्यरेखीय वनों में, गर्म रेगिस्तानों आदि में, करते हुए यह भी लिखा है कि हम 'मनुष्य' को एक इकाई, भूगोल में हम मनुष्यों की समग्रता का अध्ययन करते हैं।, मनुष्य एक सामाजिक प्राणी होता है। देश, नगर, ग्राम,, समुदाय आदि उसके सामूहिक प्रयासों के प्रतिफलक हैं., व्यक्तिगत प्रयासों के नहीं।, नहीं सके। ऐसे क्षेत्रों में मनुष्य की कार्यक्षमता भी कम, विकसित हुई, अतः इन क्षेत्रों के सांस्कृतिक भूदृश्यों के, अध्ययन में प्राकृतिक वातावरण का प्रभाव अधिक उभडता, है। दूसरी ओर गंगा-सिन्धु घाटी या समशीतोष्ण कटिबंध, के क्षेत्रों में मानव निवास हेतु प्राकृतिक वातावरण अधिक, उपयुक्त था, क्योंकि यहाँ भौतिक विषमताओं का अमाव, था। अतः ऐसे क्षेत्रों में मनुष्य के क्रियाकलाप अधिक प्रभावी, रहे तथा सांस्कृतिक भूदृश्य पर उसकी छाप पड़ी। मानव, इस प्रकार मानव भूगोल जनसंख्या के वितरण, प्रतिरूप, मानव प्रजातियां, उनके वातावरण से समायोजन,, मानव अधिवास, कृषि, परिवहन के साधन तथा उनकी, स्थानिक संगठन में भूमिका, किरगीज एवं एस्किमों जैसे, सरल समाजों एवं यूरोपीय पद्धति के संश्लिष्ट समाज का भूगोल अपने परिभाषागत स्परूप में इन्हीं सम्बन्धों के, निवास्य एवं अर्थतंत्र, उत्खनन एवं उद्योग, सांस्कृतिक परिवर्तनशील दृष्टिकोण से प्रभावित हुआ है तत्सम्बन्ध में, विकास जैसे अनेकानेक पक्षों को अपने में समाहित करता कुछ प्रमुख विद्वानों द्वारा प्रस्तुत परिभाषाएं निम्नवत हैं, है। इस तरह के क्रियाकलापों में अपने निवास्य के प्रति, जागरुकता मानव भूगोल का प्रतिरूप है । जागरुकता की भूसतह पर विशिष्ट प्रकार के वृश्य प्रस्तुत करती हैं, मानव, यह प्रवृत्ति परिवर्तनशील एवं विकासोन्मुख होती है।, जीन ब्रूंस के अनुसार - सभी मानवीय क्रियाएं जो, हैं।, भूगोल की विषय-वस्तु, जीन ब्रूंस की परिभाषा के अनुसार मानव भूगोल, मानवीय क्रियाओं का अध्ययन करता है। ये मानवीय क्रियाएं, मानव भूगोल की परिभाषा, भानव भूगोल भूतल पर जनसंख्या के उद्भव, वृद्धि, पृथ्वी की सतह पर घटित होती हैं। स्वाभाविक है कि, वितरण, उसकी संरचनात्मक विशिष्टताओं एवं क्रियाकलापों मानवीय क्रियाओं पर पृथ्वी की सतह अर्थात् धरातलीय, का अध्ययन करता है। इस अध्ययन में मनुष्य एवं प्राकृतिक स्वरूप, जल प्रवाह, जलवायु, वनस्पति, मिट्टी आदि का, वातावरण के अन्तर्सम्बन्धों का पारिस्थितिकी के संदर्भ में प्रभाव पड़ेगा। अर्थात् मानवीय क्रियाओं के अध्ययन में, विश्लेषण होता है जो वृहद्स्तरीय प्रदेशों से लघुस्तरीय प्राकृतिक वातावरण से सम्बन्ध अन्तर्निहित है । मानव भूगोल, इकाइयों तक किया जाता है। मानव भूगोल के पारिभाषिक, स्वरूप पर 1932 में सामाजिक विज्ञानों के शब्दकोष में, प्रकाश डाला गया था, जिसके सम्पादक सेलिगमेन एवं भूगोल के आधारभूत तथ्यों का प्रतिपादन किया है।, लान्सन थे। उन्होंने इसे मानव समाज एवं पृथ्वी की सतह, के सम्बन्धों का अध्ययन करने वाला सांश्लेषिक विषय समूहों एवं मानव समाजों का अध्ययन उनके प्राकृतिक, कहा था। 'मानव भूगोल शब्दावली की प्रेरणा रेट्जल की वातावरण से अन्तर्सम्बन्ध के संदर्भ में करता है।, पुस्तक "एन्थ्रोपोज्योग्रफी" (Anthiropogeographie) से ली, गई थी। तत्पश्चात् वाइडल-डी-ला-ब्लाश ने अपनी पुस्तक सबल बनाते हुए मानव समूहों एवं समाजों का उल्लख, (Principles de Geographie Humaine) में मानव भूगोल करती है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह सामूहिक, को 'मनुष्य तथा वातावरण के सम्बन्धों का अध्ययन कहा।, यहीं से मानव भूगौल ने अपना स्वतंत्र रूप ग्रहण करना, का उद्देश्य मानवीय क्रियाओं के फलस्वरूप स्थापित तथ्यों, का अध्ययन करना है। इस प्रकार जीन ब्रूंस ने मानव, डिमांजिया के अनुसार, 'मानव भूगोल मानव, डिमांजिया की परिभाषा मानव भूगोल को कुछ अधिक, रूप से पृथ्वी की सतह पर अपने क्रियाकलापों को सम्पन्न, करता है तथा प्राकृतिक वातावरण को अपनी आवश्यकता, एवं उद्देश्यों के अनुसार प्रभावित करता है। अतः भूगल ें, शुरू किया।
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मानव भूगोल की प्रकृति और विषय-क्षेत्र, 3., मानव समाज का अध्ययन प्रमुख हो जाता है। यह एक लिखा है कि 'मानव भूगोल ऐसे सिद्धान्तो का प्रातिपादन, व्यापक दृष्टिकोण है।, मैक्सीमिलिएन सार नामक फ्रांसीसी विद्वान ने भूगोल सहायक होते हैं।", की संकल्पना को व्यापक दृष्टिकोण से समझाते हुए एक, नई परिभाषा दी है। उनके अनुसार, उद्देश्य मनुष्य को एक ऐसा जैविक प्राणी मानकर उसका केन्द्रीय बिन्दु है। पृथ्वी पर मनुष्य अपने क्रियाकलापों से, अध्ययन करना है, जो प्रकृति द्वारा पूर्व निर्धारित दशाओं में परिवर्तन लाता है। इन क्रियाकलापों के फलस्वरूप जो, रहता है तथा प्राकृतिक वातावरण से प्राप्त उद्दीपनों से तथ्य प्रकट होते हैं उनका अध्ययन मानव भूगोल करता है।, अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है।" (The first task of मनुष्य ने जैसे-जैसे विज्ञान एवं तकनीकी का विकास, Human Geography is the study of man as a living, करता है जो पृथ्वी पर मनुष्य के वृहद्स्तरीय अध्ययन में, मानव भूगोल की उपरोक्त परिभाषाओं का अध्ययन, यह स्पष्ट करता है कि मनुष्य मानव भूगोल के अध्ययन का, "भानव भूगोल का, organism subject to determinate the conditions of, existence and reacting to stimuli received from the, natural environment)। सार महोदय, जो समाजशास्त्री भी, किया वैसे-वैसे उसका प्राकृतिक वातावरण पर प्रभुत्व, बढ़ता गया, किन्तु प्राकृतिक वातावरण के अस्तित्व को, नकारा नहीं गया। समकालीन भूगोलविद् रिचर्ड हार्टशोर्न, के अनुसार जाने अथवा अनजाने में भूगोल के अध्ययन की, थे, के अनुसार मानव भूगोल के अध्ययन में समाज की सार्थकता मनुष्य के संदर्भ में ही मापी जाती रही है।, कल्पना अन्तर्निहित है। अतः मानव भूगोल में मनुष्य अध्ययन, का केन्द्र बिन्दु है तथा वह अपनी प्रेरणा एवं अन्वेषण की, क्षमता के साथ पुथ्वी पर अपना आधिपत्य स्थापित करना, चाहता है। अन्ततोगत्वा सार महोदय यह स्थापित करते हैं, कि मानव भूगोल उस मानव समूह की क्रियाओं का प्रतिफल, है जो अपने वातावरण से पूर्णतः भिज्ञ होता है।, एल्सवर्थ हंटिग्टन महोदय ने मानव भूगोल की जाने लगा है 'समता' एवं सामाजिक न्याय' अब मानव, परिभाषा इस तरह दी है - "मानव भूगोल मानवीय क्रियाकलापों भूगोल की प्रमुख विषयवस्तु बनते जा रहे हैं। डेविड स्मिथ, तथा मानवीय गुणों के भौगोलिक वातावरण से सम्बन्धों की ने अपनी पुस्तक Human Geography : A Welfare, प्रकृति एवं उनके विवरण का अध्ययन है।" हंटिग्टन महोदय Approach' (1977) में इस दृष्टिकोण की विशेष चर्चा की, मानवीय क्रियाकलापों के साथ मानवीय गुणों पर बल देते हैं। उनका कथन है कि मानव भूगोल के अध्ययन का, हैं। स्पष्टतः ये गुण मनुष्य के तकनीकी एवं वैज्ञानिक उद्देश्य मात्र मानवीय क्रियाकलापों का ज्ञान प्राप्त करना, विकास की ओर इंगित करता है। यदि मनुष्य अधिक नहीं है। इन क्रियाकलापों के भूवैन्यासिक वितरण में क्या, गुणवान है तो वह प्राकृतिक वातावरण पर आधिपत्य प्राप्त विसंगतियां हैं, उनसे मनुष्य-मनुष्य के बीच क्या भेदभावजन्य, करेगा अन्यथा अपनी गुणवत्ता की उपलब्धि के अनुसार प्रतिरूप उभड़ता है और कैसे उसे दूर किया जा सकता है., क्रमशः प्राकृतिक वातावरण से अधिक प्रभावित होगा।, इसी तरह सी०एल० हाइट एवं जी०टी० रेनर ने, अपनी मानव भूगोल की पुस्तक में मानव भूगोल को पृथ्वी भूगोल वह विज्ञान है, जो पृथ्वी तल की विविध परिस्थितियों, के संदर्भ में मानव समाजों का अध्ययन कहा है। इन्होंने में मानव समूहों के भौतिक और सांस्कृतिक वातावरण की, मानव पारिस्थितिकी (Human Ecology) के दृष्टिकोण को शक्तियों, प्रभावों और प्रतिक्रियाओं का पारस्परिक सम्बन्धों., मानव भूगोल में समाहित करने का प्रयास किया है, जिसका समायोजनों और स्थानीय संगठनों का अध्ययन मानव, मानव भूगोल के अध्ययन का दृष्टिकोण अब मानव, कल्याण की ओर उन्मुख हुआ है। पूर्व काल से भूगोल का, अध्ययन मनुष्य अपने ज्ञान की अभिवद्धि के लिए करता, रहा है। अतः मनुष्य का भूगोल में सर्वोपरि स्थान माना, जाता था। वर्तमान युग में अन्य सामाजिक विज्ञानों की, तरह भूगोल का अध्ययन भी मानव कल्याण हेतु किया, यह सब मानव भूगोल की विषयवस्तु हैं।, अतः समवेत रूप में कहा जा सकता है कि मानव, प्रगति के परिप्रेक्ष्य में क्षेत्रीय आधार पर करता है। इन्हीं, प्रचलन वर्तमान समय में बढ़ गया है।, ब्रिटिश भुगोलवेत्ता जे०जी०एच० लेबान ने अपनी अन्सेम्बन्धों की गुणवत्ता के आधार पर मानव समाज की, प्रगति का मूल्यांकन किया जाता है, जैसे विकसित, मध्यम, T (Introduction to Human Geography) H, भगोल के पारिभाषिक स्वरूप की चर्चा प्रारम्भ करते हुए विकसित और अल्प विकसित समाज।
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नानव भूगाल, करता है। इन परिवर्तनों का कभी नकारात्मक प्रभाव भी, भुगतना पड़ता है, लेकिन वह हार नहीं मानता और उनका, समाधान ढूंढ़ने का प्रयास करता है यही कारण है कि, तत्व, प्रक्रियाएं, या लक्ष्य होता है जिसकी प्राप्ति के लिए वह सदा संचेष्ट और शक्तियां मानव विकास की लक्ष्य बन गई हैं। मानव, रहती है। मानव भूगोल का लक्ष्य पृथ्वी पर व्याप्त विविध भूगोल इनके अध्ययन द्वारा अपनी सार्थकता प्रमाणित करता, पर्यावरणीय परिस्थितियों में उपलब्ध भौतिक संसाधनों के है। सांस्कृतिक परिवेश के तत्त्वों में तीन मुख्य तत्त्व बताए, 1. मनुष्य की कार्य प्रणाली और तकनीकी, 2., मनुष्य के विचार और मान्यताएं तथा 3. सृजनात्मक कार्य, अन्तर्सम्बन्धों को समझा जा सके। इस प्रकार विविध क्षेत्रीय क्षमता। इनके द्वारा वह अपने कौशल के अनुसार सांस्कृतिक, संगठनों के अभ्युदय और मानव प्रगति के लिए उत्तरदायी भूदृश्य की रचना करता है। मानव द्वारा अपने भौतिक, परिवेशों के अनुसार विकसित जीवन-पद्धतियां इसकी, प्रमाण हैं। इसे सामाजिक आवास्य (Social Habitat) भी, कहा जा सकता है। पश्चिमी देश औद्योगिक प्रक्रिया के, कारण भौतिकवादी उच्च जीवन-पद्धति को अपना जीवन, आवागमन के साधन और पर्यावरणीय समायोजन जैसे लक्ष्य मानते हैं, जबकि आदिवासी समाज प्रकृति की गोद, पक्षों का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार मानव भूगोल में पलकर संतुष्ट रहता है जिस प्रकार भौतिक वातावरण, का उद्देश्य मानव और पर्यावरण के मध्य परस्पर कार्यात्मक की अपनी शक्तियां हैं (सौर शक्ति, गुरूत्व शक्ति आदि), सम्बन्धों की व्याख्या प्रादेशिक आधार पर करना है। इसके उसी प्रकार मानवीय शक्ति सांस्कृतिक परिवेश में निहित, लिए तीन पक्षों के अन्तर्सम्बन्धों- प्राकृतिक वातावरण, होती है। किसी प्रदेश में निरवसित मानव समाज सांस्कृतिक, सांस्कृतिक परिवेश और प्रादेशिक व्यवस्था का मूल्यांकन शक्ति का स्रोत होता है। वह अपने नैसर्गिक गुणों को, विकसित कर भौतिक शक्तियों को इच्छानुसार उपयोग, करता है। इस प्रकार मानव समाज में कालिक और क्षेत्रीय, विविधता देखने को मिलती हैं और इनका विश्लेषण तथा, समाज अपने कार्यों, व्यवहारों और शारीरिक क्षमता से मूल्यांकन मानव भूगोल का उद्देश्य है। तकनीकी विकास, पर्यावरण के साथ अनुकूलन (Adaptation), परिवर्तन से मानव समाज की शक्ति सैकड़ों गुनी बढ़ गयी है।, मानव भूगोल के उद्देश्य, (Aims of Human Geography), ज्ञान की किसी भी शाखा का एक निश्चित उद्देश्य, मानव द्वारा निर्मित सांस्कृतिक वातावरण के, उपयोग से रवित सांस्कृतिक भूदृश्यों की सार्थक व्याख्या, करना है, ताकि क्षेत्रीय विभेदों के अनुसार मानव पर्यावरण, गए हैं ।, पक्षों का अध्ययन मानव भूगोल का लक्ष्य है।, मानव प्रकृति अन्तर्सम्बन्ध मानव भूगोल के अध्ययन, का केन्द्रीय बिन्दु है जिसकी संख्या, आर्थिक क्रियाकलाप,, मानव गृह और अधिवास, सामाजिक- सांस्कृतिक संस्थाएं., आवश्यक होता है।, मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, अतः इसका अध्ययन, मानव भूगोल में समूह के अन्तर्गत किया जाता है। मानव, (Modlication) और समायोजन (Adjustrment) करता है।, इस प्रक्रिया में मानव अपनी क्षमता आवश्यकता और मानव भूगल का विकास क्रम, तकनीकी उपलब्धि के अनुसार सांस्कृतिक भूदृश्य की, रचना करता है। अतः मनुष्य एक साथ दो परिवेशों, मानद भूगोल, भूगोल की एक शाखा है तथा इसका, विकास क्रम भूगोल के विकास से सम्बन्धित है । भूगोल के, भीतिक और सांस्कृतिक से समायोजन करता है। यही विकास में सोलहवीं सदी से उन्नसरवीं सदी के बीच मानारेखन, कारण है कि मनुष्य को भौगोलिक कारक (Geographical (Cartography) का अधिक विकास हुआ। इस अवधि में, Factor) कहा गया है मानव पृथ्वी तल का एकमात्र जीव भौगोलिक ज्ञान तो बढ़ा किन्तु भूगोल की संकल्पनाएं, है जिसने अपने पौरुष, ज्ञान और कला से सांस्कृतिक स्थिर रहीं। सत्रहवीं शताब्दी में भौतिक विज्ञानों का विकास, परिवेश (Cultural Environment) की रचना की है। स्वाभाविक अधिक हुआ। बर्नहार्ड वारेनियस, (1622-50), जो एक, है कि मानव भूगोल का लक्ष्य इन सभी विधाओं का जर्मन प्रकृति विज्ञानी तथा भूगोलविद् थे, प्राकृतिक तत्त्वां, अध्ययन करना है, जो मानव अनुक्रियाओं के प्रतिफल हैं। के वर्णन से अधिक सम्बन्धित रहे। उनके कार्यों में मनुष्य, इन क्रियाओं के सम्पादन में जहाँ एक ओर वह प्राकृतिक की उपेक्षा रही। 1845 में पृथ्वी सतह के ज्ञान एवं प्रकृति, वातावरण से प्रभावित होता है, वहीं अपने लक्ष्य को प्राप्त के उपादानों की खोज से प्राकृतिक तत्त्वों के अध्ययन को, करने के लिए भौतिक वातावरण में यथासम्भव परिवर्तन भी और अधिक बल मिला। आर्चीवाल्ड गीकी नामक ब्रिटिश
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गानव भूगोल की प्रकृति और विषय-क्षेत्र, भूविज्ञानी की पुस्तक भौतिक भूगोल शीर्षक से सन् 1862, में प्रकाशित हुई। इस तरह यह शब्दावली भूगोल में प्रविष्ट (Spaial Complexes) को जन्म देता है। दृष्टव्य है कि, हुई। हम्बोल्ट महोदय ने भी ब्रह्माण्ड में पृथ्वी की स्थिति भुगोल की जर्मन विचारधारा ने पृथ्वी की सतह के अध्ययन, तथा पृथ्वी के प्राकृतिक स्वरूप पर जोर दिया था इस तरह, लगभग 50 वर्षों तक भूगोल में मनुष्य को छोड़कर भौतिक भौतिक दर्शन (Natural Philosophy) तथा द्वितीय नैतिक, तथ्यों का अध्ययन किया जाता रहा। चाल्ल्स डार्विन की 'जैव दर्शन (Moral Philosophy) । नैतिक दर्शन के अन्तर्गत, प्रजातियों की उत्पत्ति (Origin of Species) नामक पुस्तक मानवीय तथ्यों का अध्ययन विशेष रूप से आता है। इस, के, साथ मिलकर अपने क्रियाकलापों से स्थानिक संश्लिष्टों, में दो दार्शनिक दृष्टिकोणों का प्रतिपादन किया था। प्रथम, प्रकाशित होने पर पृथ्वी तल पर जीवों के महत्त्व, (1859), की ओर सबका ध्यान आकृष्ट हुआ। कालांतर में फ्रेड्रिक संश्लिष्ट अध्ययन ही मानव भूगोल है।, रेट्जल भहोदथ की पुस्तक एंथ्ोपोज्योग्रफी (Anthropogecgraphie), का प्रकाशन सन् 1882 एवं 1891 में दो खण्डों में हुआ। परिमण्डलों का उल्लेख मिलता है - थलमण्डल, जलमण्डल,, इसके साथ ही अंग्रेजी भाषा में मानव भूगोल अर्थात् (Anthropo) वायुमण्डल, वनस्पतिमण्डल, पशुमण्डल, एव मनुष्य तथा, मानव' तथा (Geographie) 'वर्णन' शब्दावली का समावेश उसकी भौतिक-आध्यात्मिक संस्कृति। दृष्टव्य है कि मानव, हुआ। रेट्जल की दूसरी पुस्तक (Volkes Kunde) का भूगोल के विषयक्षेत्र में, जिसका विवेचन आगे किया गया, अंग्रेजी में मानव जाति का इतिहास (History of Mankind) है, ये सभी परिमण्डल सम्मिलित हैं।, शीर्षक से अनुवाद हुआ। रेट्जल की इस द्वयी का अन्त, उनकी तीसरी पुस्तक राजनीतिक भूगोल' (Poltical Geography) जर्मन विद्वान पृथ्वी को मनुष्य का आवास्य (Habitat), से हुआ। रेट्जल ने पृथ्वी तल की जनसंख्या के क्रमबद्ध, वितरण के अध्ययन के माध्यम से मानव भूगोल नामक नई वनस्पति एवं पशु सब मिलकर मनुष्य के आवास्य का, शाखा के प्रतिपादन की आवश्यकता महसूस की। उन्होंने, इस बात पर बल दिया कि यदि भूगोलविदों को समसामयिक संगठनात्मक तत्त्वों का भी अध्ययन होता है। स्पष्ट है, ज्ञान के साथ चलना है तो भूगोल में पृथ्वी तल पर मनुष्य कि मानव पारिस्थितिकी (Human Ecology) का अध्ययन, के वर्णन का क्रमबद्ध एवं समन्वित अध्ययन आवश्यक है।, बिस्मार्क के युग में रहते हुए रेट्जल ने राजनीतिक प्रदेशों, एवं प्रजाति प्रदेशों के सिद्धान्त को विकसित किया। इस, प्रकार प्राकृतिक एवं मानवीय दोनों तरह के तथ्यों का, भूगोल की जर्मन विचारधारा में प्रकृति के छः, उल्लेखनीय है कि हम्बोल्ट एवं रीटर जैसे महान, मानकर उसका अध्ययन करते हैं। जल, थल, वायु,, गठन करते हैं। इसीलिए मानव भूगोल में मनुष्य के, इस विचारधारा का आधार है।, रेट्जल ने 'एंथोपोज्योग्रफी' (Anthropogeographie), नामक भूगोल की एक शाखा का प्रतिपादन किया था,, जिसका हिन्दी पर्याय "मानव भूगोल" बना। रेट्जल ने, अपने सम्पूर्ण जीवन दर्शन में इस शाखा के महत्त्व को, तरह भूगोल में मानव के अध्ययन का श्रीगणेश हुआ।, मानव भूगोल के विकास में जर्मनी के विद्वानों का, योगदान (जर्मन स्कूल) - सर्वज्ञात है कि आधुनिक भूगोल आगे बढ़ाया जो जर्मनी के विचारकों द्वारा मानव भूगोल के, के विकास में जर्मन भूगोलविदों का योगदान सर्वाधिक क्षेत्र में किये गये योगदान का प्रतीक है। इसके अन्तर्गत, महत्त्वपूर्ण रहा है। वे भूगोल को आनुभविक विज्ञान मानते तीन तथ्य आते हैं, थे। वे पृथ्वी की सतह पर दृष्टव्य तथ्यों के अन्तर्सम्बन्धों में एवं उसका प्रभाव तथा भौतिक वातावरण का सम्बन्धित, ऐसा अनूठापन देखते थे, जो एक क्षेत्र को दूसरे क्षेत्र से समाजों पर प्रभाव। रेट्जल की "एकुमिनी" (Ecumene), अलग करता है। यद्यपि जर्मन विचारधारा मानव भूगोल में की संकल्पना भी मानव भूगोल के महत्त्व की परिचायक, निश्चयवाद के साथ जुड़ी है किन्तु यह नहीं भूलना चाहिए है इस प्रकार कहा जाता है कि जर्मन स्कूल ने भौगोलिक, कि जर्मनी में भूगोल की आधारशिला मनुष्य के महत्त्व को निश्चयवाद या प्रकृतिवाद (Geographical Determinism), स्वीकारते हुए रखी गई थी। हम्बोल्ट एवं रीटर ने पृथ्वी का प्रतिपादन किया।, की सतह के विभिन्न तथ्यों को उनके सही अस्तित्त्व के रूप, में देखा था।, जर्मनी के विचारक मनुष्य को भूगोल के अध्ययन, का केन्द्र मानते थे। उनके अनुसार मनुष्य प्रकृति के मानवकृत तथ्यों के पारस्परिक सम्बन्ध से उत्पन्न क्षेत्रीय, 1., मानव समूहों का वितरण, आव्रजन, जर्मन भूगोलविदों द्वारा सांस्कृतिक भूदृश्य (Cultural, Landscape) की संकल्पना का प्रतिपादन मानव भूगोल में, इनका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान कहा जा सकता है।