Page 1 :
ड़, , (__4-यॉजना-पद्धति, (00९०८ 1४९४४००), विभिन्न आधुनिक शिक्षण-पद्धतियों में योजना-पद्धति सबसे अधिक विवादग्रस्त, तथा प्रचलित पद्धति है। योजना-पद्धति का जन्म दार्शनिक विचारधाराओं के प्रयोजनवादी, सम्प्रदाय (21॥९7४४८ $01००)) के प्रयासों के फलस्वरूप हुआ। दर्शन से योजना को, शिक्षा-जगत में लाने का वास्तविक कार्य प्रमुख प्रयोजनवादी तथा शिक्षाशास्त्री जॉन, डयूवी (]00॥ 70०छ८ए) ने किया। वैसे ड्यूवी से पहले भी शिक्षा के कुछ क्षेत्रों में इसी, प्रकार के नाम प्रचलित थे, परन्तु शिक्षा में विशेष रूप से सामाजिक विषयों की शिक्षा में, इसका रूप स्पष्ट न था। सन् 1918 तक इसका रूप स्पष्ट हुआ। इसी वर्ष कोलम्बिया, विश्वविद्यालय के डॉ० डब्ल्यू०एच० किलपैट्रिक ने अपनी अत्यधिक प्रचलित एवं स्पष्ट, परिभाषा दी। योजना की परिभाषा देते हुये उन्होंने लिखा है-“योजना एक ऐसी सोद्देश्य, क्रिया है, जो सामाजिक वातावरण में पूर्ण दिलचस्पी से सम्पन्न की जाती है।” इस, परिभाषा को और भी अधिक स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करते हुये जे०ए० स्टीवेन्सन (2., 50८ए०7४०7) ने लिखा है--“योजना एक ऐसा समस्यात्मक कार्य है, जो प्राकृतिक अवस्थाओं, में पूरा किया जा है।” ेृ, योजना का रूप स्पष्ट हो जाने के उपरान्त शिक्षा-क्षेत्र में योजना-पद्धति का पर्याप्त, प्रयोग होने लगा। कुछ दिन पूर्व योजना-पद्धति कक्षा के बाहर किये गये कार्यों तक ही सीमित, थी, परन्तु वर्तमान में कक्षा के बाहर तथा अन्दर सभी कार्य इस पद्धति से होने लगे हैं। जा, योजना का प्रयोग अत्यन्त व्यापक रूप से किया जाने लगा है। इस पद्धति से सम्प, शिक्षण-कार्य वास्तविक तथा प्रयोगात्मक अवस्था में होता है, क्योंकि समस्या अत्यन्त, व्यावहारिक जाती है। इससे अनेक प्रकार की समस्याओं का समावेश, व्यावहारिक तथा वास्तविक बना दी जा करना आदि-आदि।, हो सकता है तथा साइकिल-स्टैण्ड बनाना, पार्सल से माल मँगाना, यात्रा, , 8९9०1९0 ७ए (:भा5९८गाशश'
Page 4 :
हा, , _2....योजना-पद्धति की सभी क्रियायें सोद्देश्य होती हैं। फलत: छात्र इसमें अधिक संलग्नता, से कार्य करते हैं।, , __ 3. योजना-पद्धति छात्रों को व्यावहारिकता तथा प्रयोजनात्मक ज्ञान प्राप्त कराती है।, , _...4. योजना-पद्धति 'करके सीखने ' के सिद्धान्त पर आधारित है।, , 5. योजना-पद्धति व्यक्तिगत विभिन्नताओं पर आधारित है। फलत: इसके अन्तर्गत सभी, छात्रों को अपना-अपना विकास करने के समान अवसर प्राप्त होते हैं।, , ---6ः पद्धति में शारीरिक एवं मानसिक क्रियाओं का सुन्दर समन्वय होने के कारण यह, पद्धति अधिक रोचक तथा आकर्षक है।, , 7. यह सिद्धान्त थार्नडाइक के सीखने के तीन महान् सिद्धान्तों पर आधारित है। थार्नडाइक, का पहला सिद्धान्त प्रभाव का सिद्धान्त (७ ०६ 121८0) है। सीखने के प्रभावों का, होना आवश्यक है। सीखने से सन्तोष एवं सफलता प्राप्त होनी चाहिये। योजना-पद्धति, में शारीरिक कार्य के फलस्वरूप छात्रों को सफलता एवं सन्तोष दोनों ही प्राप्त होते हैं।, इस प्रकार योजना-पद्धति प्रभाव के सिद्धान्त पर आधारित है। दूसरा सिद्धान्त तत्परता, का सिद्धान्त (1७ ० 1१८४०॥1८$४) है। इसके अनुसार सीखने से पूर्व छात्रों को, सीखन के लिये तैयार होना आवश्यक है। दूसरे शब्दों में, छात्रों को पहले से ही इस, बात का पता होना चाहिये कि वे क्या सीखने जा रहे हैं। योजना में पहले ही छात्रों को, ज्ञात रहता है कि आगे क्या होने जा रहा है। फलत: वे उसके लिये तैयारी करते हैं।, तीसरा सिद्धान्त अभ्यास का सिद्धान्त (20 ०६ 145०ए८४८) है। सीखना तभी स्थायी, एवं प्रभावपूर्ण रहता है, जब सीखे हुये ज्ञान का अभ्यास किया जाये। योजना-पद्धति, छात्रों को अभ्यास करने के अनेक अवसर प्रदान करती है।, , 8. योजना-पद्धति से छात्रों में सहयोग, सहानुभूति, सहिष्णुता तथा पारस्परिक प्रेम की, भावना जागृत होती है। इस प्रकार के सदगुण प्रजातन्त्रात्मक शासन-व्यवस्था के लिये, अत्यन्त आवश्यक हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि योजना-पद्धति हमें प्रजातन्त्रात्मक, जीवन व्यतीत करना सिखलाती है।, , “5 योजना-पद्धति शारीरिक श्रम के महत्त्व का ज्ञान छात्रों को कराती है।, 10. योजना-पद्धति छात्रों को पर्याप्त स्वतन्त्रता प्रदान करती है।, , योजना-पद्धति के दोष (0८72८7 ० हा 1००० धला।1००0), उपरोक्त गुणों के साथ ही साथ योजना-पद्धति में निम्नांकित दोष तथा कमियाँ भी, , देखने को मिलती हैं_. .ओजना ह -पद्धति अधिक क्लिष्ट एवं जटिल है। फलत: कष्ट साध्य है। प्रत्येक छात्र इन्हें, , सफलतापूर्वक नहीं कर सकता।, , 8९9०1९0 ७ए (:भा5९गाशश'
Page 5 :
_2--अँधिकतर ज्ञान अव्यवस्थित, श्रृंखलाविहीन तथा अक्रमबद्ध रूप में प्राप्त होता है।, अन्त में, ज्ञान को व्यवस्थित तथा क्रमबद्ध करने की आवश्यकता पड़ती है।, 3. योजना-पद्धति अधिक व्यय चाहतो है। साथ ही साथ नागरिकशास्त्र की सम्पूर्ण, विषय-वस्तु का ज्ञान भी इस पद्धति से प्रदान नहीं किया जा सकता।, 4. योजना-पद्धति अध्यापक के महत्त्व तथा स्थान को आवश्यकता से अधिक गिरा देती, , ना 1, न. -आ पूरी करने में श्रम तथा समय अधिक लगता है।, _--.&£” योजनाओं के संचालन हेतु कुशल तथा अनुभवी अध्यापकों की आवश्यकता होती, है।, 7. योजनाओं के निर्माण के समय छात्रों की क्षमताओं एवं पहुँचों का गलत अन्दाज लग, सकता है।, , >8«- निर्धारित समय में हो योजना पूरी करने की शर्त कभी-कभी योजना को अपने मूल, उद्देश्य से विचलित कर देती है।, , 9. शिक्षा के उच्च स्तर पर योजनाओं द्वारा शिक्षण-कार्य सुविधाजनक नहीं होता।, , 5९9९0 ४ए (:भा5९गाश'