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अध्याय 5, बाज़ार संतुलन, p*, यह अध्याय, अध्याय 2 तथा 4 की नींव पर आधारित है, जिनमें हमने उपभोक्ता, तथा फर्म के व्यवहार को कीमत-स्वीकारक के रूप में अध्ययन किया है। अध्याय, DD, 2 में हमने देखा कि किसी वस्तु के लिए एक व्यक्ति विशेष की माँग वक्र हमें, वस्तु की उस मात्रा को बताती है, जिसे एक उपभोक्ता विभिन्न कीमतों पर खरीदने, को इच्छुक हैं, जबकि कीमत दी हुई है। बाज़ार माँग वक्र हमें बताती है कि समस्त, उपभोक्ता मिलकर विभिन्न कीमतों पर वस्तु की कितनी मात्रा खरीदने के इच्छुक, हैं, जबकि प्रत्येक के लिए कीमत दी हुई है। अध्याय 4 में हमने देखा कि एक, व्यक्तिगत फर्म का पूर्ति वक्र हमें एक वस्तु की उस मात्रा को बताता है जिसे कि, एक लाभ-अधिकतम करने वाली फर्म विभिन्न कीमतों पर बेचने को इच्छुक होगी,, जबकि कीमत दी हुई है तथा बाज़ार पूर्ति वक्र हमें विभिन्न कीमतों पर किसी वस्तु, की उस मात्रा को बताती है, जिसे सभी फर्में सम्मिलित रूप से पूर्ति करने, इच्छुक होंगी, जबकि प्रत्येक फर्म के लिए कीमत दी हुई है।, इस अध्याय में हम उपभोक्ताओं तथा फर्मों दोनों के व्यवहार को सम्मिलित, करके माँग-पूर्ति विश्लेषण द्वारा बाज़ार संतुलन तथा किस कीमत पर संतुलन, होगा, का अध्ययन करेंगे। हम संतुलन पर माँग तथा पूर्ति में शिफ्टों के प्रभावों, का भी परीक्षण करेंगे। अध्याय के अंत में हम, मात्रा, की, 12104CH05, 1., अनुप्रयोगों को भी देखेंगे|, 5.1 संतुलन, अधिमाँग,, अधिपूर्ति, एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में स्वहित के उद्देश्यों से कार्य करने वाले क्रेता तथा, विक्रेता होते हैं। अध्याय 2 तथा 4 में आपने देखा कि उपभोक्ताओं का उद्देश्य, अपने-अपने अधिमान को अधिकतम करना तथा फर्मों का उद्देश्य अपने- अपने, लाभों को अधिकतम करना है। संतुलन की अवस्था में उपभोक्ता तथा फर्म दोनों, के उद्देश्य संगत होते हैं।, संतुलन को एक ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया जाता है, जहाँ, बाज़ार में सभी उपभोक्ताओं तथा फर्मों की योजनाएँ सुमेलित हो जाती हैं और, बाज़ार रिक्त हो जाता है। संतुलन की स्थिति में जिस कुल मात्रा का विक्रय करने, की सभी फर्में इच्छुक हैं; वह उस मात्रा के बराबर होता है जिसे बाज़ार में सभी, उपभोक्ता खरीदने के इच्छुक हैं। दूसरे शब्दों में, बाज़ार पूर्ति, बाज़ार माँग के, बराबर होती है। ऐसी स्थिति में बाज़ार रिक्त हो जाता है और न ही फर्म और न, ही उपभोक्ता विचलित होना चाहते हैं। जिस कीमत पर संतुलन स्थापित होता है, 2021-22, कीमत
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उसे संतुलन कीमत कहते हैं तथा इस कीमत पर खरीदी तथा बेची गई मात्रा संतुलन मात्रा, कहलाती है। अत: (p',g) एक संतुलन है यदि p° (p') = q° (p'), जहाँ p संतुलन कीमत को तथा q (p') और (p'), p कीमत पर क्रमश: वस्तुओं के, बाज़ार माँग तथा बाज़ार पूर्ति को दरश्शाते हैं।, यदि किसी कीमत पर बाज़ार पूर्ति, बाज़ार माँग से अधिक है, तो उस कीमत पर बाज़ार में, अधिपूर्ति कहलाती है तथा यदि उस कीमत पर बाज़ार माँग बाजार पूर्ति से अधिक है, तो उस, कीमत पर बाज़ार में अधिमाँग कहलाती है। अतः पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में संतुलन को वैकल्पिक, में, शून्य अधिमाँग-शून्य अधिपूर्ति स्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है । जब, कभी बाज़ार पूर्ति बाज़ार माँग के समान नहीं हो और इसलिए बाज़ार में संतुलन नहीं हो, तो कीमत, में परिवर्तन की प्रवृत्ति होगी।, अगले दो खंडों में हम यह समझने का प्रयत्न करेंगे कि इस परिवर्तन की व्युत्पत्ति कैसे हुई है ।, रूप, संतुलन से बाह्य व्यवहार, एड्म स्मिथ के समय ( 1723 1790) से यह मान्यता रही है कि जब भी बाज़ार में, असंतुलन होता है, तो पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में एक ' अदृश्य हाथ' कीमतों में परिवर्तन कर, देता है। हमारी अंतर्दृष्टि भी यह कहती है कि अदृश्य हाथ, अधिमाँग की स्थिति में कीमतों, में वृद्धि तथा अधिपूर्ति की स्थिति में कीमतों में कमी करेगा। संपूर्ण विश्लेषण में हमारी यह, मान्यता रहेगी कि इस ' अदृश्य हाथ ' की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है । इसके अतिरिक्त हम, यह भी मानेंगे कि इस प्रक्रिया के द्वारा 'अदृश्य, संतुलन स्थापित करता है। यह मान्यता, इस पुस्तक, सभी चर्चाओं में रहेगी।, 5.1.1 बाज़ार संतुलन: फर्मों की स्थिर, आपको याद होगा, अध्याय 2 में हमने कीमत-स्वीकारक उपभोक्ताओं के लिए बाज़ार माँग वक्र, तथा अध्याय 4 में कीमत-स्वीकारक फर्मों की स्थिर संख्या की मान्यता पर बाज़ार पूर्ति वक्र की, व्युत्पत्ति की है। इस खण्ड में फर्मों की स्थिर संस्था के आधार पर इन दो वक्रों की सहायता से यह, देखेंगे कि पूर्ति तथा माँग शक्तियाँ किस, प्रकार बाज़ार में संतुलन के निर्धारण के, लिए एक साथ कार्य करती है। हम यह भी, 82, कीमत, अध्ययन करेंगे कि किस प्रकार मॉँग तथा, SS, पूर्ति वक्रों में शिफ्ट के कारण संतुलन, कीमत तथा मात्रा में परिवर्तन होता है।, रेखाचित्र 5.1 स्थिर संख्या फर्मों वाले, एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में संतुलन दर्शाता, है। यहाँ किसी वस्तु के लिए SS बाज़ार, पूर्ति वक्र को तथा DD बाज़ार मॉँग वक्र, को दर्शाता है। बाज़ार पूर्ति वक्र SS वस्तु, की उस मात्रा को दर्शाता है, जिसका पूति कर्यों की सथिर संख्या की स्थिति में बाज़़ार संतुलन: बाज़ार, विभिन्न कीमतों पर फर्म करने को इच्छुक माँग वक्र DD तथा बाज़ार पूर्ति वक्र sS प्रतिच्छेदन बिन्दु संतुलन, होती हैं और माँग वक्र DD उस मात्रा को, दर्शाता है, जिसकी मॉँग विभिन्न कीमतो की तुलना में अधिक कीमत पर अधिपूर्ति होगी तथा p की, पर उपभोक्ता करने के इच्छुक हैं।, P2, p*, DD, मात्रा, रेखाचित्र 5.1, दर्शाता है। संतुलन मात्रा q, है, तथा संतुलन कीमत p है। p, तुलना, में कम कीमत पर अधिमाँग होगी।, 2021-22, व्यष्टि अर्थशास्त्र, एक परिचय ।
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ग्राफ़ीय रूप में संतुलन एक बिन्दु है, जहाँ बाज़ार पूर्ति वक्र बाज़ार माँग वक्र को परिच्छेदित, करता है, क्योंकि यह वह बिन्दु है जिस पर बाज़ार माँग बाज़ार पूर्ति के बराबर है। किसी भी अन्य, बिन्दु पर या तो अधिपूर्ति है या अधिमाँग है । यह देखने के लिए कि किसी दी हुई कीमत पर, बाज़ार पूर्ति बाज़ार माँग के बराबर न होने पर क्या होता है, आइए रेखाचित्र 5.1 पर दृष्टि डालें,, जहाँ किसी भी कीमत पर समानता नहीं होती।, रेखाचित्र 5.1 में यदि प्रचलित कीमत p, है, तो बाज़ार माँग q, है, जबकि बाज़ार पूर्ति q,, है अत: बाज़ार में q', q, के बराबर अधिमाँग है। कुछ उपभोक्ता जो वस्तु को प्राप्त करने में या, तो पूर्ण रूप से असमर्थ हैं अथवा इसे अपर्याप्त मात्रा में प्राप्त कर पाते हैं, वे, चुकाने को तत्पर होंगे। बाज़ार कीमत में वृद्धि की प्रवृत्ति होगी अन्य बातें समान रहने पर जैसे-जैसे, कीमत में वृद्धि होती है, माँग की मात्रा में गिरावट आती है, पूर्ति की मात्रा में वृद्धि होती है तथा, बाज़ार एक ऐसे बिन्दु की ओर अग्रसर होता है, जहाँ फर्म द्वारा विक्रय करने के लिए इच्छिछत मात्रा, उपभोक्ता द्वारा खरीदे जाने वाली इच्छित मात्रा के बराबर होती है। p पर एक फर्म के पूर्ति निर्णय, उपभोक्ताओं के माँग निर्णय से मेल खाते हैं। इसी प्रकार यदि प्रचलित कीमत, कीमत पर बाज़ार पूर्ति (q.) बाज़ार माँग (q) से अधिक है जो q', q, के बराबर अधिपूर्ति को, दर्शाती है। ऐसी स्थिति में, कुछ फर्में अपनी इच्छित मात्रा के अनुरूप विक्रय करने, होंगी। अत: वे अपनी कीमत घटाएँगी। अन्य बातें समान रहने पर , जैसे-जैसे कीमत घटती है,, की माँगी गई मात्रा में वृद्धि होती है, पूर्ति की मात्रा घटती है तथा p कीमत पर फर्म अपना इच्छित, उत्पादन बेच पाती है, क्योंकि इस कीमत पर बाज़ार माँग बाज़ार पूर्ति के बराबर है। इसलिए p, संतुलन कीमत है और उससे संबंधित मात्रा q' संतुलन मात्रा, संतुलन कीमत तथा मात्रा के निर्धारण को अधिक स्पष्ट रूप से, उदाहरण लेते हैं;, P1, से अधिक कीमत, P2, है, तो उस, असमर्थ, वस्तु, © NC, e repuis, है।, के लिए आइए, एक, उदाहरण, 5.1, आइए, एक ऐसे बाज़ार का उदाहरण लेते हैं जिसमें समान गुणवत्ता वाले गेहूँ का उत्पादन करने वाले, समरूपी' खेत हों। मान लीजिए गेहूँ के लिए बाज़ार माँग वक्र तथा बाज़ार पूर्ति वक्र निम्न प्रकार हैं-, 83, q° = 200 - p क्योंकि 0< p<2, = 0 क्योंकि p> 200, q = 120 + p क्योंकि p> 10, = 0 क्योंकि 0< p< 10, जहाँ q° तथा गेहूँ के लिए (किलोग्राम में) क्रमशः माँग तथा पूर्ति को दर्शाते, गेहूँ की प्रति किलोग्राम कीमत रुपयों में दर्शाता है। क्योंकि संतुलन कीमत पर बाज़ार रिक्त हो जाता, है। हम बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति को बराबर करके संतुलन कीमत (p द्वारा प्रदर्शित) ज्ञात, करते हैं तथा (p) के लिए हल करते हैं।, तथा p, q° (p'), 200 – p = 120 + p, आँकड़ों को पुनः व्यवस्थित करके, = q° (p'), 2p' = 80, p* = 40, 'यहाँ समरूपी से हमारा अर्थ है कि सभी खेतों की लागत संरचना समान है ।, 2021-22, J100, बाज़ार, संतुलन
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एक अकेली फर्म द्वारा श्रम की माँग की जाँच के लिए हम यह मान लेते हैं कि श्रम ,, उत्पादन का अकेला परिवर्ती कारक है और श्रम बाज़ार में पूर्ण प्रतिस्पर्धा है तथा इसका यह अर्थ, है कि प्रत्येक फर्म के लिए मज़दूरी दर दी हुई है । जिस फर्म के विषय में हम चर्चा कर रहे, हैं, वह भी स्वभाव से पूर्ण प्रतिस्पर्धी है तथा लाभ - अधिकतम करने के उद्देश्य से उत्पादन करती, है। हम यह भी मान कर चलते हैं कि फर्म की उपलब्ध प्रौद्योगिकी पर ह्रासमान सीमांत उत्पाद, नियम लागू होता है।, लाभ-अधिकतमकर्ता होने के कारण फर्म सदा, उस बिन्दु तक श्रम का उपयोग करेगी,, जिस पर श्रम की अन्तिम इकाई के उपयोग की अतिरिक्त लागत उस इकाई से प्राप्त, अतिरिक्त लाभ के बराबर है। श्रम की एक अतिरिक्त इकाई को उपयोग में लाने के, अतिरिक्त लागत मज़दूरी दर (w) है। श्रम की एक अतिरिक्त इकाई द्वारा अतिरिक्त निर्गत, उत्पादन उसका सीमांत उत्पाद, तथा प्रत्येक अतिरिक्त इकाई निर्गत के विक्रय से प्राप्त, अतिरिक्त आय फर्म की उस इकाई से प्राप्त सीमांत संप्राप्ति है। अतः श्रम की प्रत्येक, अतिरिक्त इकाई के लिए उसे जो अतिरिक्त लाभ प्राप्त होता है, वह सीमांत संप्राप्ति तथा, सीमांत उत्पाद के गुणनफल के बराबर है। इसे श्रम का सीमांत संप्राप्ति उत्पाद, कहते हैं।, अत: फर्म उस बिन्दु तक श्रम को उपयोग में लाती है जहाँ,, w = श्रम का सीमांत संप्राप्ति उत्पाद, तथा श्रम का सीमांत संप्राप्ति उत्पाद = सीमांत संप्राप्ति x श्रम का सीमांत उत्पाद, क्योंकि हम एक पूर्णत : प्रतिस्पर्धी फर्म का अध्ययन कर रहे हैं, सीमांत संप्राप्ति वस्तु०, की कीमत के बराबर है तथा इस स्थिति में श्रम का सीमांत, श्रम के सीमांत, उत्पाद के मूल्य के बराबर है।, जब तक श्रम के सीमांत उत्पाद का मूल्य मज़दूरी दर से, अतिरिक्त इकाई का उपयोग करके अधिक लाभ अर्जित कर सकती है तथा यदि श्रम उपयोग, के किसी भी स्तर पर श्रम के सीमांत उत्पाद का मूल्य मज़दूरी दर की तुलना में कम है,, तो फर्म श्रम की एक इकाई कम करके अपने लाभ में वृद्धि कर सकती है।, ह्रासमान सीमांत उत्पाद नियम की मान्यता पर फर्म मज़दूरी दी गई, उत्पाद के मूल्य पर ही सदैव उत्पादन, करती है, इसका यह अभिप्राय है कि, श्रम के लिए माँग वक्र नीचे की ओर, प्रवणता वाली है। यह समझाने के, लिए कि ऐसा क्यों है, आइए मान लेते, हैं कि किसी मज़दूरी दर u, पर श्रम, के लिए माँग ।, है। अब मान लीजिए, कि मज़दूरी दर बढ़कर u,, है। मज़दूरी-श्रम के सीमांत उत्पाद के, मूल्य में समानता बनाए रखने के लिए, श्रम के सीमांत उत्पाद के मूल्य में भी, वृद्धि होनी चाहिए, वस्तु की कीमत मज़दूरी एक ऐसे बिन्दु पर निर्धारित होती है, जहाँ श्रम माँग, है, फर्म श्रम की एक, 85, = श्रम के सीमांत, हो जाती, 1*, श्रम (घंटों में), तथा श्रम पूर्ति वक्र एक-दूसरे को प्रतिच्छेदित करते हैं ।, अध्याय 4 में पूर्ण प्रतिस्पर्धी फर्म के लिए सीमांत संप्राप्ति, कीमत के बराबर होती है।, 2021-22, बाज़ार, संतुलन