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गयासुददीन तुगलक, तुगलक वंश का संस्थापक था। उसका जन्म साधारण परिवार में हुआ था, किन्तु अपनी योग्यता ।, को साफ कराया गया। उनकी मरम्मत का कार्य भी उसने कराया। डाक व्यवस्था में भी उसने आवश्यक सुधार किये।, सीमारक्षक, न्यायप्रिय, उच्चाशय तथा शक्तिशाली शासक सिद्ध हुआ।, का अन्त नहीं हुआ तथा जब खुसरो ने मुंबारकशाह की हत्या करके स्वयं को दिल्ली का सुल्तान घोषित किया तो, गयासुद्दीन ने उसके विरुद्ध विद्रोह कर दिया तथा शक्तिशाली सेना के साथ दिल्ली के लिए प्रस्थान किया तथा खुसरो की।, हत्या कर स्वयं दिल्ली का सुल्तान बन गया। लेनपूल ने उसकी प्रशंसा करते हुए लिखा है, "वह एक विश्वसनीय, तुगलक वंश, [THE TUGHLAO DYNASTY], गयासुद्दीन तुगलक शाह (1320 ई. -1325 ई.), गयासुदान ड्तति करते हुए दीपालपुर का सूबेदार बन गया। सूबदार बनने के पश्चात् भी उसकी महत्वाकांक्षाओं, ने, १ )1, प्रारम्धिक समस्याएं, गयासद्दीन तुगलक शाह को अपने शासन के प्रारम्भ में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा। केन्द्र में सत्ता, के कमजोर हो जाने के कारण अनेक सूबेदार विद्रोह करने की तैयारी कर रहे थे। कुछ सूबेदार अपनी स्वतन्त्रता घोषित, कर चुके थे। उसके राज्य में चारों ओर अव्यवस्था फैली हुई थी।, गृह नीति, (HOME POLICY), गयासुद्दीन के लिए आवश्यक था कि वह सर्वप्रथम उसके राज्य में उत्पन्न हुई समस्याओं का समाधान करे। गयासुद्दीन, एक योग्य शासक था, उसने सफलतापूर्वक इन समस्याओं का सामना किया।, सल्तनत काल की प्रशासनिक व्यवस्था में अमीरों का विशेष महत्व था। अतः गयासुद्दीन ने सर्वप्रथम अमीरों को प्रसन्न, किया। खुसरो के समर्थक अमीरों के विरुद्ध उसने कोई कार्यवाही नहीं की तथा उन्हें पदों पर बने रहने दिया, किन्तु विद्रोह, कर रहे सूबेदारों का उसने कठोरतापूर्वक दमन किया। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए भी उसने उचित कदम उठाये।, राजकोष को भरना, खुसरो ने राजकोष रिक्त कर दिया था। उसने अनेक लोगों को जागीरें तथा उपहार दिये थे। गयासुद्दीन ने राजकोष, को भरने के लिए ऐसे लोगों की सूची बनवाई व उनसे जागीरें वापस ले ली गयीं।, राजस्व व्यवस्था में सुधार, যाजकाष को भरने के पश्चात् गयासुद्दीन ने राजस्व व्यवस्था की ओर ध्यान दिया तथा अनेक सुधार किये।, अलाउद्दीन के द्वारा लागू की गयी भूमि नापने की व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया तथा पुरानी व्यवस्था को पुनः लागू, किया गया। किसानों को राज्य से ऋण देने की व्यवस्था भी लागू की गयी। प्राकृतिक विपत्ति के समय लगान माफ, ল की भी व्यवस्था की गयी| सिंचाई की भी उचित व्यवस्था की गयी। इस प्रकार किसानों का समर्थन व विश्वास, प्राप्त करने में वह सफल रहा।, यातायात के साधनों में सुधार, यासुद्दान तुगलक ने यातायात के साधनों में सुधार किये। अनेक नवीन मार्गों का निर्माण कराया गया तथा पुराने मार्गों, -Lanepoole
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कृषि की उन्नति (कृषि विभाग का निर्माण), मुहम्मद तुगलक ने कृषि की उन्नति के लिए कृषि विभाग की स्थापना की। उसका नाम 'दीवाने कोही' रखा गय., राज्य की ओर से आर्थिक सहायता देकर कृषि के योग्य भूमि का विस्तार करना इस विभाग का उद्देश्य था। इस का, के लिए साठ वर्ग मील का एक भू-भाग चुनकर उसमें बारी-बारी से विभिन्न फसलें बोरयी गयी। इस योजना के अन्तर्गः, सरकार ने दो वर्ष में लगभग सत्तर लाख रुपया व्यय किया। इस भू-भाग की देख-रेख के लिए बड़ी संख्या में, तथा पदाधिकारी नियुक्त किये गये किन्तु अनेक कारणों से यह प्रयोग असफल रहा। पहला कारण असफलता का यह, था कि प्रयोग के लिए चुना गया यह भू-क्षेत्र उपजाऊ नहीं था। दूसरा कारण यह था कि प्रयोग नितान्त नया था और, सम्बन्ध में कोई पूर्व उदाहरण विद्यमान नहीं था। तीसरा तीन वर्ष का समय कम था और उसमें ठोस परिणाम की आश्र, करना व्यर्थ था। इतने अल्प समय में किसी भी ठोस परिणाम की आशा नहीं हो सकती थी। चौथा कारण यह था कि, योजना के लिए निर्धारित किया गया धन सही अर्थ में प्रयोग नहीं किया गया क्योंकि उसमें से कुछ तो भ्रष्ट पदाधिकारी, हड़प गये तथा कुछ किसानों ने अपनी निजी आवश्यकताओं पर व्यय कर दिया। इस प्रकार मुहम्मद तुगलक का यह, प्रयोग भी असफल रहा और उसे इस योजना को त्यागना पड़ा।, राजधानी परिवर्तन, रक्षक, इस, मुहम्मद तुगलक काफी दूरदर्शी था। उसने योजना बनायी कि इतने बड़े साम्राज्य की राजधानी केन्द्र में होनी चाहिए., क्योंकि दिल्ली दक्षिण भारत से बहुत दूर, अतः उसने देवगिरि को राजधानी बनाने का निश्चय किया, जिसका नाम दौलताबाद रखा। उसकी राजधानी परिवर्तन की, नीति कोई नयी न थी तथा न ही मूर्खतापूर्ण थी। इतिहास में अनेक बार राजधानी परिवर्तन हो चुके थे तथा उसका विचार भी, दूरदर्शितापूर्ण था। बरनी ने लिखा है, "दौलताबाद साम्राज्य के केन्द्र में स्थित था तथा दिल्ली, गुजरात, लखनौती, तिलंग तथा अन्य, मुख्य स्थानों से लगभग बराबर दूर (700 मील) था।" लेकिन जिस ढंग से मुहम्मद ने इस विचार को कार्यान्वित किया वह, मुहम्मद तुगलक की भूल थी। बरनी लिखता है कि "उसने बिना किसी मन्त्रणा किये दिल्ली का नाश कर दिया, जो कि 170, अथवा180 वर्ष से समृद्ध होती आ रही थी तथा जो बगदाद तथा काहिरा से प्रतिस्पर्ध्धा करती थी। नगर, उसकी सरायें, किनारे, के भाग, गांव जो चार-पांच कोस की परिधि में फैले हुए थे, वे सब नष्ट हो गये अथवा उजड़ गये। एक बिल्ली अथवा कुत्ता भी, नहीं बचा। लोगों को अपने परिवार सहित नगर छोड़ने के लिए विवश किया गया, उनके हृदय टूट गये, अनेक मार्ग में ही, मर गये। जो देवगिरि पहुंचे भी वे निर्वासन को न सह सके और घुल-घुलकर मर गये।", मुहम्मद तुगलक ने अपनी भयंकर भूल का अनुभव किया और बचे हुए लोगों को दिल्ली लौटने की आज्ञा दे, दी। लेनपूल के अनुसार दौलताबाद मुहम्मद की 'शक्ति के दुरुपयोग का स्मारक था। इस प्रकार सुल्तान की यह योजना, भी गलत तरीके से कार्यान्वित करने के कारण असफल रही। इस प्रकार स्पष्ट है कि मुहम्मद तुगलक का राजधानी परिवर्तन, का विचार उतना असंगत नहीं था, जितना कि उसका तरीका। यदि राजधानी परिवर्तन करनी थी तो उसे दौलताबाद का, बिकास करना चाहिए था।, सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन, तथा वहां से सम्पूर्ण देश का शासन संचालन समुचित ढंग से नहीं हो सकताथा।, भारतीय मुद्रा के इतिहास में मुहम्मद तुगलक के शासन का महत्वपूर्ण स्थान है। उसे मुद्रा ढालने वाला राजा भी, कहा गया है। दोआब में कर वृद्धि, दो बार राजधानी परिवर्तन तथा कृषि विभाग की स्थापना से राजकोष लगभग खाली, हो, चुका था, अतः उसने सांकेतिक मुद्रा चलाने की योजना बनायी । उसने प्रचलित मुद्रा प्रणाली में भी काफी सुधार किये, और कई प्रकार के नये सिक्के भी चलाये। इससे पहले उसने सोने का 'दीनार' चलाया था, जिसका भार 201.6 ग्रेन, था। 144 ग्रेन का 'अदली' भी उसने प्रचलित किया। साधारण क्रय-विक्रय को अधिक सुविधापूर्ण बनाने के लिए सुल्तान, ने दोकनी' अथवा 'सुलतानी' नामक सिक्का भी जारी किया था। उसके द्वारा चलाये गये ये सिक्के कलापूर्ण डिजायना, तथा बनावट के लिए विख्यात थे। सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन उसका एक महत्वपूर्ण प्रयोग था। वैसे तेरहवीं सदी के अन्त, में चीन के मंगोल सम्राट कुबलाई खां ने कागज की सांकेतिक मुद्रा चलायी थी और फारस के शासक गाईखत्तू ने चमड़, का सिक्का चलाया था। ईरान का प्रयोग असफल हो गया था लेकिन चीन में कुबलाई का प्रयोग सफल रहा।, अपनी योजना के अनुसार मुहम्मद तुगलक ने भी तांबे के सिक्के जारी किये तथा उनका मूल्य सोने की, बराबर रख दिया। उसने आदेश दिया कि लोग सभी कामों में इन सिक्कों का प्रयोग करें। कलात्मक दृष्टि से उसक, के, मुद्रा, 1 "Daulatabad had a central situation, nearly equidistant (700 miles) from Delhi, Gujarat, Lakhanau, Tilang and other chief places.", 2 "A monument of misdirected energy.", Lanepoole
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तुगलक हमारा ध्यान आकृष्ट करता है। इस प्रकार की नवीनता तथा विभिन्नता दोनों ही द्ृष्टि से उसके सिक्के शिक्षाप्रद हैं।, रूप तथा बनावट की कलात्मक श्रेष्ठता को ध्यान में रखते हुए भी वे अधिक सराहनीय हैं तथा उनका विशेष महत्व इसलिए, लेकिन इस सांकेतिक मुद्रा के परिणाम स्वयं सुल्तान के लिए खतरनाक सिद्ध हुए। लोगों ने प्रतीक सिक्के ढालने, आरम्भ कर दिये। बरनी ने लिखा है, "तीसरी योजना ने भी भारी क्षति पहुंचायी, तांबे के सिक्के चलाये गये और उन्हें, सिक्के काफी सुन्दर थे। टॉमस उसकी प्रशंसा में लिखते हैं, "मुद्रा ढालने वालों के सरताज के रूप में ही मुहब्मद :, सोने-चांदी के असली सिक्कों की भांति प्रयोग करने की आज्ञा दी गयी। उस आज्ञा से प्रत्येक हिन्दू का घर टकसाल बन, है कि वे स्वयं सुल्तान के व्यक्तित्व को प्रतिबिम्बित करते हैं।", बिन, के, के, गया....इन गांवो के सिक्को के कारण गांवों के मुखिया तथा भमिधर धनी हो गये., किन्तु राज्य की आर्थिक स्थिति बिगह, शयी....जब सुल्तान व्यापार को चौपट होते देखा तो उसने अपनी आज्ञा रह कर क्रोध में आकर घोषणा का कि लो, तांबे के सिक्के राजकोष में जमा कर दें और उनके बदले में सोने-चांदी के सिक्के ले लें। हजारों लोग बदलने के लिए सिक्क, ले आये और तुगलकाबाद में सिक्को के पहाड़ों के समान ढेर लग गये।", टॉमस के इस कथन से मुहम्मद तुगलक की विफलता का कारण स्पष्ट हो जाता है : "ऐसी कोई व्यवस्था नही था, जिससे राजकीय टकसाल के सिक्कों तथा साधारणतया कशल कारीगरों द्वारा बनाये हुए निजी सिक्को का अन्तर माटम, किया जा सकता। मुहम्मद तुगलक ने तांबे के सिक्कों की असलियत की जांच के लिए कोई उपाय नहीं किया था ओर, न साधारण जनता द्वारा जाली सिक्कों के बनाने पर ही किसी प्रकार का प्रतिबन्ध था।" वास्तव में सुल्तान का धह, योजना सैद्धान्तिक रूप से निराधार नहीं थी, उसके विचारों में मौलिकता थी तथा वह अपने युग की कलाओं एव विज्ञान, में पारंगत था, फिर भी उसने कुछ ऐसी अवैज्ञानिक भूलें कीं जिससे उसकी योजना असफल हो गयी। डॉ. मेहदी हुसन, के अनुसार, "सुल्तान का यह प्रयोग सामूहिक रूप से अच्छा था और राजनीतिकता से पूर्ण था, किन्तु सुल्तान ने इसे कार्यरूप, देने में बहुत गलती की।" उसे तांबे में सिक्के जारी करने से पूर्व टकसाल पर राज्य का पूर्ण नियन्त्रण स्थापित करना, चाहिए था।, ने, धार्मिक नीति, (RELIGIOUS POLICY), अपने पूर्व शासकों की अपेक्षा मुहम्मद तुगलक की धार्मिक नीति अधिक उदार थी। उसने शरीयत की उपेक्षा की और, बुद्धि को राजनीतिक आचरण का आधार बनाने का प्रयत्न किया। उसने निश्चय किया कि राजनीतिक तथा शासन-सम्बन्धी, विषयों में लौकिक विचारों की ही प्रधानता होनी चाहिए। उसने उलमाओं को राजनीति से अलग रखा, किन्तु वास्तव में, सुल्तान शरा को चुनौती नहीं देना चाहता था। वह सभी महत्वपूर्ण विषयों में उलमाओं से परामर्श किया करता था, यद्यपि वह, उनकी सलाह को स्वीकार तभी करता था जब वे तर्कसंगत एवं समयानुकूल होती थी। न्याय-शासन में उलमाओं के एकाधिकार, को सुल्तान ने समाप्त कर दिया। यदि उलेमा के विरुद्ध बगावत, राजविद्रोह अथवा धार्मिक संस्थाओं के धन को गबन करने का, अपराध सिद्ध हो जाता था तो वह उन्हें कठोर दण्ड देता था, अंतः अलाउद्दीन खिलजी की भांति वह भी शासन-कार्य में, उलेमाओं के हस्तक्षेप का विरोधी था। सर्वोच्च न्यायाधीश वह स्वयं था। बलबन की भाति उसका भी विश्वास था कि 'सुल्तान, ईश्वर की छाया' है। उसके सिक्कों पर 'अल सुल्तान जिल्ली अल्लाह' (ईश्वर की छाया, सुल्तान) खुदा रहता था। उसके कुछ, सिक्कों पर इस प्रकार के छन्द मिलते हैं : "प्रभुत्व का अधिकारी प्रत्येक व्यक्ति नहीं होता, वह चुने हुए व्यक्ति को प्रदान की, जाती है", "जो सुल्तान की आज्ञा का पालन करता है वह सच्चे रूप में ईश्वर की आज्ञा मानना है", "सुल्तान ईश्वर की छाया, है", "ईश्वर सुल्तान का समर्थक है", आदि। अतः अपने सिक्कों के द्वारा उसने जनता को सुल्तान के महत्व को समझाने, का प्रयास किया तथा हर प्रकार से खलीफा के नाम का उल्लेख करना बन्द करवा दिया। उसने हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं, का भी ध्यान रखा। डॉ. ईश्वरी प्रसाद के अनुसार, "उसमें धार्मिक कट्टरता एवं असहिब्णुता नही थी। सुसंस्कृति के कारण उसका, दृष्टिकोण विस्तृत हो गया था तर्कशास्त्रियों एवं दार्शनिकों से बातचीत करते-करते उसमें वह सहिष्णुता उत्पन्न हो गयी थी, जिसके, लिए अकबर की इतनी प्रशंसा की जाती है।", अपनी न्यायप्रियता, उदारता तथा व्यक्तिगत योग्यता के बावजूद सुल्तान दिन-प्रतिदिन जनता में अप्रिय होता, गया। उसका विचार था कि शायद शरा की उपेक्षा के कारण जनता में असन्तोष है, अतः उसने अपने शासन के, 1 "It is indeed in his roleofas Prince of Moneversg that Muhammed Bin Tughlag claima u