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बहलोल की घटनायें- बहलोल जिस समय सुल्तान बना उसके सामने अनेक समस्याएंँ, थीं, जैसे-, ) सैय्यद वंश का सुल्तान आलम शाह जीवित था। उससे सहानुभूति रखने वाले लोग, बहलोल के घोर शत्रु थे।, )वजीर हामिद खाँ से विश्वासघात करके बहलोल ने राजगद्दी प्राप्त की थी। अत: उसके, अनुयायी भी बहलोल के विरोधी थे।, (3) जौनपुर के शकी सुल्तान की पत्नी सैय्यद वंश से थी, अत: वह भी दिल्ली पर, आक्रमण कर सकता था।, (4) अफगानों की आदतों और क्रूर व्यवहार से लोगों में उनके प्रति घृणा की भावना थी।, (5) बहलोल अफगानों की मदद से सुल्तान बना था और उसे उनका ही भरोसा था, लेकिन, अफगानों का स्वतन्त्रता प्रेम और अनुशासनहीनता उसके प्रति कठिनाइयाँ उत्पन्न कर सकती थीं।, (6) राजधानी दिल्ली में अराजकता एवं अशान्ति थी।, बहलोल के कार्य- बहलोल ने अपनी स्थिति को मजबूत बनाने के लिए अपने अफगान, साथियों को उच्च पद प्रदान किये। उसने अपफगान सरदारों के साथ सदा सामानता का व्यवहार, किया। तारीखे दाऊदी के अनुसार बहलोल आम दरबार में सिंहासन पर न बैठकर एक गलीचे, पर बैठता था। वह अपने अमीरों को फरमान भेजते हुए उन्हें मसनदे आली शब्द से संबोधित, 1., करता था।, दिल्ली में अपनी स्थिति को मजबूत करने के बाद उसने पंजाब की ओर ध्यान दिया।, मेवात और सम्भल के सूबेदारों की काफी जागीर उसने खालसा में शामिल कर ली। कोइल, (अलीगढ़) पटियाली और संकेत आदि के शासक उसके प्रति निष्ठावान रहे थे। अतः उसने, उनको अपने पद पर रहने दिया। बहलोल की सबसे प्रमुख सफलता जौनपुर के महमूद शाह, शर्की पर विजय थी। उसने नरेला के समीप शरकी सुल्तान को पराजित किया। शकी सुल्तान ने, उसके बाद भी दो बार दिल्ली पर आक्रमण किया, लेकिन उसे सफलता न मिली। इसके बाद, उसने अफगानिस्तान से अफगानों को बुलाया ताकि उनकी गरीबी छूट जाये और उनकी शक्ति में, वृद्धि हो। फलतः बड़ी संख्या में अफगान उसकी सेना में भर्ती हुए। बहलोल ने जौनपुर को अपने, राज्य में मिला लिया। इससे उसके साम्राज्य का विस्तार हुआ और उसकी प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई।, अहमद यादगार के अनुसार बहलोल ने सिंध को भी अपने राज्य में मिला लिया था और मेवाड़ के, राणा को भी हराया था, लेकिन डॉ. श्रीवास्तव का कथन है- दिल्ली और मेवाड़ के बीच कई, स्वतन्त्र राज्य थे जिनका बहलोल दमन नहीं कर सका था। अत: बहलोल मेवाड़ को कैसे जीत, सकता था। इसके अतिरिक्त अहमद यादगार के अतिरिक्त किसी लेखक ने बहलोल की मेवाड, विजय का उल्लेख नहीं किया है। 1487 ई. में बहलोल ने ग्वालियर के राजा मानसिंह को अधीनता, स्वीकार करने के लिए विवश किया। जुलाई 1489 ई. में जलाली नामक स्थान पर उसकी मृत्यु, हो गयी।, बहलोल का चरित्र एवं उपलब्धियाँ- बहलोल एक पुरुषार्थी व्यक्ति था। वह काफी, उदार था। उसने पराजित शर्की सुल्तान की पत्नी को सम्मान सहित उसके पति के पास भेज दिया, था। वह एक धर्म परायण मुसलमान था। नियमित रूप से नमाज पढ़ता और कुरान के नियमों का
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पालन करता था, लेकिन वह धर्मान्ध न था। उसे कई हिन्दू जमीदारों का सम्मान प्राप्त था। उससे, अमीरों को भाईचारे की भावना से नियन्त्रण में रखा। वह कालीन पर उनके साथ बैठता और, सुख-दुःख में उनका साथ देता था।, वह वीर सैनिक और कुशल सेनानायक था । उसने अनेक विद्रोहों का दमन किया और, अनेक विजयें प्राप्त कीं। जौनपुर को जीतकर दिल्ली राज्य में मिलाना उसकी सबसे महत्वपूर्ण, सफलता थी। इस तरह उसने लोदी राज्य का विस्तार किया किन्तु वह उसे सुदृढ़ नहीं कर सका।, वह एक योग्य कूटनीतिज्ञ था। उसने अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए अनुचित उपायों का भी, उपयोग किया जैसे उसने नरेला की युद्ध भूमि में दरिया खाँ लोदी को रिश्वत देकर अपने साथ, मिलाया और वजीर हमीद खाँ से स्वार्थ सिद्ध करके बाद में उसे बन्दी बना लिया।, बहलोल ने लगभग 38 वर्ष राज्य किया जो दिल्ली के सुल्तानों में सबसे अधिक था। उसने, प्रान्तीय शासकों की महत्वाकांक्षा पर रोक लगाई। उसका अधिकांश समय युद्धों और विद्रोहों के, दमन में बीता था। अतः शासन व्यवस्था में कोई विशेष सुधार नहीं किये। वह मंत्रियों की अपेक्षा, अधिकारियों की नियुक्ति स्वयं करने लगा था। उसने बहलोली नाम के एक सिक्के को भी चलाया, जो अकबर के शासनकाल तक चलता रहा, लेकिन उपरोक्त सफलताओं के, सल्तनत के इतिहास में बहलोल का अधिक उच्च स्थान नहीं है।, बावजूद, भी दिल्ली