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जी, मुस्लिम (हुर्क) आक्रमण ४, , आठवीं शताब्दी के प्रारम्भ मे मुहम्मद-विन-कासिम के नेतृत्व में सिन्ध पर जो अरब-आक्रमण हुआ था उसका, कोई स्थायी परिणाम नहीं हुआ। अरबों का राज्य सिन्ध और मुल्तान के पूर्व में नहीं फैल सका तथा उनकी शक्ति शीघ्र, ही क्षीण हो गई। उनके इस अधूरे कार्य को तुर्कों ने पूरा किया। तुर्क, चीन की उत्तरी-पश्चिमी सीमाओं पर निवास करने, वाली एक असभ्य एवं वर्वर जाति थी। जब अरब के उमय्यावंशी शासकों ने इस्लाम धर्म का प्रचार मध्य एशिया की, ओर किया तो तुक भी इस्लाम धर्म के सम्पर्क में आये। वे अत्यन्त खूँखार एवं लड़ाकू होते थे। उन्होंने इस्लाम धर्म, स्वीकार कर लिया तथा इसका प्रचार पूरे जोर-शोर के साथ करने में जुट गये। उनका उद्देश्य एक विशाल, मुस्लिम-साम्राज्य स्थापित करना था।, , प्रारम्भिक आक्रमण : सुबुक्तगीन, , भारत में सबसे पहले जो तुर्क आक्रमणकारी आये, वे गजनी के शासक-कुल से सम्बन्धित थे। 962 ईस्वी में, अलप्तगीन नामक एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति ने गजनी में एक स्वतन्त्र तुर्की राज्य कौ स्थापना कौ। उसके दामाद, सुवुक्तगीन ने उसके वंश का अन्त कर 977 ईस्वी में राजंगद्दी हथिया ली। वह एक शक्तिशाली शासक था जो भारत पर, आक्रमण की योजनायें तैयार करने लगा। पंजाब के हिन्दू शासक जयपाल ने उसकी योजनाओं को प्रारम्भ में ही विफल, कर देने के उद्देश्य से 985-87 ईस्वी में एक बड़ी सेना के साथ गजनवी पर आक्रमण कर दिया। कई दिनों तक भीषण, युद्ध चलता रहा तथां किसी भी एश्ट क्री विजय न हो सकी। परन्तु दुर्भाग्यवश भारी वर्षा तथा हिमपात से भारतीय
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0<८< |] ॒, भंग हो गया जिसके फलस्वरूप जयपाल को अत्यन्त अपमानजनक सन्धि करनी पड़ी। हजनि के, नी को मा का थे 50 हाथी तथा कुछ प्रदेश देने का बचन दिया परन्तु लाहौर पहुँचकर उसने सन्धि की पु, पर शर्तों को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया। सुबुक्तगीन ने उसके राज्य पर आक्रमण कर लूट-पाट की।, ने 991 ईस्वी में कुछ मित्र राजाओं की सहायता से गजनी पर पुनः आक्रमण किया किन्तु युद्ध में सुवुक्तमीन की., दा हुई। इस विजय के फलस्वरूप सुबुक्तगीन ने पेशावर तक के भूभाग पर अपना अधिकार कर लिया। 999, , ईस्वी में सुबुक्तगीन की मृत्यु हो गयी।, , , , महमृद गजनवी का आक्रमण, , सुवुक्तगीन की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र महमूद 998 ईस्वी में गजनी का राजा पे रद की के समय, उसकी अवस्था 27 वर्ष कौ थी। वह अत्यन्त महत्वाकांक्षी युवक था। कहा जाता है कि वगदाद के खलीफा से, 'यमिनुद्दोला" तथा 'अमीन-उल-मिल्लाह' का सम्मानित विरुद प्राप्त करते समय उसने यह प्रतिज्ञा की थी कि वह, प्रतिवर्ष भारत पर एक आक्रमण करेगा। मध्य एशिया में अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिये उसे धन की भी, आवश्यकता थी जो भारत में आसानी से प्राप्त हो सकता था। अतः इस्लाम धर्म के प्रचार तथा धन प्राप्त करने की, लालसा से उसने भारत पर अनेक आक्रमण किये। हेनरी इल्यिट ने भारत पर महमूद के आक्रमणों की पु सत्रह बताई, है। महमूद का प्रथम भारतीय आक्रमण पश्चिमोत्तर भारत के शाही राजा जयपाल पर 1001 ईस्वी में हुआ। पेशावर में, दोनों के बीच एक घमासान युद्ध हुआ जिसमें जयपाल की पराजय हुई। उसने महमूद को भारी हर्जाने की रकम तथा, 50 हाथी देने का वचन दिया। महमूद उसकी राजधानी उदभाण्डपुर को लूटने के बाद अतुल सम्पत्ति लेकंर गजनी, वापस लौट गया। जयपाल इस पराभव को सहन नहीं कर सका तथा उसने आत्महत्या कर ली। पश्चिमी पंजाब तथा, लाहौर पर महमूद का अधिकार हो गया। जयपाल के बाद आनन्दपाल तथा फिर त्रिलोचनपाल शाहियावंश के शासक, हुये। आनन्दपाल तथा महमूद की सेनाओं के बीच दो बार युद्ध हुये और दोनों ही बार महमूद की विजय हुई। सर्वप्रथम, 1009 ई0 के लगभग महमूद ने आनन्दपाल की सेनाओं को वेहन्द के मैदान में पराजित किया। आनन्दपाल ने भागकर, जगरकोट के दुर्ग में शरण ली। महमूद ने दुर्ग की घेरावन्दी की तथा तीन दिन के भयंकर युद्ध के पश्चात् वहाँ अपना, अधिकार कर लिया। इस प्रकार सिंध से लेकर नगरकोट तक का समस्त प्रदेश उसके अधिकार में आ गया। उतबी के, विवरण से पता चलता है कि नगरकोट की लूट में महमूद को इतना धन मिला कि जितने भी ऊँट मिले उन सब पर, उसे, लाद दिया गया, फिर भी धन शेष रहा। इसे अधिकारियों में बौँट दिया गया। इसमें स्वर्ण सिक्के, सोना-चौंदी की बहुमूल्य, वस्तुयें, मोती और सुन्दर वस्त्र आदि शामिल थे। आनन्दपाल ने नमक कौ पहाड़ियों के कोने में स्थित नन्दन को अपनी, राजधानी बनायी। वहीं उसकी मृत्यु हो गयी। उसके पुत्र तथा उत्तराधिकारी त्रिलोचनपाल ने महमूद के विरुद्ध भारतीय, राजाओं का एक संघ बनाया किन्तु 1018 ईस्वी में महमूद ने पुनः इस संघ को परास्त कर दिया। 1021 ईस्वी में, , त्रिलोचनपाल की मृत्यु हो गयी तथा इसके बाद शाहियावंश का राज्य महमूद के कब्जे में चला गया।, महमूद के आक्रमण का दूसरा शिकार मुल्तान का राज्य हुआ। यहाँ का राजा फतेह दाऊद शिया मतावलम्बी था, और इस कारण सुन्नी महमूद उससे चिढ़ता था। 1006 ईस्वी में उसने मुल्तान पर आक्रमण कर दाऊद को पराजित किया, हल रा मा हुपपाल को वहाँ का राजा वनाया। यह सुखपाल जयपाल की पुत्री का पुत्र था जो महमूद द्वार, व्यगनरमप 5 जाया गया जहाँ उसने इस्लाम धर्म स्वीकार 20150 था। परन्तु सुखपाल ने इस्लाम का धर्म, जाती वगा लिन रुद्ध विद्रोह कर दिया। फलस्वरूप 1008 ईस्वी में महमूद ने पुनः मुल्तान पर आक्रमण कर उसे, अंग गमा तल अपना अधिकार कर लिया। महमूद ने _भटिण्डा के राजा विजयराय यह 1005 ईस्वी में, पड़ता था। महयूद ने दुर्ग कक सुदृढ़ दुर्ग था जो पश्चिमोत्तर भारत से गंगा की उपजाऊ घाटी तक पहुँचने के मार्ग में, ; पद मे दुर्ग का घेरा डाला। विजयराय ने बड़ी वीरतापूर्वक दुर्ग की रक्षा की परन्तु असफल रहा तथा भाग, , खड़ा हल, था को मद उस पर अधिकार कर लिया तथा नगर के निवासियों की या तो हत्या कर दी या उन्हें इस्लाम धर्म, , उसे, 1009 ईस्वी में पंहार लत गा हु, , ने अलवर स्थित नारायणपुर किया यह एक, प्रसिद्ध व्यापारिक केन्द्र था। 1 भें पर पर आक्रमण किया तथा उस पर अधिकार कर लिया।, किया। थानेश्वर का शासक मा ग थानेश्वर के चक्रस्वामी के मन्दिर को तोड़ने के लिये उसने गजनी से प्रस्थान, , या तथा महमूद ने मनमाने ढंग से नगर की लूट-पाट की और चक्रस्वामी की ., मूर्ति व गो >तश्चात् उसने गंगा-यमुना के दोआब पर आक्रमण करने का निश्चय किया। 1018 ईस्वी में, , , , + आयी जानरंभापक आपका ० ज्यजाक ग्जज जी
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उसने मथुरा नगर पर धावा बोला। यहाँ अनेक भव्य एवं प्रसिद्ध मन्दिर थे। महमूद ने अनेक भव्य मन्दिरों को ध्वस्त किया, तथा लूट में अतुल सम्पत्ति प्राप्त की। यहाँ से उसने कन्नौज को प्रस्थान किया। प्रतिहार शासक राज्यपाल भाग खड़ा दुआ, तथा महमूद ने वड़ी आसानी से नगर पर अधिकार कर लिया। उसकी सेना ने नगर मेँ भारी लुट-पाट एवं कत्लेयाम, किया। यहाँ से भी उसे बहुत बड़ी सम्पत्ति प्राप्त हुई। मथुरा तथा कन्नौज से अतुल सम्पत्ति लेकर वह गजनी लौट गया।, , कन्नौज नरेश राज्यघाल के व्यवहार ने हिन्दू राजाओं को क्रुद्ध कर दिया तथा उन्होंने चन्देल नरेश विद्याधर की, अध्यक्षता में एक संघ बनाया। सर्वप्रथम इस संघ ने राज्यपाल पर आक्रमण कर उसकी हत्या कर दी तथा फिर महमूद, के विरुद्ध शक्ति जुटाने में लग गया। इस संघ को भंग करने के उद्देश्य से 1019 ईस्ठी के अन्त में महमृद ने युनः गजनी, से भारत को प्रस्थान किया। चम्देल नरेश एक वड़ी तथा शक्तिशाली सेना के साथ कालिंजर के पास उसका सामना करने, को प्रस्तुत हुआ। महमूद विशाल सेना देखकर घबड़ा गया तथा हतोत्साहित हो उठा किन्तु विद्याधर रातोंग्रत रहस्यमय ढंग, से भाग निकला। महमूद ने नगर को खूब लूटा तथा भारी रकम लेकर स्वदेश लौट गया। इस प्रकार जिस काण्रता के, लिये विद्याधर ने पूर्व में प्रतिहार नरेश राज्यपाल को दण्डिंत किया था उसी का प्रदर्शन स्वयं उसी ने किया। 1022 ईस्ठी, में चन्देलों की शक्ति को पूरी तरह कुचलने के उद्देश्य से महमूद ने पुनः कालिंजर पर आक्रमण किया। उसने दुर्ग का घेरा, डाला। दीर्घकालीन घेरे के वाद भी जब उसे सफलता नहीं मिली तब उसने चन्देल नरेश से सन्धि कर ली। उसने, महमूद को 300 हाथी उपहार में दिये जिन्हें लेकर वह गजनी लौट गया। विद्याधर ने महमूद की प्रशंसा में एक कविता, लिखकर भेजी थी। इसे सुनकर वह इतना प्रसन्न हुआ कि उसने विद्याधर को पन्द्रह किलों का शासन सौंप दिया।, , महमूद गजनवी का सर्वप्रसिद्ध आक्रमण 1025-26 ईस्वी में सोमनाथ के प्रसिद्ध मन्दिर प्रर हुआ। यह मन्दिर, काठियावाड़ में स्थित था तथा समूचे भारत में अपनी पवित्रता, गौरव एवं समृद्धि के लिए विख्यात-था। कहा जाता है कि, यहाँ के हिन्दुओं में यह विश्वास था कि महमूद उत्तर भारत के वहुसंख्यक मन्दिर एवं मूर्तियों को तोड़ने में इस कारण, , , , , , , , , , सफल रहा कि भगवान सोमेश्वर उनसे अप्रसन्न थे। महमूद को जब यह ज्ञात हुआ तो उसने इस मन्दिर को नष्ट करने, , , , , , तथा मूर्ति को तोड़ने का निश्चय किया। वह मुल्तान से तीस हजार अश्वारोहियों तथा अन्य सैनिकों के साथ सोमनाथ के, लिये कूच किया। रेगिस्तानी मार्ग में अत्यन्त सावधानी वरतते हुए जनवरी 1025 ई0 में वह अन्हिलवाड़, चौलुक्य शासक भीम प्रथम अपने सहायकों के साथ राजधानी छोड़कर भाग गया। नगर को लूटते, के गढ़ का घेरा डाल दिया। यहां के स्थानीय सेनानायक ने भाग कर समुद्र में एक नाव पर श, ग्रह्मणों और पुजारियों द्वारा ही किया गया। महमूद विना किसी कठिनाई के उसमें प्रवेश पाने में सफल रहा।, के 50 हजार पुजारियों तथा ब्राह्मणों के वध का आदेश दे दिया। भगवान सोमनाथ की मूर्ति टुकड़े-टुकड़े, तथा उसे गजनी, मक्का और मदीना की मस्जिदों की सीढ़ियों में चिनाई के निमित्त भेज दिया गया । महमद को वहत, अधिक हीरे, जवाहरात तथा स्वर्णराशि लूट में प्राप्त हु। यह धनराशि लगभग 20 लाख दीनार की थी। इसे लेकर वह, गजन्ी लौटा। मार्ग में जाटों ने उसकी सेना पर आक्रमण किया तथा कुछ सम्पत्ति लूट लिया किन्तु महमूद सकुशल गजनी, पहुँच गया। जाटों से बदला लेने के लिये उसने 1027 ईस्वी में पुनः सिन्ध पर आक्रमण किया। वे पराजित हुए तथा उनके, नगर जला दिये गये। वहुतों को मौत के घाट उतार दिया गया। यह महमूद का अन्तिम भारतीय आक्रमण था। 1030, सब में उसकी मृत्यु हो गयी। निस्संदेह वह एक महान् विजेता तथा उच्च कोटि का सेनानायक था जिसने गजनी के, छोटे से राज्य को विशाल साम्राज्य में वदल दिया। उसका उद्देश्य भारत में तुर्की राज्य स्थापित करना नहीं था, बल्कि, वह तो मूर्तियों को नष्ट करने तथा सम्पत्ति प्राप्त करने की इच्छा से यहाँ आया था। उसे अपने दोनों उद्देश्यों में सफलता, । मुहम्मद हवीव का विचार है कि महमूद धर्मान्ध नहीं था तथा भारत पर उसके आक्रमणों का उद्देश्य इस्लाम का, प्रचार न होकर अधिकाधिक धन प्राप्त करने की लालसा थी। उसने सम्पत्ति लूटने के लिये ही वड़े-वड़े आक्रमण किये।, के अनुसार इस्लामी कानून में कोई ऐसा सिद्धान्त नहीं है जो विध्वंस के कार्य को न्यायसंगत माने अथवा उसे, प्रोत्साहित करे। अतः महमूद ने भारत में बर्वरतापूर्ण कार्य करके इस्लाम का अपकार ही किया था।!, , मुस्लिम-साम्राज्य की स्थापना : मुहम्मद गोरी का आक्रमण, , जद गजनवी के पश्चात् भारत पर एक दूसरे महत्वपूर्ण तुर्क विजेता का आक्रमण हुआ जो इतिहास में मुहम्मद, के नाम से प्रसिद्ध है। गोर, महमूद गजनवी के अधीन एक छोटा-सा पहाड़ी राज्य था। महमूद के निर्बल, , के समय में यहाँ के सरदारों ने अपनी शक्ति का विस्तार प्रारम्भ किया। गोर के शंसवानी राजवंश के, आसकों ने गजनी पर अधिकार कर लिया। गजनी नगर को ध्वस्त कर दिया गया। 1173 ईस्वी में शहाबुद्दीन मुहम्मद
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गोरी, जिसका एक नाम मुइजुद्यीन मुहम्मद बिन साम भी राजा बना तथा इसके बाद तीन वर्षों तक 1, , साम्राज्य का ता होता रहा। मुहम्मद गोरी वीर एवं कया | गजनी का शासक होने के नाते वह अपने को _, पंजाब का वैध शासक समझता था क्योंकि पहले यह गजनी साम्राज्य का अंग था। पंजाब का शासन गजनी वंश के., खुसरव मलिक के अधीन था तथा गोरी का गजनवियों से संघर्ष चल रहा था। इस कारण भी पंजाब पर आक्रमण करना, उसके लिये आवश्यक हो गया। इसके अतिरिक्त मध्य एशिया में गोरियों की शक्ति को ख्वारिज्म के शाह से भी चुनौती, मिल रही थी जिसने खुरासान पर अधिकार कर लिया था। अतः भारत की ओर आक्रमण करने के सिवाय गोरी के पास, कोई दूसरा रास्ता नहीं था। उसने भारत पर आक्रमण कर एक जलल्क की भी स्थापना कर ली।, , 1175 तथा 1205 ईस्वी के मध्य मुहम्मद गोरी ने भारत पर कई आक्रमण किये। सबसे पहले उसने मुल्तान तथा, सिन्ध पर आक्रमण किया। यहाँ के शासक शिया थे अतः मुहम्मद गोरी उनके राज्य को जीतना अपना धर्म समझता था।, 1182 ईस्वी तक उसने मुल्तान, उच्छ तथा दक्षिणी सिन्ध को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया।, , मुहम्मद गोरी का दूसरा आक्रमण (1178 ईस्वी) पाटन (गुजरात) पर हुआ। राजपूताना के रेगिस्तान मार्ग से उसने, गुजरात में घुसने का प्रयास किया। यहाँ का राजा बघेल भीम द्वितीय द सा गोरी को बुरी तरह परास्त किया तथा उसे, 'देश से बाहर खदेड़ दिया। अब मुहम्मद गोरी को यह विश्वास होगा वि भारत को जीतने के लिये सिन्ध तथा मुल्तान, पर नहीं अपितु पंजाब पर अधिकार करना आवश्यक है। अतः उसने तदनुसार अपनी योजना क्रियान्वित करते हुए पंजाब, पर आक्रमण किया। सर्वप्रथम पेशावर तथा फिर लाहौर के ऊपर उसने अपना अधिकार कर लिया। यहाँ के शासक गजनी, 'वंशी खुसरव मलिक ने उसकी अधीनता मान ली तथा बहुमूल्य उपहार दिये। 1185 ईस्वी में उसका स्यालकोट के दुर्ग, पर कब्जा हो गया। इस प्रकार मुल्तान, सिंध तथा लाहौर गोरी के साम्राज्य में शामिल हो गये और पंजाब से गजनवियों के, शासन की समाप्ति हुईं। यहाँ से गोरी के लिये भारत की विजय का मार्ग प्रशस्त हो गया।, पंजाब पर अधिकार कर लेने के पश्चात् गोरी के साम्राज्य की सीमायें दिल्ली तथा अजमेर के चाहमान शासक, पृथ्वीराज तृतीय के साप्राज्य सीमा का स्पर्श करने लगी। परिणामस्वरूप दो महत्वाकांक्षी राजाओं के बीच संघर्ष अनिवार्य, हो गया। संघर्ष का प्रारम्भ भटिण्डा पर अधिकार को लेकर हुआ। मुहम्मद गोरी ने अचानक भटिण्डा के दुर्ग पर धावा, बोला तथा वहाँ अपना अधिकार कर लिया। उसने इसकी सुरक्षा का भार सेनापति मलिक जियाउद्दीन को सौंप दिया तथा, उसकी सहायता के लिये 12000 सैनिक रख दिये गये। मुहम्मद गोरी वापसी की तैयारी में ही था कि पृथ्वीराज एक, बड़ी सेना के साथ उसका सामना करने के लिये बढ़ा। 1191 ईस्बी में तराइन के मैदान में दोनों सेनाओं के मध्य भीषण, युद्ध हुआ। इस्रमें मुहम्मद गोरी की पराजय हुई तथा घायलावस्था में उसे एक विश्वासपात्र खलजी अधिकारी घोड़े पर, बिठाकर भाग निकलने में सफल हुआ। पृथ्वीराज ने लौटकर भटिण्डा के दुर्ग को घेराबन्दी की तथा लगभग 13 महीने, पश्चात् वह जियाउद्दीन से छीन सकने में सफल हुआ। यह गोरी की दूसरी पराजय थी।, परन्तु अपनी असफलताओं से गोरी निराशा नहीं हुआ। गजनी पहुँचकर उसने पूरी सैनिक तैयारियाँ कीं तथा दूसरे वर्ष, पृथ्वीराज से बदला लेने के लिये एक बड़ी सेना के साथ भारत के लिये प्रस्थान कर दिया। उसकी सेना में एक लाख, बीस हजार चुने हुए अश्वारोही थे। लाहौर पहुँच कर उसने पृथ्वीराज के पास किवाम-उल-मुल्क नामक अपना एक, दूत भेजकर समर्पण करने तथा उसे अपना सम्राट मान लेने के लिये भेजा। किन्तु पृथ्वीराज तत्काल युद्ध के लिये प्रस्तुत, हुआ। उसे कुछ अन्य राजपूत राजाओं का भी समर्थन मिला था तथा उसकी सेना में पाँच लाख अश्वारोही तथा तीन, हजार हाथी थे। 1192 ईस्वी में तराइन के मैदान में दोनों सेनाओं के बीच एक दूसरा युद्ध हुआ। इस बार तुर्कों का, पलड़ा भारी रहा तथा पृथ्वीराज की पराजय हुयी। वह घोड़े पर चढ़कर भागा किन्तु सिरसा के निकट पकड़ा गया तथा, बाद में उसकी हत्या कर दी गयी। पृथ्वीराज की मृत्यु के समय के विषय में मतभेद है। मिनहाज-उस-सिराज के, अनुसार उसकी तुरन्त हत्या कर दी गयी। इसके विपरीत हसन निजामी की मान्यता है 'कि उसे बन्दी बनाकर अजमेर, लाया गया जहाँ उसने गोरी की अधीनता में शासन करना स्वीकार कर लिया। इसका प्रमाण पृथ्वीराज के कुछ सिक्कों से, मिलतां है जिनके ऊपर संस्कृत में 'हम्मीर' उत्कीर्ण है। बताया गया है कि बाद में उसे गोरी के विरुद्ध षडयन्त्र करते हुए, पकड़ लिया गया तथा उसकी हत्या कर दी गयी। यही मत सही प्रतीत होता है।, तराइन का दूसरा युद्ध इतिहास के निर्णायक युद्धों में से एक है। इसके फलस्वरूप तुर्कों के भारत-भूमि में साम्राज्य, स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त हो उठा। इसने न केवल चाहमानों की साम्राज्यिक शक्ति को नष्ट कर दिया अपितु सम्पूर्ण, हिन्दुस्तान पर भारी विपत्ति ढहा दिया।! शासकों तथा जनता का मनोबल पूरी तरह टूट गया तथा देश भयाक्रान्त हो गया।