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5३४ व 0 पाक है, कै की. की | ४7७० आर, बता आह जप औी आ औ शक सी. मत, पक की, , 0 प्रश्न-7. “मैं नर्क से बोल रहा हूँ कहानी के मूल प्रतिपाद्य को अपने शब्दों में लिखिए ।, , [क्.5. 204], 0 अथवा, "मैं नर्क से वोल रहा हूँ? कहानी के माध्यम से लेखक ने क्या संदेश दिया है ? स्पष्ट, कीजिए | ' [0.5. 206], , , , उत्तर - "मैं नर्क से बोल रहा हूँ" हरिशंकर परसाई जी की एक व्यंग्यपरक कहानी है।, | कहानीकार ने अप व्यंग्यात्मक कथनों से इंसानों को इंसानियत की राह बताने का प्रयास किया है।, ' प्रस्तुत कहानी में कुत्ता कर्म कर्म, संघर्ष, निढरता का प्रतीक बनता है है।और यही प्रतीक लेखक का आदर्श, | है। यही मॉडल लेखक का काम्य है। जीवन में भाग्य, नियेति, पाप, पुण्य के झमेले में पड़कर कर्महीन, | जीवन बिताने से अच्छा है अपनी बुद्धि, विवेक व शरीर का प्रयोग कर जीवन में संघर्ष कर कामयाबी, हासिल करना न कि पड़े-पड़े मर जाना। इसीलिए /लिखक लिखता है.कि भगवान् ने निर्णय सुनाया, -'मतुष्यों ने मुझे बहुत निराश किया, अब मैं कुत्ते-ही-कुत्ते निर्माण करने का विचार कर रहा हूँ।'!, जीवन में मनुष्य को भी कुछ पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है तभी वह कुछ पा सकता है।, * चौरासी लाख योनियों में से एक मनुष्य योनि ही ऐसी है जिसे बुद्धि व विवेक का वरदान प्राप्त है। अतः, | इस बुद्धि व विवेक का प्रयोग करके उसे जीवन में संघर्ष करके अपने लिए सुख को हासिल करना, : चाहिए । यदि वह ऐसा नहीं करेगा तो इसी तरह नरक को भोगता रहेणा। यही इस कहानी का, * संदेश (है//7 ४, | प्रश्न 8. कहानी में “मैं” कौन है? इसके चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।, उत्तर : कहानी में मैं स्वयं लेखक है। संक्षेप में 'मैं” अर्थात् लेखक के चरित्र की निम्नलिखित, ' विशेषताएँ हैं :. गरीब व लाचार : मैं गरीब व लाचार है। उसकी एक ही लालसा है कि उसे भरपेट भोजन, : मिले। उसे अच्छे-अच्छे व्यंजनों और पकवानों की जरूरत नहीं। वह तो रूखी-सूखी खाकर ही अपना, पेट भरना चाहता हैं किन्तु वह भी नसीब नहीं होता। वह स्वयं कहता है - “जिन्दगी भर तिरस्कार, का स्वाद लेते-लेते सहानुभूति मुझे उसी प्रकार अरुचिकर हो गई थी जिस प्रकार शहर के रहने वाले, को देहात का शुद्ध घी।”” इस तरह वह गरीब और लाचार है। इसी गरीबी के कारण अन्न-अन्न की, रठ लगाते-लगाते उसकी मृत्यु हो जाती है। , 2. परिस्थितियों से समझौता करना : वह गरीब और लाचार होने के साथ-साथ परिस्थितियों, | से समझौता करने वाला इन्सान है | व्यवस्था ऐसी खोखली हो गई है, अमीरी-गरीबी की दीवार इतनी, | मजबूत हो गई है कि परिस्थितियों से समझौता करने के अलावा उसके पास कोई रास्ता नहीं है। वह, | चाह कर भी विरोध नहीं कर सकता था।, |. 3.कायर, भीरू एवं मूर्ख : “मैं अर्थात् लेखक कायर, भीरू एवं मूर्ख है। इन्हीं गुणों के कारण, ; उसे अनाज से सस्ती मौत लगती है। तड़पते, बिलखते छटपटाते हुए वह दम तोड़ देता है किन्तु अपने, | हक को पाने के लिए प्रयास नहीं करता है। उसने प्रतिवाद करना सीखा ही नहीं था। मूर्खता के कारण, । 'ही वह पाप-पुण्य के झमेले में पड़कर मनुष्य के अर ना. बनाई णई दीवाल को तोड़ता नहीं है। वह स्वयं, । दूट जाता है। उसकी कायरता का पता निम्नलिखित पंक्तियों से चलता है। वह कहता है - «* मैं, ; मर न जाता तो गरीब आदमी की झोपड़ी पर अमीर के पाखाने की विजय भी इन आँखों से देखता?, ! इस तरह वह कायर एवं मूर्ख है।, , 4. कुत्ते से प्रेम : उसे अपने कुत्ते से प्रेम है। कुत्ता भी उसे बहुत चाहता है* पत्ती उसका, | छोड़ देती है किन्तु कुत्ता मरते दम तक उसका साथ निभाता है। साथ, , , , |, |., |, |, |, ठ, ठ, स्
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इस तरह "मैं? यहाँ तमाम गरीबों,, व्यवस्था खोखली हो गई है। पूँजीवाद का, , सिवा 52 ही क्या सकता है। उरित्र की क्या विशेषता है?, प्रः ८ कुत्ता कौन है? उसके चरित्र है। वह जीवों में निकष्ट, : कुत्ता एक स्वामीभक्त चौपाया जानवर हक ता रःष्ट माना जाता है किन्तु उससे, ऐसे गुण हैं गं के लिए भी अन्ुकरणीय है। इस कहानी में कुत्ता एक ऐसे, अनेक ऐसे शुण हैं जो मद्ुष्या . है, हिम्मत है एवं विरोध की जीव |, (व्यक्ति का) प्रतिनिधित्व कर रहीं है जिनमें साहस हैं, था हैए का विरोध की क्षमता है। कुत्ता जैछे, निकृष्ट प्राणी में साहस दिखाकर लेखक उन तमाम मनुष्यों पर व्यंग्य कर रहा है जो व्यवस्था के., गुलाम हो गए हैं। जिनकी शक्ति और क्षमता मर णई है। लेखक ने यह दर्शाया है कि कुत्ता इंडे 3 |, मार खाता है। मार खाकर मर जाता है किन्तु टूटता नहीं है। भूख और लाचारी से समझौता नहीं करत, है। इसका यह अर्थ नहीं कि वह उद्दण्ड हो गया है। वह अपने जुणों को भूल गया है। वह स्वामिभक्त |, भी है। लेखक की पत्नी जो अद्धांगिनी होती है जीवन भर साथ निभाने की कसमें खाती है। वह भी, साथ छोड़ जाती है कुत्तों को सेठाबी प्यार करती थी। उसे पालना चाहती थी। वहाँ जाने पर उसे तमाम, सुख मिलता किन्तु वह नहीं जाता है। दुर्दिन में मालिक का साथ नहीं छोड़ता है वह लेखक का मरते, दम तक साथ निभाता है। इस तरह उसमें स्वामिभकत के भाव कूट-कूट कर भरे हैं। बावजूद इसके |, वह हिम्मती और साहसी है। उसमें प्रतिरोध की क्षमता है। वह डंडा खाकर मरना पसनन््त करता है, किन्तु परिस्थितियों से समझौता करना उसे पसन्द नहीं है। वह कई बार भगवान का भोग खाते हुए, पिटता है। वह बरबस प्रयास करके दीवाल लाँघकर अमीर के घर में घुसकर पकवान खा लेता है। ;, इस प्रयास में उसे डण्डे से मार पड़ती है। इसी मार के कारण वह मर जाता है किन्तु भूख से समझौता +, नहीं करता है । वह अपने हक को पाने के लिए प्राण दे देता है। इसीलिए भगवान लेखक से कहते हैं :मूर्ख तेरा कुत्ता तुझसे ज्यादा समझदार है। वह घुस गया, खाया और डण्डे की मार से मरकर |, यहाँ आ गया। उसमें मनुष्यत्व है, तुझमें पशुत्व भी नहीं। मैंने तुम्हें बुद्धि दी है, हाथ पैर दिए हैं, कार्यशक््ति दी है और तू अकर्मण्य-बुजदिल कीड़े सा मर गया। *, इस तरह कुत्ता साहसी है। स्वामिभक्त है। उसमें कर्मठता एवं कष्ट सहिष्णुता है। वह अधिकार :, पाने के लिए अपना प्राण देता है। इसीलिए उसे स्वर्ण की प्राप्ति होती है। लेखक ने कुत्ते के चरित्र के, माध्यम से संदेश दिया है कि हमें निरन्तर अपने अधिकारों को पाने के लिए सजग रहना चाहिए। ।, जरूरत पड़े तो प्राण भी दे दें किन्तु अकर्मण्य, बुजदिल कीड़े सा बिलबिलाते हुए न मरें | मरना ही पड़े, , तो कुत्ते सा हक के लिए लड़ते हुए मरें।, , लाचारों एवं बेबसों का प्रतिनिधित्व कर रहा है। राज्मो, बोलबाला है। ऐसी हालत में गरीब इन्सान भूखों मरते, के
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(ख) लघुत्तरीय प्रश्न, , क् नोट :- गे प्रकरण के अन्तर्गत दो अंकों के छः प्रश्न पूछे जायेंगे जिनमें से तीन प्रश्नों का, , || उत्तर देना है और जो उच्च माध्यमिक (१0) के वार्षिक परीक्षा के प्रश्न पत्र में प्रश्न नं. दो में आयेगा |, उत्तर अधिकतम 30 शब्दों में लिखिए। 2503-56, , , , , , , , 0 . तुम जीवन का तिरस्कार और मरण का सत्कार करते हो ? [॥.5$. 205], , प्रश्न - 0) प्रस्तुत अंश के लेखक कौन हैं?, , उत्तर - प्रस्तुत अंश के लेखक 'हरिशंकर परसाई) जी हैं।, , (7) प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से लिया गया है?, , उत्तर - प्रस्तुत गद्यांश 'मैं नर्क से बोल रहा हूँ” नामक पाठ से लिया गया है।, , (॥) “तुम” से संकेतित पात्र कौन है?, , | उत्तर - 'तुम” से संकेतित पात्र पत्थर की पूजा करने वाले पाखण्डी मनुष्यों है।, , (५) जीवन के तिरस्कार का क्या अर्थ है? स्पष्ट कीजिए।, , उत्तर - 'जीवन के तिरस्कार' का अर्य है - जब तक मनुष्य जीवित रहता है तब तक कोई, उसकी कद्र नहीं करता। चाहे वह भूख से मरे या रोग से। यदि जीवित रहते व्यक्ति को कुछ सुविधाएँ, मुहैया हो जाएं तो उनका जीवन सुरक्षित रह सकता है, किन्तु समाज के ठेकेदार धनिक वर्ण या शासन, , *$ व्यवस्था ऐसा नहीं करती। इसीलिए लेखक ने 'जीवन का तिरस्कार' कहा है।, , (५) “मरण के सत्कार' का क्या अर्थ है? स्पष्ट कीजिए।, , । उत्तर - 'मरण के सत्कार' का अर्थ यह है कि जिस व्यक्ति को कोई जीते जी अन्न, जल व, रोशनी आदि सुविधाएँ नहीं देता, उसी व्यक्ति के मर जाने पर उसके मृतक शरीर को लोग कंधा देते, हैं, अज्नि देते हैं, गंगाजल में हड्डियाँ प्रवाहित करते हैं या कब्र में स्थान देकर कब्र पर दीपक जलाते, , * हैं। इसलिए लेखक ने “मरण का सत्कार' कहा है।, , (४) प्रस्तुत पंक्ति की प्रसंग सहित अर्थ स्पष्ट करें।, उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति कहानी के आरम्भिक अनुच्छेद से उद्धृत है। जिसमें लेखक ने समाज, , . के ठेकेदारों को सम्बोधित करते हुए अपनी पीड़ा का बयान किया है। समाज का उच्च वर्ण जो पूजापाठ आदि धार्मिक कार्य तो करता है, पत्थर की मूर्ति की पूजा करता है, जो निर्जीव है - लेकिन जीवित, , ः मनुष्य की उपेक्षा करता है। आम जनता की पुकार शासन व समाज के उच्च लोगों तक नहीं पहुँच, , पाती | इसीलिए परसाई कहते हैं कि तुम्हें जीवित व्यक्ति की बात सुनने का अभ्यास नहीं है, इसलिए, मैं मरकर बोल रहा हूँ। जीवित अवस्था में जिसे उपेक्षा मिलती है, उसके मरने पर लोग उसकी, शव्यात्रा में शामिल होते हैं। जिसे जीवन भर दो गज़ जमीन नहीं मिल पाती उसे मरने पर जमीन में, दफनाते ही नहीं हैं, बल्कि उसकी कब्र पर चिराग भी जलाते हैं। भूख-प्यास से इंसान दम तोड़ देता, है, क्रूर मनुष्य उसे पानी तक नहीं पूछता, किन्तु वही मनुष्य उसके मर जाने पर उसकी हड्डियों को, गंगाजल में प्रवाहित करता है। इसीलिए लेखक कहता है कि इस सामाजिक-व्यवस्था में जीवन की, अपेक्षा मृत्यु के बाद इंसान को अच्छी सुविधाएँ मिल जाती हैं। अतः लगता है कि आम अवधारणा के, मुताबिक जीवन उपेक्षित है और मृत्यु का स्वागत होता है। वि, , ; 2. अन्न-अन्न की पुकार करता मर जाऊँ और मेरे मरने के कारण में भी अन्न का नाम न आवे।, , प्रश्न - 0) प्रस्तुत अंश के लेखक कौन हैं?, , उत्तर - प्रस्तुत अंश के लेखक 'हरिशंकर परसाई? जी हैं।, , 0॥ प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से लिया गया है?, -उत्तर - प्रस्तुत गद्यांश “मैं नर्क से बोल रहा हूँ? नामक पाठ से लिया गया है।, , (॥) 'तुम” से संकेतित पात्र कौन है?, , उत्तर - 'तुम” से संकेतित पात्र पत्थर की पूजा करने वाले पाखण्डी मनुष्य है।
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(५) 'अन्न की पुकार' का क्या भाव है ? .... अआ, , उत्तर - 'अन्न की पुकार' का आर्य है गरीबी और शुल्वगरी। आजादी के बाद भी हम? ६, , गरीबी और शुद्रगरी की समस्या से निजात नहीं मिली | बल्फि कुछ ऐसा तंत्र बना कि क्छ कर रत, गे 'क गे म जनता का ८ $छ गद्ठी .., , लोगों के हाथ में सुख-समृद्धि सिगठ कर रह गई। आम जनता का वही हाल रहा। वह रोटी-क |, और मकान जैसी मूलभूत आवश्यकताओं से भी वंचित रही। किन्तु शासन-व्यवस्था पर इस भु हे, और फंगाली का कोई असर नहीं होता। है, , (०) 'मरने के कारण में अन्न का नाम न आवे' का क्या भाव है?, , उत्तर - देश की राजनीतिक दाँव-पेंच की हालत यह है कि हर चीज की व्याख्या वह अपने हि,, से करती है। भूख से यदि इंसान की मृत्यु साबित होती है तो यह शासन व्यवस्था पर प्रश्न चिह्न लगे, है। इसलिए तथ्य को घुमाकर उसे आत्महत्या का रुप दे दिया जाता है, ताकि शासन-व्यवस्थ, कलंकित न होने पाए। लेखक का कहना है कि जिस अन्न के अभाव के कारण गरीब की बृत्यु होते, है उसी को उसकी मृत्यु का कारण मानना चाहिए। तथ्य को तोड़ना मरोड़ना नहीं चाहिए।, , (५) प्रस्तुत पंक्ति का प्रसंग स्पष्ट करें।, , उत्तर - प्रसंग : लेखक ने सामाजिक विषमताओं का आईना प्रस्तुत करने के लिए स्वर्ण-नरक, की फैंटेसी का प्रयोग किया है।, , (भा) प्रस्तुत पंक्ति की व्याख्या करें।, , अर्य : मृत्यु के बाद नर्कवासी बने लेखक को जब इस बात का पता चलता है कि उसकी मृत्यु, के बाद बड़े-बड़े लोगों में बहस हुई। यहाँ तक कि मंत्री ने संसद में कहा कि मौत भूख से नहीं हुईं, है बल्कि आत्महत्या की गई है। इस बात को सुनने के बाद लेखक को इस बात का कष्ट होता है कि, मेरी मृत्यु व्यवस्था की देन है अर्थात् वर्तमान शासन-व्यवस्था गरीब की मृत्यु की जिम्मेदार है। वह, उस व्यवस्था के तहत मरता है जिसमें सुविधाओं का असमान वितरण है। किन्तु इस तथ्य को, नकारकर इसे आत्महत्या का रूप दिया जाता है। मृत्यु का सही कारण भूख है, लेकिन इस तथ्य, को छिपाकर उसे आत्महत्या का रूप देना गलत है। यदि सही कारण सामने आएगा तभी उसका, समाधान संभव है। लेकिन राजनीति सही कारण को सामने आने नहीं देती। वस्तुतः अन्न के अभाव, के कारण जिसकी मृत्यु हुई है उसका कारण अन्न को ही बताना चाहिए।, , 3. जहाँ लालफीते के कारण आग लगने के साल भर बाद बुझाने का आर्डर आता है।, , प्रश्न - 0) प्रस्तुत अंश के लेखक कौन हैं?, , उत्तर - प्रस्तुत अंश के लेखक 'हरिशंकर परसाई)” जी हैं।, , (॥ प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से लिया गया है?, , उत्तर - प्रस्तुत गद्यांश “मैं नर्क से बोल रहा हूँ” नामक पाठ से लिया गया है।, , (॥) प्रस्तुत बात किसने, किससे कहा है?, , उत्तर - प्रस्तुत वाक्य कहानी का नायक “मैं? पत्थर की पूजा करने वाले पाखण्डी मदुष्यों से, कह रहा है।, , (५) 'लाल फीते? का क्या अर्थ है? स्पष्ट करें।, , उत्तर - 'लाल फीते' का अर्थ है - शासन व्यवस्था। लालफीता शब्द लालफीता शाही के लिए, आया है, जिसका अर्थ है अफसरशाही। हमारे संवैधानिक ढाँचे में कार्यपालिका व न्यायपालिका के, क्रियाकलाप लालफीताशाही के अन्तर्गत आते हैं। सरकारी कार्यों के संपादन, निर्णय आदि में लगने, वाली वह देर लाल फीताशाही कहलाती है जो तरह-तरह की पेचिदी और प्राय: निरर्थक प्रक्रियाओं के, कारण होती है अर्थात् दीर्ध यूत्रता। अंग्रेजी का रेड टेप ही हिन्दी में लालफीता है।, , (१) प्रस्तुत पंक्ति का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।, , उत्तर - प्रसंग : भूख से मरने के बाद लेखक नर्क का वासी बनता है और उसी दिन मरा उसका, कुत्ता स्वर्ग का वासी बनता है। इस पर लेखक को आश्चर्य होता है कि मृत्यु लोक में तो अन्याय है, , के
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लय ्््ख्ख्ख्ख्प्ड्हा, , क्या न गवनके लोक में भी अन्याय है जो कुत्ते को स्वर्ग मिला और स्वयं उसे नर्क। हालांकि उसे, अपने प्रिय कुत्ते के स्वर्ण में जाने से कोई दुःख नहीं है फिर भी वह स्वयं नर्क में पहुँचने का कारण, खबनो चाहता है। अतः वह अपनी फरियाद लेकर भगवान के पास जाना चाहता है।, (भी प्रस्तुत पंक्ति की व्याख्या कीजिए।, अर्य : यहीं पर लेखक घुनः शासन-व्यवस्था के दीले रवैये पर व्यंग्य करता है कि यह मृत्युलोक, ते है वहीं, जहाँ फरियाद नहीं सुनी जाती और न्याय-व्यवस्था ऐसी है कि जो फरियादी होता है उसे, ही अपराधी व्हरा दिया जाता है। हमारी शासन-व्यवस्था में जो संवैधानिक व्यवस्था है उसमें, विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका की कार्यप्रणाली ऐसी है जिसमें फरियादी की फरियाद का, पहले आवेदन होता है, फिर जाँच का आदेश बनता है। इसके बाद जाँच की लम्बी प्रक्रिया चलती है।, यह सारी प्रक्रिया इतना अधिक समय लेती है कि तब तक फरियादी के हौसले ही टूट चुके होते हैं, या फरियाद का कोई मतलब नहीं रह जाता। इसी तथ्य के दृष्टान्त के रूप में लेखक ने यहाँ उदाहरण, स्वरूप कहा है कि इस लाल फीताशाही या अफसरशाही में आग लगने के साल भर बाद बुझाने का, आर्डर आता है। 'का बरसा जब कृषी सुखाने” की अवधारणा इस अफसरशाही में पूर्णतया चरितार्थ, होती है।, 04. “नहीं, तुम झूठ बोलते हो। तुम्हारे देश के अन्न मंत्री ने लिखा है कि - “तुमने आत्महत्या की |”, [मॉडल प्रन पत्र - 204], प्रश्न - 0) प्रस्तुत अंश के लेखक कौन हैं?, उत्तर - प्रस्तुत अंश के लेखक 'हरिशंकर परसाई? जी हैं।, (0 प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से लिया गया है?, उत्तर - प्रस्तुत गद्यांश “मैं नर्क से बोल रहा हूँ? नामक पाठ से लिया गया है।, 0॥) प्रस्तुत बात किसने, किससे कहा है?, उत्तर - प्रस्तुत वाक्य भगवान ने नरकगामी लेखक से कहा है।, 60) "तुम्हारे देश” का क्या अर्थ है?, उत्तर - तुम्हारे देश का अर्थ है - मृत्युलोक।, (९) अन्न मंत्री? के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?, उत्तर - “अन्न मंत्री” के माध्यम से लेखक शासन-व्यवस्था पर प्रहार करना चाहता है जहाँ अंधेर, ही अंधेर है।, (भ॑) इस पंक्ति के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?, उत्तर - इस पंक्ति के माध्यम से लेखक शासन-व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार, अन्याय और अंधन्याय की बात कहना चाह रहा है।, (भा) प्रस्तुत पंक्ति का प्रसंग स्पष्ट कीजिए। े, उत्तर - प्रसंग : प्रस्तुत पंक्ति में शासन-व्यवस्था पर व्यंग्य की गयी है। इस शासन-व्यवस्था, में कमजोर की गुहार को कोई सुननेवाला नहीं है और व्यवस्था के तहत यदि वह फरियाद करे तो, हमारी अफसरशाही का रवैया ऐसा है कि फरियादी को ही दण्ड दिया जाता है।, (भा) प्रस्तुत पंक्ति का अर्थ स्पष्ट कीजिए। है, अर्थ : शासन व्यवस्था की मार झेलता हुआ लेखक यमलोक में भगवान से इस उम्मीद से, फरियाद करता है कि कम से कम यहाँ उसे न्याय मिलेगा, उसके कुत्ते को स्वर्ण और स्वयं उसे नर्क, * क्यों मिला? जबकि कुत्ते ने कभी-कभी भगवान् के भोग को जूठा करने का पाप भी किया, किन्तु, लेखक ने तो कोई पाप नहीं किया। इस पर भगवान ने बही-खाता निकालकर देखा और बताया कि, उसने आत्महत्या की थी और चूँकि आत्महत्या एक पाप है इसलिए इस दा दण्ड भोगने के लिए, उसे नर्क भेजा गया है। इस तथ्य से लेखक स्तब्ध होकर कहता है कि मैंने आत्महत्या नहीं की।