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खण्ड 1- हिन्दी भाषा एवं लिपि, पृष्ठ संख्या, इकाई 1 हिंदी भाषा का उद्भव एवं विकास, 1-10, इकाई 2 हिंदी: उपभाषाएँ एवं बोलियाँ, 11-19, इकाई 3 भारतीय संविधान एवं हिंदी, 20-31, इकाई 4 देवनागरी लिपि: उद्भव एवं विकास, 32-44, खण्ड 2 - हिन्दी भाषाविज्ञान, पृष्ठ संख्या, इकाई 5 ध्वनि विज्ञान-1 (स्वन विज्ञान), 45-64, इकाई 6 ध्वनि विज्ञान-2 (स्वनिम प्रक्रिया), 65-85, इकाई 7 रूप विज्ञान, 86-101, इकाई 8 वाक्य संरचना, 102-121, इकाई 9 अर्थविज्ञान, 122-139, इकाई 10 अन्य व्याकरणिक इकाईयाँ, 101-172, इकाई 11 हिंदी की शब्द-संपदा, 173-208
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हिंदी भाषा : उद्भव एवं विकास, ВАHL - 302, इकाई 1 हिन्दी भाषा का उद्व एवं विकास, इकाई की रूपरेखा, 1.1, प्रस्तावना, पाठ का उद्देश्य, हिन्दी भाषा का उद्भव एवं विकास, 1.3.1 भाषा अर्थ एवं परिभाषा, 1.3.2 हिन्दी भाषा-परिचय, 1.2, 1.3, 1.3.3 हिन्दी भाषा का उद्भव एवं विकास, हिन्दी भाषा और मानकीकरण का प्रश्न, 1.4, 1.5, हिन्दी और उर्दू का प्रश्न, 1.6, सारांश, 1.7, शब्दावली, 1.8, अभ्यास प्रश्नों के उत्तर, 1.9, संदर्भ ग्रन्थ सूची, 1.10 सहायक/उपयोगी पाठ्य सामग्री, 1.11 निबन्धात्मक प्रश्न, 1.1, प्रस्तावना, एम. ए. द्वितीय वर्ष के तृतीय प्रश्न पत्र की यह प्रथम इकाई है। यह खण्ड हिन्दी भाषा एवं, लिपि से संबंधित है। हिन्दी भाषा का सम्बन्ध भारोपीय परिवार से हे। भारोपीय भाषा परिवार,, संसार का सबसे बड़ा भाषा परिवार है। इसी भषा परिवार में संस्कृत, हिन्दी जैसी भाषाएँ आती, है। हिन्दी भाषा की लम्बी सांस्कृतिक परम्परा रही है। संस्कृत जैसी समृद्ध भाषा के दाय को, स्वीकार करके यह विकसित हुई है। शौरसेनी अपभ्रश से हिन्दी भाषा के विकास को स्थिर किया, गया है। शौरसेनी अपभ्रंश का संबंध शूरसेन प्रदेश व उसके आस-पास के क्षेत्र से रहा है। भाषा, वैज्ञानिक दृष्टि से प्राकृत भाषा के क्रमशः कई भेद हो गये- शौरसेनी, पैशाची, महाराष्ट्री,, अर्धमागधी एवं मागधी। हिन्दी व उसकी बोलियों का सम्बन्ध उपरोक्त अपभ्रंशों से ही हुआ है।, हिन्दी भाषा केवल एक भाषा नहीं है, अपितु एक संस्कृति है। हिन्दी भाषा एक जातीय चेतना है।, डॉ. रामविलास शर्मा हिन्दी को एक 'जाति' (विराट संस्कृति) के रूप में ही देखते हैं । कारण यह, कि यह अपने में मात्र एक भाषा नहीं है, अपितु कई बोलियों/भाषाओं की जातीय संस्कृति को, समेटे एक विराट संस्कृति है।, उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय, 1
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हिंदी भाषा : उद्भव एवं विकास, BAHL - 302, हिन्दी भाषा का परिदृश्य इतना व्यापक है कि इसके कई स्थानीय रूप व शैलियाँ, प्रचलित हो गई है। अखिल भारतीय संदर्भ के कारण इसके व्याकरणिक रूपों में भी किंम्बित, परिवर्तन हो गये हैं। अतः इस संबंध में मानकीकरण का प्रश्न भी उठ खड़ा होता है । हिन्दी और, उर्दू के संदर्भ का प्रश्न भी विवादित रहा हे। उर्दू, हिन्दी की एक शैली है या स्वतंत्र भाषा? इस प्रश्न, को साहित्यिक, धार्मिक, राजनीतिक-साम्प्रदायिक कई दृष्टियों से देखा गया है । इस प्रश्न पर भी, हम इस इकाई में अध्ययन करेंगे।, 1.2 पाठ का उद्देश्य, बी. ए .एच.एल -302 हिन्दी भाषा एवं लिपि नामक खण्ड की यह प्रथम इकाई है। इस, इकाई के अध्ययन के पश्चात् आप-, भाषा के अर्थ को समझ सकेंगे।, हिन्दी भाषा के उद्भव एवं विकास की प्रक्रिया को समझ सकेंगे।, हिन्दी भाषा की जनपदीय बोलियों से परिचित हो सकेंगे।, हिन्दी और उर्दू के अंतर्सम्बन्ध को समझ सकेंगे।, भाषा और मानकीकरण के प्रश्न को समझ सकेंगे।, 1.3 हिन्दी भाषा का उद्भव एवं विकास, हिन्दी भाषा के उद्भव एवं विकास की रूपरेखा की समझ के लिए भाषा की समझ होना, अनिवार्य है। हिन्दी भाषा की सम्प्रेषणीयता और उसके सामाजिक सरोकार की समझ के लिए, भी भाषा की समझ आवश्यक है।, 1.3.1 भाषा: अर्थ एवं परिभाषा, भाषा क्या है? हम भाषा का व्यवहार क्यों करते हैं? यदि हमारे पास भाषा न होती तो, हमारा जीवन कैसा होता? भाषा का मूल उद्देश्य क्या है? जेसे ढेरों प्रश्न गहरे विचार की माँग करते, हैं। भाषा' धातु से उत्पन्न भाषा का शाब्दिक अर्थ है- बोलना। शायद यह व्याख्या तब प्रचलित, हुई होगी जब मनुष्य केवल बोलता था, यानी उस समय तक लिपि का आविष्कार नहीं हुआ, था। प्रश्न यह है कि बिना बोले क्या मनुष्य रह सकता है? वस्तुतः भाषा सामाजिकता का आधार, है..... मनुष्य के समस्त चिंतन व उपलब्धियों का आधार हे। इसका अर्थ यह नहीं है कि पशु-, पक्षियों के पास कोई भाषा नहीं होती, उनके पास भी भाषा होती है किन्तु वे उस भाषा का, लियान्तरण नहीं कर सके हैं। भौतिक आवश्यकताओं से ऊपर का चिंतन व विकास बिना भाषा, के संभव ही नहीं हे। हम भाषा में सीचते हैं....भाषा में ही चिंतन करते हैं यदि मनुष्य से उसकी, भाषा छीन ली जाये तो वह पशु तुल्य हो जायेगा । आज अनके भाषाएँ संकट के मुहाने पर खड़ी, उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय, 2