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व्यावहारिक मनोविज्ञान एवं योग, МY 502, 1.3 व्यावहारिक मनोविज्ञान अर्थ, विभिन्न मानवीय समस्याओं के सुलझाने में मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों का प्रयोग करना, व्यावहारिक मनोविज्ञान के क्षेत्र में आता है । अर्थात् ,मानव जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में, मनोविज्ञान का व्यावहारिक उपयोग उसकी समस्यों का समाधान करने एवं उसके कल्याण, के लिए किया जाता है। व्यावहारिक मनोविज्ञान का लक्ष्य मानव क्रियाओं का वर्णन, भविष्य, कथन और उसकी क्रियाओं पर नियंत्रण है जिससे कि व्यक्ति अपने जीवन को बुद्धिमता, पूर्वक समझ सकें, निर्देशित कर सकें तथा दूसरे के जीवन को प्रभावित कर सकें ।, व्यावहारिक मनोविज्ञान, मनोविज्ञान का ही एक पक्ष है । जिस प्रकार विज्ञान के, सैद्धांतिक तथा व्यावहारिक दो पहलू होते है उसी प्रकार मनोविज्ञान में सैद्धांतिक के, साथ-साथ व्यावहारिक पहलू भी है। इसमें भी मनोवैज्ञानिक या वैज्ञानिक अपनी प्रयोगशाला, में प्रयोग के आधार पर सामान्य सिद्धांतों की खोज करता है और इनके लाभों को, जनसाधारण तक पहुंचाता है।, 1.4 व्यावहारिक मनोविज्ञान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं विकास -, सर्व प्रथम पैटर्सन ( 1940) ने व्यावहारिक मनोविज्ञान के इतिहास के विकास पर, प्रकाश डाला। उन्होनें, व्यावहारिक मनोविज्ञान के विकास को चार चरणों में बताया है । ये चरण है गर्भावस्था,, a a applied Psychology Comes of Age, जन्मकाल, बाल्यावस्था तथा युवावस्था।, 1. प्रथम चरण, गर्भावस्था पैटर्सन के अनुसार 1882 से लेकर 1917 तक, |, मनोविज्ञान का विकास व्यावहारिक मनोविज्ञान के गर्भावस्था का काल था । इस काल में, गाल्टन, केटेल और बिने जैसे मनोवैज्ञानिकों का योगदान महत्वपूर्ण था । इस काल में, अमेरिका सहित कई देश विश्व युद्ध में लगे हुए थे।, 2. द्वितीय चरण, व्यावहारिक मनोविज्ञान का जन्मकाल माना है और इसी, परीक्षणों का निर्माण हुआ। इस काल में ही अमेरिका जैसे देशों ने सेना में भर्ती के लिए, मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का उपयोग किया और सैनिकों के चुनाव के लिए आर्मी- अल्फा और, आर्मी-बीटा परीक्षणों का निर्माण हुआ । अल्फा परीक्षण अधिकारी वर्ग में चयन के लिए तथा, बीटा परीक्षण जवानों व अनपढ़ लोगों के लिए उपयोग में लिये गए ।, जन्मकाल, पैटर्सन ने 1917 से 1918 तक के समय को, काल में कई मनोवैज्ञानिक, 3. तीसरा चरण, मनोविज्ञान के विकास के काल को व्यावहारिक मनोविज्ञान की बाल्यावस्था मानी जानी, चाहिए। इसी समय, की स्थापना हुई जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय सुधार में मनोविज्ञान के व्यवहार को बढ़ावा देना, बाल्यावस्था, पैटर्सन के अनुसार सन् 1918 से 1937 तक, 1937 में अमेरिका में व्यावहारिक मनोविज्ञान की एक राष्ट्रीय संस्थान, था।, 4. चौथा चरण, युवास्था सन् 1937 के बाद व्यावहारिक मनोविज्ञान, अपनी, युवावस्था में प्रवेश किया। तब से आज तक इसका क्षेत्र बढ़ता ही जा रहा है । वर्तमान, काल में मानव के जीवन के कई कार्य क्षेत्रों में इसका उपयोग हो रहा है ।, उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय, 2
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व्यावहारिक मनोविज्ञान एवं योग, МY 502, 10. विश्व शांति (World Peace), 11. यौन शिक्षा ( Sex-education), 12. क्रीड़ा या खेल क्षेत्र (Sport field), 13. अन्तरिक्ष मनो विज्ञान ( Space psychology), 1. मानसिक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा (Mental Hygiene and Cure), मानसिक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा व्यावहारिक मनोविज्ञान का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है । इस क्षेत्र, में नैदानिक मनोविज्ञान से व्यक्तियों के असामान्य व्यवहार से सम्बन्धित समस्याओं को, समझने, उनके कारणों का पता लगाने तथा उनका निराकरण करके व्यक्ति के वातावरण, को अनुकूल बनाने में सहायता मिलती है । मानसिक स्वास्थ्य को किस तरह उत्तम बनाये, रखा जा सकता है इसके लिए विभिन्न उपायों तथा तकनीकों की खोज की जाती है एवं, इनकी जानकारी व्यक्तियों को दी जाती है।, मनोवैज्ञानिकों के हस्तक्षेप के पूर्व मानसिक विक्षिप्तों पर झाड़-फूख करने वाल, व्यक्तियों द्वारा अमानुषिक व्यवहार एवं अत्याचार किये जाते थे। मानसिक विक्षिप्तों को, बेड़ियों में जकड़ कर बन्द स्थानों पर रखा जाता था | मनोवैज्ञानिकों ने ऐसे मानसिक, विक्षिप्तों की बेड़ियां कटवा कर मनोरोगों के कारणों का विश्लेषण करके उनकी चिकित्सा, प्रारम्भ की। आज प्रत्येक व्यवस्थित एवं विकसित मानसिक चिकित्सालय में ऐसे लोगों, चिकित्सा होती है। कुछ मानसिक रोग जैसे हिस्टीरिया, मनोविक्षिप्तता, मनोग्रंथियां एवं, मनोविदलता के बारे में लोगों में बड़ी भ्रान्तियां फैली हुई थीं । लोग इन रोगियों पर भूत-प्रेत, का प्रभाव मानते थे। कई मनोरोगियों को डायन या चूड़ैल समझा जाता था और उन पर, अनेक प्रकार के अत्याचार किये जाते थे। मनोवैज्ञानिकों ने इन मानसिक रोगों के कारणों, का विश्लेषण करके कारणों का पता लगाकर मानसिक रोगों की सफलता पूर्वक चिकित्सा, की। फ्रायड, युंग, एडलर आदि मनोविश्लेषणवादियों ने इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण अन्वेषण किये ।, मनोवैज्ञानिकों ने इस बात का पता लगाया कि मन और शरीर का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध, है। अतः रोगियों में शारीरिक रोगों के साथ- साथ मानसिक व्याधियां भी लगी होती है। कई, शारीरिक रोगों को दूर करने के लिए आधुनिक चिकित्सक मनोवैज्ञानिकों एवं, मनोचिकित्सकों की सहायता लेते हैं। अनेक विद्वानों का मत है कि यदि मानव प्रवृत्तियों एवं, मानसिक प्रक्रियाओं को ठीक-ठीक और सही ढंग से समझ लिया जाए तो 95 % रोगी, केवल सुझावों (Suggestions) के द्वारा ठीक किये जा सकते हैं ।, मानसिक स्वास्थ्य वर्धन में योग - योग ( ध्यान-योग की विशेष पद्धतियां जैसे-भावातीत, ध्यान, प्रेक्षाध्यान तथा विपश्यना एवं अष्टागं योग) द्वारा मानसिक स्वास्थ्य एवं शारीरिक, स्वास्थ्य को उत्तम बनाये रखा जा सकता है। ध्यान- योग द्वारा मानसिक रोगों की, चिकित्सा भी की जा सकती है । इस क्षेत्र में मनोवैज्ञानिकों द्वारा कई शोध कार्य किये जा, चुके है और निरन्तर चल रहे है । व्यावहारिक मनोविज्ञान के मानसिक स्वास्थ्य एवं, चिकित्सा क्षेत्र में योग मनोविज्ञान का भी महत्वपूर्ण योगदान है । जैसा कि ऊपर कहा जा, चुका है कि ध्यान की विशेष पद्धतियों और योगासनों से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य, बनाये रखा जा सकता है। योग मनोविज्ञान द्वारा भी सम्पूर्ण योग की शिक्षा देकर स्वास्थ्य, को सुधारा जा सकता है और बनाये रखा जा सकता है।, |, उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय
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व्यावहारिक मनोविज्ञान एवं योग, MY 502, 2. सामाजिक समस्याएं (Social Problems), व्यावहारिक मनोविज्ञान का सामाजिक समस्याओं को सुलझाने तथा सही और स्वस्थ, समाज का निर्माण करने में भी महत्वपूर्ण योगदान है । समाज को समृद्ध बनाने और उसकी, प्रगति बनाये रखने में भी व्यावहारिक मनोविज्ञान उपयोगी सिद्ध हुआ है । समाज के, व्यक्तियों के समुचित अनुकूलन के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है । जाति- भेद, समस्या, रूढ़िवादी मानसिकता, दहेज प्रथा, कुपोषण और बाल विवाह जैसी ज्वलन्त, समस्याओं पर व्यावहारिक मनोविज्ञान का उपयोग किया जाता है । सामाजिक सेवाओं, सामाजिक शिक्षा और समाज कल्याण में भी व्यावहारिक मनोविज्ञान का उपयोग किया, जाता है। मनोवैज्ञानिक सर्वेक्षणों, उसको समझकर उसके अनुकूल सुझाव देने व सुधार करने का प्रयत्न किया जाता है ।, पश्चिमी देशों में रंग भेद की समस्याएं एवं समाज में जातिवाद जातिभेद की समस्याएं भी, मनोवैज्ञानिक है। इन सभी को व्यावहारिक मनोविज्ञान द्वारा हल किया जाता है ।, समाज सामाजिक सम्बन्धों की एक व्यवस्था है और इन सामाजिक सम्बन्धों के ठीक, रहने से ही समाज ठीक रहता है। इनमें गड़बड़ी से ही सामाजिक समस्याएं उत्पन्न होती, है। सामाजिक, निर्भर करते है। वास्तव में सामाजिक समस्याएं इसी समायोजन की समस्याएं है । इनको, सुलझाने के लिए भी मनोवैज्ञानिक तरीकों को काम में लिया जाता, आधार पर जनता की अभिरुचि का पता लगाकर एवं, सम्बन्ध मनुष्यों की प्रवृत्तियों, भावनाओं आदि के परस्पर समायोजन पर, 3. शिक्षा (Education), वर्तमान काल में शिक्षा के क्षेत्र में मनोविज्ञान का व्यवहार बढ़ता ही जा रहा है ।, शिक्षा के क्षेत्र में मनोविज्ञान ने क्रांति कर दी है । शिक्षा मनोविज्ञान एक स्वतंत्र विषय बन, गया है। शिक्षा के क्षेत्र की समस्याओं एवं प्रत्यक्षीकरण, स्मृति, चिन्तन, तर्क आदि अनेक, मानसिक प्रक्रियाओं पर शोध एवं मनोवैज्ञानिक नियमों की खोज की जा रही है । पाठ्यक्रमों, को बालकों की रुचि के अनुसार बनाने की चेष्टा की जा रही है । बालकों की रुचि योग्यता, और सर्वांगीण व्यक्तित्व के विकास के लिए विभिन्न शोध कार्य किये जाते रहे हैं। शिक्षा, मनोविज्ञान द्वारा शिक्षा देने के उत्तम उपाय खोजे जा रहे हैं । शिक्षकों को उचित प्रशिक्षण, देने एवं व्यवहार कुशल बनाने के लिए भी शिक्षा मनोविज्ञान की अहम् भूमिका है । बालकों, अनुशासन किस तरह उत्पन्न किया जाए, स्वस्थ आदतें कैसी बनाई जाएं, बुरी आदतें, कैसे छुड़ाई जाएं तथा उनकी विभिन्न योग्यताओं का सर्वोत्तम विकास किस तरह किया, जाए, यह भी शिक्षा मनोविज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है । इस क्षेत्र में मनोवैज्ञानिक, विद्यार्थियों की अभिरुचि तथा मानसिक परीक्षा करके उनके अध्ययन के विषयों को, सुनिश्चित करने में सहायता देते हैं । बालक का सर्वांगीण विकास किस तरह किया जा, सकता है, बालक को क्या पढ़ायें, कब पढ़ायें व कैसे पढ़ायें, इन सम्भावनाओं का भी पता, लगाया जाता है। मनोवैज्ञानिक सुझावों के आधार पर पाठ्यक्रमों में सुधार तथा विद्यार्थियों, में विभिन्न कार्यक्रमों का प्रबन्धन, शिक्षक-विद्यार्थी सम्बन्ध, शिक्षा - प्रणाली आदि का भी, अध्ययन कर इनमें वांछित सुधार किये जाते है ।, उच्च शिक्षा के लिए विषयों के चयन के लिए और शिक्षा समाप्ति के पश्चात्, व्यवसायों के चयन के लिए मनोवैज्ञानिकों के द्वारा परामर्श व निर्देशन दिये जाते है जिससे, छात्रों में भटकाव की सम्भावना कम रहती है । छात्रों की योग्यताएं, अभिवृत्ति, बुद्धि एवं कार्य, उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय, 5