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तर्कशास्त्र का अध्ययन यह आश्वासन नहीं देता है कि किसी का तर्क सही होगा लेकिन कोई व्यक्ति, जिसने तर्कशास्त्र का अध्ययन अच्छे से किया है, उसमें इस बात की ज्यादा संभावना है कि वह उस, व्यक्ति से ज्यादा अच्छा तर्क दे सकता है जिसने तर्क में निहित सिद्धांतों के बारे में सोचा तक नहीं है।, अतएव तर्कशास्त्र के अध्ययन से किसी की तार्किक गुणवत्ता में सुधार होने की ज्यादा संभावना हो सकती, है। यह युक््तियों के विश्लेषण करने का और अपने स्वयं के युक्तियों का इस्तेमाल करने का अवसर, प्रदान करता है। इसलिए यह विकसित की ओर जाने वाली क्षमताओं और तकनीकों की जानकारी वाली, कला के साथ विज्ञान भी है।, , , , , , , , 1.2. तर्कवाक्य और वाक्य (2९7०अप्ृणा आ09 5810९1८९५) और वाक्य (?९००अंप्रण1 110 5९11९॥८९5', , , , हम तर्कवाक्य (?९००५४०1) जो प्रत्येक तर्क या युक्ति (आष्टणाशा() की निर्माण इकाई है की, जांच से, शुरुआत करते हैं। तर्कवाक्य वह है जिससे दावा किया जा सकता है या इनकार किया जा सकता है।, अर्थात प्रत्येक तर्कवाक्य या तो सत्य है या गलत। यद्यपि हम कुछ दी गई तर्कवाक्यों की सत्यता या, असत्यता के बारे में नहीं जान सकते जैसे- हमारी आकाशगंगा में किसी अन्य ग्रह पर जीवन संभव है ऐसा तर्क वाक्य है जिसकी सत्यता या असत्यता के बारे में हम नहीं जानते हैं किंतु यह या तो यह सत्य, है कि वहां ऐसी कोई बाहया लौकिक जीवन है या यह सत्य नहीं है। संक्षेप में तर्कवाक्य की अनिवार्य, विशेषता यह है कि वह या तो सत्य है या असत्य।, , तर्क वाक्य और वाक्य का भेद समझ लिया जाए यह अति आवश्यक है एक ही संदर्भ में विभिन्न प्रकार, से संरक्षित तथा विभिन्न शब्दों वाले दो वाक््यों के अर्थ एक ही हो सकते हैं और इसलिए वे एक ही तरह, के तर्क वाक्य प्रकट कर सकते हैं जैसे, , वाक्य सदैव उस भाषा का भाग है जिसमें इसका प्रयोग होता है जबकि तर्क वाक्य किसी विशिष्ट भाषा, का भाग नहीं होता है। किसी दिए गए तर्कवाक्य को विभिन्न भाषाओं में प्रकट किया जा सकता है फिर, भी इनका एक ही अर्थ होने से यह एक ही तर्कवाक्य को अलग अलग व्यक्त करते हैं।जैसे, , , , , इसी तरह एक ही वाक्य का इस्तेमाल अलग अलग संदर्भ में अलग अलग कथनों के लिए किया जा, सकता है उदाहरणार्थ- सैन्धवानय। (घोड़ा या नमक लेकर आइए) यहाँ सैन्धव शब्द भोजन के समय, नमक के अर्थ में तथा यात्रा के समय में घोडा के अर्थ में प्रयुकत होगा।, , या मेवाड़ एक स्वतंत्र रियासत है। किसी समय यह कथन सत्य था लेकिन वर्तमान में मेवाड रियासत का, प्रदेश राजस्थान राज्य में उदयपुर,राजसमन्द,प्रतापगढ़ आदि जिलों में विभकत होने से यह कथन सत्य, नही है।, , तर्कवाक्य हमेशा सरत्र रूप में ही नहीं होते वरन् तर्कवाक्य मिश्रित भी होते हैं।जैसे किसी गद्यांश में, अनेक तर्कवाक्य भी होते हैं। दो तर्कवाक्य को संयोजन से स्पष्ट करना स्वंय में प्रत्येक तर्कवाक्य के, घटक को स्पष्ट करने के बराबर है। लेकिन कुछ अन्य प्रकार के मिश्रित तर्कवाक्य भी है जो अपने
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से परिणाम प्राप्त किया | 05 ५०५॥ ०५ जिसका तात्पर्य है कि._| #००1५5९९५९॥८९, जाए, , , , इस तथ्य को ध्यान में | ॥195 100 35 जिसके परिणाम स्वरूप. | ८०५5९१५शाए।५, रखते हुए कि, , , , जो हमें यह अनुमान 25 3 1650[, करने की अनुमति देता, है कि, , , , जो इस निष्कर्ष की ओर [णि (115 163501, इंगित करता है कि, , , , , , जो सूचित करता है कि | "०५४५ 0, , , , , , , , , , , , 1.7 निगमन एवं प्रामणिकता (0९6४८४०॥ 910 ४३॥०७४५), , , , प्रत्येक युक्ति यह दावा करता है कि इसके आधार वाक्य निष्कर्षों की सत्यता के लिए आधार बनाते हैं।, वास्तव में, यह दावा युक्ति का प्रतीक है। किंतु युक्तियों के दो मुख्य प्रकार है, , , 1. निगमनात्मक और, 2. आगमनात्मक, , निगमनात्मक युक्ति यह दावा करता है कि इसके आधार वाक्य निश्चयात्मक साक्ष्य प्रदान करते हैं।, इसके विपरीत आगमनात्मक युक््ति इस प्रकार का दावा नहीं करता है।, , , , जब कोई युक्ति यह दावा करता है कि इसके आधार वाक्य (यदि सत्य हो) इसके निष्कर्ष की सत्यता के, लिए अकाट्य आधार प्रस्तुत करते हैं तब दावा या तो सही होगा या गल्नत। यदि यह सही है तो युक्ति, मान्य है। यदि यह दावा सही नहीं है (अर्थात् जब सत्य आधारवाक्य निष्कर्ष को अकाट्य रूप से स्थापित, करने में असफल हो) तो युक्ति अमान्य है।, , , , इसलिए तर्क शास्त्रियों के लिए शब्द “वैधता” केवल निगमनात्मक युक्तियों के लिए लागू होता है।, , , , चूंकि प्रत्येक निगमनात्मक युक्ति अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में या तो सफल रहता है या असफल,, इसल्निए प्रत्येक निगमनात्मक युक्ति या तो अवैध है या वैध।, , निगमनात्मक युक्ति का मुख्य कार्य अवैध से वैध तर्कों को छांट लेना है। पहली तकनीक शास्त्रीय तर्क, कहलाती है और यह अरस्तु के विश्लेषणात्मक कार्यों में निहित है। दवितीय तकनीक आधुनिक, प्रतीकात्मक तर्क की तकनीक है। निगमनात्मक तर्क का मूल कार्य एक ऐसा साधन विकसित करना है, जिसके माध्यम से हम अवैध तर्कों से वैध तर्कों को छाँट सके।
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1.8 आगमन और संभाव्यता (॥0फलांणा गाव 2००१०॥0), , आगमन तर्क का तात्पर्य है विशेष से सामान्य की ओर। जब -हम विचार करते हुये विशेष उदाहरणों के, द्वारा एक सामान्य निष्कर्ष पर पहुंचते हैं अथवा एक घटना की बारम्बार पुनरावृत्ति के आधार पर उसके, संबंध में एक सामान्य धारणा या निष्कर्ष प्रतिपादित करते है। तब उसे तर्क की आगमन प्रक्रिया कहते, हैं। जैसे धुएं के साथ बार को देखकर यह 'बार अग्नि-सामान्य धारणा स्थापित करना कि ,जहाँ धुआं है', ,/आगमन तर्क है। इसी प्रकार 'वहाँ आग है, , आगमनात्मक युक्क्ति यह दावा नहीं करते हैं कि उनके आधार वाक्य सत्य होने पर भी निश्चिततापूर्वक, उनके निष्कर्षों का समर्थन करते हैं। यह कमजोर किंतु फिर भी महत्वपूर्ण दावा करते हैं कि उनके आधार, वाक्य संभाव्यता के साथ निष्कर्षों का समर्थन करते हैं जिसमें हमेशा निश्चयात्मकता का अभाव रहता है।, , आगमनात्मक युक्ति न तो वैध होते हैं और न ही अवैध।, आगमन तर्क का मूल आधार : दो वैज्ञानिक नियम :, , आगमन तर्क की इस प्रक्रिया में अर्थात् कुछ विशेष उदाहरण से सामान्य सिद्धान्त की स्थापना में, दो, वैज्ञानिक नियम मूल आधार है , 1. कारण कार्य नियम (19५४ ० ८१५५०४०॥) : अर्थात् प्रत्येक कार्य का कोई न कोई कारण होता है।, कोई कार्य अकारण नहीं होता तथा कारण होने पर कार्य अवश्य होता है। जैसे आग और जलाने, की शक्ति कारण सम्बन्ध-मनुष्य और मरणशीत्रता में कार्य ,है। अर्थात् जहां आग है वहाँ जलाने, की शक्ति होगी ही। जहाँ मनुष्य है वहां मरणशीलता होगी ही।, , 2. प्रकृति समरूपता का नियम (116 |१७, रण 0४1०॥॥7५ ॥ ५३४७९) : यह नियम प्रकृति की समरूपता, को बताता है अर्थात समान परिस्थितियों में प्रकृति का व्यवहार समान होता है। एक ही प्रकार, की परिस्थितियों में एक खास कारण से एक खास कार्य ही उत्पन्न होता है। प्रकृति समरूपता का, यह नियम कार्य कारण नियम को एक सामान्य रूप देता है।, , , , , , , , सामान्यत: हम कह सकते हैं कि आगमनात्मक युक्तियां “अच्छा या सबसे खराब”, “अधिक मजबूत या, अधिक कमजोर” और इसी प्रकार के हो सकते है।यद्यपि आगमनात्मक युकक्ति में निष्कर्ष कभी निश्चित, नहीं होता है। आगमन का सिद्धांत या आगमनात्मक युकक्ति में निष्कर्ष कभी निश्चयात्मक नहीं होता है।, , निगमन और आगमन तर्क में परस्पर सम्बद्धता:, निगमन और आगमन तर्क की दो महत्वपूर्ण प्रक्रियायें है। दोनों प्रक्रियायें पररुपर संबंधित ही नहीं बल्कि, एक दूसरे पर आधारित भी है। निगमन तर्क के सामान्य सार्वभौमिक आधार वाक्य ,आगमन तर्क से, प्राप्त निष्कर्ष ही होते है। दूसी और आगमन तर्क जिन सार्वभौमिक निष्कर्षों की स्थापना करता है