Question Text
Question 1 :
<b>नीचे दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और प्रश्न के उत्तर के रूप में उचित विकल्प का चयन कीजिए। </b> <br> जंगल में जिस प्रकार अनेक लता, वृक्ष और वनस्पति अपने अदम्य भाव से उठते हुए पारस्परिक सम्मिलन से अविरोधी स्थिति प्राप्त करते हैं; उसी प्रकार राष्ट्रीय जन अपनी संस्कृतियों के द्वारा एक-दूसरे के साथ मिलकर राष्ट्र में रहते हैं। जिस प्रकार जल के अनेक प्रवाह नदियों के रूप में मिलकर समुद्र में एकरूपता प्राप्त करते हैं; उसी प्रकार राष्ट्रीय जीवन की अनेक विधियाँ संस्कृत में समन्वय प्राप्त करती हैं। समन्वययुक्त जीवन ही राष्ट्र का सुखदायी रूप है। <br>राष्टीय जन की तुलना जंगल के लता-वृक्षों से इस उद्देश्य से की गयी है कि-
Question 2 :
<b>नीचे दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और प्रश्न के उत्तर के रूप में उचित विकल्प का चयन कीजिए। </b> <br> <br> भारत सदा से ही संतों, महापुरुषों एवं वीरों की जन्मस्थली रहा है। कहा गया है कि जब-जब संसार में अधर्म की वृद्धि एवं धर्म की हानि होती है तो समाज का उद्धार करने के लिए किसी महापुरुष का जन्म होता है। गौतम बुद्ध का नाम भी ऐसे ही महापुरुष के रूप मैं विख्यात है। गौतम बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ था। उनका जन्म आज से लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व कपिलवस्तु के राजा शुद्धोदन के घर हुआ था। इनके जन्म के विषय में कहा जाता है कि एक बार महारानी महामाया ने स्वप्न देखा कि वे हिमालय के शिखर पर हैं और देवराज इंद्र का वाहन ऐरावत अपनी सुंड् में शतदल कमल लिए उनकी परिक्रमा कर रहा है। राजा को रानी के इस स्वप्न का जब पता चला तो राज- ज्योतिषियों को बुलाया गया। उन्होंने बताया कि यह स्वप्न मंगलसूचक है। महारानी की इच्छा देखकर राजा शुद्धोधन ने उन्हें उनके पिता के पास भेजने की व्यवस्था कर दी। महारानी महामाया नेपाल की थीं। मार्ग में भारत-नेपाल सीमा पर स्थित लुंबिनी वन में गर्भवती महामाया एक बालक को जन्म देकर स्वर्ग सिधार गई। इस बालक को महामाया की छोटी बहन गौतमी ने पाला। बालक के जन्म ने पिता के मनोरथ को पूरा किया, इसलिए इनका नाम सिद्धार्थ रखा गया। बालक सिद्धार्थ की जन्म कुंडली देखकर ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि यह बालक महापुरुषों के गुण लेकर जन्मा है। निश्चय ही यह महायोगी सन्यासी और महान साधक के रूप में ख्याति प्राप्त करेगा। यदि किसी प्रभाव से इसका मन परिवार मैं रम गया तो यह महाप्रतापी राजा बनेगा और अपना नाम उज्जवल करेगा। महाराजा शुद्धोधन ने यह सुना तौ वे चिंताग्रस्त हो उठे। पुत्र की परवरिश राजसी ठाठ के साथ विशेष सावधानी के साथ होने लगी। लेकिन जो योग लैकर पुत्र उत्पन्न हुआ उसका प्रभाव बचपन से ही उसकी प्रवृत्तियों पर स्पष्ट झलकने लगा। बालक सिद्धार्थ बचपन से ही गंभीर प्रकृति के थे। उनका मन राजसी वैभव में नहीं अपितु उद्यान में एकांत चिंतन में लगता था। पिता ने यह देखा तौ राजकुमार सिद्धार्थ का विवाह यशोधरा नाम की राजकुमारी से कर दिया। राजकुमार सिद्धार्थ कुछ दिन तो इस नए पन को देखते-समझते रहे। इसी बीच इनके यहां राहुल नाम के पुत्र ने जन्म लिया। लेकिन विधि को तो कुछ ओर ही स्वीकार था। पत्नी तथा परिवार भी उन्हें मोह-बंधन में न बांध सके। ‘ एक दिन भ्रमण करते हुए राजकुमार सिद्धार्थ को एक रोगी मिला, एक दिन एक बूढा और एक बार उन्हें एक शवयात्रा देखने को मिली। पूछने पर पता चला कि कोई मर गया है। इस तरह इन्हें रोग की भीषणता, वृद्धावस्था की लाचारी और मृत्यु की अनिवार्ययता ने इतना व्यथित किया कि इनका मन संसार से <b>विरक्त</b> हो गया। ये आत्मचिंतन में लीन हो गए। एक दिन रात्रि के तीसरे पहर में पत्नी तथा पुत्र को छोड़ गृह त्याग कर साधना मार्ग पर बढ़ गए। प्रात: काल यशोधरा ने शैथ्या पर जब इन्हें नहीं देखा तो वह सब कुछ समझ गई। पति के इस प्रकार से जाना यशोधरा को गहरा दु :ख हुआ। यशोधरा की इसी पीड़ा को राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने यशोधरा काव्य ने बड़ी मार्मिकता के साथ वर्णित किया है। अनेक स्थानों की यात्रा करते, ज्ञान-पिपासा में राजकुमार सिद्धार्थ ‘ गया ‘ पहुंचे। वहां एक वट वृक्ष के नीचे समाधि लगाकर बैठ गए। वहीं इन्हें ज्ञान हुआ कि सादा जीवन ही उत्तम है। दु :ख का मूल कारण तृष्णा है। सत्य ही तप है। व्यक्ति को आत्म-परिष्कार से ही शांति मिलेगी। इस जीवन मैं कोई छोटा-बड़ा नहीं है। प्रत्येक को भक्ति का पूजा-अर्चना का पूर्ण अधिकार है। इन सबका बोध होने पर वे ‘ बुद्ध ‘ के नाम से विख्यात हुए। जिस वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान मिला उसे बोद्धिवृक्ष कहा जाता है। ‘गया’ मैं बुद्ध सारनाथ गए। यहां से उन्होंने अपने धर्म का प्रचार किया। उनके द्वारा चलाया गया धर्म ही बौद्ध धर्म कहलाया। जातिबंधन तोड़ने के कारण सभी वर्गों विशेषकर छोटे वर्ग के लोगों ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। भारत में सम्राट अशोक ने बुद्ध धर्म के उपदेश को चीन, मध्य एशियाई तथा पूर्व एशियाई देशों में फैलाने में उल्लेखनीय योगदान दिया। आज भले ही समाज में सनातन धर्म, आर्य समाज का प्रबल प्रभाव हो किंतु मानव धर्म की दृष्टि से बौद्ध धर्म का अपना महत्त्व है। गौतम बुद्ध को उनके इस जीवन मंत्र के आधार पर ही भगवान बुद्ध कहा जाता है। <br> <br>गद्यांश के अनुसार, सिद्धार्थ की माता महारानी महामाया कहाँ की निवासी थीं?
Question 4 :
<b>नीचे दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और प्रश्न के उत्तर के रूप में उचित विकल्प का चयन कीजिए।</b> <br> शब्द की आकर्षण शक्ति न्यूटन की आकर्षण शक्ति से लवमात्र भी कम नहीं कही जा सकती। बल्कि शब्द की इस शक्ति को न्यूटन की आकर्षण शक्ति से विशेष कहना चाहिए। इसलिए कि जिस आकर्षण शक्ति को न्यूटन ने प्रकट किया है वह केवल प्रत्यक्ष में काम दे सकती है। सूर्य पृथ्वी को अपनी ओर खींचता है, पृथ्वी चंद्रमंडल को; यों ही जितने बड़े पदार्थ हैं, सब छोटे को आकर्षित कर रहे हैं। किंतु एक पदार्थ दूसरे को तभी आकर्षित करता है, जब वे दोनों एक दूसरे के मुकाबले में हों। पर शब्द की आकर्षण शक्ति में यह आवश्यक नहीं है क्योंकि शब्द की आकर्षण शक्ति तभी ठहर सकती है जब नेत्र भी वहाँ योग देता हो। इन शब्दों का जितना ही अधिक समूह बढ़ता जाएगा उतनी ही उनमें आकर्षण शक्ति भी अधिक होती जाएगी। प्रत्येक जाति के धर्म ग्रंथ इसके प्रमाण हैं। वेदादि धर्म-ग्रंथ जो इतने माननीय हैं सो इसीलिए की उनमें धर्म का उपदेश ऐसे शब्द समूहों में है जो चित्त को अपनी ओर खींच लेते हैं और ऐसा चित्त में गड़ के बैठ जाते हैं कि हटाए नहीं हटते। न्यूटन ने जिस आकर्षण शक्ति को प्रकट किया वह उनके पहले किसी के दिलों को आकर्षित न कर सकती थी। वृक्ष से फल का टूट कर नीचे गिरना साधारण-सी बात है पर किसी के मन में इसका कोई असर नहीं होता। न्यूटन के चित्त में अकस्मात् आया कि ‘‘यह फल ऊपर न जा कर नीचे को क्यों गिरा।’’ अवश्य इसमें कोई बात है। देर तक सोचने के उपरांत उसने निश्चय किया कि इसका कारण यही है कि ‘‘बड़ी चीज छोटी को खींचती है।’’ पर शब्द की आकर्षण शक्ति में इतना असर है कि वह मनुष्य की कौन कहे वन के मृगों को भी मृग्ध कर देती है। <br>गद्यांश के अनुसार धर्म-ग्रंथों की क्या विशेषता है?