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पाठ - 11, जब सिनेमा ने बोलना सीखा, पाठ से:, , उत्तर1: देश की पहली बोलती फिल्म के विज्ञापन के लिए छापे गए वाक्य इस प्रकार थे "वे सभी सजीव हैं, साँस ले रहे हैं, शत-प्रतिशत बोल रहे हैं, अठहत्तर मुर्दा इनसान जिंदा, हो गए, उनको बोलते, बातें करते देखो।", पाठ के आधार पर 'आलम आरा' में कुल मिलाकर 78 चेहरे थे अर्थात् काम कर रहे थे।, , उत्तर2: फिल्मकार अर्दैशिर एम. ईरानी ने 1929 में हॉलीवुड की एक बोलती फिल्म 'शो बोट' देखी, और तभी उनके मन में बोलती फिल्म बनाने की इच्छा जगी। इस फ़िल्म का आधार, उन्होंने पारसी रंगमंच के एक ल्रोकप्रिय नाटक से लिया।, , उत्तर3: विट्वल को फ़िल्म से इसलिए हटाया गया कि उन्हें उर्दू बोलने में परेशानी होती थी। पुनः, अपना हक पाने के लिए उन्होंने मुकदमा कर दिया। विट्ठल मुक दमा जीत गए और भारत, की पहली बोलती फिल्म के नायक बनें।, , उत्तर4: पहली सवाक् फिल्म के निर्माता-निर्देशक अर्देशिर को प्रदर्शन के पच्चीस वर्ष पूरे होने पर, सम्मानित किया गया और उन्हें "भारतीय सवाक् फिल्मों का पिता" कहा गया तो उन्होंने, उस मौके पर कहा था, - "मुझे इतना बड़ा खिताब देने की जरूरत नहीं है। मैंने तो देश के, लिए अपने हिस्से का जरूरी योगदान दिया है।" इस प्रसंग की चर्चा करते हुए लेखक ने, अर्देशिर को विनम्र कहा है।, , , , पाठ से आगे:, , उत्तर1: मूक सिनेमा ने बोलना सीखा तो बहुत सारे परिवर्तन हुए। बोलती फिल्म बनने के कारण, अभिनेताओं पढ़ा-लिखा होना ज़रूरी हो गया, क्योंकि अब उन्हें संवाद भी बोलने पड़ते थे।, दर्शकों पर भी अभिनेताओं का प्रभाव पड़ने लगा। नायक-नायिका के लोकप्रिय होने से, औरतें अभिनेत्रियों की केश सज्जा तथा उनके कपड़ों की नकल करने लगीं। दृश्य और, श्रव्य माध्यम के एक ही फ़िल्म में समिश्रित हो जाने से तकनीकी दृष्टि से भी बहुत सारे, परिवर्तन हुए।, , उत्तर2: फिल्मों में जब अभिनेताओं को दूसरे की आवाज़ दी जाती है तो उसे डब कहते हैं।, , तारा! 5णाणा, , कभी-कभी फिल्मों में आवाज़ तथा अभिनेता के मुँह खोलने में अंतर आ जाता है क्योंकि, डब करने वाले और अभिनय करने वाले की बोलने की गति समान नहीं होती या किसी, तकनीकी दिक्कत के कारण हो जाता है।